यह दुनिया चलती है नॉलेज से
जिक इंडस्ट-ी में अपने पांव जमाने की कोशिश में जुटी सूफी गायिका पार्वती कुमारी ने हाल ही में सारेगामा की ओर से अपना नया एलबम बरसे-बरसे नयना लांच किया. झारखंड (धनबाद) से ताल्लुक रखनेवाली पार्वती कुमारी मुंबई के अलावा अन्य शहरों में भी अपने एलबम का प्रचार कर रही हैं.
बरसे-बरसे नयना में उस नायिका की पीड़ा है, जिसे सुकून की तलाश है. चाहे वह प्रियतम से मिलने की तड़प हो या खुदा से जुड़ने की बेचैनी, हर लम्हा उसे पाने की लालसा में बीतता है.पार्वती जब सिर्फ दस साल की थीं, तभी से उनकी सांगीतिक यात्रा शु हो गयी थी. वह अपने शहर में भजन गाया करती थीं. उन्होंने संगीत की शिक्षा गंधर्व महाविद्यालय से ली और म्यूजिक में बीए दिल्ली यूनिवर्सिटी से किया. ओबदा परवीन का संगीत सुनने के बाद सूफी संगीत की तरफ उनका झान बढ़ा. जिसके बाद सूफी संगीत की शिक्षा गुरु चांद फ़रीदी निजामी से दिल्ली में लेनी शु की. पार्वती के अनुसार गुरु निजामी बंधुओं के आशीर्वाद से सूफी संगीत की खिदमत का मौका मिला है. उनसे शब्दों को सुरों में पिरोने की कला सीखी. सूफ़ी संगीत के शहंशाह नुसरत फ़तेह अली खान की आवाज से भी पार्वती काफी प्रभावित हैं.पार्वती का मानना है कि सूफ़ी संगीत इतना पाक है कि यह खुदा से जोड़ता है.
Monday, July 11, 2011
खतरनाक रूप लेती एंटीबायोटिक के प्रति दीवानगी
अस्सी वर्ष पहले कई बीमारियों के इलाज के लिए कोई कारगर दवा नहीं थी. लेकिन एंटीबायोटिक की खोज जीवाणुओं के संक्रमण से निपटने में जादू की छड़ी की तरह काम करने लगी. वक्त गुजरने के साथ एंटीबायोटिक का प्रचलन तेजी से बढ़ा है
. हाल ही में भारत के संबंध में डब्ल्यूएचओ ने एक अध्ययन कराया है, जिसमें यह बात सामने आयी है कि यहां के आधे से अधिक लोग दवाओं के नकारात्मक पक्ष को दरकिनार करते हैं और बिना डॉक्टरी परामर्श के एंटीबायोटिक का सेवन करते हैं.
इन दवाओं के लगातार सेवन से जीवाणु अब इतने ताकतवर हो गये हैं कि उन पर कई एंटीबायोटिक दवाओं की मारक क्षमता कम होने लगी है. इसकी भयावहता को देखते हुए भारत में भी एंटीबायोटिक के बिना सोचे-समङो इस्तेमाल को रोकने की कवायद तेज हो गयी है...
जब 1928 में अलेक्जेंडर फ्लेमिंग ने पहली एंटीबायोटिक पेनिसिलिन का अविष्कार किया था, तो दुनिया में खुशी फ़ैली कि चलो कुछ मिला, जिससे बैक्टीरिया के संक्रमण से लड़ा जा सकता है. लेकिन वक्त गुजरने के साथ, एंटीबायोटिक दवा खा-खाकर बैक्टीरिया अब इतना ताकतवर हो गया है कि उस पर कई एंटीबायोटिक दवाओं की मारक क्षमता कम होने लगी है. सुपरबग इसका उदाहरण है. सुपरबग ऐसा बैक्टीरिया है, जिसपर एंटीबायोटिक का प्रभाव नहीं पड़ता.
आम लोगों की धारणा है कि एंटीबायोटिक दवाओं से कोई नुकसान नहीं है. इसीलिए जरा-सी सर्दी-जुकाम या मामूली दर्द होने पर भी एंटीबायोटिक ले लेते हैं. विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के एक अध्ययन में कहा गया है कि 53 फ़ीसदी भारतीय बिना डॉक्टरी सलाह के एंटीबायोटिक लेते हैं.
