1.अचल होते हुए भी पृथ्वी की गति के सापेक्ष सूर्य का प्रभाव पडता है !!
कल के ही लेख को आगे बढाने का प्रयास कर हूं , पर एक टिप्प्णी के कारण शीर्षक में से वैज्ञानिक दृष्टिकोण हटा दिया जा रहा है। जब भी मैं ज्योतिष को विज्ञान कहती हूं , उनलोगों को कष्ट पहुंचता है , जो मोटे मोटे किताबों में लिखे वैज्ञानिकों खासकर विदेशियों के सिद्धांतों को ही विज्ञान मानते हैं। हमारे पूर्वजों द्वारा परंपरागत अनुभव के आधार पर विकसित किए गए नियमों और खासकर हमारे ऋषि मुनियों के ज्ञान का इनके लिए कोई महत्व नहीं। और किसी को कष्ट पहुंचे , ऐसा कोई काम मैं नहीं करना चाहती , यदि ज्योतिष विज्ञान है , तो आनेवाले दिनों में मेरे पाठकों के समक्ष स्वत: सिद्ध हो जाएगा, चाहे इसकी चर्चा शीर्षक में करूं या नहीं , इतना तो मुझे विश्वास है।
कल के लेख में मैने समझाया था कि सबों की नजर अपने को स्थिर मानकर ही परिस्थितियों का अवलोकन करती है। इसलिए हमलोग असमान का अवलोकण पृथ्वी को स्थिर मानते हुए करते हैं , इसलिए ज्योतिष के इस महत्वपूर्ण आधार को गलत साबित करना सही नहीं है। बात अवलोकन तक तो ठीक मानी जा सकती है , पर हमारे अवलोकण से उन राशियों या ग्रहों नक्षत्रों का पृथ्वी के जड चेतन पर प्रभाव भी पड जाए , यह तो वैज्ञानिक दृष्टिकोण वालों को तर्कसम्मत नहीं लगता। और ज्योतिष तो पृथ्वी के सापेक्ष ही सभी राशियों और ग्रहों के स्थान परिवर्तन की चर्चा करता है और उसके हमपर प्रभाव पर बल देता है। जाहिर है , अधिकांश पाठक इस बात को भी स्वीकार नहीं कर पाते।
पर इसके लिए भी मेरे अपने तर्क हैं। हमारे सौरमंडल का एक तारा सूर्य लगभग अचल है , हालांकि इधर के कुछ वर्षों में उसकी गति के बारे में भी जानकारी मिली है , पर यह गति बहुत अधिक नहीं है और वास्तव में यह पृथ्वी की गति के सापेक्ष ही परिवर्तनशील दिखाई देता है। ज्योतिष की पुस्तकों में सूर्य प्रतिदिन एक डिग्री खिसक जाता है , जबकि राशि के हिसाब से प्रतिमाह एक नई राशि में प्रवेश करता है। पृथ्वी की वार्षिक गति के सापेक्ष ही पंचांगों में सूर्य की स्थिति में प्रतिदिन परिवर्तन देखा जाता है , जबकि दिन भर के 24 घंटों में सूर्य की स्थिति में कोणिक परिवर्तन पृथ्वी की दैनिक गति के कारण ही होता है। सूर्य की ये दोनो गतियां अवास्तविक मानी जा सकती हैं , पर इसके फलस्वरूप पृथ्वी पर दिन भर के 24 घंटों और वर्षभर के 365 दिनों के सूर्य के अलग अलग प्रभाव को स्पष्टतया देखा जा सकता है।
पृथ्वी की वार्षिक गति के कारण सूर्य की स्थिति में होनेवाले परिवर्तन का प्रभाव हम देख पाते हैं। सूर्य तो 12 महीने के 365 दिनों तक एक ही स्थान पर है , पर उसके द्वारा पृथ्वी के विभिन्न हिस्सों में कभी सर्दी तो कभी गर्मी .. इस मौसम परिवर्तन का कारण पृथ्वी के कारण उसकी सापेक्षिक गति ही तो है। इसी प्रकार पृथ्वी की दैनिक गति के कारण सूर्य की स्थिति में होने वाले परिवर्तन को भी हम सहज ही महसूस कर सकते हैं। सवेरे का सूरज , दोपहर का सूरज और शाम के सूरज की गरमी का अंतर सबको पता है यानि कि अवलोकण के समय सूर्य जहां दिखाई देता है , वैसा ही प्रभाव दिखाता है।
