बृहस्पति को एक एक राशि पार करने में एक वर्ष लगते हैं !!
जैसा कि पुराने लेखों से स्पष्ट हो चुका है कि पृथ्वी को स्थिर मान लेने से आसमान में पूरब से पश्चिम की ओर घूमती हुई जो पट्टी दिखती है , उस 360 डिग्री के 12 भाग कर देने से हमें 30-30 डिग्री की 12 राशियां मिलती हैं। सूर्य एक एक महीने में उसकी परिक्रमा करता है और उसी के साथ साथ बुध और शुक्र भी सभी राशियों को पार करने में पूरे साल लगा देते हैं। चंद्रमा ढाई ढाई दिनों में एक राशि को पार करते हुए पूरे चंद्रमास के दौरान सभी राशियों को पार कर जाता है। मंगल भी यदि वक्री गति में न हो , तो वर्षभर में सभी राशियों को पार कर लेता है।
सौरमंडल में अधिक दूरी पर स्थित ग्रह बृहस्पति को एक एक राशि पार करने में एक एक वर्ष लगते हैं और इस तरह वह 12 वर्षों में सभी राशियों की परिक्रमा कर लेता है। अभी यानि मई 2010 से बृहस्पति मीन राशि में भ्रमण कर रहा है और 2011 के मई में मेष राशि में चला जाएगा। इसी प्रकार लगभग एक एक वर्ष एक एक राशि में रहते हुए 2022 में पुन: मीन राशि में चलेगा।
जिस तरह किसी व्यक्ति की जन्मकुंडली में स्थित सूर्य को देखकर जातक के जन्म के महीने और जन्म के प्रहर का अनुमान तथा सूर्य से चंद्रमा की दूरी को देखने से चंद्रमा के आकार का अनुमान लगाया जा सकता है, , वैसा जन्मकुंडली में बृहस्पति की स्थिति को देखकर जातक के जन्म के बारे में कुछ कह पाना मुश्किल है। हां , आप कुछ अंदाजा तो लगा ही सकते हैं। बाकी की कमी शनि की स्थिति को देखकर पूरी की जा सकती है। और इस तरह आप एक निष्कर्ष पर पहुंच सकते हैं।
चूंकि आज बृहस्पति मीन राशि में यानि 12 अंक में चल रहा है , यदि किसी की जन्मकुंडली में 12 अंक में बृहस्पति है तो आप समझ सकते हैं कि जातक ने 12 , 24 , 36 , 48 , 60 , 72 या 84 वर्ष पहले जन्म लिया है और क्रमश: एक एक राशि को पार करता हुआ पूरा चक्र पार कर यहां तक आ चुका है। इसी प्रकार यदि बृहस्पति 11 अंक में हो , तो आप समझ सकते हैं कि जातक ने 13 , 25 , 37 , 49 , 61 , 73 या 85 वर्ष पहले जन्म लिया है। इसी प्रकार बृहस्पति 10 अंक में हो , तो आप समझ सकते हैं कि जातक ने 14 , 26 , 38 , 50 , 62, 74 , या 86 वर्ष की उम्र का है। इसी प्रकार जन्मकुंडली की बृहस्पति और आज की बृहस्पति की स्थिति को देखते हुए जातक के उम्र का अंदाजा लगा सकते हैं।
जन्मकुंडली में भी अधिकांश समय बुध और शुक्र सूर्य के साथ साथ ही होते हैं !!
पिछले आलेखों में आपको जानकारी मिली थी कि पृथ्वी को स्थिर रखने से पूरे आसमान की 360 डिग्री को 12 भागों में बांटकर 12 राशियां बनायी गयी हैं। सूर्य एक एक राशि में एक महीने ठहरते हुए पूरे वर्ष में कुल 12 राशियों का चक्कर और चंद्रमा एक एक राशि में ढाई दिनों तक रहते हुए कुल 12 राशियों का चक्कर एक माह में लगाता है।
इसी प्रकार अन्य ग्रह भी नियमित तौर पर पूरे भचक्र का चक्कर लगाते हैं। चूंकि सौरमंडल में मंगल , बृहस्पति और शनि जैसे ग्रहों की स्थिति पृथ्वी के बाद होते हैं , इसलिए इनका सूर्य की गति से कोई संबंध नहीं होता , यही कारण है कि ये तीनो ग्रह आसमान में कहीं पर भी हो सकते हैं , यही कारण है कि जन्मकुंडली में ये 12 खाने में कहीं भी छितराये हो सकते हैं।
पर सौरमंडल में बुध और शुक्र .. ये दो ग्रह ऐसे हैं , जो सूर्य और पृथ्वी के मध्य स्थित होकर सूर्य की परिक्रमा कर रहे हैं। इस कारण पृथ्वी को स्थिर रखते हुए जब सभी ग्रहों की गति का अध्ययन होता है , तो वे अधिकांश समय सूर्य के साथ साथ ही देखे जाते हैं। सूर्य से अधिक निकट होने के कारण बुध सूर्य से अधिकतम 27 डिग्री की दूरी पर हो सकता है , जबकि शुक्र सूर्य से अधिकतम 47 डिग्री की दूरी पर होता है।
यही कारण है कि जन्मकुंडली में भी अधिकांश समय बुध और शुक्र सूर्य के साथ साथ ही होते हैं। किसी भी जन्मकुंडली में बुध सूर्य के साथ या उससे अगले खाने में हो सकता है , जबकि शुक्र सूर्य के साथ या उससे अधिकतम दो खाने आगे तक रह सकता है। इस प्रकार जिस महीने में सूर्य जिस राशि में होता है , बुध और शुक्र भी उसी राशि के आसपास होते हैं।
हिंदी कैलेण्डर के माह के नाम नक्षत्रों के नाम पर होते हैं !!
