Thursday, May 24, 2012

"समाज के आर- पार गरीबी की रेखा कैसे खींची ? --किसने खींची ? भारत में गरीबी की परिभाषा क्या हो ? --यह सवाल सबसे पहले 1957 में "भारतीय श्रम सम्मलेन" में उठे थे . 1962 में योजना आयोग के विशेषज्ञों ने इसके लिए "दांडेकर -रथ समिति" गठित की जिसने "पोषण आवश्यकता" को गरीबी की कसौटी बनाया. दांडेकर -रथ समिति के अनुसार ग्रामीण क्षेत्र के लिए 2400 कैलोरी और शहरी क्षेत्र के लिए 2100 कैलोरी की शक्ति दे सकने वाले भोजन को "न्यूनतम पोषण आवश्यकता" माना गया. विडंबना यह है कि यहाँ भोजन की गरिमा के विषय में कोई बात ही नहीं की गयी. इस प्रकार देश के दूर दराज के हिस्सों में रह रहे दीमक की चटनी खाते लोग. या सांप का फन काट कर शेष हिस्से को खाते लोग या जूठन खाते लोग आवश्यक कैलोरी का भोजन लेने के कारण गरीबी की रेखा के ऊपर हैं और मुम्बई में डोमिनो का पिज्जा खाने वाली करीना कपूर चूंकि मात्र 600 कैलोरी का भोजन लेने के कारण गरीबी की रेखा के नीचे है.इसी क्रम में आया "मनमोहन -मोंटेक सिंह का अर्थ शास्त्र " कि जिसके अनुसार अब वह भारत का नागरिक जो 32 रुपये प्रति दिन पाता है गरीबी की रेखा के नीचे नहीं है.

जब देश स्वतंत्र हुआ था तब मात्र 9% लोग ही गरीबी की रेखा के नीचे थे. आज 40 % गरीबी की रेखा के नीचे और 30 % गरीबी की रेखा के ठीक ऊपर हैं, यानी देश के 70 % की आबादी दरिद्रों अतिदरिद्रों की है . देश के कुल 7 % लोगों को ही शुद्ध पेयजल उपलब्ध हो पा रहा है. स्वास्थ सेवा पहाड़ सी हैं पर पिद्दी से मच्छर डेंगू से पराजित होती नज़र आती हैं. टाट - पट्टी स्कूल और अभिजात्य पब्लिक स्कूलों के बीच सामान मुफ्त शिक्षा का नारा हतप्रभ खड़ा है. विश्व की हर सातवीं बाल वैश्या भारत की बेटी है. 30 % महिलायें खुले मैं शौच जाने को अभिशिप्त हैं और झुनझुना बजाया जा रहा है महिलाओं के राजनीति में आरक्षण का. रोशनी , रास्ते , राशन और रोजगारों पर शहरों का कब्जा है और असली भारत बेरोजगार अँधेरे में उदास, अपमानित बैठा है."( श्रोत -- राजीव चतुर्वेदी लिखित पुस्तक "आर्तनाद-- मानवाधिकारों की उपेक्षा और अपेक्षा")" --- राजीव चतुर्वेदी
· · · 21 hours ago ·

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    • Vikas Bharatiy मेरे देश के नेताओं कुछ तो शर्म करो .क्या तुमको बोट दिया मेरी यही खता है ,
      .तुमसे तो अच्छा बो शरहद पार का दुश्मन है जिसका मकसद तो पता है ,,,,
      21 hours ago · · 3
    • Kishore Nigam
      यहाँ सिसकियों में लाचारी, गायन में बहकावा मन का
      सो रहने का मोह दबाता गला उमड़ उठते रोदन का
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      फिर से कसक उठते घाव , फिर से उमड़ उठता खून
      हमको क्रान्ति की सौगंध दे ललकारता है खून
      ...See More
      21 hours ago · · 1
    • Kishore Nigam Bahut bahut saarthak lekh. ...Must read

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