"शिक्षा पद्धति में आवश्यक सुधार"
शिक्षा पद्धति में सुधार तो आवश्यक है ! बच्चे मशीन बनते जा रहे हैं !बच्चे ही हमारे देश का भविष्य है और हमारे देश के उज्जवल भविष्य के लिये हर एक बच्चे का शिक्षित होना बहुत आवश्यक है, जिसके लिये हमारी सरकारें विभिन्न तरह की योजनाएं चलाती हैं ताकि कोई भी बच्चा अनपढ़ न रह जाय। आज के बदलते हुये परिवेश में बच्चों के पाठ्यक्रम में गणित, विज्ञान व कम्प्यूटर के साथ योग व ध्यान को भी कोर्स में शामिल कर दिया जाय तो बच्चों के व्यक्तित्व व प्रतिभा में बहुआयामी निखार देखा जा सकता है। बच्चों के पाठ्यकम में नये विषयों के जोडऩे का अर्थ बच्चों को आज की पूरी जानकारी से लगातार अपडेट करते रहना ही होता है जिससे उनको ज्ञान के विकास के साथ ही अनुभव भी प्राप्त होता जाता है। बच्चों को जानकारी देने की इसी कड़ी में ही अभी सेक्स एजूकेशन को पाठ्यक्रम में शामिल करने की खूब जोर वकालत हो रही है। हम गणित के फार्मूले सीखते-सीखते और आधुनिक तकनीक को इस्तेमाल करते-करते जीवन की वास्तविक तकनीक को सीखना व सिखाना भूल गये। मूलत: हमने अभी तक योग व ध्यान को अपने जीवन में इतनी गम्भीरता से शामिल नहीं किया। इसकी वास्तविकता यह भी हो सकती है कि हमने अपने जीवन में उसी को अपनाया व बढ़ावा दिया जिसको हमने पढ़ा या जाना है।
इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि अभी तक हमें इसे एक विषय की तरह नहीं पढ़ाया गया, क्योंकि अभी तक केवल उन्हीं विषय का विस्तार हो पाया है जिनको हमने नियमित रुप से पाठ्यक्रम के रूप में पढ़ा हो, जिसके गणित, विज्ञान व कम्प्यूटर शिक्षा का विस्तारित रूप आज उदाहरण के तौर पर हम सबके सामने हंै। आज जरूरत इस बात की है कि योग और ध्यान को बच्चों की शुरुआती शिक्षा से ही पाठ्यक्रम में शामिल करवाने की पुरजोर कोशिश की जाय ताकि सभी बच्चों को एक साथ छोटी उम्र से ही ध्यान व योग के पाठ को नियमित रूप से पढ़ाया जा सके। अभी तक स्कूलों में शरीर को तंदुरुस्त रखने के लिए खेलकूद कराया जाता है तथा पीटी फिजिकल टे्रनिंग भी औपचारिक तौर पर दी जाती है। इसमें अधिकतर बच्चों की रुचि भी नहीं होती है बल्कि आज के समय में यह एक ऊबाउ विषय की तरह है। योग और ध्यान को एक विषय की तरह पढ़ाने से जहां एक तरफ तन तंदुरुस्त व फिट रहेगा वहीं नियमित रूप से मेडिटेशन करने से बच्चों में अपने ही बारे में रोमांचक जानकारी मिलेगी। स्कूलों में टाइम टेबल के हिसाब से योग व ध्यान के बिषय का भी एक थ्योरी व प्रैक्टिकल पीरियड रखने से मन व दिमाग दोनों को नई स्फूर्ति मिलेगी। इस विषय को रुचिकर बनाना होगा क्योंकि बच्चे जो पढ़ते है, उन्हीं विषयों को जानने व समझने की उनमें अत्यधिक उत्सुकता व जिज्ञासा होती है।
आज योग के चमत्कार को कौन नहीं जानता तथा ध्यान की चेतना से कौन अनजान है? अगर हम कुछ सब जान रहे हैं तो बच्चों को उनकी प्राथमिक शिक्षा से ही उनको इस दिशा में अग्रसर कर दिया जाय ताकि उनकी अच्छी पढ़ाई-लिखाई के साथ बच्चा सदैव तन व मन से फिट व तंदुरस्त रह सके। सच्चाई यह है कि पढ़ाई लिखाई के इतने व्यस्ततम माहौल में बच्चों की सुबह से शाम तक पूरी दिनचर्या इतनी टाइट हो चुकी है कि उनके पास खाली समय बिल्कुल नहीं रहा। कोई बच्चा औसत से अत्यधिक