आप सबों को यह मालूम होगा कि पृथ्वी की वार्षिक गति के हिसाब से अंग्रेजी कैलेण्डर में 365 दिनों का एक सौर वर्ष होता है । पुन: पृथ्वी अपनी कक्षा में घूमती हुई उसी स्थान पर आ जाती है , जहां से दूसरा वर्ष शुरू हो जाता है। इस 365 दिन को सामान्य ढंग से 12 भागों में बांटकर 12 महीने तैयार कर दिए गए हैं। पर हिंदी कैलेण्डर अंग्रेजी कैलेण्डर से पूर्णतया भिन्न है , हमारे परंपरागत कैलेण्डर में सौर वर्ष और चंद्रवर्ष दोनो की गणना अलग ढंग से की जाती है। सौरवर्ष की गणना उस दिन से आरंभ की जाती है ,जिस दिन सूर्य मेष राशि में प्रवेश करता है। एक एक महीने में सूर्य की दूसरी राशि में संक्रांति के साथ साथ माह बदलता जाता है और 365 दिनों में एक वर्ष पूरा हो जाता है।
पर इसके अलावे पंचांग में एक और कैलेण्डर होता है , इसका आधार पृथ्वी की वार्षिक गति नहीं होती है। हिंदी कैलेण्डर में वर्ष की गणना न कर पहले महीने की गणना शुरू की जाती है। हिंदी के कैलेण्डर में पूर्णिमा के दूसरे दिन से लेकर अगले माह की पूर्णिमा तक एक माह पूरा होता है। इस प्रकार 12 माह होने पर एक वर्ष पूरा होता मान लिया जाता है। हिंदी महीनों के नाम हैं .. चैत्र , बैशाख , ज्येष्ठ , आषाढ , श्रावण , भाद्रपद , आश्विन , कार्तिक , मार्गशीर्ष , पौष , माघ , फाल्गुन। एक पूर्णिमा से दूसरे पूर्णिमा तक का समय लगभग 29 दिन कुछ घंटों का होता है , इसी कारण हिंदी वर्ष 354 दिनों में ही समाप्त हो जाता है और नए वर्ष की शुरूआत हो जाती है। इसलिए तीन वर्ष बाद सौरवर्ष की तुलना में समय एक माह पीछे चलने लगता है। इसके समायोजन के लिए पंचांगों में हर तीसरे वर्ष एक अधिमास की व्यवस्था रखी गयी है।
वैसे तो सामान्य तौर पर 15 मार्च के आसपास से हिंदी वर्ष की शुरूआत होती है , जिस समय सूर्य मीन राशि में होता है , इसलिए चैत्र माह का अमावस्या मीन राशि में और पूर्णिमा कन्या राशि में होना चाहिए। इसी प्रकार बैशाख माह का अमावस्या मेष राशि में और पूर्णिमा तुला राशि में होना चाहिए , पुन: क्रम से ज्येष्ठ माह का अमावस्या वृष राशि में और पूर्णिमा वृश्चिक राशि में , आषाढ मास का अमावस्या मिथुन राशि में और पूर्णिमा धनु राशि में , श्रावण माह का अमावस्या कर्क राशि में और पूर्णिमा मकर राशि में , भाद्रपद का अमावस्या सिंह और पूर्णिमा कुंभ राशि में , आश्विन का अमावस्या कन्या और पूर्णिमा मीन राशि में , कार्तिक का अमावस्या तुला और पूर्णिमा मेष राशि में , मार्गशीर्ष का अमावस्या वृश्चिक और पूर्णिमा वृष राशि में , पौष का अमावस्या धनु और पूर्णिमा मिथुन राशि में , माघ का अमावस्या मकर और पूर्णिमा कर्क राशि में तथा फाल्गुन का अमावस्या कुंभ और पूर्णिमा सिंह राशि में होना चाहिए।
पर सौरवर्ष की तुलना में चंद्रवर्ष के पीछे खिसकते जाने से हिंदी कैलेण्डर का माह इस तरह निश्चित नहीं रह पाता है। दरअसल हिंदी माह की गणना नक्षत्रों के हिसाब से की जाती है , जिस महीने पूर्णिमा चित्रा नक्षत्र में पडे , वहां चैत्र का महीना , जिस महीने पूर्णिमा बिशाखा नक्षत्र में पडे , बैशाख का महीना , जिस महीने पूर्णिमा ज्येष्ठा नक्षत्र में पडे , ज्येष्ठ महीना , जिस महीने पूर्णिमा पूर्वाषाढा नक्षत्र में पडे , आषाढ का महीना , जिस महीने पूर्णिमा श्रवण नक्षत्र में पडे , श्रावण का महीना , जिस महीने पूर्वभा्रद्रपद नक्षत्र में पडे , भाद्रपद का महीना , जिस महीने पूर्णिमा अश्विनी नक्षत्र में पडे , उस महीने आश्विन का महीना , जिस महीने पूर्णिमा कृतिका नक्षत्र में पडे , कार्तिक का महीना , जिस महीने पूर्णिमा मृगशिरा नक्षत्र में पडे , माघ का महीना , जिस महीने पूर्णिमा पुष्य नक्षत्र में पडे , पोष का महीना तथा जिस महीने पूर्णिमा फाल्गुनी नक्षत्र में पडे , उसे फाल्गुन का महीना माना जाता है।
