Saturday, May 5, 2012

दुनिया का हर इंसान सुख की तलाश में भटक रहा है | इनसान की हर तदबीर के पीछे सदा कायम रहने वाले सुख और आनन्द की इच्छा होती है | संसार के सब वैज्ञानिक, तर्कशास्त्री, महापुरुष, नीतिवान, समाज-सुधारक अदि, अपने-अपने ढंग और काबलियत के अनुसार मनुष्य को दुखों से छुटकारा तथा सुख प्राप्त करने के उपाय समझाते हैं | इनसान की धन-दौलत, इल्म-हुनर, ताकत, मान-बडाई आदि प्राप्त करने की इच्छा के पीछे एकमात्र उद्देश्य, अधिक से अधिक सदा कायम रहनेवाला सुख प्राप्त करना होता है |

लेकिन हाय रे इनसान ! तेरा सबसे बड़ा दुर्भाग्य ये है कि तूने अपनी औकात का दायरा बड़ा ही सीमित कर दिया है | तेरा दायरा सिर्फ इस मल-मूत्र की देह, मन-इन्द्रियों का अस्तित्व और द्रश्यमान मायामय जगत तक सीमित होकर रह गया है | तू इस संसार को सच्चा और पूर्ण समझकर इसके शक्लों और पदार्थों और भोगों में से सुख की तलाश करता है | जीव सोचता है:

१) अधिक से अधिक तथा सुन्दर से सुंदर वस्त्र, लजीजदार और चटपटा भोजन, आलीशान घर मिल जाए, तो सुख मिल जाएगा |

२) मनपसंद जीवन साथी मिल जाए, आज्ञाकारी संतान मिल जाए, तो वह सुखी हो जाएगा | प्रेम से सेवा-सहायता करने वाले मित्र, सगे-संबंधी मिल जाए, तो सुख मिल जाएगा |

३) अधिक से अधिक धन-दौलत, ऊँची से ऊँची पदवी, अधिक से अधिक ताकत, शक्ति, हुकूमत, मान सम्मान मिल जाए, तो सुख मिल जाएगा |

४) साहित्य, कला, संगीत, नाट्य-कला, नृत्य आदि अधिक से अधिक अच्छे मनोरंजन के साधनों में प्रवीणता और उनमें सम्मिलित होने के मौके मिल जाएँ, तो सुख मिल जाएगा |

५) अपने सगे-सम्बन्धियों के रोगों के इलाज़ का उत्तम प्रबंध हो जाए, उनके बेरोजगारी और अन्याय के मामले सुलझ जाएँ, तो जीवन सुख से भर जाएगा |

मनुष्य यह चाहता है कि उसे अधिक से अधिक शारीरिक सुख तथा मानसिक विलास प्राप्त हो जाएँ तो परम आनंद की अनुभूति हो जायेगी | गुरु अर्जुन देव मनुष्य की इस सोच पर तरस खाते हुए कहते हैं कि तेरा वास्तविक अस्तित्व शरीर अथवा मन नहीं है | तेरा वास्तविक स्वरुप तेरी आत्मा है | जब तक तेरी नज़र इस स्थूल द्रश्यमान संसार, इसके शारीरिक सुखों तथा मानसिक विलास तक सीमित है, न तो तुझे सच्चे ज्ञान हो सकता है और न ही उसकी प्राप्ति के साधन तथा मार्ग की सूझ हो सकती है | गुरु साहिब समझाते हैं कि सच्चा धन, सच्चा सुख, सच्चा सम्मान राम-नाम द्वारा प्राप्त होता है | सबसे बड़ा खजाना हरि-नाम है | नाम द्वारा जीव धुर-दरगाह में सम्मानित होता है और परम आनन्द का अधिकारी बन जाता है |

मनु परबोधहु हरि कै नाइ ॥
दह दिसि धावत आवै ठाइ ॥
ता कउ बिघनु न लागै कोइ ॥
जा कै रिदै बसै हरि सोइ ॥
कलि ताती ठांढा हरि नाउ ॥
सिमरि सिमरि सदा सुख पाउ ॥ (SGGS 288)


Enlighten your mind with the Name of the Lord. Having wandered around in the ten directions, it comes to its place of rest. No obstacle stands in the way of one whose heart is filled with the Lord. The Dark Age of Kali Yuga is so hot; the Lord's Name is soothing and cool. Remember, remember it in meditation, and obtain everlasting peace.