अब चूंकि सूर्य का प्रभाव स्पष्ट है , इसमें हमारा विश्वास हैं , अन्य ग्रहों का प्रभाव स्पष्ट नहीं है , इसलिए इसे अंधविश्वास मान लेते है। पर एक सूर्य के उदाहरण से ही पृथ्वी के सापेक्ष पूरे आसमान और ग्रहों की स्थिति का प्रभाव भी स्पष्ट हो जाता है।सापेक्षिक गति के कारण होनेवाले इस एक उदाहरण के बाद ज्योतिष के इस आधार में कोई कमी निकालना बेतुकी बात होगी। पृथ्वी को स्थिर मानते हुए आसमान को 12 भागों में बांटा जाना और उसमें स्थित ग्रह नक्षत्र के प्रभाव की चर्चा करना पूर्ण तौर पर विज्ञान माना जा सकता है , जिसकी चर्चा लगातार होगी।
2.ज्योतिष में पृथ्वी को स्थिर मानते हुए पूरे ब्रह्मांड का अध्ययन किया जाता है !!
मेरे द्वारा पत्र पत्रिकाओं में ज्योतिष से संबंधित जितने भी लेख छपे , वो सामान्य पाठकों के लिए न होकर ज्योतिषियों के लिए थे। यहां तक कि मेरी पुस्तक भी उन पाठकों के लिए थी , जो पहले से ज्योतिष का ज्ञान रखते थे।यही कारण है कि मैं ब्लॉग के पाठकों के लिए जनोपयोगी लेख जलखा करत हूं। इधर कुछ वर्षों से ज्योतिष में प्रवेश करने के लिए एक पुस्तक की मांग बहुत पाठकों द्वारा की जा रही है , क्यूंकि इसके बिना वे मेरी पुरानी पुस्तक को समझने में समर्थ नहीं हैं। वैसे तो ज्योतिष में प्रवेश करने के लिए बाजार में पुस्तकों की कमी नहीं , जिसका रेफरेंस मैं अपने पाठकों को देती आ रही हूं , पर अधिक वैज्ञानिक ढंग से पाठकों को ज्योतिष की जानकारी दी जा सके , इसलिए मैं इस ब्लॉग में खेल खेल में वैज्ञानिक ढंग से ज्योतिष की जानकारी देने का प्रयास रहा हूं , आप सबों का साथ मिले तो मेरा प्रयास अवश्य सफल होगा।
हमारे लिए हमारी यह धरती कितनी भी बडी क्यूं न हो , पर इतने बडे ब्रह्मांड में इसकी स्थिति एक विंदू से अधिक नहीं है और इसके चारो ओर फैला है विस्तृत आसमान। हमारे ऋषि महर्षियों ने पृथ्वी को एक विंदू के रूप में मानते हुए 360 डिग्री में फैले आसमान को 30-30 डिग्री के 12 भागों में बांटा था। इन्ही 12 भागों को राशि कहा जाता है , जिनका नामकरण मेष , वृष , मिथुन , कर्क , सिंह , कन्या , तुला , वृश्चिक , धनु , मकर , कुंभ और मीन के रूप में किया गया है। यह ज्योतिष का एक मुख्य आधार है और इन्हीं राशियों तथा उनमें अनंत की दूरी तक स्थित ग्रहों के आधार पर ज्योतिष के सिद्धांतों की सहायता से भविष्यवाणियां की जाती है।