क्या नक्षत्र तारों का समूह होता है ??
सामान्य लोग 'नक्षत्र ' शब्द को तारे या तारे के समूह के लिए ही प्रयोग करते हैं , पर ज्योतिष में 'नक्षत्र' का यह अर्थ नहीं है। आसमान में 30 डिग्री का प्रतिनिधित्व करनेवाले राशि की तरह नक्षत्र भी पूरे गोलाकार आसमान के 360 डिग्री को 27 भागों में बांटने से बने 13 डिग्री 20 मिनट की कोणिक दूरी का प्रतिनिधित्व करता है। जिस प्रकार एक राशि को पहचानने और उसे याद रखने के लिए उसमें स्थित तारा समूहों को लेकर एक खास आकार दिया गया है , उसी प्रकार नक्षत्रों को पहचानने के लिए भी उसमें स्थित तारा समूहों को याद रखा जाता है , पर नक्षत्र ताराओं का समूह नहीं होता , जैसा कि लोगों के मन में भ्रम है।
आसमान के 12 भागों में बंटवारा कर देने के बाद भी ऋषि मुनियों ने इसके और सूक्ष्म अध्ययन के लिए इसे 27 भागों में बांटा , जिससे 13 डिग्री 20 मिनट का एक एक नक्षत्र निकला। आकाश में चन्द्रमा पृथ्वी के चारों ओर अपनी कक्षा पर चलता हुआ 27.3 दिन में पृथ्वी की एक परिक्रमा पूरी करता है, इस तरह चंद्रमा प्रतिदिन एक नक्षत्र को पार करता है। किसी व्यक्ति का जन्म नक्षत्र वही होता है , जहां उसके जन्म के समय चंद्रमा होता है। ऋषि मुनि ने व्यक्ति के जन्म के नक्षत्र को बहुत महत्व दिया था , और इसके अध्ययन के लिए हर नक्षत्र के प्रत्येक चरण के लिए अलग अलग 'अक्षर' रखे थे। बच्चे के नाम में पहला अक्षर नक्षत्र का ही हुआ करता था, जिससे एक नक्षत्र के बच्चे को बडे होने के बाद भी अलग किया जा सकता था। शायद बडे स्तर पर रिसर्च के लिए ऋषि मुनियों ने यह परंपरा शुरू की हो।
0 डिग्री से लेकर 360 डिग्री तक सारे नक्षत्रों का नामकरण इस प्रकार किया गया है .. अश्विनी , भरणी , कृत्तिका , रोहिणी , मॄगशिरा , आद्रा , पुनर्वसु , पुष्य , अश्लेशा , मघा , पूर्वाफाल्गुनी , उत्तराफाल्गुनी , हस्त , चित्रा , स्वाती , विशाखा , अनुराधा , ज्येष्ठा , मूल , पूर्वाषाढा , उत्तराषाढा , श्रवण , धनिष्ठा , शतभिषा , पूर्वाभाद्रपद , उत्तराभाद्रपद , रेवती । अधिक सूक्ष्म अध्ययन के लिए एक एक नक्षत्र को पुन: चार चार चरणों में बांटा गया है। चूंकि राशि बारह हैं , और नक्षत्र 27 , और सबके चार चार चरण। इसलिए एक राशि के अंतर्गत किन्ही तीन नक्षत्र के 9 चरण आ जाते हैं । विवाह के समय जन्म कुंडली मिलान के लिए वर और वधू के जन्म नक्षत्र का ही सबसे अधिक महत्व होता है।
आसमान में सूर्य जब इन नक्षत्रों को पार करता रहता है , तो मौसम के लिए इन नक्षत्रों का प्रयोग किया जाता है। चूंकि सूर्य की गति एक डिग्री प्रतिदिन की है , इसलिए एक एक नक्षत्र को पार करने में इसे लगभग 13 दिन ही लगते हैं। लगभग का प्रयोग इसलिए किया जा रहा है , क्यूंकि पृथ्वी के अंडाकार पथ होने से सारे नक्षत्रों को पार करने में अलग अलग समय लगता है। हर नक्षत्रों से होते हुए सूर्य 22 जून से आर्द्रा में चल रहा है , जो 6 जुलाई से पुनवर्सु में , 20 जुलाई से पुष्य में , 3 अगस्त से अश्लेषा में चलने के बाद 17 अगस्त को मघा में प्रवेश के बाद 30 अगस्त को पूर्वा फाल्गुनी नक्षत्र में प्रवेश करेगा। मौसम की चर्चा में भी आपने इन नक्षत्रों का नाम अवश्य सुना होगा।
