Mar 21,2008 12:04 pm
नागपुर। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ [आरएसएस] की कमान मोहन भागवत को सौंपी गई है। उनके सर संघचालक बनने से खाली हुए सर कार्यवाह के पद पर सुरेश राव जोशी उर्फ भैयाजी जोशी को लाया गया है।
भागवत ने के एस सुदर्शन का स्थान लिया है। सुदर्शन आरएसएस प्रमुख के पद पर लगभग नौ साल तक रहे। इस दौरान जब केंद्र सरकार का नेतृत्व भाजपा कर रही थी, अटल बिहारी वाजपेयी प्रधानमंत्री थे तब से संघ के रिश्तों में चढ़ाव-उतार आते रहे।
भागवत का सर संघचालक के रूप में चुनाव शनिवार को नागपुर में हुआ। नागपुर में भाजपा के साथ अपने रिश्तों को नए सिरे से परिभाषित करने के लिए संघ का सम्मेलन चल रहा है। शनिवार को सम्मेलन का दूसरा दिन था। सुरेश सोनी को महासचिव बनाया गया है।
संघ की कमान में बदलाव का यह फैसला संघ परिवार के सभी संगठनों की सर्वोच्च संस्था अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा की बैठक में हुआ।
आरएसएस की स्थापना
आरएसएस की स्थापना स्वर्गीय केशव बलिराम हेगडेवार ने नागपुर में वर्ष [1925-1940] में की थी। गुरुजी गोलवलकर वर्ष 1940 से लेकर 1973 तक इसके दूसरे सर संघचालक रहे। बाला साहेब देवरस ने वर्ष 1973 में उनसे प्रभार लिया और अपनी मृत्यु [जून 1994] तक इसके प्रमुख बने रहे। इसके बाद राजेंद्र सिंह उर्फ रज्जू भइया 1994 से सन 2000 तक सर संघचालक रहे। खराब स्वास्थ्य के कारण उन्होंने यह पद छोड़ने की इच्छा जताई। इसके बाद सुदर्शन सर संघचालक बने।
भैयाजी जोशी
सर कार्यवाह बनाए गए भैयाजी जोशी का जन्म वर्ष 1947 में मध्य प्रदेश के इंदौर में हुआ था। मुंबई विश्वविद्यालय से बीए जोशी ने कुछ वर्ष तक एक निजी कंपनी में नौकरी की। इसके बाद संघ के पूर्णकालीन प्रचारक के रूप में नया जीवन शुरू किया। आपातकाल के दौरान भूमिगत रह कर कार्य करने के बाद जोशी महाराष्ट्र के थाणे, धुले, जलगांव और नाशिक में जिला प्रचारक बनने के बाद वर्ष 1977 से 1990 तक विभाग प्रचारक रहे।
महाराष्ट्र में वर्ष 1990 से 1995 तक प्रांत सेवा प्रमुख सहित संघ कार्य के विभिन्न महत्वपूर्ण दायित्वों को संभालने के बाद वह वर्ष 1997 में अखिल भारतीय सह सेवा प्रमुख बने। अगले साल वह अखिल भारतीय सेवा प्रमुख बनाए गए। वर्ष 2003 में उन्हें सह सर कार्यवाह का दायित्व सौंपा गया।
35 साल पुराना नाता है संघ और भागवत का
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के छठे सर संघचालक बने मोहन भागवत का घर महाराष्ट्र के विदर्भ क्षेत्र के चंद्रपुर में है। 11 दिसंबर, 1950 को जन्मे भागवत ने महाराष्ट्र के अकोला स्थित पुंजाराओ कृषि विद्यापीठ से पशु चिकित्सा विज्ञान में स्नातक की डिग्री ली।
मोहन भागवत की पारिवारिक पृष्ठभूमि भी संघ की रही है। उनके पिता कुछ समय के लिए गुजरात के प्रांत प्रचारक रहे थे। भागवत ने पशु चिकित्सा विज्ञान की मास्टर डिग्री की पढ़ाई छोड़ कर संघ को पूरा जीवन समर्पित कर दिया और प्रचारक बन गए। यह बात 1975 की है, जब देश में आपातकाल लागू था।
