Thursday, August 11, 2011

फादर ने बच्ची को थप्पड़ मारा

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पटना. ईसा मसीह अपने शिष्यों से क्षमादान के रहस्य के बारे में कहते हैं कि आप अनगिनत बार क्षमादान करों. इसमें कंजूसी मत करो. मगर आज के ईसा मसीह के शिष्य उनकी दी गयी नसीयतों को दरकिनार करने से बाज नहीं आ रहे हैं. हाल यह है कि अब तो उनके द्वारा अन्य लोगों की सहायता और सहयोग लेकर भी क्षमाप्रार्थी को अपराधी करार कर देने से हिचकते नहीं हैं. यहां तक कि ईसा मसीह के शिष्य भी औरों की तरह ही बन्दे को यूज एण्ड थ्रो करने से पीछे नहीं हटते हैं. अगर इस क्रम में कोई दीवार बनकर सामने आते हैं तो ईसा मसीह के शिष्य उक्त शख्स को ठिकाने लगाने से बाज नहीं आते हैं. ऐसे लोगों के द्वारा निकली चिंगारी को बुझाने एवं दबाने के लिए स्थानीय दबंगों के दम का भी सहारा लेने में संकोच नहीं करते हैं. हालिया खबर यह है कि केरल प्रदेश के एक फादर ने एक बच्ची को पाप स्वीकार नहीं करने के एवज में थप्पड़ दे मारा. मामला थाना से गुजर कर कोर्ट तक पहुंच गया है. अब उक्त फादर के द्वारा मामले को दबाने का जोरशोर से प्रयास किया जा रहा है.
एक ईसाई पुरोहित ने एक बच्ची को थप्पड़ मारा, यह सुनने में जरूर अटपटा सा लगता है. कारण कि पवित्र बाइबिल में उल्लेख है कि जब ईसा मसीह से शिष्यों ने क्षमादान करने के रहस्य के बारे में सवाल किया तो उनका सहज सा जवाब था कि क्षमादान करने के लिए कोई लक्षण रेखा नहीं है इसको आप सीमाओं के परिधि के अंदर नहीं बांध सकते हैं. यह तो अनंत और अनगिनत है बस क्षमादान करने वालों पर निर्भर है कि वे कितने धैर्यवान और सहनशील हैं. मगर आज तो ईसा मसीह का कथन और नसीयते तो आजकल के देशी नेताओं की तरह और उनके आश्वाशन की तरह हो गया है. ईसा मसीह की नसीयत बस गिरजाघर के चहारदीवारी तक ही सीमित रह गयी है. गिरजाघर के बाहर आते ही गिरगिट की तरह रंग बदलने लगते हैं. उनके गिरजाघर में कथनी और गिरजाघर के बाहर करनी में विरोधाभास हो जाता है. जिस पद पर ईसा मसीह के शिष्य विराजमान रहते हैं उसी की बोली बोलने लगते है. अब तो धार्मिक मान्यता को दरकिनार करके विशुद्ध पेशेवर नजर आने लगे हैं.
यह घोर सत्य है कि अब के ईसा मसीह के तथाकथित शिष्य धार्मिक नसीयतों से बाज आने लगे हैं उसको सुनना और समझना भी पंसद नहीं करते हैं. आरंभ में धार्मिक लोक प्रसंग को उठाकर ईसा मसीह के शिष्यों के साथ तर्क विर्तक करके शिष्यों को खलनायक समझा जाता था. कम से कम इस भ्रम को छोड़ ही देना चाहिए अब तो ईसा मसीह के शिष्य खलनायकों की तरह सहने और उसकी भूमिका के तहत फजीयत करवाना छोड़ दिये हैं. इसी तरह के पुरोहितगिरी का मामला सामने आया है. पुरोहित के हीरोगिरी की शिकार एक बच्ची बन गयी. बच्ची का कसूर इतना भर था कि उसने पुरोहित के द्वारा दिये गये निर्देश का अनुपालन ही नहीं किया. और बड़ी ही जिंदादिली से खुलेआम ईमानदारी पूर्वक बच्चों के बीच सार्वजनिक तौर पर स्वीकार कर लिया कि उसने पुरोहित के द्वारा दिये गये निर्देश का अनुपालन गत तीन माह से नहीं किया है. यहां उल्लेखनीय है कि आजकल ईसाई कलीसिया के द्वारा खुलेमन से पाप स्वीकार करने की इजाजत दी गयी है. कोई भी वंदा गिरजाघर में ईसा मसीह को सशरीर उपस्थित मानकर किये गये पापों पर प्रायश्चित कर सकता है. इसके अलावा पवित्र बाइबिल में उल्लेख है और प्रार्थनाओं में जिक्र है कि साल के दिनों के पवित्र त्योहार में पवित्र मन से एक बार पवित्र मिस्सा में भाग लेना. कम से कम एक बार पाप स्वीकार करने के परम प्रसाद ग्रहण करना है. तो किस हिसाब से केरल के पुरोहित ने तीन माह का नियम बनाकर बंधन में बांध दिया. होता यह है कि बच्चो को समझाया और सिखाया जाता है कि आप प्रत्येक रविवार के दिन गिरजाधर में जाकर मिस्सापूजा में भाग ले. वहां पहले पाप स्वीकार करे और बाद में परमप्रसाद ग्रहण भी करे.