हर माह अमावस्या और पूर्णिमा अलग अलग राशियों में होती है !!
कल के आलेख में हमने जाना कि जितने दिनों तक सूर्य एक राशि में होता है , उतने दिनों में चंद्रमा पूरे आकाश का चक्कर लगा लेता है और इस तरह जन्मकुंडली में सूर्य के सापेक्ष चंद्रमा की स्थिति को देखते हुए हिंदी माह की तिथियों का आकलन किया जा सकता है। सभी राशियों में घूमते हुए एक माह बाद जबतक चंद्रमा सूर्य के नजदीक पहुंचने को होता है , तो सूर्य एक राशि आगे बढ चुका होता है। इस तरह अगले माह की अमावस्या पिछले माह में होनेवाली राशि से एक राशि बाद ही हो पाती है। सूर्य के एक राशि आगे बढ जाने से उसके सामने चंद्रमा को जाने में भी एक राशि आगे बढना पडता है और इस तरह अगले माह की पूर्णिमा भी एक राशि बाद ही होती है।
अब चूंकि 15 अप्रैल से 15 मई तक सूर्य मेष राशि में होता है , उस मध्य जब चंद्रमा मेष राशि में पहुंचेगा , तो अमावस्या होगी , इस कारण अमावस्या मेष राशि में ही होगी। उससे छह राशि आगे जाकर ही चंद्रमा सूर्य के सामने हो सकेगा , इस कारण इस माह में पूर्णिमा तुला राशि में होगी। इसी प्रकार 15 मई से 15 जून के मध्य सूर्य के वृष राशि में होने से उस मध्य अमावस्या वृष राशि में और पूर्णिमा वृश्चिक राशि में होती है। इसी नियम से 15 जून से 15 जुलाई के मध्य अमावस्या मिथुन राशि में तथा पूर्णिमा धनु राशि में , 15 जुलाई से 15 अगस्त के मध्य अमावस्या कर्क राशि में और पूर्णिमा मकर राशि में, 15 अगस्त से 15 सितंबर के मध्य अमावस्या सिंह राशि में और पूर्णिमा कुंभ राशि में , 15 सितंबर से 15 अक्तूबर के मध्य अमावस्या कन्या राशि में और पूर्णिमा मीन राशि में होती है।
यही क्रम आगे बढता जाता है और 15 अक्तूबर से 15 नवंबर के मध्य अमावस्या तुला राशि में और पूर्णिमा मेष राशि में , 15 नवंबर से 15 दिसंबर के मध्य अमावस्या वृश्चिक राशि में और पूर्णिमा वृष राशि में , 15 दिसंबर से 15 जनवरी के मध्य अमावस्या धनु राशि में और पूर्णिमा मिथुन राशि में , 15 जनवरी से 15 फरवरी के मध्य अमावस्या मकर राशि में और पूर्णिमा कर्क राशि में , 15 फरवरी से 15 मार्च के मध्य अमावस्या कुंभ राशि में और पूर्णिमा सिंह राशि में तथा 15 मार्च से 15 अप्रैल के मध्य अमावस्या मीन राशि में और पूर्णिमा कन्या राशि में हुआ करता है। इस तरह हर माह अमावस्या तथा पूर्णिमा अलग अलग राशियों में हुआ करता है ।
जैसा कि पुराने लेखों से स्पष्ट हो चुका है कि पृथ्वी को स्थिर मान लेने से आसमान में पूरब से पश्चिम की ओर घूमती हुई जो पट्टी दिखती है , उस 360 डिग्री के 12 भाग कर देने से हमें 30-30 डिग्री की 12 राशियां मिलती हैं। सूर्य एक एक महीने में उसकी परिक्रमा करता है और उसी के साथ साथ बुध और शुक्र भी सभी राशियों को पार करने में पूरे साल लगा देते हैं। चंद्रमा ढाई ढाई दिनों में एक राशि को पार करते हुए पूरे चंद्रमास के दौरान सभी राशियों को पार कर जाता है। मंगल भी यदि वक्री गति में न हो , तो वर्षभर में सभी राशियों को पार कर लेता है।
