किसी को जीरो न कहें, उसमें π (पाइ) है
ऊपर वैज्ञानिक जगदीशचंद्र बोस का चित्र है. उन्होंने ही पहली बार साबित किया कि पौधे मनुष्य की तरह जीव हैं. वे फादर ऑफ रेडियो साइंस भी कहे जाते हैं. तब प्रेसिडेंसी कॉलेज में प्रयोगशाला नहीं थी. अपने खर्चे से बाथरूम को प्रयोगशाला बनायी. पहली बार बिना तार के इलेक्ट्रोमेगनेटिक तरंगों के सहारे घंटी बजा कर दुनिया को चौंकाया.अंगरेजों ने उनके सिद्धांत का इस्तेमाल पानी जहाजों को संदेश देने के लिए किया. उन्हें पैसा जमा करने से चिढ़ थी. इसीलिए पेटेंट नहीं कराया. गुरुदेव रवींद्र नाथ टैगोर को पत्र लिखा कि पैसे के पीछे लोग कैसे भाग रहे हैं. वे बस ज्ञान के प्रचार-प्रसार के इच्छुक थे. वे स्कूल में अंगरेजी में बहुत कमजोर थे. उनके सहपाठियों ने उनके साथ पढ़ने से इनकार कर दिया था. वे बोस को देहाती कहते थे.
बेवकूफ-‘जीरो’. आज भी हम कमजोर छात्र के लिए लोगों को‘जीरो’कहते सुनते हैं. पाइ का मान जीरो की परिधि को उसके व्यास से विभाजित करने पर आता है. इसे हम 3.14 मान कर काम चलाते हैं, पर सही मान आज तक नहीं निकला. दो अंकों को दहाई व तीन अंकों को सैकड़ा कहते हैं, पर एक के आगे अगर दस लाख अंक दिये जाएं, तो क्या आप गिन पायेंगे.
प्रिंस्टन विवि की‘रहस्यमयी पाइ’में 27 पन्नों में वैलूय निकाल कर छोड़ दिया गया है. यह अनंत है. न खुद को‘जीरो’मानें, न दूसरे को‘जीरो’ कहें, क्योंकि आपमें पाइ है. आपमें कितनी क्षमता है, इसका सही मूल्यांकन पाइ की तरह अब तक नहीं हुआ है. जिंदगी को‘जीरो’मान कर नष्ट करने के बजाय इसके आगे अंक लगाते जाएं. आप जेसी बोस से भी आगे होंगे