अंतरिक्ष मिशन में बड़ी कामयाबी
पीएसएलवी मिशन की लतागार 17वीं सफ़लता के साथ भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन ने कामयाबी का नया इतिहास लिख दिया है. इस सफ़लता से दिसंबर में जीएसएलवी के प्रक्षेपण में मिली नाकामी के झटके से उबरने में तो मदद मिलेगी ही, अंतरिक्ष कारोबार में भी लंबी छलांग की उम्मीद जतायी जा रही है.
हैदराबाद के आंघ्रप्रदेश में स्थित सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र, श्री हरिकोटा से पीएसएलवी ने एक बार फ़िर सफ़लता की नयी कहानी लिख दी है. इसरों ने इतिहास रचते हुए श्रीहरिकोटा से ध्रुवीय उपग्रह प्रक्षेपण यान-सी16 (पीएसएलवी-सी16) सफ़लतापूर्वक प्रक्षेपण किया है. यह भारत की अंतरिक्ष कामयाबी के इतिहास में एक बड़ा कदम है. पीएसएलवी की सफ़लता ने अंतरिक्ष जगत में भारत की स्थिति को मजबूती प्रदान किया है. इस प्रक्षेपण पर देशभर की निगाहें टिकी थीं. इसके सफ़ल प्रक्षेपण की न सिर्फ़ इसरो दुआ कर रहा था, बल्कि देश के करोड़ों किसान भी इसकी ओर आशा भरी निगाहों से देख रहे थे.
तीन उपग्रह छोड़े : ध्रुवीय प्रक्षेपण यान पीएसएलवी सी-16 के साथ तीन उपग्रह छोड़े गये, जिसमें भारत के अलावा रूस और सिंगापुर के सैटेलाइट शामिल हैं. मुख्य उपग्रह रिसोर्ससैट-2 को इसरो ने तैयार किया है. इसके अलावा भारत-रूस द्वारा निर्मित नैनोसैटेलाइट यूथसैट और सिंगापुर का माइक्रासैटेलाइट(लघु उपग्रह) एक्स-सैट का प्रक्षेपण किया गया. इस प्रक्षेपण से भारत को कई तरह के लाभ हो सकते हैं. इन सैटेलाइटों से प्राकृतिक संसाधनों का पता लगाने, उनके अध्ययन एवं प्रबंधन में मदद मिल सकती है.
पीएसएलवी का 18वां मिशन : ध्रुवीय उपग्रह प्रक्षेपण यान सी-16 यानि पीएसएलवी-सी16 ने कुल 1,404 किलोग्राम वजन की सामग्री (तीनों उपग्रह) लेकर अंतरिक्ष के लिए उड़ान भरी. 44 मीटर ऊंचाई वाला पीएसएलवी चार चरणों वाला रॉकेट है, जिसमें ठोस व तरल प्रणोदक वैकल्पिक रूप से मौजूद हैं. प्रथम और तृतीय चरण के इंजन ठोस प्रणोदक से संचालित होंगे और द्वितीय और चतुर्थ चरण के इंजन तरल प्रणोदक से संचालित होंगे. यह पीएसएलवी श्रृंखला का 18वां मिशन है.
उल्लेखनीय है कि भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के ध्रुवीय उपग्रह प्रक्षेपण यान (पीएसएलवी) के 17 में से 16 अभियान सफ़ल रहे हैं. इस यान ने 1994 से अब तक 25 पेलोड सहित कुल 44 उपग्रहों का प्रक्षेपण किया है. बुधवार को इस प्रक्षेपण यान ने कुल 1404 किलोग्राम वजन के तीन उपग्रहों को अपने 18वें मिशन में पृथ्वी से 822 किलोमीटर दूर ध्रुवीय सूर्य समकालिक कक्षा में स्थापित किया. ध्रुवीय उपग्रह प्रक्षेपण वाहन पीएसएलवी सी 15 ने 12 जुलाई को सुदूर संवेदी उपग्रह काटरेसैट 2 बी को सफ़लतापूर्वक कक्षा में पहुंचाया था.
उपग्रह रिसोर्ससैट-2 : अत्याधुनिक सुदूर संवेदी (रिमोट सेंसिंग) उपग्रह रिसोर्ससैट-2 इसरो द्वारा निर्मित आधुनिक दूरस्थ (सुदूर) संवेदी अथवा रिमोट सेंसिंग उपग्रह है. इसका वजन 1206 किलोग्राम है. यह प्राकृतिक संसाधनों के अध्ययन और उनके प्रबंधन को सुगम बनायेगा. इस संबंधित आंकड़े और तसवीरों को लगातार पांच वर्षो तक भेजता रहेगा. देश का दूरसंवेदी उपग्रह, रिसोर्ससैट-2 मूल रूप से इस वर्ष जनवरी में लांच किया जाने वाला था, लेकिन पहले उसकी लांचिंग फ़रवरी के लिए और उसके बाद अप्रैल के लिए टाली गयी थी. दूरसंवेदी उपग्रह उपयोगी चित्रों व अन्य आकड़ों को पृथ्वी पर भेजते हैं.
