Monday, July 11, 2011

समय को बांटती इंसानी रेखाएं

अंतरराष्ट्रीय तिथि रेखा
दक्षिण प्रशांत महासागर में स्थित देश समोआ, अपनी अर्थव्यवस्था सुधारने के लिए अपनी घड़ी को पूरे एक दिन आगे करने जा रहा है. अभी तक इंटरनेशनल डेटलाइन के पूर्व में रहा यह देश अब लाइन के पश्चिम में आ जायेगा. इससे कई देशों के साथ इसके व्यापारिक संबंध मजबूत और आसान हो सकेंगे. डेट लाइन का दुनिया के व्यापार पर काफ़ी फ़र्क पड़ता है.
यह एक ऐसी रेखा है जहां कदम भर के फ़ासले पर पूरे एक दिन का अंतर आ जाता है. यह अंतर सकारात्मक और नकारात्मक हो सकता है. अगर आपके जीवन के कैलेंडर को एक दिन पीछे खिसका दिया जाये तो आपको एक दिन तो ज्यादा मिल ही जायेंगे. दुनिया में समय और तारीख को निर्धारित करने के तरीके और उससे जुड़े अन्य पहलुओं के बीच ले जाता आज का नॉलेज..
हम जानते हैं कि रात 12 बजे के बाद तारीख बदल जाती है ? लेकिन, क्या पूरे विश्व में नया दिन एक साथ ही होता है ? तारीखें एक साथ बदल जाती हैं ? भारत में जब रात के 12 बजते हैं, तो पाकिस्तान में उसी समय रात के साढ़े ग्यारह ही बजे होते हैं. जबकि बांग्ला देश में साढ़े 12 बज चुके होते हैं. इसी प्रकार जब भारत में साढ़े 10 बजता है तो थाईलैंड में नये दिन का आगमन हो चुका होता है और जापान हमसे आठ घंटे पहले ही नये दिन की आबो-हवा में सांस ले चुका होता है. वहीं ब्रिटेन को साढ़े पांच घंटे और अमेरिका को इससे भी अधिक समय के बाद नित नये दिन से साक्षात्कार होता है.
समय का अंतर क्यों और कैसे
दो देशों के स्थानीय समय में अंतर पृथ्वी के अपने अक्ष पर घूर्णन के कारण होता है. पृथ्वी अपनी धुरी पर 24 घंटे मे एक चक्कर लगाती है, जिसके कारण दिन और रात होते हैं. जैसे-जैसे पृथ्वी पूर्व की तरफ़ घूमती जाती है वैसे-वैसे पूर्व से पश्चिम की दिशा में स्थित देशों में उजाला होता जाता है. हमारे देश में सवेरा करने से पहले यही सूर्य पूर्व में स्थित देशों में पहले ही सवेरा ला चुका होता है. यदि पृथ्वी को 360 अंशों में विभाजित किया जाये तो सूर्य की गति 15 डिग्री प्रति घंटा निकलेगी ( 24 घंटों में पूरी दुनिया का सफ़र ). इसका अर्थ यह हुआ कि यदि किसी स्थान पर सूर्य अभी निकला है तो उस स्थान से 15 डिग्री पूर्व मे स्थित किसी दूसरे स्थान पर सूर्य उससे एक घंटा पहले उग चुका होगा.  
समय की गणना के लिए पृथ्वी पर काल्पनिक रेखाएं खींची गयी हैं जिन्हे अक्षांश और देशांतर कहा जाता है. देशांतर रेखाएं उध्र्वाकार होती हैं और उत्तरी ध्रुव से शुरू होकर दक्षिणी ध्रुव तक जाती हैं. अक्षांश रेखाएं, पृथ्वी पर पूर्व से पश्चिम को मिलाती हुई, देशांतर रेखाओं को समकोण पर काटती हैं.  
सूर्य जब किसी विशेष देशांतर रेखा के ठीक ऊपर पंहुचता है, तो उस स्थान पर दोपहर के 12 बजे होते हैं. अब जैसे- जैसे पृथ्वी अपनी धुरी पर चक्कर लगाती जाती है, सूर्य एक देशांतर रेखा से दूसरी देशांतर रेखा पर चलता हुआ दिखता है. इस प्रकार किसी एक विशेष समय पर सभी स्थानों का स्थानीय समय भिन्न-भिन्न होता है. 15 डिग्री देशांतर के अंतर पर समय में एक घंटे का फ़र्क आता है और प्रत्येक डिग्री देशांतर के अंतर पर यह फ़र्क चार मिनट का होता है.
इसी कारण प्रत्येक देश का अपना अलग स्थानीय समय होता है, जो उस देश से होकर गुजरने वाली देशांतर रेखा पर निर्भर करता है. अधिकतर देशों ने अपने यहां केवल एक ही औसत समय का प्रावधान रखा है जो उस देश का मानक समय ( स्टैंडर्ड टाइम ) कहलाता है. इन देशों ने सुविधा के लिए ग्रीनविच( लंदन के पास ) के देशांतर से 15 डिग्री पर बने क्षेत्रों में एक-एक घंटे के औसत समय का अंतर रखा है. समय का यह अंतर केवल देशांतर रेखाओं पर ही निर्भर करता है और इनमें शहरों के बीच की दूरी से कोई फ़र्क नहीं आता है. आवश्यक नहीं हैं कि समूचे देश में केवल एक ही औसत या स्टैंडर्ड समय हो.
भौगोलिक रूप से बड़े देशों में ऐसा करना कई मुश्किलों को जन्म दे सकता है. यही कारण है कि संयुक्त राज्य अमेरिका में छह स्थानीय समय है. अविभाजित रूस में तो11 स्थानीय समय का इस्तेमाल होता था. रूस का स्थानीय समय इतना अधिक विस्तृत है कि वहां के पश्चिम में स्थित मॉस्को के समय और पूर्व में स्थित कामचटका द्वीप के समय में पूरे 9 घंटों का अंतर है. ध्रुवीय क्षेत्रों में जहां देशांतर रेखाएं एक दूसरे के बहुत पास होती हैं, वहां समय का निर्धारण करने में कठिनाई आती है.
ग्रीनविच मीन टाइम
ब्रिटेन के ग्रीनविच नामक स्थान ( जहां से शून्य डिग्री देशांतर रेखा गुजरती हैं ) के समय को ग्रीनविच मीन टाइम ( जीएमटी ) कहा जाता है, जो कि पूरे विश्व का मानक समय है. ग्रीनविच के पूर्व में स्थित क्षेत्रों की घड़ियां जीएमटी से आगे होती हैं, जिसे (+) से और पश्चिम के स्थानों की घड़ियां जीएमटी से पीछे होती हैं, जिसे (-) से दिखाया जाता है. अब इसके स्थान पर यूटीसी ( यूनिवर्सल को-ऑर्डिनेटेड टाइम ) का नाम प्रयोग में लाया जाता है