सौरमंडल में अधिक दूरी पर स्थित ग्रह बृहस्पति को एक एक राशि पार करने में एक एक वर्ष लगते हैं और इस तरह वह 12 वर्षों में सभी राशियों की परिक्रमा कर लेता है। अभी यानि मई 2010 से बृहस्पति मीन राशि में भ्रमण कर रहा है और 2011 के मई में मेष राशि में चला जाएगा। इसी प्रकार लगभग एक एक वर्ष एक एक राशि में रहते हुए 2022 में पुन: मीन राशि में चलेगा।
जिस तरह किसी व्यक्ति की जन्मकुंडली में स्थित सूर्य को देखकर जातक के जन्म के महीने और जन्म के प्रहर का अनुमान तथा सूर्य से चंद्रमा की दूरी को देखने से चंद्रमा के आकार का अनुमान लगाया जा सकता है, , वैसा जन्मकुंडली में बृहस्पति की स्थिति को देखकर जातक के जन्म के बारे में कुछ कह पाना मुश्किल है। हां , आप कुछ अंदाजा तो लगा ही सकते हैं। बाकी की कमी शनि की स्थिति को देखकर पूरी की जा सकती है। और इस तरह आप एक निष्कर्ष पर पहुंच सकते हैं।
चूंकि आज बृहस्पति मीन राशि में यानि 12 अंक में चल रहा है , यदि किसी की जन्मकुंडली में 12 अंक में बृहस्पति है तो आप समझ सकते हैं कि जातक ने 12 , 24 , 36 , 48 , 60 , 72 या 84 वर्ष पहले जन्म लिया है और क्रमश: एक एक राशि को पार करता हुआ पूरा चक्र पार कर यहां तक आ चुका है। इसी प्रकार यदि बृहस्पति 11 अंक में हो , तो आप समझ सकते हैं कि जातक ने 13 , 25 , 37 , 49 , 61 , 73 या 85 वर्ष पहले जन्म लिया है। इसी प्रकार बृहस्पति 10 अंक में हो , तो आप समझ सकते हैं कि जातक ने 14 , 26 , 38 , 50 , 62, 74 , या 86 वर्ष की उम्र का है। इसी प्रकार जन्मकुंडली की बृहस्पति और आज की बृहस्पति की स्थिति को देखते हुए जातक के उम्र का अंदाजा लगा सकते हैं।
जन्मकुंडली में भी अधिकांश समय बुध और शुक्र सूर्य के साथ साथ ही होते हैं !!
पिछले आलेखों में आपको जानकारी मिली थी कि पृथ्वी को स्थिर रखने से पूरे आसमान की 360 डिग्री को 12 भागों में बांटकर 12 राशियां बनायी गयी हैं। सूर्य एक एक राशि में एक महीने ठहरते हुए पूरे वर्ष में कुल 12 राशियों का चक्कर और चंद्रमा एक एक राशि में ढाई दिनों तक रहते हुए कुल 12 राशियों का चक्कर एक माह में लगाता है।
इसी प्रकार अन्य ग्रह भी नियमित तौर पर पूरे भचक्र का चक्कर लगाते हैं। चूंकि सौरमंडल में मंगल , बृहस्पति और शनि जैसे ग्रहों की स्थिति पृथ्वी के बाद होते हैं , इसलिए इनका सूर्य की गति से कोई संबंध नहीं होता , यही कारण है कि ये तीनो ग्रह आसमान में कहीं पर भी हो सकते हैं , यही कारण है कि जन्मकुंडली में ये 12 खाने में कहीं भी छितराये हो सकते हैं।
पर सौरमंडल में बुध और शुक्र .. ये दो ग्रह ऐसे हैं , जो सूर्य और पृथ्वी के मध्य स्थित होकर सूर्य की परिक्रमा कर रहे हैं। इस कारण पृथ्वी को स्थिर रखते हुए जब सभी ग्रहों की गति का अध्ययन होता है , तो वे अधिकांश समय सूर्य के साथ साथ ही देखे जाते हैं। सूर्य से अधिक निकट होने के कारण बुध सूर्य से अधिकतम 27 डिग्री की दूरी पर हो सकता है , जबकि शुक्र सूर्य से अधिकतम 47 डिग्री की दूरी पर होता है।
यही कारण है कि जन्मकुंडली में भी अधिकांश समय बुध और शुक्र सूर्य के साथ साथ ही होते हैं। किसी भी जन्मकुंडली में बुध सूर्य के साथ या उससे अगले खाने में हो सकता है , जबकि शुक्र सूर्य के साथ या उससे अधिकतम दो खाने आगे तक रह सकता है। इस प्रकार जिस महीने में सूर्य जिस राशि में होता है , बुध और शुक्र भी उसी राशि के आसपास होते हैं।
हिंदी कैलेण्डर के माह के नाम नक्षत्रों के नाम पर होते हैं !!
