दहकते जम्मू-कश्मीर कि हकीक़त और बिकाऊ मीडिया का दोगलापन - Jammu-kashmir reality & Double Standerd of Media..
पिछले कुछ समय से जरूरी काम कि वजह से इस महा-अंतर्जाल से दूर रहा हूँ इस लिए पिछले १ महीने से कुछ भी नहीं लिख पाया..!! समाचार पत्र ही सूचना का एक मात्र जरिया था, लेकिन जिस पेज को मैंने उठाकर देखा उस पर सिर्फ ये "जम्मू-कश्मीर के भटके हुए" लोगों कि तस्वीरें और क्रियाकलाप छपा हुआ था, साथ में हमारी नपुंसक सरकार के रीढ़विहीन मंत्रियों के "भटके और मासूम लोगों" के घावों(?) पर मलहम लगाते हुए बयान छपे थे..
लेकिन क्या ये जो खबरे इस बिकाऊ मीडिया में आ रही है. वो एकदम सही है. ?? या फिर हर कश्मीरी इन सब खबरों से इतेफाक रखता है..??? नहीं ऐसा बिलकुल नहीं है. कश्मीर के लोगों को नाराजगी इस बात से है कि सारा मीडिया जो कुछ लिख रहा है या टीवी पर दिखा रहा है, वह केवल श्रीनगर घाटी के लोगों के बयानों पर आधारित है.. उनका मानना है कि मीडिया वाले श्रीनगर घाटी के आगे नहीं जाते है, इसलिए इनको आसपास के कस्बों, पहाड़ों और जंगलों में बसने वाले भारतीय कश्मीरियों के जज्बातों का पता नहीं है..
यह एक सही और रोचक तथ्य है जिसके लिए वास्तव में ये बिकाऊ मीडिया वाकई दोषी है, तो आईये आपको कश्मीर कि अलग तस्वीर से अवगत करवा देता हूँ जिसे शायद आप इस बिकाऊ मीडिया कि आपाधापी में कभी नहीं देख पाएंगे..
कश्मीर में बड़ी तादाद गुर्जरों कि है. ये गुर्जर श्रीनगर के आसपास के इलाकों से लेकर दूर तक पहाड़ों में रहते है और भेड़-बकरियां चरातें है, कश्मीर में रहने वाले "कश्मीरी गुर्जर" और जम्मू में रहने वाले "डोगरे गुर्जर" कहलातें है, इनकी तादाद लगभग 30 लाख से ज्यादा है, दोनों ही इलाकों के गुर्जर इस्लाम कि मानाने वाले है, पर रोचल बात ये कि घाटी के तथाकतिथ अलगाववादी और मुस्लिम नेता गुर्जरों को मुसलमान नहीं मानते है. पिछले दिनों सैयाद शह गिलानी ने एक बयान भी इनके खिलाफ दिया था जिससे गुर्जर भड़क गए, बाद में उसे यह कर माफ़ी मांगनी पड़ी कि मीडिया ने उसके बयान को गलत तरीके से पेश किया है. 1990 से आज तक आतंककारियों द्वारा कश्मीर में जितने भी मुसलमानों कि हत्या हुई है उनमे से 85% से ज्यादा कश्मीरी गुर्जर ही थे. ख़ास बात ये है कि जम्मू और कश्मीर के गुर्जर न तो आज़ादी के पक्ष में है और न ही पाकिस्तान जिंदाबाद के नारे लगाते है, वे भारतीय है और भारत के साथ अमन और चैन से साथ रहने के हामी है..
ये बात इसी से साबित होती है कि अलगाववादियों के जितने संघटन आज जम्मू-कश्मीर में सक्रिय है और पाकिस्तानी हुकुमरानों के इशारे पर भारत ने बदअमनी और आतंक फैला रहे है और जिनके बयान इस बिकाऊ और सेक्युलर(?) मीडिया में छाये रहते है, उन संघटनों में एक भी गुर्जर नेता नहीं है. उरी, तंगधार और गुरेज जैसे इलाकों के रहने वाले वाले मुसलमान घाटी के मुसलमानों से इतेफाक नहीं रखते, उन्हें भी भारत के साथ रहना ठीक लगता है. यह तो जगजाहिर है कि उत्तरी कश्मीर का लेह लदाख का इलाका बुद्ध धर्मावलम्बियों से भरा हुआ है और जम्मू का इलाका डोगरे ठाकुरों, ब्राहमणों व अन्य जाती के हिन्दुओं से भरा हुआ है. जाहिरान यह सब भी कश्मीर को भारत का अभिन्न अंग मानते है और भारत के साथ में ही मिलकर रहना चाहते है.. इन लोगों का कहना है कि अगर इमानदारी से और पूरी मेहनत से सर्वेक्षण किया जाए तो यह साफ़ हो जायेगा कि अलगाववादी मानसिकता के लोग केवल श्रीनगर घाटी में है और मुट्ठीभर है. (और एक हमारा रीढविहीन नेतृत्व और बिकाऊ मीडिया जो पता नहीं किसके इशारे पर ये साबित करने में लगा हुआ है कि जैसे कश्मीर का हर इंसान आज़ादी चाहता है.) इन लोगों का दावा है कि आंतंकवाद के नाम पर गुंडे और मवालियों के सारे जनता के मन में डर पैदा करके ये लोग पूरी दुनिया के मीडिया में छाये हुए है. सब जगह इनके ही बयान छापे और दिखाए जाते है. इसलिए एक ऐसी तस्वीर सामने आती है मानो पूरा कम्मू-कश्मीर भारत के खिलाफ बगावत करने को तैयार है, और हमारी केन्द्रसशित सरकार वोट बैंक कि गन्दी राजनीती के लिए इसे अपना मूक समर्थन दे रही ताकि बाकी भारत के मुस्लिम युवाओं का ध्यान अपनी और आकर्षित कर सके, फिर कश्मीर के लिए हाजारों भारतियों कि कड़ी मेहनत कि कमाई पर डाका डालकर करोड़ों के पैकेज कश्मीर को दिए जा रहे है ताकि "वोट बैंक" ये समझे कि कांग्रेस सरकार हमारे साथ है.
