खूब रोये थे भगवान कृष्ण के रूम पार्टनर
कंस वध के बाद महीने भर की यात्रा कर कृष्ण अवंती पहुंचे. फिर क्षिप्रा नदी के तट पर आचार्य सांदीपनि के गुरुकुल. उनके साथ बलराम व उद्धव भी थे. निश्चित कुटिया में तीनों पहुंचे, तभी एक और भोला-भाला व उदास किशोर आया. पुराने-फटे कपड़े पहने, उसकी काया भी कमजोर थी.वह था सुदामा. यहां 64 दिनों तक चारों ने चारों वेद, 18 पुराण,14 विद्याएं साथ-साथ पढ़ीं. सुबह से रात तक हर काम साथ करते. अंतिम दिन सुबह तालाब में सबने स्नान किया. अब आश्रम पहुंच कर सभी गुरु दक्षिणा देंगे. कोई स्वर्ण आभूषण देगा, तो कोई घोड़े-गाय. सुदामा के पास कुछ नहीं था. वे रात भर चिंता में सोये नहीं थे.
कृष्ण सुदामा की उलझन जानते थे. उन्होंने प्यार से हाल पूछा, तो सुदामा फूट-फूट कर रो पड़े. कहा, मेरे पास गुरु दक्षिणा के लिए कुछ भी नहीं है. कृष्ण जानते थे कि सुदामा का व्यक्तित्व गरीबी के कारण कुंठित हो गया है. उन्होंने एक नीलकमल दिया. कहा, इसे ही गुरु के पांव पर रख देना. कुंठा खत्म करने के लिए नीलकमल का महत्व बताया. सुदामा का तनाव काफी कम हुआ. फिर भी दुविधा पूरी तरह खत्म नहीं हुई. सांदीपनि ऋषि के समक्ष पहुंच कर सुदामा की कुंठा फिर जाग उठी.
गुरु के पैर पर नीलकमल रख कर वे फिर रो पड़े. गुरु ने आंख बंद किये ही कहा, तुम्हें गरीबी के कारण लोग कुचैला कहते हैं, पर तुम अपने सुविचारों के कारण सुचैला के रूप में प्रसिद्ध होगे. आप भी गरीबी के कारण कुंठित न हों. नकारात्मक विचार न पनपने दें. आपके अच्छे विचार ही आपको प्रसिद्ध बनायेंगे
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