Saturday, September 24, 2011

अन्ना का पलटवार हमे जेल भेजा अब खुद जाये जेल में चिदम्बरम

नई दिल्ली. 2जी स्पेक्ट्रम आवंटन मामले में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने मंत्रियों के समूह (जीओएम) के टर्म्स ऑफ रिफरेंस (टीओआर अथवा कार्यवाही के बिंदु) को बदलने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उनकी सहमति से ही स्पेक्ट्रम की कीमतें तय करने का हक जीओएम से लेकर टेलीकॉम मंत्री को दे दिया गया।   इसी वजह से तत्कालीन टेलीकॉम मंत्री ए राजा जनवरी 2007 में घोटाला कर पाए, जिससे देश को 1.76 लाख करोड़ का नुकसान हुआ। सामाजिक कार्यकर्ता विवेक गर्ग ने सूचना का अधिकार (आरटीआई) के तहत गोपनीय दस्तावेज हासिल किए हैं, जिनसे यह खुलासा हुआ।

मनमोहन से मिले मारन: जनवरी 2006 में प्रधानमंत्री ने दूरसंचार कंपनियों के लिए रक्षा मंत्रालय से अतिरिक्त स्पेक्ट्रम खाली करवाने के मामले में जीओएम के गठन को मंजूरी दी थी। जीओएम के सामने सिफारिशों पर विचार करने के विषय विस्तृत थे। शेष त्न पेज 13 पर इसमें दुर्लभ 2जी स्पेक्ट्रम की कीमतों के निर्धारण पर भी चर्चा होनी थी। एक फरवरी 2006 को तत्कालीन दूरसंचार मंत्री दयानिधि मारन ने प्रधानमंत्री से मुलाकात की। इसके बाद उन्होंने प्रधानमंत्री को पत्र लिखा।

मेरी इच्छा के हों टीओआर : 28 फरवरी 2006 को तत्कालीन दूरसंचार मंत्री और द्रमुक नेता दयानिधि मारन ने प्रधानमंत्री को अर्धशासकीय पत्र (डीओ नंबर एल-14047/01/06-एनटीजी) लिखा। मारन ने ‘गोपनीय’ पत्र में लिखा, ‘आपको याद ही होगा कि एक फरवरी 2006 की मुलाकात में हमने रक्षा मंत्रालय द्वारा स्पेक्ट्रम खाली करने के मुद्दे पर गठित जीओएम पर चर्चा की थी। आपने मुझे आश्वस्त किया था कि जीओएम के टीओआर हमारी इच्छानुसार तैयार होंगे। यह जानकर आश्चर्य हुआ कि जीओएम के सामने जो विषय रखे गए हैं, वे बहुत व्यापक हैं। ऐसे मामलों का परीक्षण किया जा रहा है, जो मेरे अनुसार मंत्रालय स्तर पर किए जाने वाले कार्यो में अतिक्रमण है। विचार के इन बिंदुओं में हमारी सिफारिशों के आधार पर बदलाव किया जाए।’

मारन ने बनाए जीओएम की कार्यवाही के बिंदु: मारन ने पत्र के साथ जीओएम के लिए कार्यवाही के बिंदुओं का नया प्रस्ताव भी भेजा। पहले जीओएम को छह बिंदुओं पर चर्चा के लिए कहा गया था। इनमें स्पेक्ट्रम का मूल्य निर्धारण शामिल था। मारन ने प्रस्तावित एजेंडे में से उसे हटा दिया। सिर्फ चार विषयों को ही प्रस्तावित कार्यवाही के बिंदुओं में शामिल किया। यह सभी रक्षा मंत्रालय से अतिरिक्त स्पेक्ट्रम खाली कराने से जुड़े थे। प्रधानमंत्री ने जवाबी पत्र में मारन का पत्र मिलने की पुष्टि की।

चार बड़ी वजहें जो उन्हें संदेह के घेरे में लाती हैं

१ - कार्यवाही के बिंदु कैसे बदले
कार्यवाही के बिंदुओं (टर्म्स ऑफ रिफरेंस) की जानकारी केवल तीन किरदारों के पास थी। खुद टेलीकॉम मंत्री दयानिधि मारन, दूसरे प्रणब की अध्यक्षता वाले मंत्रियों का समूह और तीसरे प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह। या तो दयानिधि मारन ने बिंदु बदले (लेकिन यह इनके अधिकार क्षेत्र से बाहर था। यह उनके लिए असंभव था।) या मंत्रियों का समूह  ने ऐसा किया (अपनी ही कार्यवाही के बिंदु वे बदलकर हलके क्यों करेंगे।) फिर मारन प्रधानमंत्री से मिले। इसके बाद ही कार्यवाही के बिंदु बदल गए।