भागवत 1977 में अकोला में प्रचारक नियुक्त हुए। आपातकाल की वजह से उन्हें भूमिगत होकर अपना काम करना पड़ा। इसके बाद उन्हें नागपुर और विदर्भ क्षेत्र का प्रचारक बनाया गया। उनकी कार्य क्षमता को देखते हुए संघ ने 1987 में उन्हें अखिल भारतीय सह शारीरिक प्रमुख का दायित्व सौंपा और इसके बाद 1991 में उन्हें अखिल भारतीय शारीरिक प्रमुख बना दिया गया। भागवत 1999 तक इस पद पर रहे। इसी साल उन्हें एक साल के लिए अखिल भारतीय प्रचारक प्रमुख का पद सौंपा गया। 2001 में उन्हें सर कार्यवाह का दायित्व सौंपा गया था।
मोहन राव भागवत राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक हैं। २१ मार्च को पूर्व सरसंघचालक के एस सुदर्शन के पदत्याग पर उन्हें नया सरसंघचालक नियुक्त किया।
संघ के अब तक के सभी पांच सरसंघचालकों के परिवार में संघ विद्यमान नहीं था। वे स्वयं ही संघ के सम्पर्क में आये; पर श्री मोहन भागवत इसके अपवाद हैं। उनके पिता श्री मधुकर राव भागवत ने डॉ हेडगेवार के साथ काम किया था। फिर वे संघ के प्रचारक बने और गुजरात में प्रांत-प्रचारक भी रहे। इसके बाद उन्होंने गृहस्थ जीवन में प्रवेश किया। अभी दो वर्ष पूर्व ही उनका देहांत हुआ। इस प्रकार मोहन जी को संघ के संस्कार परम्परा से प्राप्त हुए हैं।
श्री मोहन जी की कुछ अन्य विशेषताएं भी हैं। चेहरे से तो नहीं, पर मूंछों से वे डॉ हेडगेवार के प्रतिरूप लगते हैं। शिक्षा से वे पशु चिकित्सक हैं; पर इसे अपने जीवनयापन का आधार न बनाकर वे संघ के प्रचारक बने। बचपन से उनकी रुचि शास्त्रीय संगीत में है। वे ताल और राग के अच्छे जानकार हैं। इतना ही नहीं, वे सुकंठ गायक भी हैं। शाखा में बोली जाने वाली प्रार्थना, एकात्मता स्तोत्र, एकात्मता मंत्र - आदि के लिए उनके स्वर में बनी कैसेटों को अधिकृत माना जाता है।
श्री मोहन भागवत प्रचारक जीवन से पूर्व शाखा में मुख्य शिक्षक, कार्यवाह, मंडल कार्यवाह आदि रहे हैं। इसी प्रकार प्रचारक जीवन में वे तहसील, जिला, विभाग, प्रांत और क्षेत्र प्रचारक रह चुके हैं। अखिल भारतीय स्तर पर भी वे संघ के शारीरिक शिक्षण प्रमुख और प्रचारक प्रमुख रहे हैं। इसके बाद सरकार्यवाह और अब सरसंघचालक। इस प्रकार संघ की प्राथमिक इकाई से लेकर सर्वोच्च इकाई तक काम करने का उन्हें अनुभव है। संघ के शारीरिक विभाग का ही एक हिस्सा है - घोष। मोहन जी घोष के कार्यक्रमों मे बहुत रुचि रखते हैं। मूल रूप से शारीरिक से जुड़े होने के बाद भी उनके बौद्धिक और बैठकें बहुत सरस होती हैं। उनमें हास्य भी होता है और गंभीरता भी। विषय के आसपास ही अपनी वार्ता को केन्द्रित रखना उनकी विशेषता है। 59 वर्षीय होने पर भी वे ऊर्जा से भरपूर हैं।
नागपुर। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ [आरएसएस] की कमान मोहन भागवत को सौंपी गई है। उनके सर संघचालक बनने से खाली हुए सर कार्यवाह के पद पर सुरेश राव जोशी उर्फ भैयाजी जोशी को लाया गया है।
