Thursday, March 22, 2012

कबीर की स्पष्टवादिता तथा उनके ऊँचे रूहानी सन्देश का ज़बाब न तो बनारस के पंडितों के पास था और न ही कट्टर शरीयत के कैदी मुल्लाओं के पास | कबीर का उपदेश लोगों को रूढ़ीवाद और धार्मिक रीति-रिवाजों से हटा कर प्रभु की अंतर्मुख आराधना की ओर प्रेरित करने के लिए था | इससे पुरोहितों और मुल्लाओं की रोजी-रोटी पर असर पड़ने लगा | उन्होनें कबीर को सताने में कोई कसर न छोडी | परन्तु सन्त अपने सन्देश को हमेशा स्पष्ट रूप में बिना किसी डर या संकोच के समझाते हैं | कबीर जब विचलित न हुए तो उन्होनें राज्य की शरण ली | परन्तु बनारस का राजा खुद कबीर जी का प्रसंशक था और माना जाता है कि उसने कबीर से गुरु-मन्त्र भी लिया था | उससे कबीर को विरोधियों को कोई मदद नहीं मिली |

There was no answer to the clear and enlightened spiritual message of Kabir by neither the orthodox pundits (Hindu priests) nor the conservative ritualistic Mullahs (Muslim priests). The message of Kabir was directed to move people from outward religious practices to inward meditation of Lord. This started effecting the egos and livelihood of conservative priests whose interest was more served by ignorance of the masses. They left no opportunity to harass Kabir. But Saints remain fearless and teach their spiritual message without any fear or hesitation. When Kabir did not perturb then they took shelter of the state. But King of Benaras was a great devotee of Kabir and took initiation from him so they did not get any help from him.

In the end of fifteenth century, Sultan Lodhi came to Benaras. It is said that he committed lot of atrocities on Kabir under the influence of conservative pandits and mullahs. After complaints by them, he called Kabir to his court. Kabir raised his hand in salutation as is done while wishing ordinary people and not to a royal person like the king. Qazee asked Kabir that why he has not given royal salute to king Sikander Lodhi. Kabir replied that he knows only one King, the Lord and he bows only to Him. Qazee had no reply to this as Islam tells that a real muslim should bow his head only to the Almighty and no one else.

पंद्रहवीं शताब्दी के अंत में सुलतान सिकंदर लोदी बनारस आया | कहते हैं कि मुल्लाओं और पंडितों के प्रभाव में उसने कबीर पर कई ज़ुल्म किये | काजी और पंडितों की शिकायत पर सुलतान ने कबीर को अपने दरबार में बुलाया | कबीर ने हाथ उठाकर सुलतान को सलाम किया, जैसा कि आम लोगों के साथ किया जाता है | काजी के यह पूछने पर कि कबीर ने शाहंशाह सिकंदर लोदी को सिर झुका कर क्यों आदाब नहीं किया, कबीर ने ज़बाब दिया कि वे एक ही शाहंशाह को जानते है और उसी को सिर झुकाते हैं | काजी के पास इसका कोई उत्तर नहीं था, क्योंकि इस्लाम के अनुसार सच्चे मुसलमान को चाहिये कि वो एक खुदा के सिवाय और किसी के आगे सिर न झुकाये |

Qazee put another charge on Kabir that he tells that Ram of Hindus and Khuda of Muslims are one and the only one entity, the Lord. In one of his famous book “Tareekh-e-Firishta”, medieval historian writes that Sikander Lodhi had already sentenced one Brahmin named as Bodhan to death for telling that Ram and Khuda are one and the same thing. Kabit said, “The power which resides in everyone is neither hindu nor muslim. The Almghty Lord is present in everyone’s heart. One should search Him within his heart. This One Power is the sustainer of all actions of hindus and muslims. But people fight unnecessary on His name without searching the reality.”