२ - नोटिफिकेशन पर आपत्ति क्यों नहीं उठाई गई 
चूंकि केबिनेट सचिवालय न तो संचार मंत्री को रिपोर्ट करता है और न मंत्रियों के समूह को। वह सीधे प्रधानमंत्री को रिपोर्ट करता है।
प्रधानमंत्री की सहमति के बाद ही केबिनेट सचिवालय से नोटिफिकेशन
जारी हो सकता है।

३ - मंत्रियों का समूह चुप क्यों रहा
आठ प्रभावशाली मंत्रियों वाले इस समूह ने कार्यवाही के बिंदु बदले जाने पर आपत्ति क्यों नहीं उठाई? तीन ही बातें हो सकती हैं
1. या तो बिंदु बदलने से उनका कुछ लेना देना नहीं था
2. या उन्हें जानकारी नहीं थी। ये दोनों बातें असंभव है।
3. या यह प्रधानमंत्री का आदेश था, जिसकी वे अवहेलना नहीं कर सकते थे।

4 - वित्तमंत्री को क्यों किया नजरअंदाज
सरकारी कामकाज के नियम-1961 के मुताबिक ऐसे किसी भी फैसले को लेने से पहले जिसमें पैसों का मामला हो, वित्तमंत्रालय से सलाह मशविरा जरूरी है। लेकिन इस मामले में तत्कालीन वित्तमंत्री की पूरी तरह अनदेखी की गई। यह तभी संभव था
जब प्रधानमंत्री ने खुद आदेश दिए हों। मारन के इस पत्र से स्पष्ट हुआ कि मंत्री समूह के कार्यवाही के बिंदु बदलने में प्रधानमंत्री की सहमति थी। राजा भी
यही कहते थे
राजा ने २५ जुलाई 2011 को सीबीआई की विशेष अदालत में दलील दी थी कि मैंने जो भी किया उसके पीछे मनमोहन और चिदंबरम की मंजूरी थी।

जनलोकपाल होता तो ये सब जेल में होते
देश में आज जन लोकपाल कानून होता तो चिदंबरम और भ्रष्टाचार को बढ़ावा देने वाले बाकी नेता भी जेल में होते। चिदंबरम ने मुझे जेल भेजा था। देखिए, आज वे खुद जेल जाने की कगार पर हैं। -अन्ना

न्यायपालिका लक्ष्मणरेखा न लांघे -कांग्रेस सरकार का सुप्रीम कोर्ट को हिदयात

2जी घोटालों में फसती नज़र आरही केन्द्र की कांग्रेस सरकार सुप्रीम कोर्ट को ही नसीहत दे डाली की सुप्रीम कोर्ट अपने हद में रहे और लक्षमण रेखा न लांघे - कांग्रेस सरकार की इस बयानबाजी के पीछे साजिस ये है की अब इस घोटालों के पीछे केंद्र सरकार के मंत्री रहे और घोटालों के समय वित् मंत्री रहे चिदम्बरम एक चिठ्ठी जो आज के वर्त्तमान वित् मंत्री प्रणब मुख़र्जी के चिठ्ठी से खुलासा हो गया की अगर चिदम्बरम चाहते तो ये घोटाले रुक सकते थे बस इसी खुलासे के बाद सरकार में हडकंप मच गई है और इनके बीच बचाव में सीबीआई ने सरकार का पक्ष लिया और सुप्रीम कोर्ट में सुब्रमणिय सवामी के इसी चिठ्ठी का कोर्ट में दायर याचिका के दौरान कांग्रेस अपनी साख और सरकार बचाने के पैतरे लिय और सर्वोच्चय न्यायलय को ही इस जाँच में न पड़ने की हिदयात दे दी और कहा की कोर्ट अपनी लक्ष्मण रेखा न लांघे ----कांग्रेस  का ये रुख उनपर और उनकी भ्रष्ट व्यवस्था पर निःसंदेह विश्वाश करने को को मजबूर कर देता है की पूरी की पूरी कांग्रेस सरकार भ्रष्टाचार और कुव्यवस्था में लगी है