आप सबों को यह मालूम होगा कि पृथ्वी की वार्षिक गति के हिसाब से अंग्रेजी कैलेण्डर में 365 दिनों का एक सौर वर्ष होता है । पुन: पृथ्वी अपनी कक्षा में घूमती हुई उसी स्थान पर आ जाती है , जहां से दूसरा वर्ष शुरू हो जाता है। इस 365 दिन को सामान्य ढंग से 12 भागों में बांटकर 12 महीने तैयार कर दिए गए हैं। पर हिंदी कैलेण्डर अंग्रेजी कैलेण्डर से पूर्णतया भिन्न है , हमारे परंपरागत कैलेण्डर में सौर वर्ष और चंद्रवर्ष दोनो की गणना अलग ढंग से की जाती है। सौरवर्ष की गणना उस दिन से आरंभ की जाती है ,जिस दिन सूर्य मेष राशि में प्रवेश करता है। एक एक महीने में सूर्य की दूसरी राशि में संक्रांति के साथ साथ माह बदलता जाता है और 365 दिनों में एक वर्ष पूरा हो जाता है।
पर इसके अलावे पंचांग में एक और कैलेण्डर होता है , इसका आधार पृथ्वी की वार्षिक गति नहीं होती है। हिंदी कैलेण्डर में वर्ष की गणना न कर पहले महीने की गणना शुरू की जाती है। हिंदी के कैलेण्डर में पूर्णिमा के दूसरे दिन से लेकर अगले माह की पूर्णिमा तक एक माह पूरा होता है। इस प्रकार 12 माह होने पर एक वर्ष पूरा होता मान लिया जाता है। हिंदी महीनों के नाम हैं .. चैत्र , बैशाख , ज्येष्ठ , आषाढ , श्रावण , भाद्रपद , आश्विन , कार्तिक , मार्गशीर्ष , पौष , माघ , फाल्गुन। एक पूर्णिमा से दूसरे पूर्णिमा तक का समय लगभग 29 दिन कुछ घंटों का होता है , इसी कारण हिंदी वर्ष 354 दिनों में ही समाप्त हो जाता है और नए वर्ष की शुरूआत हो जाती है। इसलिए तीन वर्ष बाद सौरवर्ष की तुलना में समय एक माह पीछे चलने लगता है। इसके समायोजन के लिए पंचांगों में हर तीसरे वर्ष एक अधिमास की व्यवस्था रखी गयी है।
वैसे तो सामान्य तौर पर 15 मार्च के आसपास से हिंदी वर्ष की शुरूआत होती है , जिस समय सूर्य मीन राशि में होता है , इसलिए चैत्र माह का अमावस्या मीन राशि में और पूर्णिमा कन्या राशि में होना चाहिए। इसी प्रकार बैशाख माह का अमावस्या मेष राशि में और पूर्णिमा तुला राशि में होना चाहिए , पुन: क्रम से ज्येष्ठ माह का अमावस्या वृष राशि में और पूर्णिमा वृश्चिक राशि में , आषाढ मास का अमावस्या मिथुन राशि में और पूर्णिमा धनु राशि में , श्रावण माह का अमावस्या कर्क राशि में और पूर्णिमा मकर राशि में , भाद्रपद का अमावस्या सिंह और पूर्णिमा कुंभ राशि में , आश्विन का अमावस्या कन्या और पूर्णिमा मीन राशि में , कार्तिक का अमावस्या तुला और पूर्णिमा मेष राशि में , मार्गशीर्ष का अमावस्या वृश्चिक और पूर्णिमा वृष राशि में , पौष का अमावस्या धनु और पूर्णिमा मिथुन राशि में , माघ का अमावस्या मकर और पूर्णिमा कर्क राशि में तथा फाल्गुन का अमावस्या कुंभ और पूर्णिमा सिंह राशि में होना चाहिए।
