Saturday, July 2, 2011

क्या हिन्दू आतंकवाद नाम की कोई चीज़ है.. (Is Hindu AATANKWAD working in INDIA..?)

पिछले कुछ समय से "हिन्दू आतंकवाद" की चिल्ल-पों मचाकर तथाकथित "सेकुलरों & माइनो" ने हिन्दू धर्म को खूब बदनाम किया है...?? साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर की गिरफ्तारी के बाद "हिन्दू आतंकवाद" या हिन्दुओं को आतंकी घोषित करने वालों की तो मानो चांदी हो गयी है.
हिन्दू दर्शन के हर व्यवहार में आध्यात्म कूट-कूट कर निहित है. अगर आप भारत के गांवों में घूमें तो आप जितने भी गांवों में जाएंगे वहां आपको आपके रूप में ही स्वीकार कर िलया जाएगा. आप किस रंग के हैं, कौन सी भाषा बोलते हैं या फिर आपका पहनावा उनके लिए किसी प्रकार की बाधा नहीं बनता. आप ईसाई हैं, मुसलमान हैं, जैन हैं, अरब हैं, फ्रेच हैं या चीनी हैं, वे आपको उसी रूप में स्वीकार कर लेते हैं. आपके ऊपर इस बात का कोई दबाव नहीं होता कि आप अपनी पहचान बदलें. यह भारत ही है जहां मुसलमान सिर्फ मुसलमान होता है न कि भारतीय मुसलमान या फिर ईसाई सिर्फ ईसाई होता है न कि भारतीय ईसाई. जैसा कि दुनिया के दूसरे देशों में होता है कि यह सऊदी मुसलमान है या फिर यह फ्रेंच ईसाई है. यह भारत ही है जहां हिन्दुओं में आम धारणा है कि परमात्मा विभिन्न रूपों में विभिन्न नाम धारण करके अपने आप को अभिव्यक्त करता है. सभी धर्मग्रन्थ उसी एक सत्य को उद्घाटित करते हैं. अपने ३५०० साल के इतिहास में हिन्दू कभी आक्रमणकारी नहीं रहे हैं, न ही उन्होंने अपनी मान्यताओं को दूसरे पर थोपने की कभी कोशिश की है.
जब बाबरी मस्जिद को गिराया गया तो वो सिर्फ एक हिन्दुओं के धैर्य की परीक्षा थी. गौर करने लायक बात ये की "बाबरी विध्वंस" में एक भी मुस्लमान की हत्या नहीं हुई.लेकिन उसके बाद मुंबई में जो बम काण्ड हुए, उसमे सैंकड़ो हिन्दू मरे गए उसके बारे में आज तक कोई "सेकुलर या कांग्रेसी" बात नहीं करता है. ये तथाकथित "सेकुलर और कठमुल्ले" बार बार बाबरी मस्जिद के घाव को कुरेदकर उसमे निकलने वाले खून को चाटते रहते है. अनपढ़ मुसलमानों को हमेशा से बरगलाते रहते है. उन्हें खौफ दिखाकर या उनको बरगलाकर उनमे उन्माद भर देते है.. क्यूंकि "लाशो पे राजनीती इनका पहली बार अरब के आक्रमणकारियों के भारत पर हमले के साथ ही हिन्दू लगातार मुस्लिम आक्रमणकारियों के निशाने पर रहे हैं. १३९९ में तैमूर ने एक ही दिन में एक लाख हिन्दुओं का कत्ल कर दिया था. इसी तरह पुर्तगाली मिशनरियों ने गोआ के बहुत सारे ब्राह्मणों को सलीब पर टांग दिया था. तब से हिन्दुओं पर धार्मिक आधार पर जो हमला शुरू हुआ वह आज तक जारी है. कश्मीर में १९०० में दस लाख हिन्दू थे. आज दस हजार भी नहीं बचे है. बाकी हिन्दुओं ने कश्मीर क्यों छोड़ दिया? किन लोगों ने उन्हें कश्मीर छोड़ने पर मजबूर किया? अभी हाल की घटना है कि अपने पवित्रम तीर्थ तक पहुंचने के लिए हिन्दुओं को थोड़ी सी जमीन के लिए लंबे समय तक आंदोलन चलाना पड़ा, जबकि इसी देश में मुसलमानों को हज के नाम पर भारी सब्सिडी दी जाती है. एक ८४ साल के वृद्ध संन्यासी की हत्या कर दी जाती है जिसपर tathakathit Bilawoo भारतीय मीडिया कुछ नहीं बोलता लेकिन उसकी प्रतिक्रिया में जो कुछ हुआ उसको शर्मनाक घोषित करने लगता है.  