भागवत ने के एस सुदर्शन का स्थान लिया है। सुदर्शन आरएसएस प्रमुख के पद पर लगभग नौ साल तक रहे। इस दौरान जब केंद्र सरकार का नेतृत्व भाजपा कर रही थी, अटल बिहारी वाजपेयी प्रधानमंत्री थे तब से संघ के रिश्तों में चढ़ाव-उतार आते रहे।
भागवत का सर संघचालक के रूप में चुनाव शनिवार को नागपुर में हुआ। नागपुर में भाजपा के साथ अपने रिश्तों को नए सिरे से परिभाषित करने के लिए संघ का सम्मेलन चल रहा है। शनिवार को सम्मेलन का दूसरा दिन था। सुरेश सोनी को महासचिव बनाया गया है।
संघ की कमान में बदलाव का यह फैसला संघ परिवार के सभी संगठनों की सर्वोच्च संस्था अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा की बैठक में हुआ।
आरएसएस की स्थापना
आरएसएस की स्थापना स्वर्गीय केशव बलिराम हेगडेवार ने नागपुर में वर्ष [1925-1940] में की थी। गुरुजी गोलवलकर वर्ष 1940 से लेकर 1973 तक इसके दूसरे सर संघचालक रहे। बाला साहेब देवरस ने वर्ष 1973 में उनसे प्रभार लिया और अपनी मृत्यु [जून 1994] तक इसके प्रमुख बने रहे। इसके बाद राजेंद्र सिंह उर्फ रज्जू भइया 1994 से सन 2000 तक सर संघचालक रहे। खराब स्वास्थ्य के कारण उन्होंने यह पद छोड़ने की इच्छा जताई। इसके बाद सुदर्शन सर संघचालक बने।
भैयाजी जोशी
सर कार्यवाह बनाए गए भैयाजी जोशी का जन्म वर्ष 1947 में मध्य प्रदेश के इंदौर में हुआ था। मुंबई विश्वविद्यालय से बीए जोशी ने कुछ वर्ष तक एक निजी कंपनी में नौकरी की। इसके बाद संघ के पूर्णकालीन प्रचारक के रूप में नया जीवन शुरू किया। आपातकाल के दौरान भूमिगत रह कर कार्य करने के बाद जोशी महाराष्ट्र के थाणे, धुले, जलगांव और नाशिक में जिला प्रचारक बनने के बाद वर्ष 1977 से 1990 तक विभाग प्रचारक रहे।
महाराष्ट्र में वर्ष 1990 से 1995 तक प्रांत सेवा प्रमुख सहित संघ कार्य के विभिन्न महत्वपूर्ण दायित्वों को संभालने के बाद वह वर्ष 1997 में अखिल भारतीय सह सेवा प्रमुख बने। अगले साल वह अखिल भारतीय सेवा प्रमुख बनाए गए। वर्ष 2003 में उन्हें सह सर कार्यवाह का दायित्व सौंपा गया।
35 साल पुराना नाता है संघ और भागवत का
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के छठे सर संघचालक बने मोहन भागवत का घर महाराष्ट्र के विदर्भ क्षेत्र के चंद्रपुर में है। 11 दिसंबर, 1950 को जन्मे भागवत ने महाराष्ट्र के अकोला स्थित पुंजाराओ कृषि विद्यापीठ से पशु चिकित्सा विज्ञान में स्नातक की डिग्री ली।
मोहन भागवत की पारिवारिक पृष्ठभूमि भी संघ की रही है। उनके पिता कुछ समय के लिए गुजरात के प्रांत प्रचारक रहे थे। भागवत ने पशु चिकित्सा विज्ञान की मास्टर डिग्री की पढ़ाई छोड़ कर संघ को पूरा जीवन समर्पित कर दिया और प्रचारक बन गए। यह बात 1975 की है, जब देश में आपातकाल लागू था।