गैर ईसाइयों के द्वारा भी पवित्र नदियों में डूबकी लगाकर पाप से मुक्ति पा लेते हैं. उसी तरह ईसाई धर्म में ईसा मसीह के शिष्य यानी पुरोहितों को अधिकार है कि वह पाप स्वीकार करें. जिन्होंने ईसाई धर्म कबूल किया है वे सभी पुरोहित के पास जाकर पाप स्वीकार करते हैं. तब यह सवाल उठता है कि जिसने पाप ही नहीं किया है तो किस तरह वह पापी बन गया ? तो ऐसी स्थिति में पापस्वीकार करने का सवाल ही नहीं उठता है. पाप स्वीकार का मतलब है कि जाने अनजाने में किसी तरह से अनैतिक कार्य और दूसरों को दुख पहुँचाने वाले कार्य. इसी को लेकर पुरोहित के पास जाकर पाप स्वीकार किया जाता है. वर्णित कार्यो पर पछताने को कहते हैं और पुनः उस तरह के कार्य से बचने के लिए भी कहते हैं. जो खुलेआम मन से पाप स्वीकार करता है तो उसे स्वीकार करने के बदले वर्णित बातों को सुनते ही पुरोहित आपे से बाहर आग बबूला हो जाते हैं तो पर्दे के पीछे क्या पाप स्वीकार करेंगे ? यह बड़ा और सामयिक सवाल है. प्रतिशोध में आकर पुरोहित जबर्दस्त थप्पड़ बच्ची को रशीद कर देते हैं. इससे बच्ची का बत्तीसा हिल जाता है और उसके बाद चेहरे पर सूजन आ जाने से व्याकुल और चितिंत अभिभावकों ने बच्ची को उठाकर जिला के अस्पताल में भर्त्ती कराया और बेहतर स्थिति में आ जाने के बाद चिकित्सकों ने अगले दिन बच्ची को अस्पताल से छुट्टी दे दी. यहां साफ तौर पर कहना है कि अगर कोई सामान्य शख्स किसी मिशनरी बिशप, आर्च बिशप, विकर जेनरल, पैरिश पुरोहित, फादर, मदर, सिस्टर, ब्रदर आदि को थप्पड़ दे मारता, तो आज समूचे हिन्दुस्तान ही नहीं बल्कि विदेश में भी व्यापक चर्चा और बवाल हो जाता. उक्त शख्स को ही मिशनरी अपराधी करार करके जेल के पिछवाड़े भिजवाने में सफल हो जाते. उनका और उनके परिवार के मनोबल तोड़ने के लिए मिशनरी राष्ट्रव्यापी आंदोलन करने से पीछे नहीं हटते.