अध्ययन में कहा गया है कि अगर सर्दी जुकाम जैसी मामूली बीमारी में डॉक्टर एंटीबायोटिक नहीं लिखता है, तो भारत में 48 फ़ीसदी लोग डॉक्टर बदलने की सोचने लगते हैं. यही नहीं 25 फ़ीसदी डॉक्टर बच्चों के लिए बुखार में एंटीबायोटिक लिखते. 52 फ़ीसदी डॉक्टर मानते हैं कि सेहत बेहतर महसूस होते ही एंटीबायोटिक लेना नहीं छोड़ना चाहिए.
देश में डॉक्टर, बुखार और खांसी के लिए भी एंटीबायोटिक दवाएं लिखते हैं. इस रिपोर्ट में दवाओं की रोग प्रतिरोधक क्षमता में कमी होने पर चिंता जतायी गयी है. डब्लूएचओ के मुताबिक, 63 प्रतिशत लोग बची एंटीबायोटिक्स का इस्तेमाल पारिवारिक सदस्यों के लिए नहीं करते हैं. इस प्रकार एंटीबायोटिक्स के बढ़ते चलन व धड़ल्ले से हो रहे इसके प्रयोग से कई दवाओं को लगातार चुनौती मिल रही है.
स्थिति यह है कि कई बीमारियों में एंटीबायोटिक्स का असर धीरे-धीरे कम होता जा रहा है. विश्व स्वास्थ्य दिवस पर डब्ल्यूएचओ ने रोगाणुरोधी प्रतिरोधकता (एंटीबायोटिक्स रेजिस्टेंस) को इस वर्ष विश्व स्वास्थ्य दिवस की थीम घोषित की है.आज पूरी दुनिया में हजारों एंटीबायोटिक्स हैं, जिसमें कई बेअसर होने की कगार पर हैं. हर वर्ष करीब पांच दवाओं के प्रभाव खोने के संकेत सामने आ रहे हैं.
इस विषय पर डॉक्टरों का शोध जारी है. लेकिन जिस रफ्तार से यूरोपीय और ऐशयाई देशों में एंटीबायोटिक दवाओं का असर कम होता जा रहा है, वह चिंता का विषय है. देश में अब यह शिकायत आम हो गयी है. जिसमें कहा जाता है कि टीबी के लिए बनी कई एंटीबायोटिक दवाओं का अब असर समाप्त हो गया है. पिछले ही वर्ष टीबी के 440000 नये मामले सामने आये, जिन पर एंटीबायोटिक का कोई प्रभाव नहीं देखा गया.
इसमें से लगभग एक लाख पचास हजार लागों की मौत हो गयी थी. अगर जल्दी से इस पर ध्यान नहीं किया गया, तो भारत में इसके गंभीर परिणाम देखने को मिल सकता है.
क्या है एंटीबायोटिक?
एंटीबायोटिक दो ग्रीक शब्द एंटी और बायोस से मिलकर बना है. एंटी का अर्थ विरोध या खिलाफ़ और बायोस का अर्थ जीवन होता है. इस प्रकार एंटीबायोटिक का मतलब है जीवन के खिलाफ़. एक ऐसा यौगिक, जो बैक्टीरिया (जीवाणु) को मार देता है. उसके विकास को रोकता है.
इस प्रकार एंटीबायोटिक बीमारी न फ़ैलने देने वाले यौगिकों का एक व्यापक समूह होता है, जिसका उपयोग कवक और प्रोटोजोवा सहित सूक्ष्मदर्शी द्वारा देखे जाने वाले जीवाणुओं बैक्टीरिया, फ़फूंदी, परजीवी के कारण हुए संक्रमण को रोकने के लिए होता है. एंटीबायोटिक शब्द का प्रयोग 1942 में सेलमैन वाक्समैन ने एक सूक्ष्म जीव द्वारा उत्पन्न ठोस पदार्थ के लिए किया था.
मेडिकल साइंस की प्रगति के साथ-साथ अब अधिकतर एंटीबायोटिक्स सेमीसिंथेटिक किस्म के हो गये हैं. जिन्हें प्रकृति में पाये जाने वाले मूल यौगिकों से रासायनिक रूप से संशोधित कर बनाया जाता है. हालांकि, कुछ एंटीबायोटिक दवाओं का उत्पादन अभी भी अमीनोग्लाइकोसाइड जैसे जीवित जीवों के जरिये हो रहा है.