भागवत 1977 में अकोला में प्रचारक नियुक्त हुए। आपातकाल की वजह से उन्हें भूमिगत होकर अपना काम करना पड़ा। इसके बाद उन्हें नागपुर और विदर्भ क्षेत्र का प्रचारक बनाया गया। उनकी कार्य क्षमता को देखते हुए संघ ने 1987 में उन्हें अखिल भारतीय सह शारीरिक प्रमुख का दायित्व सौंपा और इसके बाद 1991 में उन्हें अखिल भारतीय शारीरिक प्रमुख बना दिया गया। भागवत 1999 तक इस पद पर रहे। इसी साल उन्हें एक साल के लिए अखिल भारतीय प्रचारक प्रमुख का पद सौंपा गया। 2001 में उन्हें सर कार्यवाह का दायित्व सौंपा गया था।
मोहन भागवत
मुक्त ज्ञानकोष विकिपीडिया से
मोहन भागवत | |
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जन्म | १९५० चन्द्रपुर, भारत |
धार्मिक मान्यता | हिन्दू |
अनुक्रम[छुपाएँ] |
[संपादित करें] बचपन
मोहन भागवत जी का जन्म सन १९५० में चन्द्रपुर, महाराष्ट्र में हुआ था।[संपादित करें] शिक्षा
मोहन भागवत जी शैक्षणिक रुप से पशु चिकित्सक हैं।[संपादित करें] आर.एस.एस से जुडा़व
मोहन भागवत जी अपने बाल्यकाल से ही संघ से जुडे़ हुए हैं। अपनी शिक्षा समप्ति के बाद से ही उन्होंने अपना जीवन समाज सेवा और संघ प्रचारक के रुप में लगा दिया है। इनकी पदोन्नति संघ में ही रह कर हुई है|संघ के अब तक के सभी पांच सरसंघचालकों के परिवार में संघ विद्यमान नहीं था। वे स्वयं ही संघ के सम्पर्क में आये; पर श्री मोहन भागवत इसके अपवाद हैं। उनके पिता श्री मधुकर राव भागवत ने डॉ हेडगेवार के साथ काम किया था। फिर वे संघ के प्रचारक बने और गुजरात में प्रांत-प्रचारक भी रहे। इसके बाद उन्होंने गृहस्थ जीवन में प्रवेश किया। अभी दो वर्ष पूर्व ही उनका देहांत हुआ। इस प्रकार मोहन जी को संघ के संस्कार परम्परा से प्राप्त हुए हैं।
श्री मोहन जी की कुछ अन्य विशेषताएं भी हैं। चेहरे से तो नहीं, पर मूंछों से वे डॉ हेडगेवार के प्रतिरूप लगते हैं। शिक्षा से वे पशु चिकित्सक हैं; पर इसे अपने जीवनयापन का आधार न बनाकर वे संघ के प्रचारक बने। बचपन से उनकी रुचि शास्त्रीय संगीत में है। वे ताल और राग के अच्छे जानकार हैं। इतना ही नहीं, वे सुकंठ गायक भी हैं। शाखा में बोली जाने वाली प्रार्थना, एकात्मता स्तोत्र, एकात्मता मंत्र - आदि के लिए उनके स्वर में बनी कैसेटों को अधिकृत माना जाता है।
श्री मोहन भागवत प्रचारक जीवन से पूर्व शाखा में मुख्य शिक्षक, कार्यवाह, मंडल कार्यवाह आदि रहे हैं। इसी प्रकार प्रचारक जीवन में वे तहसील, जिला, विभाग, प्रांत और क्षेत्र प्रचारक रह चुके हैं। अखिल भारतीय स्तर पर भी वे संघ के शारीरिक शिक्षण प्रमुख और प्रचारक प्रमुख रहे हैं। इसके बाद सरकार्यवाह और अब सरसंघचालक। इस प्रकार संघ की प्राथमिक इकाई से लेकर सर्वोच्च इकाई तक काम करने का उन्हें अनुभव है। संघ के शारीरिक विभाग का ही एक हिस्सा है - घोष। मोहन जी घोष के कार्यक्रमों मे बहुत रुचि रखते हैं। मूल रूप से शारीरिक से जुड़े होने के बाद भी उनके बौद्धिक और बैठकें बहुत सरस होती हैं। उनमें हास्य भी होता है और गंभीरता भी। विषय के आसपास ही अपनी वार्ता को केन्द्रित रखना उनकी विशेषता है। 59 वर्षीय होने पर भी वे ऊर्जा से भरपूर हैं।
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