Monday, July 11, 2011

मां का दूध पीनेवाले बच्चे बनते हैं व्यवहार कुशल

यह बात बहुत पहले से ही मालूम है कि पहले छह महीने तक स्तनपान ( ब्रेस्ट फ़ीडिंग ) कराने से बच्चे कई तरह की बीमारियों और एलर्जी से बचे रहते हैं.
अब एक नये रिसर्च में यह बात सामने आयी है कि इससे वे बड़े होकर ज्यादा व्यवहारकुशल भी बनते हैं. ऑक्सफ़ोर्ड यूनिवर्सिटी में शोधकर्ताओं ने एक शोध में पाया कि पहले चार महीने तक स्तनपान कराने से ही बच्चों में बड़ा होकर बुरा बर्ताव करने का खतरा एक तिहाई तक कम हो जाता है. स्टडी टीम ने पाया कि चार महीने तक स्तनपान करने वाले बच्चों के मुकाबले फ़ॉम्र्युला मिल्क पर पले 16 फ़ीसदी बच्चों में एंग्जाइटी, झूठ बोलना, चोरी और ज्यादा गुस्सैल होने जैसी प्रवृतियां देखी गयी.
टीम लीडर डॉक्टर मारिया क्वीग्ली की अगुआई में टीम ने 9500 मांओं और बच्चों पर स्टडी की. ब्रिटेन में साल 2000 से 2001 के बीच की 12 महीने के दौरान पैदा हुए बच्चों पर की गयी इस स्टडी  के दौरान के पैरंट्स से पांच साल की उम्र तक उनके बच्चों के बर्ताव के बारे में सवाल पूछे गये. नतीजे में पाया गया कि फ़ॉम्र्युला मिल्क पर पले बच्चों में से 16 फ़ीसदी और स्तनपान पर पले बच्चों में से सिर्फ़ 6 फ़ीसदी में असामान्य बर्ताव विकसित हुआ.

दूर से ही दुश्मनों का सफ़ाया करेगी इंटरसेप्टर मिसाइल

वायु सीमा रक्षा प्रणाली के क्षेत्र में एक और ऐतिहासिक उपलब्धि हासिल करने की कोशिश के तहत भारत ने पांच हजार किलोमीटर की इंटरसेप्टर मिसाइल तैयार करने पर काम शुरु कर दिया है.
इस इंटरसेप्टर मिसाइल के 2016 तक बनकर तैयार होने की पूरी उम्मीद है. यह रक्षा प्रणाली भारतीय वायु सीमा में प्रवेश करने से पहले ही दुश्मन की किसी भी मिसाइल को पांच हजार किलोमीटर की दूरी से ही पहचान कर नेस्तनाबूद कर देगी. रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन ( डीआरडीओ ) बैलेस्टिक मिसाइल डिफ़ेंस ( बीएमडी ) सिस्टम के तहत पहले ही एक ऐसी इंटरसेप्टर मिसाइल का निर्माण कर चुका है जो 2000 किलोमीटर की दूरी से दुश्मन मिसाइल को ध्वस्त कर देती है.
इसी प्रयास के दूसरे चरण के तहत अब 5,000 किलोमीटर दूर से दुश्मन की मिसाइल को गिराने की क्षमता वाली इंटरसेप्टर मिसाइल पर काम किया जा रहा है. डीआरडीओ प्रमुख वीके सारस्वत ने बताया कि इसइंटरसेप्टर मिसाइल का निर्माण कार्य 2016 से पहले पूरा होने की उम्मीद है.

खनन से डूबे दो द्वीप

भारत और श्रीलंका के बीच मन्नार की खाड़ी में स्थित दो छोटे द्वीप समुद्र में डूब गये हैं. विशेषज्ञों के मुताबिक ऐसा मूंगे की चट्टान खोदने की वजह से हुआ है. दोनों द्वीप एक ऐसे द्वीप-समूह का हिस्सा थे, जिसे दक्षिण ऐशया का पहला समुद्री जीव संरक्षित क्षेत्र घोषित किया गया है.
तमिलनाडु में इस क्षेत्र के वन संरक्षक के मुताबिक मछुआरों ने पूमारीचान और विलांगुचाल्ली में पिछले कई दशकों तक गैरकानूनी ढंग से मूंगे की चट्टानें खोदीं थीं. इससे जलवायु में परिवर्तन हुआ और समुद्र का जल स्तर बढ़ गया. हालांकि, ब्रिटेन की प्राउडमैन ओशियानोग्रैफ़िक लेबॉरिटरी के साइमन हौलगेट इससे सहमत नहीं हैं, उनका तर्क है कि उस इलाके में जल स्तर बढ़ने की दर दुनिया की औसत से कम है. ये छोटे द्वीप समुद्र से सिर्फ़ 10-15 फ़ीट ऊंचे थे.
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