इसके अलावा कुछ एंटीबायोटिक कृत्रिम तरीकों जैसे - सल्फ़ोनामाइड्स, क्वीनोलोंस और ऑक्साजोलाइडिनोंस से बनाये जाते हैं. इस प्रकार उत्पत्ति के आधार एंटीबायोटिक को तीन वर्गो प्राकृतिक, सेमी सिंथेटिक और सिंथेटिक में विभाजित किया जाता है. इसके अलावा बैक्टीरिया पर इनके प्रभाव या कार्य के अनुसार एंटीबायोटिक्स को दो समूहों में बांटा जाता है.
. हाल ही में भारत के संबंध में डब्ल्यूएचओ ने एक अध्ययन कराया है, जिसमें यह बात सामने आयी है कि यहां के आधे से अधिक लोग दवाओं के नकारात्मक पक्ष को दरकिनार करते हैं और बिना डॉक्टरी परामर्श के एंटीबायोटिक का सेवन करते हैं.
इन दवाओं के लगातार सेवन से जीवाणु अब इतने ताकतवर हो गये हैं कि उन पर कई एंटीबायोटिक दवाओं की मारक क्षमता कम होने लगी है. इसकी भयावहता को देखते हुए भारत में भी एंटीबायोटिक के बिना सोचे-समङो इस्तेमाल को रोकने की कवायद तेज हो गयी है...
जब 1928 में अलेक्जेंडर फ्लेमिंग ने पहली एंटीबायोटिक पेनिसिलिन का अविष्कार किया था, तो दुनिया में खुशी फ़ैली कि चलो कुछ मिला, जिससे बैक्टीरिया के संक्रमण से लड़ा जा सकता है. लेकिन वक्त गुजरने के साथ, एंटीबायोटिक दवा खा-खाकर बैक्टीरिया अब इतना ताकतवर हो गया है कि उस पर कई एंटीबायोटिक दवाओं की मारक क्षमता कम होने लगी है. सुपरबग इसका उदाहरण है. सुपरबग ऐसा बैक्टीरिया है, जिसपर एंटीबायोटिक का प्रभाव नहीं पड़ता.
आम लोगों की धारणा है कि एंटीबायोटिक दवाओं से कोई नुकसान नहीं है. इसीलिए जरा-सी सर्दी-जुकाम या मामूली दर्द होने पर भी एंटीबायोटिक ले लेते हैं. विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के एक अध्ययन में कहा गया है कि 53 फ़ीसदी भारतीय बिना डॉक्टरी सलाह के एंटीबायोटिक लेते हैं.
अध्ययन में कहा गया है कि अगर सर्दी जुकाम जैसी मामूली बीमारी में डॉक्टर एंटीबायोटिक नहीं लिखता है, तो भारत में 48 फ़ीसदी लोग डॉक्टर बदलने की सोचने लगते हैं. यही नहीं 25 फ़ीसदी डॉक्टर बच्चों के लिए बुखार में एंटीबायोटिक लिखते. 52 फ़ीसदी डॉक्टर मानते हैं कि सेहत बेहतर महसूस होते ही एंटीबायोटिक लेना नहीं छोड़ना चाहिए.
देश में डॉक्टर, बुखार और खांसी के लिए भी एंटीबायोटिक दवाएं लिखते हैं. इस रिपोर्ट में दवाओं की रोग प्रतिरोधक क्षमता में कमी होने पर चिंता जतायी गयी है. डब्लूएचओ के मुताबिक, 63 प्रतिशत लोग बची एंटीबायोटिक्स का इस्तेमाल पारिवारिक सदस्यों के लिए नहीं करते हैं. इस प्रकार एंटीबायोटिक्स के बढ़ते चलन व धड़ल्ले से हो रहे इसके प्रयोग से कई दवाओं को लगातार चुनौती मिल रही है.
स्थिति यह है कि कई बीमारियों में एंटीबायोटिक्स का असर धीरे-धीरे कम होता जा रहा है. विश्व स्वास्थ्य दिवस पर डब्ल्यूएचओ ने रोगाणुरोधी प्रतिरोधकता (एंटीबायोटिक्स रेजिस्टेंस) को इस वर्ष विश्व स्वास्थ्य दिवस की थीम घोषित की है.आज पूरी दुनिया में हजारों एंटीबायोटिक्स हैं, जिसमें कई बेअसर होने की कगार पर हैं. हर वर्ष करीब पांच दवाओं के प्रभाव खोने के संकेत सामने आ रहे हैं.