परम और दायमी सुख मन के भटकाव में नहीं, मन के सिमटाव और ठहराव में है | मन राम-नाम में ज़ज्ब होने से निश्चल और शांत होता है | कलियुग में तृष्णा की अग्नि प्रचंड है | यह अग्नि केवल राम-नाम से ही शांत होती है |

प्रभ की द्रिसटि महा सुखु होइ ॥
हरि रसु पावै बिरला कोइ ॥
जिन चाखिआ से जन त्रिपताने ॥
पूरन पुरख नही डोलाने ॥ (SGGS 289)

By God's Gracious Glance, there is great peace. Rare are those who obtain the nectar of the Lord’s essence. Those who taste it are satisfied. They are fulfilled and realized beings - they do not waver.

प्रभु की अपार दया से राम-नाम के साथ लिव लग जाती है और मन की त्रिस्नायें शांत हो जाती हैं | मन निश्चल हो जाता है तथा सच्चे सुख की प्राप्ति हो जाती है |

सिमरि सिमरि नामु बारं बार ॥
नानक जीअ का इहै अधार ॥२॥ (SGGS 295)

Meditate, meditate in remembrance on the Naam, again and again. O Nanak, it is the Support of the soul.

गुरु साहिब की पूरी विचारधारा 'नानक जीअ का इहै आधार' विचार पर केन्द्रित है | मायामय पदार्थ शरीर का भोजन है | राग-रंग, तमाशे, कला-साहित्य, वाद-विवाद आदि मन का भोजन है | आत्मा का भोजन परमात्मा का नाम है |

नाम रंगि सरब सुखु होइ ॥
बडभागी किसै परापति होइ ॥
करन करावन आपे आपि ॥
सदा सदा नानक हरि जापि ॥५॥

Through the love of the Naam, all peace is obtained. Only a few obtain this, by great good fortune. He Himself is Himself the Cause of causes. Forever and ever, O Nanak, chant the Lord's Name. ||5||

संसार के सभी संत-महात्माओं का रूहानी पैगाम का यही निचोड़ है कि भौतिक सुख तथा मानसिक विलास आत्मा का भोजन नहीं है | जिस तरह मन तथा इन्द्रियों को अपने भोजन की ज़रुरत है, उसी प्रकार आत्मा को राम-नाम रूपी भोजन की ज़रुरत है | माया शांति का साधन नहीं, बल्कि अशांति का कारण है | सुख इच्छाओं की पूर्ति में नहीं, इच्छाओं की मुक्ति में है | सच्चा सुख नाम से प्राप्त होता है |

सरब बैकुंठ मुकति मोख पाए ॥
एक निमख हरि के गुन गाए ॥
अनिक राज भोग बडिआई ॥
हरि के नाम की कथा मनि भाई ॥
बहु भोजन कापर संगीत ॥
रसना जपती हरि हरि नीत ॥
भली सु करनी सोभा धनवंत ॥
हिरदै बसे पूरन गुर मंत ॥
साधसंगि प्रभ देहु निवास ॥
सरब सूख नानक परगास ॥८॥२०॥


Everything is obtained: the heavens, liberation and deliverance, if one sings the Lord's Glories, even for an instant.
So many realms of power, pleasures and great glories, come to one whose mind is pleased with the Sermon of the Lord's Name. Abundant foods, clothes and music come to one whose tongue continually chants the Lord's Name, Har, Har. His actions are good, he is glorious and wealthy; the Mantra of the Perfect Guru dwells within his heart. O God, grant me a home in the Company of the Holy. All pleasures, O Nanak, are so revealed.