फ्रांस स्थित (Review of India)के मुख्य संपादक फ्रैंको'स गोतिये के शब्दों में:-
कई बार मुझे लगता है कि यह तो अति हो रही है. दशकों, शताब्दियों तक लगातार मार खाते और बूचड़खाने की तरह मरते-कटते हिन्दू समाज को लतियाने की परंपरा सी कायम हो गयी है. क्या किसी धर्म विशेष, जो कि इतना सहिष्णु और आध्यात्मिक रहा हो इतना दबाया या सताया जा सकता है? हाल की घटनाएं इस बात की गवाह है कि इसी हिन्दू समाज से एक वर्ग ऐसा पैदा हो रहा है जो हमलावरों को उन्हीं की भाषा में जवाब दे रहा है. गुजरात, कंधमाल, मंगलौर और मालेगांव सब जगह यह दिखाई पड़ रहा है. हो सकता है आनेवाले वक्त में इस सूची में कोई नाम और जुड़ जाए. इसमें महत्वपूर्ण बात यह है कि अगर व्यापक हिन्दू समाज ने अपने स्तर पर आतंकी घटनाओं और हमलों के जवाब देने शुरू कर दिये तो क्या होगा? आज दुनिया में करीब एक अरब हिन्दू हैं. यानी, हर छठा इंसान हिन्दू धर्म को माननेवाला है. फिर भी सबसे शांत और संयत समाज अगर आपको कहीं दिखाई देता है तो वह हिन्दू समाज ही है. ऐसे हिन्दू समाज को आतंकवादी ठहराकर हम क्या हासिल करना चाहते हैं? क्या आतंकवादी शब्द भी हिन्दू समाज के साथ सही बैठता है? मेरे विचार में यह अतिवाद है.

@हताश इण्डिया अंगेस्ट करप्शन वालों .....