पर हमेशा से ही ज्योतिष विरोधी ज्योतिष के इस मुख्य आधार को ही गलत सिद्ध करने की चेष्टा करते हैं। उनका मानना है कि ज्योतिष पृथ्वी को अचल मानते हुए अपना अध्ययन शुरू करता है , जबकि पृथ्वी सूर्य के चारो ओर चक्कर लगाती है। विरोधी यह मानने की भूल करते हैं कि फलित ज्योतिष का विकास उस वक्त हुआ , जब लोगों को यह मालूम था कि पृथ्वी स्थिर है और सूर्य तथा अन्य तारे उसके चारो ओर चक्कर लगाती है। हमारे ऋषि मुनियों पर यह इल्जाम लगाना बिल्कुल गलत है कि उन्हे सत्य की जानकारी नहीं थी। जब उनके द्वारा विकसित किए गए सिद्धांतों के आधार पर विभिन्न ग्रहों और खगोलिय स्थिति का एक एक घटी पल निकालना संभव हो चुका है , तब उनके बारे में कोई पूर्वाग्रह पालना उचित नहीं।
इस विषय पर मेरे अपने कुछ तर्क हैं। हमारी अपनी नजर या दृष्टि हमारे शरीर को स्थिर मानकर ही आसपास की परिस्थितियों या दृश्यों का अवलोकण करती है, चाहे हमारा शरीर गतिशील ही क्यूं न हो। हम सडक पर किसी के साथ चल रहे हों और उसकी गति अधिक हो जाए तो हम अपने को पीछे मानने लगते हैं , यह जानते हुए कि हम पीछे नहीं हैं, अपने घर से काफी आगे बढ चुके हैं। विपरीत स्थिति में हम उसे पीछे मानेंगे , इसका अर्थ यह है कि हम अपने शरीर को स्थिर मानते हुए ही आसपास का जायजा लेते हैं। इसलिए तो भौतिक विज्ञान में भी सापेक्षिक गति की अवधारणा है।
किसी भी वस्तु की सापेक्षिक गति हमारी इसी सोंच का परिणाम है। इसी प्रकार हम गाडी में बैठे हों तो न सिर्फ पेड पौघों को गतिशील देख आश्चर्यित होते हैं , वरन् यह भी कह बैते हैं कि ‘अमुक शहर , अमुक गांव या अमुक मुहल्ला आ गया’, जबकि वो शहर , गांव या मुहल्लावहां पहले से होता है। इसी नियम के तहत् जब हमें ब्रह्मांड और आकाश में बिखरे अगणित तारों का अध्ययन करना होता है , तो हम पृथ्वी को स्थिर और आसमान के सभी राशियों और ग्रहों तारों को गतिशील मान लेते हैं , जो अज्ञानता नहीं मानी जा सकती है।
कल के ही लेख को आगे बढाने का प्रयास कर हूं , पर एक टिप्प्णी के कारण शीर्षक में से वैज्ञानिक दृष्टिकोण हटा दिया जा रहा है। जब भी मैं ज्योतिष को विज्ञान कहती हूं , उनलोगों को कष्ट पहुंचता है , जो मोटे मोटे किताबों में लिखे वैज्ञानिकों खासकर विदेशियों के सिद्धांतों को ही विज्ञान मानते हैं। हमारे पूर्वजों द्वारा परंपरागत अनुभव के आधार पर विकसित किए गए नियमों और खासकर हमारे ऋषि मुनियों के ज्ञान का इनके लिए कोई महत्व नहीं। और किसी को कष्ट पहुंचे , ऐसा कोई काम मैं नहीं करना चाहती , यदि ज्योतिष विज्ञान है , तो आनेवाले दिनों में मेरे पाठकों के समक्ष स्वत: सिद्ध हो जाएगा, चाहे इसकी चर्चा शीर्षक में करूं या नहीं , इतना तो मुझे विश्वास है।
