कालसर्प योग की भयावहता पर स्वयमेव ही प्रश्नचिन्ह लग जाता है!!
अभी आसमान में केतु मिथुन राशि में और राहू धनु राशि में चल रहा है। इसलिए इनके मध्य और सारे ग्रह भले ही आ जाएं , पर सौरमंडल के दूरस्थ ग्रह शनि और बृहस्पति में से दोनो नहीं आ सकते , क्यूंकि अभी शनि कन्या राशि में और बृहस्पति मीन राशि में यानि ये दोनो भी आमने सामने चल रहे हैं, इसलिए एक ओर आ ही नहीं सकते। सौरमंडल में सूर्य के निकट स्थित ग्रह बुध , मंगल , शुक्र आदि तो हमेशा साथ साथ होते ही हैं , इसलिए ये राहू और केतु के एक ओर हो सकते हैं , पर शनि और बृहस्पति के एक दूसरे के विपरीत होने के कारण अभी यानि 2010 में जन्म लेनेवाले किसी भी बच्चे की जन्मकुंडली में कालसर्पयोग नहीं बन सकता। इससे पहले भी 2007 , 2008 , 2009 में जन्म लेनेवाले किसी बच्चे की जन्मकुंडली में भी यह योग नहीं बना , क्यूंकि यहां भी बृहस्पति और शनि में से दोनो ग्रह राहू और केतु के मध्य नहीं थे।
यदि चार पाचं वर्ष पूर्व चले जाएं , जब बृहस्पति वृश्चिक या तुला राशि में था और शनि कर्क में , और दोनो ग्रह राहू और केतु क्रमश: तुला और मेष में , तो ये दोनो ग्रह वर्षभर एक ओर ही होते थे। वर्ष में छह महीने इनके मध्य ही अन्य सभी ग्रहों को भी होना ही था। हां , यदि चंद्रमा को छोडकर कालसर्पयोग की परिभाषा रची जाए , तो भले ही छह महीनों में से पंद्रह दिनों तक चंद्रमा के दूसरी ओर होने से कालसर्पयोग न बन पाए , लेकिन बृहस्पति और शनि जिस वर्ष राहू और केतु के मध्य फंसे हों , उस वर्ष चंदमा को छोड देने से छह महीने तक लगातार जन्म लेने वाले बच्चों की जन्मकुंडली में कालसर्पयोग होगा। यदि चंद्रमा पर भी ध्यान दिया जाए तो भले ही छह महीनों तक पंद्रह दिनों तक जन्म लेनेवाले बच्चे कालसर्पयोग में जन्म नहीं लेंगे। लेकिन अगले पंद्रह दिनों तक जनम लेनेवाले सारे बच्चे पुन: इसी योग में पडेंगे। हां , वर्ष के छह महीनों में जन्म लेनेवालों की कुंडली में यह योग नहीं देखा जा सकता है , क्यूंकि बृहस्पति और शनि तो सौरमंडल में एक ही ओर होते हैं , जबकि सूर्य , बुध , शुक्र और मंगल वर्षभर में लगभग पूरे 360 डिग्री का चककर लगा लेते हैं।
ऐसा किसी एक वर्ष में नहीं , लगातार चार वर्षों तक जबतक बृहस्पति और शनि दोनो आसमान के एक ओर न हो जाएं , आसमान में छह महीनों तक ऐसी स्थिति बनती ही रहती है , जिस समय जन्मलेनेवालों की कुंडली में कालसर्प योग बन सके। बस एक चंद्रमा की स्थिति अंदर और बाहर होती रहती है। इसका अर्थ यह है कि किसी खास वर्ष में या लगातार कई वर्षों तक जन्म लेनेवाले 50 प्रतिशत बच्चे या कम से कम 25 प्रतिशत बच्चे की कुंडली में संपूर्ण कालसर्प योग हो सकता है। जबकि ऐसा नहीं है कि खास वर्षों में खास समयांतराल में सिर्फ अमीर या गरीब घर में या अमीर या गरीब देश में ही बच्चे जन्म लेते हैं। दुनिया में असामान्य परिस्थिति में जीवनयापन करने वाले का प्रतिशत बहुत सामान्य होता है। अब जब यह योग इतना सामान्य है तो इसकी भयावहता पर स्वयमेव ही प्रश्नचिन्ह लग जाता है
No comments:
Post a Comment