दूर संवेदी उपग्रहों के क्षेत्र में भारत की क्षमता दुनिया में सबसे ज्यादा है. बेहतर गुणवत्ता और सटीक जानकारियां उपलब्ध कराने से भारत वैश्विक बाजार में इस क्षेत्र में बड़ा सूचना प्रदाता बन गया है. वर्तमान में भारत के पास इस प्रकार के दूरसंवेदी उपग्रहों का दुनिया में सबसे बड़ा समूह हो गया है, जो अलग-अलग रिजोल्यूशंस में अंतरिक्ष की तसवीरें उपलब्ध कराते हैं. ये रिजल्यूशंस एक मीटर से लेकर 500 मीटर तक के होते हैं. भारत वैश्विक बाजार में इस तरह के आंकड़ों का एक बड़ा विक्रेता हो गया है. इसके अलावा रिसोर्ससैट-2 में कुछ ऐसे उपकरण भी लगाये गये हैं, जो जहाजों पर निगरानी रख सकेंगे और उनके स्थान, गति और अन्य चीजों के बारे में जानकारी जुटा सकेंगे.
रिसोर्ससैट-2 भारत की रिमोट सेंसिंग सीरिज का ताजा उपग्रह है, इसे आइआरएस पी6 के नाम से भी जाना जाता है. इसका कार्य जमीन पर मौजूद जल संपदा की निगरानी करना, जंगलों और तटीय इलाकों के बारे में आकड़े जुटाना होता है. यह उपग्रह समुद्र के बारे में भी नयी जानकारियां भी जुटा सकता है. रिसोर्ससैट वर्ष 2003 में छोड़े गये रिसोर्ससैट-1 का स्थान लेगा. इसरो के अनुसार रिसोर्ससैट-2 का जीवनकाल पांच वर्ष होगा. यह कनाडा से अतिरिक्त पेलोड को लेकर भी गया है. जो प्रतिदिन 14 घूर्णन कर पोत निगरानी संबंधी आंकड़े मुहैया करायेगा. रिसोर्ससैट-2 में एक ही प्लेटफ़ार्म पर तीन हाई रिजॉल्यूशन कैमरे लगे हैं. ये कैमरे ऐसी तसवीरें लेंगे जो फ़सलों की स्थिति के आकलन का काम करेंगे. साथ ही, वन कटाई की स्थिति, झीलों और जलाशयों के जल स्तर और हिमालय में पिघलने वाली बर्फ़ पर नजर रखेंगे.
हैदराबाद के आंघ्रप्रदेश में स्थित सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र, श्री हरिकोटा से पीएसएलवी ने एक बार फ़िर सफ़लता की नयी कहानी लिख दी है. इसरों ने इतिहास रचते हुए श्रीहरिकोटा से ध्रुवीय उपग्रह प्रक्षेपण यान-सी16 (पीएसएलवी-सी16) सफ़लतापूर्वक प्रक्षेपण किया है. यह भारत की अंतरिक्ष कामयाबी के इतिहास में एक बड़ा कदम है. पीएसएलवी की सफ़लता ने अंतरिक्ष जगत में भारत की स्थिति को मजबूती प्रदान किया है. इस प्रक्षेपण पर देशभर की निगाहें टिकी थीं. इसके सफ़ल प्रक्षेपण की न सिर्फ़ इसरो दुआ कर रहा था, बल्कि देश के करोड़ों किसान भी इसकी ओर आशा भरी निगाहों से देख रहे थे.
तीन उपग्रह छोड़े : ध्रुवीय प्रक्षेपण यान पीएसएलवी सी-16 के साथ तीन उपग्रह छोड़े गये, जिसमें भारत के अलावा रूस और सिंगापुर के सैटेलाइट शामिल हैं. मुख्य उपग्रह रिसोर्ससैट-2 को इसरो ने तैयार किया है. इसके अलावा भारत-रूस द्वारा निर्मित नैनोसैटेलाइट यूथसैट और सिंगापुर का माइक्रासैटेलाइट(लघु उपग्रह) एक्स-सैट का प्रक्षेपण किया गया. इस प्रक्षेपण से भारत को कई तरह के लाभ हो सकते हैं. इन सैटेलाइटों से प्राकृतिक संसाधनों का पता लगाने, उनके अध्ययन एवं प्रबंधन में मदद मिल सकती है.