मां का दूध पीनेवाले बच्चे बनते हैं व्यवहार कुशल

यह बात बहुत पहले से ही मालूम है कि पहले छह महीने तक स्तनपान ( ब्रेस्ट फ़ीडिंग ) कराने से बच्चे कई तरह की बीमारियों और एलर्जी से बचे रहते हैं.
अब एक नये रिसर्च में यह बात सामने आयी है कि इससे वे बड़े होकर ज्यादा व्यवहारकुशल भी बनते हैं. ऑक्सफ़ोर्ड यूनिवर्सिटी में शोधकर्ताओं ने एक शोध में पाया कि पहले चार महीने तक स्तनपान कराने से ही बच्चों में बड़ा होकर बुरा बर्ताव करने का खतरा एक तिहाई तक कम हो जाता है. स्टडी टीम ने पाया कि चार महीने तक स्तनपान करने वाले बच्चों के मुकाबले फ़ॉम्र्युला मिल्क पर पले 16 फ़ीसदी बच्चों में एंग्जाइटी, झूठ बोलना, चोरी और ज्यादा गुस्सैल होने जैसी प्रवृतियां देखी गयी.
टीम लीडर डॉक्टर मारिया क्वीग्ली की अगुआई में टीम ने 9500 मांओं और बच्चों पर स्टडी की. ब्रिटेन में साल 2000 से 2001 के बीच की 12 महीने के दौरान पैदा हुए बच्चों पर की गयी इस स्टडी  के दौरान के पैरंट्स से पांच साल की उम्र तक उनके बच्चों के बर्ताव के बारे में सवाल पूछे गये. नतीजे में पाया गया कि फ़ॉम्र्युला मिल्क पर पले बच्चों में से 16 फ़ीसदी और स्तनपान पर पले बच्चों में से सिर्फ़ 6 फ़ीसदी में असामान्य बर्ताव विकसित हुआ.

दूर से ही दुश्मनों का सफ़ाया करेगी इंटरसेप्टर मिसाइल

वायु सीमा रक्षा प्रणाली के क्षेत्र में एक और ऐतिहासिक उपलब्धि हासिल करने की कोशिश के तहत भारत ने पांच हजार किलोमीटर की इंटरसेप्टर मिसाइल तैयार करने पर काम शुरु कर दिया है.
इस इंटरसेप्टर मिसाइल के 2016 तक बनकर तैयार होने की पूरी उम्मीद है. यह रक्षा प्रणाली भारतीय वायु सीमा में प्रवेश करने से पहले ही दुश्मन की किसी भी मिसाइल को पांच हजार किलोमीटर की दूरी से ही पहचान कर नेस्तनाबूद कर देगी. रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन ( डीआरडीओ ) बैलेस्टिक मिसाइल डिफ़ेंस ( बीएमडी ) सिस्टम के तहत पहले ही एक ऐसी इंटरसेप्टर मिसाइल का निर्माण कर चुका है जो 2000 किलोमीटर की दूरी से दुश्मन मिसाइल को ध्वस्त कर देती है.
इसी प्रयास के दूसरे चरण के तहत अब 5,000 किलोमीटर दूर से दुश्मन की मिसाइल को गिराने की क्षमता वाली इंटरसेप्टर मिसाइल पर काम किया जा रहा है. डीआरडीओ प्रमुख वीके सारस्वत ने बताया कि इसइंटरसेप्टर मिसाइल का निर्माण कार्य 2016 से पहले पूरा होने की उम्मीद है.