पर सौरवर्ष की तुलना में चंद्रवर्ष के पीछे खिसकते जाने से हिंदी कैलेण्डर का माह इस तरह निश्चित नहीं रह पाता है। दरअसल हिंदी माह की गणना नक्षत्रों के हिसाब से की जाती है , जिस महीने पूर्णिमा चित्रा नक्षत्र में पडे , वहां चैत्र का महीना , जिस महीने पूर्णिमा बिशाखा नक्षत्र में पडे , बैशाख का महीना , जिस महीने पूर्णिमा ज्येष्ठा नक्षत्र में पडे , ज्येष्ठ महीना , जिस महीने पूर्णिमा पूर्वाषाढा नक्षत्र में पडे , आषाढ का महीना , जिस महीने पूर्णिमा श्रवण नक्षत्र में पडे , श्रावण का महीना , जिस महीने पूर्वभा्रद्रपद नक्षत्र में पडे , भाद्रपद का महीना , जिस महीने पूर्णिमा अश्विनी नक्षत्र में पडे , उस महीने आश्विन का महीना , जिस महीने पूर्णिमा कृतिका नक्षत्र में पडे , कार्तिक का महीना , जिस महीने पूर्णिमा मृगशिरा नक्षत्र में पडे , माघ का महीना , जिस महीने पूर्णिमा पुष्य नक्षत्र में पडे , पोष का महीना तथा जिस महीने पूर्णिमा फाल्गुनी नक्षत्र में पडे , उसे फाल्गुन का महीना माना जाता है।
क्या नक्षत्र तारों का समूह होता है ??
सामान्य लोग 'नक्षत्र ' शब्द को तारे या तारे के समूह के लिए ही प्रयोग करते हैं , पर ज्योतिष में 'नक्षत्र' का यह अर्थ नहीं है। आसमान में 30 डिग्री का प्रतिनिधित्व करनेवाले राशि की तरह नक्षत्र भी पूरे गोलाकार आसमान के 360 डिग्री को 27 भागों में बांटने से बने 13 डिग्री 20 मिनट की कोणिक दूरी का प्रतिनिधित्व करता है। जिस प्रकार एक राशि को पहचानने और उसे याद रखने के लिए उसमें स्थित तारा समूहों को लेकर एक खास आकार दिया गया है , उसी प्रकार नक्षत्रों को पहचानने के लिए भी उसमें स्थित तारा समूहों को याद रखा जाता है , पर नक्षत्र ताराओं का समूह नहीं होता , जैसा कि लोगों के मन में भ्रम है।
आसमान के 12 भागों में बंटवारा कर देने के बाद भी ऋषि मुनियों ने इसके और सूक्ष्म अध्ययन के लिए इसे 27 भागों में बांटा , जिससे 13 डिग्री 20 मिनट का एक एक नक्षत्र निकला। आकाश में चन्द्रमा पृथ्वी के चारों ओर अपनी कक्षा पर चलता हुआ 27.3 दिन में पृथ्वी की एक परिक्रमा पूरी करता है, इस तरह चंद्रमा प्रतिदिन एक नक्षत्र को पार करता है। किसी व्यक्ति का जन्म नक्षत्र वही होता है , जहां उसके जन्म के समय चंद्रमा होता है। ऋषि मुनि ने व्यक्ति के जन्म के नक्षत्र को बहुत महत्व दिया था , और इसके अध्ययन के लिए हर नक्षत्र के प्रत्येक चरण के लिए अलग अलग 'अक्षर' रखे थे। बच्चे के नाम में पहला अक्षर नक्षत्र का ही हुआ करता था, जिससे एक नक्षत्र के बच्चे को बडे होने के बाद भी अलग किया जा सकता था। शायद बडे स्तर पर रिसर्च के लिए ऋषि मुनियों ने यह परंपरा शुरू की हो।
0 डिग्री से लेकर 360 डिग्री तक सारे नक्षत्रों का नामकरण इस प्रकार किया गया है .. अश्विनी , भरणी , कृत्तिका , रोहिणी , मॄगशिरा , आद्रा , पुनर्वसु , पुष्य , अश्लेशा , मघा , पूर्वाफाल्गुनी , उत्तराफाल्गुनी , हस्त , चित्रा , स्वाती , विशाखा , अनुराधा , ज्येष्ठा , मूल , पूर्वाषाढा , उत्तराषाढा , श्रवण , धनिष्ठा , शतभिषा , पूर्वाभाद्रपद , उत्तराभाद्रपद , रेवती । अधिक सूक्ष्म अध्ययन के लिए एक एक नक्षत्र को पुन: चार चार चरणों में बांटा गया है। चूंकि राशि बारह हैं , और नक्षत्र 27 , और सबके चार चार चरण। इसलिए एक राशि के अंतर्गत किन्ही तीन नक्षत्र के 9 चरण आ जाते हैं । विवाह के समय जन्म कुंडली मिलान के लिए वर और वधू के जन्म नक्षत्र का ही सबसे अधिक महत्व होता है।
