हम जहाँ से अन्न, जल, वस्त्र, ज्ञान तथा अनेक सुविधा-साधन प्राप्त करते हैं, वह मातृभूमि हमारी सबसे बड़ी आराध्या है । हमारे मन में माता के प्रति जैसी अगाध श्रद्धा होती है, वैसी ही मातृभूमि के प्रति भी रहनी चाहिए और मातृ ऋण से उऋण होने के लिए अवसर ढूँढ़ते रहना चाहिए । भावना करें कि धरती माता के पूजन के साथ उसके पुत्र होने के नाते माँ के दिव्य संस्कार हमें प्राप्त हो रहे हैं । माँ विशाल है, सक्षम है । हमें भी क्षेत्र, वर्ग आदि की संकीर्णता से हटाकर विशालता, सहनशीलता, उदारता जैसे दिव्य संस्कार प्रदान कर रही है ।
दाहिने हाथ में अक्षत (चावल), पुष्प, जल लें, बायाँ हाथ नीचे लगाएँ, मन्त्र बोलें और पूजा वस्तुओं को पात्र में छोड़ दें । धरती माँ को हाथ से स्पर्श करके नमस्कार करें ।
ॐ पृथ्वि! त्वया धृता लोका, देवि! त्वं विष्णुना धृता । त्वं च धारय मां देवि! पवित्रं कुरु चासनम्॥ -सं०प्र०
दाहिने हाथ में अक्षत (चावल), पुष्प, जल लें, बायाँ हाथ नीचे लगाएँ, मन्त्र बोलें और पूजा वस्तुओं को पात्र में छोड़ दें । धरती माँ को हाथ से स्पर्श करके नमस्कार करें ।
ॐ पृथ्वि! त्वया धृता लोका, देवि! त्वं विष्णुना धृता । त्वं च धारय मां देवि! पवित्रं कुरु चासनम्॥ -सं०प्र०
No comments:
Post a Comment