कल के लेख में मैने समझाया था कि सबों की नजर अपने को स्थिर मानकर ही परिस्थितियों का अवलोकन करती है। इसलिए हमलोग असमान का अवलोकण पृथ्वी को स्थिर मानते हुए करते हैं , इसलिए ज्योतिष के इस महत्वपूर्ण आधार को गलत साबित करना सही नहीं है। बात अवलोकन तक तो ठीक मानी जा सकती है , पर हमारे अवलोकण से उन राशियों या ग्रहों नक्षत्रों का पृथ्वी के जड चेतन पर प्रभाव भी पड जाए , यह तो वैज्ञानिक दृष्टिकोण वालों को तर्कसम्मत नहीं लगता। और ज्योतिष तो पृथ्वी के सापेक्ष ही सभी राशियों और ग्रहों के स्थान परिवर्तन की चर्चा करता है और उसके हमपर प्रभाव पर बल देता है। जाहिर है , अधिकांश पाठक इस बात को भी स्वीकार नहीं कर पाते।
पर इसके लिए भी मेरे अपने तर्क हैं। हमारे सौरमंडल का एक तारा सूर्य लगभग अचल है , हालांकि इधर के कुछ वर्षों में उसकी गति के बारे में भी जानकारी मिली है , पर यह गति बहुत अधिक नहीं है और वास्तव में यह पृथ्वी की गति के सापेक्ष ही परिवर्तनशील दिखाई देता है। ज्योतिष की पुस्तकों में सूर्य प्रतिदिन एक डिग्री खिसक जाता है , जबकि राशि के हिसाब से प्रतिमाह एक नई राशि में प्रवेश करता है। पृथ्वी की वार्षिक गति के सापेक्ष ही पंचांगों में सूर्य की स्थिति में प्रतिदिन परिवर्तन देखा जाता है , जबकि दिन भर के 24 घंटों में सूर्य की स्थिति में कोणिक परिवर्तन पृथ्वी की दैनिक गति के कारण ही होता है। सूर्य की ये दोनो गतियां अवास्तविक मानी जा सकती हैं , पर इसके फलस्वरूप पृथ्वी पर दिन भर के 24 घंटों और वर्षभर के 365 दिनों के सूर्य के अलग अलग प्रभाव को स्पष्टतया देखा जा सकता है।
पृथ्वी की वार्षिक गति के कारण सूर्य की स्थिति में होनेवाले परिवर्तन का प्रभाव हम देख पाते हैं। सूर्य तो 12 महीने के 365 दिनों तक एक ही स्थान पर है , पर उसके द्वारा पृथ्वी के विभिन्न हिस्सों में कभी सर्दी तो कभी गर्मी .. इस मौसम परिवर्तन का कारण पृथ्वी के कारण उसकी सापेक्षिक गति ही तो है। इसी प्रकार पृथ्वी की दैनिक गति के कारण सूर्य की स्थिति में होने वाले परिवर्तन को भी हम सहज ही महसूस कर सकते हैं। सवेरे का सूरज , दोपहर का सूरज और शाम के सूरज की गरमी का अंतर सबको पता है यानि कि अवलोकण के समय सूर्य जहां दिखाई देता है , वैसा ही प्रभाव दिखाता है।
अब चूंकि सूर्य का प्रभाव स्पष्ट है , इसमें हमारा विश्वास हैं , अन्य ग्रहों का प्रभाव स्पष्ट नहीं है , इसलिए इसे अंधविश्वास मान लेते है। पर एक सूर्य के उदाहरण से ही पृथ्वी के सापेक्ष पूरे आसमान और ग्रहों की स्थिति का प्रभाव भी स्पष्ट हो जाता है।सापेक्षिक गति के कारण होनेवाले इस एक उदाहरण के बाद ज्योतिष के इस आधार में कोई कमी निकालना बेतुकी बात होगी। पृथ्वी को स्थिर मानते हुए आसमान को 12 भागों में बांटा जाना और उसमें स्थित ग्रह नक्षत्र के प्रभाव की चर्चा करना पूर्ण तौर पर विज्ञान माना जा सकता है , जिसकी चर्चा लगातार होगी।
2.ज्योतिष में पृथ्वी को स्थिर मानते हुए पूरे ब्रह्मांड का अध्ययन किया जाता है !!