जनता पिछले साठ सालों से भ्रष्टाचार के विरोध में हो रहे आन्दोलनों को देख कर वास्तव में ऊब चुकी है इसीलिए अब तो किसी को विश्वास नहीं होता कि भ्रष्टाचार समाप्त भी हो सकता है | अब सवाल उठता है कि क्यों नहीं हुआ और क्यों नहीं हो सकता , जवाब मैं बताता हूँ; उसका कारण है "इस देश में लागू व्यवस्था" | जिस तरह किसी कंटीले वृक्ष की केवल शाखाएं काट कर रास्ते को कंटक विहीन नहीं कर सकते | उसी तरह जब तक भारत की व्यवस्था वही रहेगी जो अंग्रेजों ने अपने लिए लूटने को बनायीं और लागू करी थी तो तब तक यहाँ भ्रष्टाचार ख़त्म नहीं हो सकता | और आज तक जितने भी आन्दोलन हुए हैं अधिकांस केवल पत्ते छांटने तक सीमित रहे, यहाँ तक कि आजादी का आन्दोलन भी वही साबित हो गया; क्योंकि गांधीजी की बातें मानी ही नहीं गयी |
ये अन्ना हजारे वाला आन्दोलन भी उन सब आन्दोलनों की तरह ही था | देश के अधिकतर सुविधा भोगी लोग ऐसे ही आन्दोलनों को मर्थन देकर फिर हार कर हताश होते रहते हैं | ऐसे लोगों में आज के पत्रकार टाईप के लोग भी होते हैं | क्योंकि ये लोग सुविधा भोगी होते हैं परिश्रम और जुझारूपन,सहनशीलता,विश्वास तो इनमे होता नहीं |
"ऐसे ही लोगों" को स्वामी रामदेव जी का 'पूर्ण व्यवस्था परिवर्तन के लिए क्रांतिकारियों जैसा जज्बा पहले स्वयं स्वस्थ होओ फिर देश और समाज के लिए उपयोगी बनो वाला विचार समझ नहीं आ रहा' ऐसे ही लोग भारत स्वाभिमान के आन्दोलन पर अविश्वास कर रहे हैं | उन्हें नहीं पता कि इस आन्दोलन क़ी असली भावना क्या है वो समझना भी नहीं चाहते | भारत स्वाभिमान से जुड़े लोग वो हैं जो अपना लाभ-हानी नहीं देखते अपितु क्रांतिकारियों क़ी तरह अपना लुटाने को लालायित हैं इसीसे सभी भ्रष्ट चिंतित हैं और विश्वास नहीं कर पा रहे कि इस भ्रष्ट भारत में ऐसा भी हो सकता है | वो लोग अन्ना को लेकर मैदान में आ डटे जिससे अधिकतर लोग हताश हो कर बैठ जाएँ पर ऐसा हुआ नहीं क्योंकि अन्ना के साथ भी अधिकांस समर्थक भारत स्वाभिमान के ही कार्यकर्त्ता थे | (बेशक उन्हें मीडिया ने नजरंदाज किया ) , इसीसे अन्ना के समर्थक निराश होकर बैठ सकते हैं पर भारत स्वाभिमान के कार्यकर्त्ता अब तो सम्पूर्ण व्यवस्था परिवर्तन के लिए कमर कसे हुए हैं उसीका पहला सफल सत्याग्रह होने जा रहा है दिल्ली के रामलीला मैदान पर | सरकार घुटने टेक-टेक कर प्रार्थना कर रही है स्वामीजी से, कि स्थगित कर दीजिये पर स्वामीजी झुकने वाले नहीं हैं | कहने का मतलब ये है कि अब देश जाग गया है हताश होने की आवश्यकता नहीं | उस कंटीले वृक्ष की जड़ पर और जोर से प्रहार करने की आवश्यकता है जो अंग्रेज लगा गए थे |

ये तो अँगरेज़ के पार्टी है जैसा की महात्मा गाँधी ने कहा था -इस कांग्रेस पार्टी को खत्म कर दो वर्ना वो दिन दूर नहीं जब ये देश फिर से गुलाम हो जायेगा

हर कोई जिसे देखो कांग्रेस के पीछे पड़ा है। आन्दोलन भ्रष्टाचार के लिए है; पर कांग्रेस का नाम नहीं लिया,आन्दोलन अव्यवस्थाओं के लिए है पर कांग्रेस का नाम नहीं लिया; काले धन को वापस लाने को चिल्ला रहे हैं पर कांग्रेस का नाम नहीं लिया, बड़े चालाक हैं ! बिना नाम लिए ही अभियुक्त को बेनकाब कर दिया।
कांग्रेस को इतना मूर्ख समझ कैसे लिया ? उसे नहीं पता कि भाषा में प्रयायवाची या इंगितार्थक शब्द भी होते हैं। जैसे; दशानन कहो या दशग्रीव कहो आशय रावण ही होता है वैसे ही भ्रष्ट कहो,भ्रष्टाचार कहो या भ्रष्टाचारी कहो मतलब (८०प्रतिशत) कांग्रेस ही होगा।
इतनी मेहनत सेउन्होंनेअपना एक मुकाम बनाया है। इस देश की सबसे बड़ी राजनीतिक पार्टी है। सबसे बड़ी ही नहीं;सबसे पुरानी भी, अंग्रेजों की बनायी पार्टी है। किस तरह से एक आम(बेचारा,जो स्वयं मूर्ख है) आदमी से लेकर अपने को महान बुद्धिमान समझने वाले को मूर्ख बना कर रखा जा सकता है, इसमें महारत ! केवल इसे ही हासिल है। गुलाम होते हुए भी ऐसा लगता ही नहीं कि हम गुलाम हैं।
कितने महान हैंये कांग्रेसीअपने जनक (अंग्रेजों) से भी मीलों आगे निकल गए। उनके समय में एक विदेशी कम्पनी के देश लूटने से विद्रोह हो गया था, क्योंकि लोग समझ गए थे कि हम लुट रहे हैं। इनके समय में हजारों विदेशी कम्पनियां देश को लूट रही हैं मजाल है जो किसी की समझ में जाये। इन्होने देश के सामने उसे अपनी योग्यता से उपलब्धियों में शुमार करवा लिया।
इतनी कुशलता से अंग्रेज भी राज नहीं कर सके थे। एक और कुशलता जो इन्होने अंग्रेजों से सीखी थी फूट डालने की। उनका तो पता लग जाता है इसलिए उन पर लोग थूकते हैं। इनका तो देश की जनता को आपस में लड़वाने का तरीका इतना उन्नत है कि पिछले सवा सौ साल से कोई समझ ही नहीं पाया।

