बचपन में एक संस्कृत का श्लोक पड़ते थे:
शैले शैले न माणिकयम, मोक्तिकम न गजे गजे |
सज्जनम ही न सर्वत्रे, चंदनम ना वने वने ||
यानी हर पर्वत पर मणी नहीं मिलती | हर हाथी के मस्तक में मोती नहीं मिलता | हर जंगल में चन्दन का पेड़ नहीं मिलता और हर जगह संत जन नहीं मिलते | ये तो प्रकृति का विधान है कि हर असली चीज़ के पीछे दस नकली चीज़ पहले बन जाती हैं | आज कितने कालेज खुल रहे हैं जो नकली डिग्रियां दे रहे हैं पर आई आई टी और आई आई एम् जैसे स्कूल भी हैं | जिसको जैसा चाहिए वैसा मिलता है | करोडो में विरला एक आध एक संत होता है बाकी सब भेषधारी होते हैं | हीरा इसलिए कीमती है क्योंकि वह दुर्लभ है और कितने लोग नकली हीरा भी बेचते हैं पर फिर भी लोग असली हीरा खरीदना बंद नहीं कर देते |
गुरु का महत्त्व ज़िन्दगी के हर पहलू में रहा है और रहेगा | बचपन में माँ गुरु होती है जो चलना-फिरना, खाना-पीना सिखाती है | बाप बच्चे को घर से बाहर ले जाकर दुनिया के तौर-तरीके सिखाता है | स्कूल में अध्यापक और किताबें गुरु का रूप लेती हैं | कार्य के स्थान पर हमारे वरिष्ठ साथी हमारे गुरु बनते हैं | अगर विदेश जाना हो और अगर साथ में एक अनुभवी मार्गदर्शक ले लें तो मार्ग सहज हो जाता है | और रूहानियत का मार्ग तो बहुत जटिल है इसमें तो बिना गुरु के एक कदम भी इनसान आगे नहीं चल सकता है | पुराणों और वेदों में गुरु का महत्व बहुत बताया गया है | गुरुवाणी तो यह कहती है - बिन गुरु कोई न उतरस पार प्रभु ऐसी बनत बनायी है | फिर यह कहती है कि अगर बिना गुरु के अपने बलबूते पर मालिक मिलता होता तो अभी तक हम झक क्यों मार रहे हैं, क्यों नहीं अभी तक मालिक को प्राप्त किया ? - आपण कीजे जो मिले, तो बिछड़ क्यों रोवे |
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