पीएसएलवी का 18वां मिशन : ध्रुवीय उपग्रह प्रक्षेपण यान सी-16 यानि पीएसएलवी-सी16 ने कुल 1,404 किलोग्राम वजन की सामग्री (तीनों उपग्रह) लेकर अंतरिक्ष के लिए उड़ान भरी. 44 मीटर ऊंचाई वाला पीएसएलवी चार चरणों वाला रॉकेट है, जिसमें ठोस व तरल प्रणोदक वैकल्पिक रूप से मौजूद हैं. प्रथम और तृतीय चरण के इंजन ठोस प्रणोदक से संचालित होंगे और द्वितीय और चतुर्थ चरण के इंजन तरल प्रणोदक से संचालित होंगे. यह पीएसएलवी श्रृंखला का 18वां मिशन है.
उल्लेखनीय है कि भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के ध्रुवीय उपग्रह प्रक्षेपण यान (पीएसएलवी) के 17 में से 16 अभियान सफ़ल रहे हैं. इस यान ने 1994 से अब तक 25 पेलोड सहित कुल 44 उपग्रहों का प्रक्षेपण किया है. बुधवार को इस प्रक्षेपण यान ने कुल 1404 किलोग्राम वजन के तीन उपग्रहों को अपने 18वें मिशन में पृथ्वी से 822 किलोमीटर दूर ध्रुवीय सूर्य समकालिक कक्षा में स्थापित किया. ध्रुवीय उपग्रह प्रक्षेपण वाहन पीएसएलवी सी 15 ने 12 जुलाई को सुदूर संवेदी उपग्रह काटरेसैट 2 बी को सफ़लतापूर्वक कक्षा में पहुंचाया था.
उपग्रह रिसोर्ससैट-2 : अत्याधुनिक सुदूर संवेदी (रिमोट सेंसिंग) उपग्रह रिसोर्ससैट-2 इसरो द्वारा निर्मित आधुनिक दूरस्थ (सुदूर) संवेदी अथवा रिमोट सेंसिंग उपग्रह है. इसका वजन 1206 किलोग्राम है. यह प्राकृतिक संसाधनों के अध्ययन और उनके प्रबंधन को सुगम बनायेगा. इस संबंधित आंकड़े और तसवीरों को लगातार पांच वर्षो तक भेजता रहेगा. देश का दूरसंवेदी उपग्रह, रिसोर्ससैट-2 मूल रूप से इस वर्ष जनवरी में लांच किया जाने वाला था, लेकिन पहले उसकी लांचिंग फ़रवरी के लिए और उसके बाद अप्रैल के लिए टाली गयी थी. दूरसंवेदी उपग्रह उपयोगी चित्रों व अन्य आकड़ों को पृथ्वी पर भेजते हैं.
दूर संवेदी उपग्रहों के क्षेत्र में भारत की क्षमता दुनिया में सबसे ज्यादा है. बेहतर गुणवत्ता और सटीक जानकारियां उपलब्ध कराने से भारत वैश्विक बाजार में इस क्षेत्र में बड़ा सूचना प्रदाता बन गया है. वर्तमान में भारत के पास इस प्रकार के दूरसंवेदी उपग्रहों का दुनिया में सबसे बड़ा समूह हो गया है, जो अलग-अलग रिजोल्यूशंस में अंतरिक्ष की तसवीरें उपलब्ध कराते हैं. ये रिजल्यूशंस एक मीटर से लेकर 500 मीटर तक के होते हैं. भारत वैश्विक बाजार में इस तरह के आंकड़ों का एक बड़ा विक्रेता हो गया है. इसके अलावा रिसोर्ससैट-2 में कुछ ऐसे उपकरण भी लगाये गये हैं, जो जहाजों पर निगरानी रख सकेंगे और उनके स्थान, गति और अन्य चीजों के बारे में जानकारी जुटा सकेंगे.
रिसोर्ससैट-2 भारत की रिमोट सेंसिंग सीरिज का ताजा उपग्रह है, इसे आइआरएस पी6 के नाम से भी जाना जाता है. इसका कार्य जमीन पर मौजूद जल संपदा की निगरानी करना, जंगलों और तटीय इलाकों के बारे में आकड़े जुटाना होता है. यह उपग्रह समुद्र के बारे में भी नयी जानकारियां भी जुटा सकता है. रिसोर्ससैट वर्ष 2003 में छोड़े गये रिसोर्ससैट-1 का स्थान लेगा. इसरो के अनुसार रिसोर्ससैट-2 का जीवनकाल पांच वर्ष होगा. यह कनाडा से अतिरिक्त पेलोड को लेकर भी गया है. जो प्रतिदिन 14 घूर्णन कर पोत निगरानी संबंधी आंकड़े मुहैया करायेगा. रिसोर्ससैट-2 में एक ही प्लेटफ़ार्म पर तीन हाई रिजॉल्यूशन कैमरे लगे हैं. ये कैमरे ऐसी तसवीरें लेंगे जो फ़सलों की स्थिति के आकलन का काम करेंगे. साथ ही, वन कटाई की स्थिति, झीलों और जलाशयों के जल स्तर और हिमालय में पिघलने वाली बर्फ़ पर नजर रखेंगे.
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