यह प्रासंगिक है कि ईसाई धर्म दो खेमे में विभक्त है. एक खेमे को लोकधर्मी कहते हैं इसमें तमाम ईसाई धर्म स्वीकार करने वाले होते हैं. यह सामान्य ढंग से विवाह करते और अपने परिवार की माली हालत सुधारने में दिन-रात गुजारते रहते हैं. ऐसे लोगों यानी लोकधर्मी के जीवन निर्माता याजक वर्ग के हाथों में है. याजक वर्ग में ईसाई मिशनरी आते हैं. यह सीधे तौर पर ईसा मसीह के प्रतिनिधि और चर्च के ठेकदार होते हैं. इनके जिम्मे में किसी एक पंजीकृत संस्था के संचालन का दायित्व सौंप दिया जाता है. ईसाई चर्च यानी पंजीकृत संस्था के कर्ताधर्ता बिशप, आर्च बिशप, विकर जेनरल, पैरिश पुरोहित, फादर, मदर, सिस्टर, ब्रदर आदि होते हैं. याजक वर्ग के पास पर्याप्त जमीन हैं. स्कूल/कॉलेज/अस्पताल/ सामाजिक संस्था और संगठन हैं. इनके जिम्मे कुवैत का धन है. अर्थात याजक वर्ग राजा हैं और ईसाई धर्म स्वीकार करने वाले लोकधर्मी रंक हैं. याजक वर्ग के इशारे पर ही पर्याप्त जमीनों में एक कुछ हिस्सा मिल जाता हैं. उनके द्वारा संचालित स्कूल/कॉलेज/अस्पताल/ सामाजिक संस्था और संगठन में उपर्युक्त जगहों मिल जाती है. उनके बच्चे पढ़ते हैं और बच्चों के अभिभावक यानी सयाने कार्य किया करते हैं. एक तरह से याजक वर्ग की नाव पर ही लोकधर्मी सवार हैं याजक नाव को डूबा दे और तब लोकधर्मी नाश कर जायेंगे यह उभार दें. आज यहीं होता है. उनकी इच्छा शक्ति ही चलती है. यह गौरतलब है कि लोकधर्मी हमेशा याजक वर्ग पर ही निर्भर रहते है. आजीवन धरती पर और मरने के बाद स्वर्ग जाने के लिए भी याजक वर्ग पर निर्भर रहना पड़ता है. उनके पूजा करवाने के लिए पैसा दान करें तब जाकर स्वर्ग में स्थान सुनिश्चित होता है. इसलिए विभिन्न तरह के धर्मकांड कराए जाते हैं. धार्मिक मोक्ष के लिए विभिन्न तरह के संस्कारों से बांधा गया है. लोकधर्मियों को बपतिस्मा, पापस्वीकार, परमप्रसाद, दृढ़करण, विवाह और अन्तमलन संस्कार दिया जाता है. याजक वर्ग को सिर्फ विवाह संस्कार छोड़कर शेष संस्कार दिया जाता है. उनको पुरोहिताभिषेक संस्कार दिया जाता है.
धरती और स्वर्ग पर दबदबा बनाने वाले दूसरी ओर भारतीय धर्मनिरपेक्ष राज्य पर भी शिकंजा कस लिया है. इसमें देश के संविधान निर्माताओं ने योगदान दिया हैं. इनको अल्पसंख्यकों की सुविधाओं का संवैधानिक अधिकार का पैकेज दे रखा है. अगर किसी तरह का आक्रमण अल्पसंख्यकों के ऊपर होता है तो ऐसे अवसरवादी लोग अपने धर्म को ही आगे रखकर जोर-जोर से चिल्लाने लगते हैं कि धर्म पर खतरा आ गया है. तब देश-प्रदेश के वोट के लोभी राजनीतिज्ञों के द्वारा हवा देनी शुरू कर दी जाती है. कथित खतरा उत्पन्न करने वालों को असामाजिक तत्व और बड़े पैमाने पर होने पर साम्प्रदायिकता फैलाने वाला तक कह दिया जाता है.
इस तरह की हरकत करने वालों की पहचान देश के हरेक नागरिकों को है. एक पक्ष खतरा उत्पन्न करने वाला हो जाता है तो वहीं दूसरा पक्ष बचाव में आ जाता है. यही राजनीति चल रही है. आप भलीभांति अवगत व परिचित है कि देश -प्रदेश के कोई लोग संगठित होकर भगवान राम का नाम लेने लगते हैं तो इस देश के तथाकथित अल्पसंख्यक व देश के धर्मनिरपेक्ष रखने वाले टेकदारों के द्वारा तनिक भी देरी नहीं लगाकर इस संगठित शक्ति को साम्प्रदायिक शक्ति करार दे देते हैं. तनिक भी देरी लगाये ही संगठित शक्ति को साम्प्रदायिक की पहचान और अलगांववादी का तगमा देने में संकोच और साम्प्रदायिक कहने से बाज नहीं आते हैं. उसके पीछे हाथ धोकर पड़ जाते हैं.