इस विषय पर डॉक्टरों का शोध जारी है. लेकिन जिस रफ्तार से यूरोपीय और ऐशयाई देशों में एंटीबायोटिक दवाओं का असर कम होता जा रहा है, वह चिंता का विषय है. देश में अब यह शिकायत आम हो गयी है. जिसमें कहा जाता है कि टीबी के लिए बनी कई एंटीबायोटिक दवाओं का अब असर समाप्त हो गया है. पिछले ही वर्ष टीबी के 440000 नये मामले सामने आये, जिन पर एंटीबायोटिक का कोई प्रभाव नहीं देखा गया.
इसमें से लगभग एक लाख पचास हजार लागों की मौत हो गयी थी. अगर जल्दी से इस पर ध्यान नहीं किया गया, तो भारत में इसके गंभीर परिणाम देखने को मिल सकता है.
क्या है एंटीबायोटिक?
एंटीबायोटिक दो ग्रीक शब्द एंटी और बायोस से मिलकर बना है. एंटी का अर्थ विरोध या खिलाफ़ और बायोस का अर्थ जीवन होता है. इस प्रकार एंटीबायोटिक का मतलब है जीवन के खिलाफ़. एक ऐसा यौगिक, जो बैक्टीरिया (जीवाणु) को मार देता है. उसके विकास को रोकता है.
इस प्रकार एंटीबायोटिक बीमारी न फ़ैलने देने वाले यौगिकों का एक व्यापक समूह होता है, जिसका उपयोग कवक और प्रोटोजोवा सहित सूक्ष्मदर्शी द्वारा देखे जाने वाले जीवाणुओं बैक्टीरिया, फ़फूंदी, परजीवी के कारण हुए संक्रमण को रोकने के लिए होता है. एंटीबायोटिक शब्द का प्रयोग 1942 में सेलमैन वाक्समैन ने एक सूक्ष्म जीव द्वारा उत्पन्न ठोस पदार्थ के लिए किया था.
मेडिकल साइंस की प्रगति के साथ-साथ अब अधिकतर एंटीबायोटिक्स सेमीसिंथेटिक किस्म के हो गये हैं. जिन्हें प्रकृति में पाये जाने वाले मूल यौगिकों से रासायनिक रूप से संशोधित कर बनाया जाता है. हालांकि, कुछ एंटीबायोटिक दवाओं का उत्पादन अभी भी अमीनोग्लाइकोसाइड जैसे जीवित जीवों के जरिये हो रहा है.
इसके अलावा कुछ एंटीबायोटिक कृत्रिम तरीकों जैसे - सल्फ़ोनामाइड्स, क्वीनोलोंस और ऑक्साजोलाइडिनोंस से बनाये जाते हैं. इस प्रकार उत्पत्ति के आधार एंटीबायोटिक को तीन वर्गो प्राकृतिक, सेमी सिंथेटिक और सिंथेटिक में विभाजित किया जाता है. इसके अलावा बैक्टीरिया पर इनके प्रभाव या कार्य के अनुसार एंटीबायोटिक्स को दो समूहों में बांटा जाता है.
बुर्ज खलीफ़ा से दोगुना ऊंचा होगा किंगडम टावर
अरब के शाही परिवार की कोशिशें परवान चढ़ीं तो दुबई की बुर्ज खलीफ़ा दुनिया की सबसे ऊंची इमारत नहीं रह जायेगी. बल्कि, यह गौरव किंगडम टावर को हासिल हो जायेगा.इसका कद बुर्ज खलीफ़ा से दोगुना ऊंचा होगा. यानी इसकी ऊंचाई एक मील (1.6 किमी) होगी. इमारत की तामीर (निर्माण) सऊदी अरब के लाल सागर के किनारे बसे जेद्दाह शहर के किनारे की जायेगी. इमारत खूबियों से लबरेज होगी. लागत आयेगी 12 बिलियन पौंड यानी तकरीबन 960 अरब रुपये. कुल 80 हजार लोग इसमें एक साथ रह सकेंगे. ऊंचाई का अंदाजा तो इसी से लगा सकते हैं कि लिफ्ट से इसके टॉप फ्लोर पर तक पहुंचने में 12 मिनट लगेंगे. किंगडम टावर में ऐशो-आराम की सारी सहूलियतें जैसे होटल, ऑफ़िस, अपार्टमेंट और शॉपिंग सेंटर होंगे. यह टावर ब्रिटेन की सबसे ऊंची बिल्डिंग द शार्ड से पांच गुना ऊंचा होगा. इसमें 12 मिलियन क्यूबिक स्क्वॉयर फ़ीट जगह होगी. निर्माण का जिम्मा देश की सबसे बड़ी किंगडम होल्डिंग कंपनी (केएचसी) को सौंपा गया है
Subscribe to:
Posts (Atom)