Tuesday, August 2, 2011

महात्मा गांधी को भी आये थे कम नंबर

नौ साल की उम्र में आत्महत्या ! बाल मन के झूले पर सुनहरे सपने की पेंग भरनेवाले इस उम्र के बच्चे की आत्महत्या की खबर ने आपको भी जरूर विचलित किया होगा. आत्महत्या इस कदर बढ़ रही है कि इस पर चिंतन की जरूरत है. प्रभात खबर आज से जिंदगी जीने के लिए विशेष श्रंखला शुरू कर रहा है. इसके तहत जीवन में हताशा, परीक्षाफ़ल से निराश और उलझनों से परेशान लोगों को उन उदाहरणों से परिचित कराया जायेगा, जिन्होंने विपरीत परिस्थितियों में न केवल जीने की जिजीविषा कायम रखी, बल्कि सफ़ल भी हुए.
जीवन जीने के लिए –1
दुनिया की सबसे डरावनी बीमारी का नाम कैंसर है. कैंसर अगर गंभीर स्तर पर पहुंच गया है, तब तो लोग मान बैठते हैं कि मौत बस चंद दिनों की बात है. पर, क्या किसी ने कैंसर पीड़ित व्यक्‍ति को आत्महत्या करते सुना है. उदाहरण खोजना मुश्किल होगा. वह सामने खड़े यमराज से ओखरी सांस तक लड़ता है.
वहीं हम आसपास फूल-से किशोरों या स्वस्थ युवकों को आत्महत्या करते पाते हैं.हाल में एक छात्र ने सुसाइडल नोट में लिखा-सॉरी पापा, मैं आपके सपने को पूरा नहीं कर पाया.
जिस छात्र ने अपने बारे में ऐसा मूल्यांकन किया, उसने खुद को पहचानने में भूल की. शायद उसे नहीं मालूम था कि जिस आदमी ने मानवता का नया इतिहास लिख दिया, वही आदमी आठवीं कक्षा में इतिहास में बेहद कमजोर था. जी हां, हम बात कर रहे हैं महात्मा गांधी की. उन्हें इतिहास में कम नंबर आते थे, पर वह अपने कर्मो से ऐतिहासिक बन गये.
पूर्व राष्ट्रपति डॉ एपीजे अब्दुल कलाम ने अपनी पुस्तक में लिखा है कि आदमी को अपनी प्रतिभा की तुलना कभी अपने कॉलेज के रिपोर्ट कार्ड से नहीं करनी चाहिए. आत्महत्या कायरता है. काश, उस युवक ने लिखा होता, सॉरी पापा, मेरे कम नंबर आये, लेकिन मैं हार नहीं मानूंगा. मैं अपनी प्रतिभा का इस्तेमाल दुनिया को सुंदर बनाने में करना चाहता हूं. अपना छोटा-सा ही सही, लेकिन योगदान देना चाहता हूं.

No comments:

Post a Comment