मोटा, तो कोई अत्यधिक दुबला हो रहा है। इस प्रकार से बच्चों की सेहत का अनुपात कम होता जा रहा है। इनकी छोटी उम्र में ही अनेक प्रकार की बड़ी ब बीमारियों के लक्षण अभी से दिखाई पडऩे शुरू हो जाते हं। इसमे बच्चों की कोई गलती नहीं है, गलती हमारी है कि हमने उन्हें नहीं पढ़ाया। कोई बच्चा आज गणित के नये-नये फार्मूले, विज्ञान की नई तकनीक व अविष्कार को नौटंकी क्यों नहीं कहता, बल्कि उसके बारे में अधिक से अधिक जानना चाहता है। बच्चों के पास अभी समय है, अगर अभी से योग व ध्यान को इनकी शिक्षा व पाठ्यक्रम में जोड़ दिया जाय तो तुरन्त से ही इसके अभूतपूर्व परिणाम हमारे सामने आने शुरू हो जाएंगे। ध्यान की अद्भुत कला शुरुआत से ही बच्चों में विकसित की जानी चाहिए। इस प्रकार वे जो कुछ भी पढेंग़े-लिखेंगे, सब कुछ उनके दिमाग में चला जायेगा। विज्ञापन युवापीढ़ी तथा बच्चों को लुभाते हैं जिसके कारण वे चाह कर भी इसके सेवन से नहीं बच पाते। सार्वजनिक स्थलों पर धूम्रपान पर पाबन्दी की ही जंक फूड जैसे बर्गर, पेप्सी कोला, भुजिया, नमकीन तथा पीज्जा जैसे फास्ट फूड के विज्ञापनों पर भी पाबन्दी लगाने पर गंभीरता से विचार करने की जरूरत है।
योग शिविरों से बच्चे अपनी संस्कृति को बेहतर ढंग से समझ पाते हैं, साथ ही उनके अंदर मिलजुल काम करने की भावना भी पैदा होती है।योग व ध्यान को बच्चों के जीवन में पढ़ाई के साथ और विषयों की तरह अपनाने से बच्चों के अन्दर सकारात्मक विचार व ऊर्जा उत्पन्न होने लगेगी। धीरे-धीरे बच्चा आत्मनिश्चयी व द्रढ़संकल्पी होकर अपने हर कार्य को सृजनात्मक व रचनात्मक कला के जौहर से करता है तथा जिन्दगी की हर बाजी जीतता हुआ दिखाई देता है। जहां स्कूल में पाठ्यक्रम के अन्य विषयों को पढऩे से बच्चे के अन्दर बौद्धिक क्षमता बढ़ती है, वहीं ध्यान को पढऩे से वह दूसरे व्यक्ति को भी आत्मीय रूप से अच्छी तरह समझ सकता है। सही मायनों में इस तरह से योग और ध्यान को स्कूल कोर्स में शामिल करके ही बच्चों की शिक्षा सम्पूर्ण की जा सकती है।
अभी अभी थी धूप, बरसने लगा कहां से यह पानी...किसने फोड़ घड़े बादल के,
की है इतनी शैतानी...
सूरज ने क्यों बंद कर लिया, अपने घर का दरवाज़ा...उसकी मां ने भी क्या उसको,
बुला लिया कहकर आजा...
ज़ोर-ज़ोर से गरज रहे हैं, बादल हैं किसके काका...किसको डांट रहे हैं, किसने,
कहना नहीं सुना मां का...
बिजली के आंगन में अम्मा, चलती है कितनी तलवार...कैसी चमक रही है,
फिर भी, क्यों खाली जाते हैं वार...
क्या अब तक तलवार चलाना, मां, वे सीख नहीं पाए...इसीलिए क्या आज सीखने,
आसमान पर हैं आए...
एक बार भी, मां, यदि मुझको, बिजली के घर जाने दो...उसके बच्चों को, तलवार चलाना,
सिखला आने दो...
खुश होकर तब बिजली देगी, मुझे चमकती-सी तलवार...तब मां, कर न कोई सकेगा,
अपने ऊपर अत्याचार...
पुलिसमैन, अपने काका को, फिर न पकड़ने आएंगे...देखेंगे तलवार,
दूर से ही, वे सब डर जाएंगे...
अगर चाहती हो, मां, काका जाएं अब न जेलखाना...तो फिर बिजली के घर मुझको,
तुम जल्दी से पहुंचाना...
काका जेल न जाएंगे अब, तुझे मंगा दूंगी तलवार...पर बिजली के घर जाने का,
अब मत करना कभी विचार !!!
(साभार प्रस्तुत-- सुभद्राकुमारी चौहान)
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