और तुम इसे नंगा करने पर तुले हो........ क्यों ?
इनके नंगा होने में जरा मुश्किल होगी...... महाराज, क्योंकि इन्होने कपड़ों पर कपड़ों की परतें अपने शारीर पर सिल रखी हैं। पहले तो उतरेंगी नहीं;अगर फाड़ कर उतार भी ली तो दूसरी परत जाएगी। कितनी परतें फाड़ोगे ? पिछले सवा सौ साल में जाने कितनी परतें इन्होने ओढ़ी हुयी हैं। इन परतों के कारण ही आज तक कोई भी इन्हें समझ ही नहीं पाया।

ये अंग्रजों के पास जाते थे तो उनके जैसे कपड़ों की परत ऊपर कर लेते थे, देशभक्तों के पास जाते थे तो उनके जैसे हो जाते थे, ऐसे ही आजादी के बाद; जिसके कारण कश्मीर और नक्सलवाद, आतंकवाद,माओवाद जैसी कई समस्याएं बेशक पनपी, पर ये कुशलतापूर्वक उन्हें भी अपने हित के लिए ही साध लेते ;हैं कपड़े बदल कर।
इनकी महानता इसीसे पता चलती है कि आज अधिकांस राजनीतिक पार्टियां इन्हीं के नक्शेकदम पर चल कर पहले रोटी खाना सीखी; अब अपने कार्यकर्ताओं के साथ अय्याशी कर रहीं हैं।
इनकी चतुरता देखो कि देश के टुकड़े इन्होने करवाए; पर अब ये जनता को दूसरी पार्टियों से देश टूटने का डर दिखाने में कामयाब हो जाते हैं।
इसको कैसे नंगा करोगे…….. महाराज ? ये स्वयं सिद्ध हैं। अपने आप तो कई बार नंगे हो चुके हैं; पर किसी के नंगा करने पर ये किन्नरों की तरह अपना नंगापन दिखा देते हैं। इसलिए भी लोग इनसे बच कर रहते हैं। डरते भी हैं शर्म भी करते हैं। इनका क्या है ये धर्म को मानते हैं समाज-संस्कृति को, सभ्यता-इतिहास को मानते हैं देश को, इनके लिए देश से बड़ी इनकी पार्टी है इनके अन्नदाता हैं। ये सब इन्होने विदेशियों से ही सीखा है; ये उनकी तरह नंगेपन के हिमायती हैं इनकी तो लड़कियां तक पिंक चड्डीयां बांटती फिरती रही हैं। आज अगर ये नंगे हो गए तो इनके उन खानदानियों का क्या होगा जो अब नहीं हैं वो सब भी एक एक कर अपनी असलियत अपने आप उघाड़ते जायेंगेकौन चाहेगा कि उनके पूर्वजों की गद्दारी जनता के सामने उजागर होऔर इनकी तथा इनके पूर्वजों की गद्दारी तो इतनी बड़ी है कि जब देश के लोगों को पता लगेगा तो कहीं उनपर ...... लगेंसारा इतिहास ही गड़बड़ा जायेगा