कुंडली में ग्रहों का स्वक्षेत्री होना क्या है ??
जैसा कि मैने पहले ही एक आलेख में लिखा है , ज्योतिष शास्त्र में आसमान के पूरब से पश्चिम की ओर जाती गोल चौडी 360 डिग्री की पट्टी को 30-30 डिग्री के 12 भागों में बांटा गया है और एक एक राशि निकाली गयी है। 30-30 डिग्रियों के रूप में राशि का विभाजन यूं ही नहीं किया गया है , प्राचीन ज्योतिष की पुस्तकों में चर्चा है कि इन 30-30 डिग्रियों तक आसमान से परावर्तित होने वाली किरणों का रंग एक जैसा है , हालांकि इसे प्रमाणित कर पाने में अभी या तो हमारा ज्ञान पर्याप्त नहीं हैं या फिर हमारे पास वैसे कोई साधन नहीं हैं।परंपरागत ज्योतिष के अनुसार मेष और वृश्चिक राशि लाल रंग परावर्तित करते हैं , बिल्कुल वैसा जैसा मंगल ग्रह से परावर्तित होता है। इसी प्रकार वृष और तुला राशि से चमकीला सफेद , जैसा शुक्र ग्रह से परावर्तित होता है। मिथुन और कन्या से बुध की तरह हरे रंग का , कर्क से चंद्रमा की तरह दूधिया रंग का , सिंह से सूर्य की तरह लाल रंग परावर्तित होता है। इसी प्रकार धनु और मीन राशि से बृहस्पति की तरह पीला रंग और मकर और कुंभ राशि से शनि की तरह गाढा नीले रंग के परावर्तित होते किरणों की चर्चा की गयी है।
इसी आधार पर मेष और वृश्चिक राशि का स्वामीत्व मंगल को , वृष और तुला राशि का स्वामीत्व शुक्र को , मिथुन और कर्क राशि का स्वामीत्व बुध को , सिंह राशि का स्वामीत्व सूर्य को , धनु और मीन राशि का स्वामीत्व बृहस्पति को तथा मकर और कुंभ राशि का स्वामीत्व शनि को दिया गया है। 'गत्यात्मक ज्योतिष' ने इस तथ्य के अनुसार भविष्यवाणियां करने में कोई खामी नहीं पायी है , इसलिए इसकी प्रामाणिकता पर इसे कोई संदेह नहीं है। इसे तो ताज्जुब इस बात का है कि संसाधन विहीनता के मध्य हमारे पूर्वजों के अनुसंधान में इतने सारे तथ्य किस प्रकार जुड गए ??
यही कारण है कि कुंडली में मेष और वृश्चिक राशि में मंगल के होने से , वृष और तुला राशि में शुक्र के होने से , मिथुन और कन्या राशि में बुध के होने से , कर्क राशि में चंद्र के होने से , धनु और मीन राशि में बृहस्पति के होने से तथा मकर और कुंभ राशि में शनि के होने से इन ग्रहों को स्वक्षेत्री माना जाता है। परंपरागत ज्योतिष स्वक्षेत्री ग्रहों को बहुत ही महत्वपूर्ण मानता है , पर 'गत्यात्मक ज्योतिष' के अनुसार स्वक्षेत्री ग्रह भी अपनी गत्यात्मक और स्थैतिक शक्ति के हिसाब से ही अच्छा या बुरा फल देते हैं। हां , यह बात अवश्य है कि वे अपनी खुद की राशि में होते हैं , इसलिए उसके कमजोर या मजबूत होने से दूसरे पक्षों पर बहुत फर्क नहीं पडता है। किसी मजबूत ग्रह के भाव में कमजोर ग्रह चले जाते हैं , तो उसका बुरा प्रभाव अधिक विकट होता है।
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