आसमान में सूर्य जब इन नक्षत्रों को पार करता रहता है , तो मौसम के लिए इन नक्षत्रों का प्रयोग किया जाता है। चूंकि सूर्य की गति एक डिग्री प्रतिदिन की है , इसलिए एक एक नक्षत्र को पार करने में इसे लगभग 13 दिन ही लगते हैं। लगभग का प्रयोग इसलिए किया जा रहा है , क्यूंकि पृथ्वी के अंडाकार पथ होने से सारे नक्षत्रों को पार करने में अलग अलग समय लगता है। हर नक्षत्रों से होते हुए सूर्य 22 जून से आर्द्रा में चल रहा है , जो 6 जुलाई से पुनवर्सु में , 20 जुलाई से पुष्य में , 3 अगस्त से अश्लेषा में चलने के बाद 17 अगस्त को मघा में प्रवेश के बाद 30 अगस्त को पूर्वा फाल्गुनी नक्षत्र में प्रवेश करेगा। मौसम की चर्चा में भी आपने इन नक्षत्रों का नाम अवश्य सुना होगा।
हर माह अमावस्या और पूर्णिमा अलग अलग राशियों में होती है !!
कल के आलेख में हमने जाना कि जितने दिनों तक सूर्य एक राशि में होता है , उतने दिनों में चंद्रमा पूरे आकाश का चक्कर लगा लेता है और इस तरह जन्मकुंडली में सूर्य के सापेक्ष चंद्रमा की स्थिति को देखते हुए हिंदी माह की तिथियों का आकलन किया जा सकता है। सभी राशियों में घूमते हुए एक माह बाद जबतक चंद्रमा सूर्य के नजदीक पहुंचने को होता है , तो सूर्य एक राशि आगे बढ चुका होता है। इस तरह अगले माह की अमावस्या पिछले माह में होनेवाली राशि से एक राशि बाद ही हो पाती है। सूर्य के एक राशि आगे बढ जाने से उसके सामने चंद्रमा को जाने में भी एक राशि आगे बढना पडता है और इस तरह अगले माह की पूर्णिमा भी एक राशि बाद ही होती है।
अब चूंकि 15 अप्रैल से 15 मई तक सूर्य मेष राशि में होता है , उस मध्य जब चंद्रमा मेष राशि में पहुंचेगा , तो अमावस्या होगी , इस कारण अमावस्या मेष राशि में ही होगी। उससे छह राशि आगे जाकर ही चंद्रमा सूर्य के सामने हो सकेगा , इस कारण इस माह में पूर्णिमा तुला राशि में होगी। इसी प्रकार 15 मई से 15 जून के मध्य सूर्य के वृष राशि में होने से उस मध्य अमावस्या वृष राशि में और पूर्णिमा वृश्चिक राशि में होती है। इसी नियम से 15 जून से 15 जुलाई के मध्य अमावस्या मिथुन राशि में तथा पूर्णिमा धनु राशि में , 15 जुलाई से 15 अगस्त के मध्य अमावस्या कर्क राशि में और पूर्णिमा मकर राशि में, 15 अगस्त से 15 सितंबर के मध्य अमावस्या सिंह राशि में और पूर्णिमा कुंभ राशि में , 15 सितंबर से 15 अक्तूबर के मध्य अमावस्या कन्या राशि में और पूर्णिमा मीन राशि में होती है।
यही क्रम आगे बढता जाता है और 15 अक्तूबर से 15 नवंबर के मध्य अमावस्या तुला राशि में और पूर्णिमा मेष राशि में , 15 नवंबर से 15 दिसंबर के मध्य अमावस्या वृश्चिक राशि में और पूर्णिमा वृष राशि में , 15 दिसंबर से 15 जनवरी के मध्य अमावस्या धनु राशि में और पूर्णिमा मिथुन राशि में , 15 जनवरी से 15 फरवरी के मध्य अमावस्या मकर राशि में और पूर्णिमा कर्क राशि में , 15 फरवरी से 15 मार्च के मध्य अमावस्या कुंभ राशि में और पूर्णिमा सिंह राशि में तथा 15 मार्च से 15 अप्रैल के मध्य अमावस्या मीन राशि में और पूर्णिमा कन्या राशि में हुआ करता है। इस तरह हर माह अमावस्या तथा पूर्णिमा अलग अलग राशियों में हुआ करता है ।
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