मैने अभी तक राहू और केतु से आपका परिचय क्यूं नहीं करवाया ??
वास्तव में राहू और केतु , जिन्हें फलित ज्योतिष में ग्रहों के रूप में जाना जाता है , का कोई अस्तित्व ही नहीं। पृथ्वी को स्थिर मान लेने पर विराट आकाश में सूर्य का एक दीर्घवृत्ताकार पथ बन जाता है। पृथ्वी के चारो ओर चंद्रमा के परिभ्रमण का एक वृत्ताकर पथ है ही। आसमान के खास डिग्री पर सूर्य और चंद्र दोनो के पथ एक दूसरे को काटते नजर आते हैं , जो विंदू उत्तर की ओर कटता है , वह राहू तथा जो विंदू दक्षिण की ओर कटता है , वो केतु कहलाता है। दोनो की कोणात्मक दूरी 180 डिग्री की होती है। सभी ग्रहों की तरह राहू और केतु की गति आगे बढने की न होकर सदैव पीछे की ओर खिसकने की होती है। राहू और केतु डेढ डेढ वर्ष में एक एक राशि पार करते हुए 18 वर्ष में सभी राशियों को उल्टी ओर से घूमते हुए पार कर लेते हैं। आसमान में एक दूसरे के 180 डिग्री की कोणात्मक दूरी में रहने के कारण किसी भी जन्मकुंडली में राहू और केतु हमेशा आमने सामने होता है।
फलित ज्योतिष में राहू और केतु के इतना भयावह प्रभाव माने जाने की दीर्घकालीन चर्चा का कारण हमलोग सूर्यग्रहण और चंद्रग्रहण के प्रभाव को मानते हैं। वास्तव में , दोनो ग्रहण के दौरान राहू और केतु नामक ये विशेष विंदू , सूर्य , चंद्र और पृथ्वी एक ही सीध में आ जाते हैं। ज्योतिष के विकास के बिल्कुल आरंभ में शायद ज्योतिषियों को यह जानकारी नहीं रही हो कि एक पिंड की छाया दूसरे पिंड में पडने से ही सूर्य या चंद्रग्रहण होता होता है , इसका कारण ढूंढते वक्त ज्योतिषियों की नजर इन दोनो विंदूओं पर पडी हो। इन्होने पाया होगा कि दोनो ही ग्रहण के दौरान ये विंदू एक सीध में आ जाते हैं , बस ग्रहण का कारण इन्हे मान लिया होगा। बाद में इसके कारण ढूंढ लेने पर भी राहू और केतु लोगों के मनोमस्तिष्क से नहीं हट सके होंगे।
राहू और केतु आकाशीय पिंड नहीं हैं , इसलिए इन दोनो को संपात विंदू कहा गया है। भौतिक विज्ञान में ऊर्जा के विभिन्न प्रकारों में गति , ताप , प्रकाश , विद्यूत , चुंबक और ध्वनि का उल्लेख मिलता है। इनकी उत्पत्ति पदार्थ के बिना संभव नहीं है। इसके साथ ही सभी ऊर्जाएं एक दूसरे में आसानी से रूपांतरित की जा सकती है। हमलोग ग्रह की किस ऊर्जा से प्रभावित होते हैं , गुरूत्वाकर्षण , गति , किसी प्रकार के प्रकाश , किरण या फिर विद्युत चुंबकीय शक्ति । कह पाना तो अभी बहुत कठिन है , पर इतना अवश्य है कि शक्ति के जिस रूप से भी हम प्रभावित होते हों , राहू और केतु इनमें से किसी का उत्सर्जन नहीं करते। इसलिए इनसे प्रभावित होने का कोई प्रश्न ही नहीं उठता। इसलिए सूर्य , चंद्रमा एवं अन्य ग्रहों की शक्ति की चर्चा 'गत्यात्मक ज्योतिष' करता है , पर राहू और केतु की नहीं करता।
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