Monday, July 11, 2011

जेब में खबर

अखबार बनता मोबाइल
आपने टीवी में एक विज्ञापन देखा होगा- जिसमें एक व्यक्ति गुजराती अखबार की मांग करता है और एक युवक उसे मोबाइल में अखबार प़ढ़ने को देता है. यह भारत में मोबाइल और अखबार के संगम का अनोखा दृश्य है. दुनिया भर में अखबार प़ढ़ने का तरीका बदलता जा रहा है. लोग छपे हुए शब्दों की जगह, उसे इंटरनेट और मोबाइल पर पढ़ने लगे हैं. हालांकि, भारत में अभी महज एक करोड़ लोग ही डिजिटल फ़ॉर्म में अखबार पढ़ते हैं, लेकिन भविष्य की आहट सुनते हुए अखबार और न्यूज चैनलों ने मोबाइल के माध्यम से लोगों तक अपनी पहुंच बढ़ाने की कोशिश शुरू कर दी है. दुनिया भर की खबर आपकी मुट्ठी में आकर सिमट गयी है. खबरों की इस नयी दुनिया पर नजर डालता अजय राय का आलेख
जानकारों का कहना है कि 2040 तक दुनिया से न्यूजपेपर गायब हो जायेंगे. तब खबरों को लोग इंटरनेट पर या मोबाइल पर पढ़ा करेंगे. माना जा रहा है कि जिस तरह से मोबाइल फ़ोन को स्मार्ट बनाया जा रहा है, उसे देखते हुए आने वाले समय में खबरों का पूरा संसार मोबाइल फ़ोन में सिमट कर रह जायेगा. .
मोबाइल फ़ोन ने अपनी छोटी-सी स्क्रीन पर पूरी दुनिया को अपने आगोश में समेट लिया है. पूरी दुनिया अब हमारी जेब में है. मोबाइल ऐप्लकेशंस का विस्तार इस कदर बढ़ता जा रहा है, कि वह दिन दूर नहीं, जब मोबाइल कई परंपरागत गैजेटों की छुट्टी कर देगा. मोबाइल में इंटरनेट की सुविधा जुड़ जाने से इसने जादू की शक्ल इख्तियार कर लिया है. हम देश-विदेश की पल-पल की घटनाओं से अवगत होने लगे हैं. खबर जानने के लिए न तो अखबार को पलटने की जरूरत रह गयी है, न ही टीवी के रिमोट को दबाने की. इस छोटे से डिवाइस ने सूचनाओं के संसार को हमारी मुठ्ठी में ला दिया है.
खुद को अपडेट रखने के लिए लोगों में खबरों और सूचनाओं की भूख दिनों-दिन बढ़ती जा रही है. 24 गुणा 7 के रूटीन में मोबाइल ने अपनी उपयोगिता बखूबी सिद्ध कर दी है. क्योंकि यह हमेशा यूजर्स के साथ रह सकता है. कई बार ऐसा होता है कि हमारे पास खबरें पढ़ने का वक्त नहीं होता. मसलन, जब हम हवाई सफ़र पर होते हैं, तो ऑनलाइन नहीं हो पाते. मोबाइल ने इसका भी विकल्प उपलब्ध कराया है. अब मोबाइल में ऐसे कुछ ऐप्लकेशन आ गये हैं, जिनकी मदद से हम एक बार में दिनभर की खबरें डाउनलोड कर सकते हैं और बाद में हम उन्हें पढ़ सकते हैं. भले ही उस वक्त हमारे पास इंटरनेट की सुविधा हो या न हो.
अखबार बनता मोबाइल
पिछले दिनों भारत के अखबार बाजार को ध्यान में रखकर बोल्ट नामक एक नया मोबाइल ब्राउजर लांच किया गया. इस ब्राउजर के सहारे अंगरेजी और हिंदी अखबारों के साथ ही स्थानीय भाषाओं के अखबारो को भी मोबाइल फ़ोन पर पढ़ना संभव बनाने की बात की गयी. वह भी इमेज के रूप में न होकर टेक्स्ट के रूप में. इससे पहले करीब दो वर्ष पूर्व न्यूज हंट नामक ऐप्लकेशन को लांच किया गया था. इसके सहारे करीब 15 अखबारों को मोबाइल फ़ोन पर मुहैया कराने की बात की गयी थी. दुनिया के कई महत्वपूर्ण अखबार और न्यूज चैनल आज मोबाइल फ़ोन पर उपलब्ध हैं. इनमें बीबीसी न्यूज का नाम प्रमुखता से लिया जा सकता है. हालांकि, आज अधिकतर लोगों को इस ऐप्लकेशन के बारे में ज्यादा जानकारी नहीं है. लेकिन बीबीसी का ऐप्लकेशन, आइपैड के लिए मौजूद है. इसकी मदद से यूजर अपनी पसंदीदा खबरों को डाउनलोड कर सकते हैं और बाद में अपने पढ़ने के लिए सेव कर सकते हैं. हालांकि, यह डाउनलोडिंग के लिए थोड़ा वक्त लेता है. इस ऐप्लकेशन के साथ जुड़ी सबसे बड़ी समस्या यह है कि इसमें खबरों से जुड़ी हुईं तसवीरें डाउनलोड नहीं होती. यह ऐप्लकेशन आइपैड के लिए मुफ्त में उपलब्ध है.
आइ पैड ने बदला खबर का चेहरा
आइ-पैड के आने के बाद खबरों की दुनिया बदल गयी है. अखबरों की दुनिया को बदलने वाला एक काफ़ी लोकप्रिय ऐप्लकेशन है- अर्ली ऐडशन. यह एक आरएसएस रीडर है, जो खबरों को अखबार की शक्ल में यूजर्स के आइपैड में डाउनलोड कर देता है. इसके लिए यूजर्स गूगल रीडर से फ़ीड ले सकते हैं. इसमें यूजर्स को एक फ़ेच बटन दबाना होता है और खबरें स्क्रीन अंतराल पर आने लगती हैं. यहां से खबरों को डाउनलोड भी किया जा सकता है. यूजर्स के लिए इसमें एक सुविधा यह भी है कि नयी खबरों को पढ़ने के लिए समय सीमा तय कर सकते हैं. एक बार खबरों के आने का अंतराल तय हो जाने के बाद यूजर्स को पढ़ने और डाउनलोड करने में आसानी हो जाती है. इसमें यूजर्स ज्यादातर खबरों को ऑफ़लाइन रहकर भी पढ़ सकते हैं. आइपैड के लिए एक बेहतरीन ऐप्लकेशन है- फ्लिप बोर्ड. यह अधिकतर यूजर्स की यह पहली पसंद होती है. इसमें फ़ेसबुक और ट्विटर फ़ीड्स को एक मैगजीन के रूप में तब्दील करने की सुविधा होती है. विदेशी खबरों से अवगत होने का यह सबसे अच्छा स्रोत बन गया है.
आइपैड ही नहीं ब्लैकबेरी भी
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वैज्ञानिकों को टाइटन पर मिले समुद्र होने के संकेत