ये लोग (गुर्जर समुदाय) प्रशासनिक भ्रष्टाचार से नाराज है. कश्मीर कि राजनीति में लगातार हावी हो रहे अब्द्दुल्ला परिवार और मुफ्ती परिवार को भी ये लोग पसंद नहीं करते और स्थानीय राजनीती को बढ़ावा देने के पक्षधर है. पर ये अलगाववादियों और आंतककारियों के साथ कतई नहीं है. गौरतलब है कि ये अलगाववादी नेता, केंद्र सरकार और बिकाऊ मीडिया जिस प्रकार से इन मुद्दों पर हो-हल्ला मचा के रखते है, स्तिथि उसके बिलकुल विपरीत है. इसकी एक बानगी देखिये. कश्मीर के राजौरी क्षेत्र से राजस्थान आकर वहां के दौसा संसदीय क्षेत्र से (यहाँ देखे) स्वतंत्र उमीदवार के रूप में चुनाव लड़ने वाले गुर्जर नेता कमर रब्बानी को इस चुनाव में 3,13,000 वोट मिले वो भी तब जब उसके सामने "सचिन पायलट और नमो नारायण मीणा" जैसे कद्दावर नेता थे.
रब्बानी का कहना है कि राजस्थान के गुर्जर चाहे हिनू हो या मुसलमान, हमें अपना मानते है. इसिलए मुझ जैसे कश्मीरी को ३ लाख से अधिक वोट दिए.
रब्बानी का यह भी कहना है कि वहां कि सरकार और मीडिया तंत्र कि मिलीभगत ही है कि कश्मीर कि असली तस्वीर दुनिया के सामने नहीं लायी जा रही है. हम बाकि हिंदुस्तान के साथ है न की घाटी के अलगाववादियों के साथ. रब्बानी ने एक सुझाव यह भी दिया कि अगर केंद्र सरकार कश्मीर में राष्ट्रपति शाशन लागू कर दे और 6 महीने बढ़िया शाशन करने के बाद फिर से चुनाव करवाए तो उसे जमीनी हकीक़त का पता चलेगा. हाँ उसे इस लोभ से बचाना होगा कि वो अपना हाथ नेशनल कांफ्रेंस या पी.डी.पी जैसे किसी भी दल कि पीठ पर न रखे. घाटी के हर इलाके के लोगों को अपनी मर्जी का और अपने इलाके का नेता चुनने कि खुली आज़ादी हो, वोट बेख़ौफ़ डालने का इंतजाम हो तो कश्मीर में एक अलग ही निजाम कायम होगा और उसे वापिस स्वर्ग बनते देर नहीं लगेगी..
पर मुझे नहीं लगता कि कांग्रेस सरकार और उसके रीढ़विहीन मंत्री ऐसा चाहेंगे, अगर ऐसा हुआ तो बाकी भारत "मासूम मुसलमानों" को ये कैसे लगेगा कि भारत में हमारा शोषण हो रहा है और उनको बरगलाया नहीं जा सकेगा. ऐसे में कांग्रेस को "वोट बैंक" खोने का डर है वहीँ कश्मीर कि शांति के साथ ही इस बिकाऊ मीडिया के किले भी ढह जायेंगे, तो कश्मीर कि शांति कि बात कौन करेगा और क्यूँ करेगा . .?????
(और हाँ जाते जाते एक बात और हिन्दुओं के शौर्य और आस्था के प्रतीक "भगवा" को आतंकवाद बताने वाले हमारे आदरणीय गृहमंत्री को इस बात पर बहुत दुःख हो रहा है कि अमेरिका में कुरआन जलाई जाएगी.. इसलिए आजकल हर जगह आंसू बहाए जा रहे और "वोट बैंक" को मजबूत किया जा रहा है.)
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