Sunday, July 31, 2011

शहीद् ए आजम सरदार भगत सिंह जी (27 सितम्बर, 1907 - 23 मार्च, 1931 )







कुछ बहरों को सुनाने के लिए एक धमाका आपने तब किया था ,
एसे ही कुछ बहरे आज भी राज कर रहे है,
हो सके तो आ जाओ !! 





सरफरोशी की तमन्ना
सरफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है, देखना है ज़ोर कितना बाजू-ऐ-कातिल में है. 

करता नहीं क्यूँ दूसरा कुछ बात-चीत, देखता हूँ मैं जिसे वोह चुप तेरी महफिल में है. 
ए शहीद-ऐ-मुल्क-ओ-मिल्लत मैं तेरे ऊपर निसार, अब तेरी हिम्मत का चर्चा गैर की महफिल में है. 
सरफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है. 

वक्त आने पे बता देंगे तुझे ए आसमान, हम अभी से क्या बताएं क्या हमारे दिल में है. 
खींच कर लाई है सब को क़त्ल होने की उम्मीद, आशिकों का आज जमघट कूचा-ऐ-कातिल में है. 
सरफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है. 

है लिए हथियार दुश्मन ताक़ में बैठा उधर, और हम तैयार हैं सीना लिए अपना इधर. 
खून से खेलेंगे होली गर वतन मुश्किल में है, सरफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है. 

हाथ जिन में हो जूनून कट ते नही तलवार से, सर जो उठ जाते हैं वोह झुकते नही ललकार से. 
और भड़केगा जो शोला-सा हमारे दिल में है, सरफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है. 

हम तो घर से निकले ही थे बांधकर सर पे कफ़न, जा हथेली पर लिए लो बढ़ चले हैं ये क़दम.
जिंदगी तो अपनी मेहमान मौत की महफिल में है, सरफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है. 

यूं खडा मकतल में कातिल कह रहा है बार बार, क्या तमन्ना-ऐ-शहादत भी किसी के दिल में है. 
दिल में तूफानों की टोली और नसों में इन्किलाब, होश दुश्मन के उड़ा देंगे हमें रोको न आज.
दूर रह पाये जो हमसे दम कहाँ मंजिल में है, 

सरफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है. देखना है ज़ोर कितना बाज़ुय कातिल में है ||



इंक़लाब जिंदाबाद 

No comments:

Post a Comment