टाइटन हमेशा से ही खगोल शास्त्रियों को अपनी और आकर्षित करता रहा है. इसके पीछे के कारण ये हैं कि इसकी कुछ विशेषताएं पृथ्वी से मेल खाती हैं और यह एक मात्र ऐसा ग्रह है जिसकी सतह के भीतर तरल होने की संभावना है.
शोधकर्ताओं के इस क्रम में एक कदम और आगे बढ़ गया है, एक नये अध्ययन से टाइटन पर समुद्र होने के संकेत मिले हैं. लेकिन अभी इसको लेकर अटकलें लगायी जा रही हैं कि कहीं यह तरल मीथेन तो नहीं है. वैज्ञानिकों को यह संकेत भी मिले हैं कि टाइटन का यह समुद्र पानी और अमोनिया से मिलकर बना हो सकता है. इसके अलावा इसकी लंबाई 30 किलोमीटर अनुमानित बतायी गयी है. नासा का कैसिनी अंतरिक यान टाइटन पर नजर बनाये हुए है और इस संबंध में आकड़े एकत्र करने की कोशिश में लगा है.
अभी तक राडार द्वारा भेजी गयी जानकारी के अनुसार टाइटन पर भूमिगत समुद्र होने की संभावना है. इसके अलावा ये बात भी सामने आयी है कि टाइटन की कक्षा चंद्रमा के समान ही है, और इसकी धुरी में 0.3 डिग्री का परिवर्तन आया है. शोधकर्ता रोस मरीन ब्लेंड जो रॉयल ऑवजरवेटरी ऑफ़ बेल्जियम ब्रुसेल्स से संबंध रखते है और प्रमुख शोधकर्ता हैं, उनका कहना है कि हर ग्रह के निर्माण की प्रक्रिया अलग होती है, लेकिन एक ग्रह दूसरे से कुछ न कुछ संबंध रखता है. रोस द्वारा कही गयी इस बात से सभी खगोलविज्ञानी सहमत नहीं हैं

मानव शक्ति से चलने वाले पहले हेलीकॉप्टर का निर्माण

मैरीलैंड यूनिवर्सिटी के विद्यार्थी एक इतिहास बनाने के लिए अपनी कमर कस चुके हैं. हाल में उन्होंने मानव शक्ति से चलने वाले पहले हेलीकॉप्टर का निर्माण किया है. इस हेलीकॉप्टर का निर्माण करने वाली विद्यार्थियों की टीम ने अपनी इस रचना को ‘गेमेरा’ नाम दिया है.
खास किस्म के पैडल से ‘गेमेरा’ आसमान में उड़ेगा. यदि विद्यार्थियों का यह हेलीकॉप्टर अपनी पहली उड़ान में तीन मीटर की ऊंचाई पर 60 सेकेंड तक 10 मीटर वर्ग के ऐरया में आसमान में एक ही जगह मंडराता रहा, तो उसकी उड़ान सफ़ल मानी जायेगी. उड़ान सफ़ल होने पर विद्यार्थियों की टीम को ढाई लाख डॉलर ईनाम के तौर पर दिये जायेंगे. अपनी रचना की सफ़लता के साथ यह टीम एक विश्व रिकॉर्ड बनाने में भी कामयाबी हासिल कर लेगी, क्योंकि इस तरह के हेलीकॉप्टर को पहली बार जूडी वेक्सलर नाम की एक लड़की चलायेगी, जो मैरीलैंड यूनिवर्सिटी में लाइफ़ साइंस की स्टूडेंट है.
इस तरह का पहला प्रयोग यानी मानव शक्ति से उड़ान भरने का प्रयास ‘दा विंसी 3’ ने 1989 में किया था, लेकिन दा विंसी 3.8 इंच की ऊंचाई पर मात्र 7.1 सेकेंड तक ही उड़ान भर पाया था. इसके बाद दूसरा हेलीकॉप्टर 1994 में ‘यूरी’ नाम का बनाया गया. इसने भी 20 सेमी की ऊंचाई पर मात्र 19.46 सेकेंड तक ही उड़ान भरी थी