जब आप यह यह समाचार पढ़ेंगे कि एक 9 साल की बच्ची के द्वारा महज पाप स्वीकार नहीं करने के एवज में केरल प्रदेश के त्रिचुर धर्मप्रांत के वादुकरा स्थित लिटिल फ्लॉवर पैरिस ईसाई चर्च के विकर फादर पौल पुलिकोट्टील ने जोरदार ढंग से तमाचा जड़ दिया. यह भी एक तरह से साम्प्रदायिक कृत्य ही है. जो अपने धर्म के प्रति धर्मान्ध होकर अपने एक संस्कार को थप्पऱ के बल पर जबरन पूर्ण कराने का दुःसाहस किया गया. सभी अबोध वय के बच्चों के बीच में ईसा मसीह के संस्कार को हिंसा के सहारे पूरा करने के दबाव अन्य बच्चों को उसे अपने धर्म के एक संस्कार को पूर्ण कराने के लिए हिंसा का सहारा लिया. यह सवाल उठता है कि क्या ईसा मसीह के पवित्र बाइबिल एवं ईसायत समुदाय में थप्पर मारकर संस्कार पूर्ण करने का अधिकार धर्म के ठेकेदारों को दिया गया है ? ऐसा अधिकार हरगिज नही दिया गया है. ईसा मसीह ने स्पष्ट रूप से कहा है कि अगर कोई एक गाल पर थप्पर मारता है तो दूसरे गाल को भी आगे बढ़ा दो. यहां तक कि श्रद्धालुओं के पाप से मुक्ति के लिए पवित्र पुण्य शुक्रवार के दिन ईसा मसीह सलीब पर चढ़ाकर मौत के घाट उतार दिये गये थे। और ईसा मसीह मौत के तीसरे दिन पूरी महिमा के साथ मृतकों में से जिन्दा हो गया। इसे ईसाई समुदाय ईस्टर पर्व के रूप में मनाते हैं।
बहरहाल केरल प्रदेश के त्रिचुर धर्मप्रांत के वादुकरा स्थित लिटिल फ्लॉवर पैरिस में संचालित यूनिट केरला कैथोलिक यूथ मूवमेंट के अध्यक्ष बीजू ने संपूर्ण प्रकरण के बारे में कहा कि विकर फादर पौल पुलिकोट्टील ने आदेश निर्गत किया था कि प्रथम परमप्रसाद ग्रहण करने वालों को हरेक तीन माह के अंदर पापस्वीकार कर लेना चाहिए। धार्मिक अनुष्ठान के बाद धर्मशिक्षा के क्लास में विकर ने सभी प्रथम परमप्रसाद ग्रहण कर चुके बच्चों से जानना चाहा कि प्रथम परमप्रसाद ग्रहण करने पूर्व तैयारी वाली क्लास के दरम्यान सीखाया गया था कि कम से कम तीन माह के अंदर पापस्वीकार कर लिया जाए कितने बच्चे उस निर्देश पर खरा उतरे हैं। केरला कैथोलिक यूथ मूवमेंट के अध्यक्ष के धार्मिक परिवेश में पली-बढ़ी बच्ची ने झूठ बोलने का दुःसाहस नहीं किया और बच्चे मन के सच्चे की तरह विकर के सामने स्वीकार किया कि वह निर्देश का पालन नहीं कर रहीं है। इतना सुनना था कि विकर फादर पौल पुलिकोट्टील आपे से बाहर आ गये और जोरदार ढंग से बच्ची के गाल पर थप्पर रसीद कर दिये। किसी ब्रह्मचर्य फादर के थप्पर से बच्ची तिलमिला उठी। बच्ची के चेहरे पर सूजन आ गया। और तो और दांत भी हिल गए। इसके बाद बच्ची को जिला अस्पताल में भर्त्ती कराया गया और अगले दिन चिकित्सक ने अस्पताल से नाम काटकर छुट्टी दे दी। इसके बाद स्थानीय थाना में मामला दर्ज कराया गया। थानाध्यक्ष ने नन्हीं बच्ची  के साथ अमानवीय अत्याचार करके के कारण ‘बाल न्याय अधिनियम 2000’ के तहत मामला दर्ज करके कोर्ट में भेज दिया है.
इस बीच दबंग लोगों के द्वारा बीजू पर दबाव कायम करना शुरू कर दिया गया है. किसी तरह से इस मामला को सलटाने पर जोर दिया जा रहा है. दो माह के अंदर भारत छोड़कर विकर फादर पौल पुलिकोट्टील अमेरिका जाने वाले हैं. इस संदर्भ में त्रिशुर आर्चबिशप से भेंटकर वार्ता करेंगे.

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