काजी ने दूसरा इलज़ाम लगाया कि कबीर हिन्दुओं के राम और मुसलमानों खुदा को एक बताते हैं | अपनी प्रसिद्द पुस्तक तारीख-ए-फिरिश्ता में मध्यकालीन इतिहासकार लिखता है कि राम और खुदा को एक बताने के जुर्म में सिकन्दर लोदी ने बोधन नामक एक ब्राह्मण को मौत की सज़ा दी थी | इस पर कबीर ने कहा, "जो ताकत इंसान के शरीर में बैठकर बोल रही रही है वह न हिन्दू है न मुसलमान | वह परवरदिगार हर घट में मौजूद है | उसको अपने घट में तलाश करो | वह एक ही हिन्दू और मुसलमान दोनों का कर्ता है | पर लोग उसका भेद पाने की बजाय उसके नाम पर आपस में झगड़ते हैं |"

Pundits complained that Kabir is from lower caste not authorized to speak on spiritual matters as only Brahmins are authorized to conduct spiritual matters. He criticizes about the temple, idols and Hindu rituals. Qazee alleged that Kabir speaks against Haz, Qaba and Rozas (Fasting in month of Ramzan) and thus is enemy of Islam and an infidel (Kafir). The sultan face reddened with anger. He told Kabir that he should apologize for these words or else get ready for punishment. But Kabir was fearless and firm. He refused to apologize as it was no crime to speak spiritual truth and worship God in proper manner.


पंडितों ने आरोप लगाया कि एक नीची जाति का होते हुए भी कबीर हिन्दुओं के मंदिरों, मूर्तियों तथा पूजा-पाठ की निन्दा करता है | काजी ने कहा कि कबीर हज, काबा और रोज़े के खिलाफ बोलता है; वह मज़हब का दुश्मन है, काफिर है | सुलतान का चेहरा गुस्से से तमतमा उठा | उसने कबीर से कहा कि या तो वह अपनी बातों के लिए माफी मांगे या सजा के लिए तैयार हो जाये | पर कबीर निडर और निश्चिन्त थे | उनके चेहरे पर न कोइ शिकन थी न भय के भाव | उन्होनें माफी मांगने से इनकार कर दिया क्योंकि प्रभु की भक्ति करना या रूहानियत की हकीकत बयान करना कोई जुर्म नहीं है |

Now in those times, Muslim rulers ruled with help of mullahs filled with religious orthodoxies and brutality and their answer to opposition to their views was the use of force – the sword. Mulaah immediately cried, “Laahol-Wila-Quvvat (A great crime).” Sultan ordered that Kabir should be drowned by force in the river. Kabir prayed, “O Lord! I always want your shelter. But this world considers the lover of God as their enemy. You are my shelter in life and death.” (Anantdas, Kabir ki parichayee, Parichayee Sahitya, Page 44)


अब मुस्लिम शासकों में कट्टरता और धर्मान्ध उनके दरबार में बैठे मुल्लाओं के हाथ में होती थी और उनकी एक-मात्र दलील तलवार होती थी | मुल्ला एक दम चिल्ला पड़े, "लाहोल-विला-कुव्वत" | सुल्तान ने हुक्म दिया कि कबीर को नदी में डुबो दिया जाये | कबीर ने कहा, "हे प्रभु, मैं हमेशा तेरी शरण चाहता हूँ | लेकिन दुनिया तेरे भक्तों को अपना दुश्मन मानती है | जीवन और मरण में तू ही मेरा सहारा है |" (अनंतदास, कबीर की परिचयी, परिचयी साहित्य, प्र. ४४ )

Kabir’s hands and feet were tied with iron chainsand he was put in the centre of river. But it is told that the waves broke the chains and with their force carried Kabir to the river shore. Qazee and pundits spoke in same language, “O King! This is all trick of Kabir, he is a magician also. “But Kabir was immersed in love of the Lord and said, “O Lord! There is no one in the world with me except You. You are my caretaker both in land and water. This reality is registered in Guru Granth Sahib like this:

कबीर के हाथ-पैर ज़ंजीर से बाँध दिए गए और उन्हें नदी के बीच में जाकर डाल दिया | परन्तु कहा जाता है कि लहरों नें ज़ंजीर को तोड़ दिया और कबीर को अपने उछाल से नदी के तट पर पहुँचा दिया | काजी और पंडित एक-स्वर में बोले, "शाहंशाह. यह सब कबीर का छल है, क्योंकि यह जादूगर भी है |" परन्तु कबीर प्रभु के प्रेम में लीन थे, बोले "हे प्रभु, संसार में मेरा कोई संगी और साथी नहीं है | जल और थल में तू ही मेरा रखवाला है |" श्री आदि ग्रन्थ में सम्मिलित एक पद में कबीर कहते हैं:

गंग गुसाइनि गहिर ग्मभीर ॥
जंजीर बांधि करि खरे कबीर ॥१॥
मनु न डिगै तनु काहे कउ डराइ ॥
चरन कमल चितु रहिओ समाइ ॥ रहाउ ॥
गंगा की लहरि मेरी टुटी जंजीर ॥
म्रिगछाला पर बैठे कबीर ॥२॥
कहि क्मबीर कोऊ संग न साथ ॥
जल थल राखन है रघुनाथ ॥३॥१०॥१८॥ (SGGS 1162)

The mother Ganges is deep and profound. Tied up in chains, they took Kabeer there. My mind was not shaken; why should my body be afraid? My consciousness remained immersed in the Lotus Feet of the Lord. The waves of the Ganges broke the chains, and Kabeer was seated on a deer skin. Says Kabeer, I have no friend or companion. On the water, and on the land, the Lord is my Protector.

Now Sultan thought in his mind that even though these religious fools may say anything against Kabir but Kabir is really a great man. If I ask these Mullahs whether they would be able to repeat Kabir’s feat then no one will be able to do that. But on those times, Muslim king ruled with support of mullahs and sword and it was difficult to restrain from following their dictates as they may conspire with their kith and kin to usurp the kingdom and kill the ruling king. Thus against his wishes, he ordered that Kabir should be trampled under the feet of rogue elephant. The elephant driver tried three times but the elephant bowed Kabir and did not move to kill Kabir even when the elephant was hit with ankush (iron road) on his head . How could he have trampled Kabir as per words of Kabir – God resides in him also.


अब सुल्तान में मन में ये तो आया कि ये मुल्ला कुछ भी कहें, ये कबीर कोई पहुँची हुई चीज़ है | अगर मैं इन मुल्लाओं से ही कहूं कि तुम में से कोई इस तरह से नदी से बच कर दिखाए तो इनमें से कोई भी नहीं कर पायेगा | पर उस वक़्त मुसलमान शासक का राज सिर्फ मुल्लाओं और तलवार पर चलता था क्योंकि ये मुल्ला उनके किसी फरमान की तामील न होने पर सुल्तान के किसी भाई-भतीजे को ही उकसाकर सुल्तान को मारने के षड्यंत्र रच देते थे | इसलिए मन में अन्दर न मानते हुए भी उसने आदेश दिया कि कबीर को मस्त हाथी के सामने डाल दिया जाये | महावत ने बहुत कोशिश की कि हाथी पैर बड़ा कर कबीर को कुचल दे, परन्तु अंकुश की चोटों के बाबजूद हाथी अपने स्थान पर अड़ा रहा | वह प्रभु के प्रेमी को कैसे कुचल सकता था. क्योंकि, कबीर के शब्दों में उसके ह्रदय में भी परमात्मा निवास करता है :

भुजा बांधि भिला करि डारिओ ॥
हसती क्रोपि मूंड महि मारिओ ॥
हसति भागि कै चीसा मारै ॥
इआ मूरति कै हउ बलिहारै ॥१॥
आहि मेरे ठाकुर तुमरा जोरु ॥
काजी बकिबो हसती तोरु ॥१॥ रहाउ ॥
रे महावत तुझु डारउ काटि ॥
इसहि तुरावहु घालहु साटि ॥
वा कै रिदै बसै भगवानु ॥२॥
हसति न तोरै धरै धिआनु ॥
किआ अपराधु संत है कीन्हा ॥
बांधि पोट कुंचर कउ दीन्हा ॥
कुंचरु पोट लै लै नमसकारै ॥
बूझी नही काजी अंधिआरै ॥३॥
तीनि बार पतीआ भरि लीना ॥
मन कठोरु अजहू न पतीना ॥
कहि कबीर हमरा गोबिंदु ॥
चउथे पद महि जन की जिंदु ॥४॥१॥४॥


They tied my arms, bundled me up, and threw me before an elephant. The elephant driver struck him on the head, and infuriated him. But the elephant ran away, trumpeting, I am a sacrifice to this image of the Lord". O my Lord and Master, You are my strength. The Qazi shouted at the driver to drive the elephant on. He yelled out, "O driver, I shall cut you into pieces. Hit him, and drive him on! But the elephant did not move; instead, he began to meditate. The Lord God abides within his mind. What sin has this Saint committed, that you have made him into a bundle and thrown him before the elephant? Lifting up the bundle, the elephant bows down before it. The Qazi could not understand it; he was blind. Three times, he tried to do it. Even then, his hardened mind was not satisfied. Says Kabeer, such is my Lord and Master. The soul of His humble servant dwells in the fourth state. (SGGS 870)

Then Kabir was thrown in burning pyre but Kabir came safely out of it. As per Priyadas, his face was radiating with divine brilliance.