कुछ घंटे बाद धरती से टकराएगा 5,900 किलो का सेटेलाइट, गिरेंगे 20 टुकड़े

फ्लोरिडा (अमेरिका). एक बस का आकार का बेकाबू सेटेलाइट धरती पर कभी भी कहर ढा सकता है। 2005 से बेकार पड़ा (निष्क्रिय) नासा का यूएआरएस सेटेलाइट  अंतरिक्ष में घूम रहा है। लेकिन चिंता की बात यह है कि शुक्रवार रात से लेकर शनिवार सुबह के बीच नासा का यह सेटेलाइट कभी भी धरती से टकरा सकता है। नासा की तरफ से जारी ताज़ा बयान में कहा गया है कि सेटेलाइट उत्तरी अमेरिका से नहीं टकराएगा। लेकिन नासा ने यह नहीं साफ किया है कि आखिरकार यह सैटेलाइट धरती के किस हिस्‍से से टकराएगा। नासा का यह भी दावा है कि सैटेलाइट की टक्‍कर से धरती पर नुकसान जरूर होगा।
सेटेलाइट का वजन 5,900 किलोग्राम है। यह धरती के वायुमंडल में प्रवेश करते ही 20 टुकड़ों में बंट जाएगा। वैज्ञानिकों के मुताबिक इसके कई टुकड़े तो धरती की कक्षा में प्रवेश करते ही जल जाएंगे लेकिन कुछ टुकड़ों के धरती पर करीब 800 किलोमीटर की दूरी में बिखरने की आशंका है।  इन टुकड़ों की कुल वजन करीब 500 किलो होगा।   चूंकि, सेटेलाइट लगातार अपनी दिशा बदल रहा है, ऐसे में नासा के जानकार भी इस बात का पूरी तरह से अंदाजा नहीं लगा पा रहे हैं कि सेटेलाइट के टुकड़े धरती पर कब और कहां गिरेंगे।
यह सेटेलाइट 35 फुट लंबे और 15 फुट चौड़ाई वाले इस सेटेलाइट को ओज़ोन और पृथ्वी के वायुमंडल में मौजूद रसायनों के अध्ययन के लिए 1991 में अंतरिक्ष में भेजा गया था। लेकिन 2005 में इसने काम करना बंद कर दिया था। 

3,200 में से 1 के बराबर है इंसान से टकराने की संभावना
नासा का कहना है कि चूंकि धरती का 75 फीसदी हिस्सा पानी, रेगिस्तान और ऐसी जगहों से मिलकर बना है, जहां इंसानी आबादी नहीं है। नासा के अनुमान के मुताबिक यूएआरएस के मलबे के हिस्सों के किसी इंसान पर गिरने की आशंका 3,200 में 1 के बराबर है। नासा का यह भी कहना है कि सेटेलाइट उत्तरी अमेरिका के ऊपर से इस दौरान नहीं गुजरेगा। 
 
पहले भी अंतरिक्ष से गिर चुके हैं टुकड़े जुलाई, 1979 में धरती पर स्काईलैब स्पेस स्टेशन के टुकड़े आकर गिरे थे। पश्चिमी ऑस्ट्रेलिया में गिरे स्काईलैब के टुकड़ों से किसी को चोट नहीं लगी थी। लेकिन स्थानीय प्रशासन ने गंदगी फैलाने के लिए नासा पर 400 अमेरिकी डॉलर का जुर्माना लगाया था। स्काईलैब का आकार यूएआरएस से ज़्यादा बड़ा था। स्काईलैब का आकार एक बड़े घर जैसा था।   
 

आपकी राय व निवदेन क्या ऐसे सेटेलाइट अंतरिक्ष में भेजे जाने चाहिए?  क्या नासा को इसकी जिम्मेदारी नहीं लेनी चाहिए? अगर नासा इसे नियंत्रित नहीं कर पा रहा है तो ऐसे अंतरिक्ष अभियान की क्या जरूरत थी? आप खबर पर अपना कमेंट्स लिखते समय भाषा का खयाल रखें। निजी या आपत्तिजनक टिप्‍पणी किसी भी सूरत में नहीं करें। ऐसी टिप्‍पणी साइट से हटा दी जाएगी और इसके लिए अगर कोई पक्ष कानूनी कार्रवाई करता है तो उसकी जिम्‍मेदारी भी कमेंट करने वाले की ही होगी।