मेरे द्वारा पत्र पत्रिकाओं में ज्योतिष से संबंधित जितने भी लेख छपे , वो सामान्य पाठकों के लिए न होकर ज्योतिषियों के लिए थे। यहां तक कि मेरी पुस्तक भी उन पाठकों के लिए थी , जो पहले से ज्योतिष का ज्ञान रखते थे।यही कारण है कि मैं ब्लॉग के पाठकों के लिए जनोपयोगी लेख जलखा करत हूं। इधर कुछ वर्षों से ज्योतिष में प्रवेश करने के लिए एक पुस्तक की मांग बहुत पाठकों द्वारा की जा रही है , क्यूंकि इसके बिना वे मेरी पुरानी पुस्तक को समझने में समर्थ नहीं हैं। वैसे तो ज्योतिष में प्रवेश करने के लिए बाजार में पुस्तकों की कमी नहीं , जिसका रेफरेंस मैं अपने पाठकों को देती आ रही हूं , पर अधिक वैज्ञानिक ढंग से पाठकों को ज्योतिष की जानकारी दी जा सके , इसलिए मैं इस ब्लॉग में खेल खेल में वैज्ञानिक ढंग से ज्योतिष की जानकारी देने का प्रयास रहा हूं , आप सबों का साथ मिले तो मेरा प्रयास अवश्य सफल होगा।
हमारे लिए हमारी यह धरती कितनी भी बडी क्यूं न हो , पर इतने बडे ब्रह्मांड में इसकी स्थिति एक विंदू से अधिक नहीं है और इसके चारो ओर फैला है विस्तृत आसमान। हमारे ऋषि महर्षियों ने पृथ्वी को एक विंदू के रूप में मानते हुए 360 डिग्री में फैले आसमान को 30-30 डिग्री के 12 भागों में बांटा था। इन्ही 12 भागों को राशि कहा जाता है , जिनका नामकरण मेष , वृष , मिथुन , कर्क , सिंह , कन्या , तुला , वृश्चिक , धनु , मकर , कुंभ और मीन के रूप में किया गया है। यह ज्योतिष का एक मुख्य आधार है और इन्हीं राशियों तथा उनमें अनंत की दूरी तक स्थित ग्रहों के आधार पर ज्योतिष के सिद्धांतों की सहायता से भविष्यवाणियां की जाती है।
पर हमेशा से ही ज्योतिष विरोधी ज्योतिष के इस मुख्य आधार को ही गलत सिद्ध करने की चेष्टा करते हैं। उनका मानना है कि ज्योतिष पृथ्वी को अचल मानते हुए अपना अध्ययन शुरू करता है , जबकि पृथ्वी सूर्य के चारो ओर चक्कर लगाती है। विरोधी यह मानने की भूल करते हैं कि फलित ज्योतिष का विकास उस वक्त हुआ , जब लोगों को यह मालूम था कि पृथ्वी स्थिर है और सूर्य तथा अन्य तारे उसके चारो ओर चक्कर लगाती है। हमारे ऋषि मुनियों पर यह इल्जाम लगाना बिल्कुल गलत है कि उन्हे सत्य की जानकारी नहीं थी। जब उनके द्वारा विकसित किए गए सिद्धांतों के आधार पर विभिन्न ग्रहों और खगोलिय स्थिति का एक एक घटी पल निकालना संभव हो चुका है , तब उनके बारे में कोई पूर्वाग्रह पालना उचित नहीं।
इस विषय पर मेरे अपने कुछ तर्क हैं। हमारी अपनी नजर या दृष्टि हमारे शरीर को स्थिर मानकर ही आसपास की परिस्थितियों या दृश्यों का अवलोकण करती है, चाहे हमारा शरीर गतिशील ही क्यूं न हो। हम सडक पर किसी के साथ चल रहे हों और उसकी गति अधिक हो जाए तो हम अपने को पीछे मानने लगते हैं , यह जानते हुए कि हम पीछे नहीं हैं, अपने घर से काफी आगे बढ चुके हैं। विपरीत स्थिति में हम उसे पीछे मानेंगे , इसका अर्थ यह है कि हम अपने शरीर को स्थिर मानते हुए ही आसपास का जायजा लेते हैं। इसलिए तो भौतिक विज्ञान में भी सापेक्षिक गति की अवधारणा है।
किसी भी वस्तु की सापेक्षिक गति हमारी इसी सोंच का परिणाम है। इसी प्रकार हम गाडी में बैठे हों तो न सिर्फ पेड पौघों को गतिशील देख आश्चर्यित होते हैं , वरन् यह भी कह बैते हैं कि ‘अमुक शहर , अमुक गांव या अमुक मुहल्ला आ गया’, जबकि वो शहर , गांव या मुहल्लावहां पहले से होता है। इसी नियम के तहत् जब हमें ब्रह्मांड और आकाश में बिखरे अगणित तारों का अध्ययन करना होता है , तो हम पृथ्वी को स्थिर और आसमान के सभी राशियों और ग्रहों तारों को गतिशील मान लेते हैं , जो अज्ञानता नहीं मानी जा सकती है।
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