Now when Mullahs does such type of acts then they paln to gather large crowds so that people may also learn lesson with fear. But contrary happened as they were mesmerized by Kabir’s greatness. Now Sikander Lodhi realized that something wrong is being done and Kabir is really a spiritually enlightened person. He looked towards Qazee and priests but they were too much shocked to speak. Sultan ordered to free Kabir and got up from his throne and came near Kabir. There was sign of mercy and compassion in eyes of Kabir. The eyes of Sultan bowed down and there was feelings of apology and remorse in them. Finally he said to Kabir, “I was not aware of your greatness. You are a very enlightened person and saint of high cadre. I would request you to pardon me.”

इसके बाद कबीर को जलती चिता में फैंका गया, परन्तु उसमें से भी कबीर सकुशल निकल आये | प्रियादास के अनुसार उनका मुख अनुपम तेज़ से चमक रहा था |

अब मुल्ला जब इस तरह के काम करते हैं तो बड़ी भीड़ इकठ्ठा कर के रखते हैं जिससे बाकी जनता भी दहशत में आये | पर हुआ उल्टा और उपस्थित जन-समूह स्तब्ध सा खडा यह सब देख रहा था | अब तो सिकन्दर लोधी को लग गया कि वह कुछ गलत कर रहा है और यह कबीर कोई बहुत ही पहुँची हुई शख्सियत है | उसने काजी और पुरोहितों की तरफ देखा | वे खामोश थे | सुल्तान ने कबीर के बंधनों को खोलने का हुक्म दिया और उठ कर कबीर के पास आया | कबीर की द्र्ष्टि में करुणा और दया थी | सुलतान की नज़र झुक गयी, उसके चेहरे पर दुःख और पश्चात्ताप के भाव थे | आखिर वह बोला, " मुझे आपकी अजमत (महानता) का पता न था | आप एक ऊँचे दर्जे के फकीर हैं, खुदा के बन्दे हैं | मुझे माफ़ कर दें |

With head bowed and eyes lowered, Sultan was standing in front of Kabir like a ordinary culprit. With a merciful smile, Kabir said, “It is not your fault. It was Lord’s will. He does what he wills. Sultan ! raise your head and forget what happened in past. God is ocean of grace and love. He gives importance to real love than ritualistic conduct. The real repenting is always regarded in the court of Lord. Do not worry, God will pardon you.”

सर झुकाए, नज़र नीची किये सुलतान कबीर के आगे एक साधारण अपराधी की तरह खडा था | एक दयापूर्ण मुस्कान के साथ कबीर ने कहा, "तुम्हारा कोई दोष नहीं | खुदा को यही मंज़ूर था | जो वह ठीक समझता है, वही करता है | सुलतान सिर उठाओ, जो हो चुका उसे भूल जाओ | खुदा रहम और प्यार का दरिया है | वह शरियत से ज्यादा हकीकत को तरजीह देता है | सच्चा पछतावा करने वालों की उसके दरबार में कद्र होती है | फिक्र न करो, वह तुम्हे माफ़ करेगा |”

Sultan was really amazed. There were no signs of anger on Kabir’s face and no sign of bitterness in his words. There was no sign of hardfeelings like other saints in Kabir’s heart for his critics or torturers. He pardoned Sultan. Kabir was very compassionate and tender-hearted and in his words-Only saints can play the game of compassion and pardon.


It is said that Sikander Lodhi offered to gift money and land to Kabir but Kabir refused to accept it.


सुलतान हैरान खड़ा था | कबीर के मुख पर नाराजगी के कोई चिन्ह न थे, उनके वचनों में कोई कडवाहट नहीं थी | सभी सन्तों की तरह कबीर के ह्रदय में भी अपने निंदकों और सतानों वालों के लिए कोई द्वेष नहीं था | उन्होनें सुलतान को क्षमा कर दिया था | कबीर कोमल ह्रदय और दयालु थे और उनके ही शब्दों में क्षमा ही वह खेल है जिसे सन्त ही खेल सकते हैं - 'छिमा साध का खेल है' | (कबीर साखी संग्रह प्र. १२२)

कहते हैं कि सिकन्दर लोदी ने कबीर को धन और ज़मीन भेंट करना चाहा, किन्तु कबीर ने स्वीकार नहीं किया |

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