सामान्य तो लोग परमात्मा की भक्ति करते नहीं हैं, यदि करते हैं तो मन में बैकुंठ या मुक्ति की इच्छा रख कर करते हैं | कई लोगों ने स्वर्गों और बैकुंठों की प्राप्ति को ही अंतिम लक्ष्य माना है | गुरु साहिब समझाते हैं: नाम से मिलने वाला आनन्द तो स्वादिस्ट भोजन, सुंदर गहने-कपडे, कला-संगीत, राजपाट ही नहीं, बल्कि स्वर्गों और बैकुंठों से भी ऊँचा और पवित्र है |

Sunday, April 29, 2012


जितने भी लोग महाभारत को काल्पनिक बताते हैं.... उनके मुंह पर पर एक जोरदार तमाचा है आज का यह पोस्ट...!

महाभारत के बाद से आधुनिक काल तक के सभी राजाओं का विवरण क्रमवार तरीके से नीचे प्रस्तुत किया जा रहा है...!

आपको यह जानकर एक बहुत ही आश्चर्य मिश्रित ख़ुशी होगी कि महाभारत युद्ध के पश्चात् राजा युधिष्ठिर की 30 पीढ़ियों ने 1770 वर्ष 11 माह 10 दिन तक राज्य किया था..... जिसका पूरा विवरण इस प्रकार है :
... क्र................... शासक का नाम.......... वर्ष....माह.. दिन

1. राजा युधिष्ठिर (Raja Yudhisthir)..... 36.... 08.... 25
2 राजा परीक्षित (Raja Parikshit)........ 60.... 00..... 00
3 राजा जनमेजय (Raja Janmejay).... 84.... 07...... 23
4 अश्वमेध (Ashwamedh )................. 82.....08..... 22
5 द्वैतीयरम (Dwateeyram )............... 88.... 02......08
6 क्षत्रमाल (Kshatramal)................... 81.... 11..... 27
7 चित्ररथ (Chitrarath)...................... 75......03.....18
8 दुष्टशैल्य (Dushtashailya)............... 75.....10.......24
9 राजा उग्रसेन (Raja Ugrasain)......... 78.....07.......21
10 राजा शूरसेन (Raja Shoorsain).......78....07........21
11 भुवनपति (Bhuwanpati)................69....05.......05
12 रणजीत (Ranjeet).........................65....10......04
13 श्रक्षक (Shrakshak).......................64.....07......04
14 सुखदेव (Sukhdev)........................62....00.......24
15 नरहरिदेव (Narharidev).................51.....10.......02
16 शुचिरथ (Suchirath).....................42......11.......02
17 शूरसेन द्वितीय (Shoorsain II)........58.....10.......08
18 पर्वतसेन (Parvatsain )..................55.....08.......10
19 मेधावी (Medhawi)........................52.....10......10
20 सोनचीर (Soncheer).....................50.....08.......21
21 भीमदेव (Bheemdev)....................47......09.......20
22 नरहिरदेव द्वितीय (Nraharidev II)...45.....11.......23
23 पूरनमाल (Pooranmal)..................44.....08.......07
24 कर्दवी (Kardavi)...........................44.....10........08
25 अलामामिक (Alamamik)...............50....11........08
26 उदयपाल (Udaipal).......................38....09........00
27 दुवानमल (Duwanmal)..................40....10.......26
28 दामात (Damaat)..........................32....00.......00
29 भीमपाल (Bheempal)...................58....05........08
30 क्षेमक (Kshemak)........................48....11........21



इसके बाद ....क्षेमक के प्रधानमन्त्री विश्व ने क्षेमक का वध करके राज्य को अपने अधिकार में कर लिया और उसकी 14 पीढ़ियों ने 500 वर्ष 3 माह 17 दिन तक राज्य किया जिसका विरवरण नीचे दिया जा रहा है।

क्र. शासक का नाम वर्ष माह दिन

1 विश्व (Vishwa)......................... 17 3 29
2 पुरसेनी (Purseni)..................... 42 8 21
3 वीरसेनी (Veerseni).................. 52 10 07
4 अंगशायी (Anangshayi)........... 47 08 23
5 हरिजित (Harijit).................... 35 09 17
6 परमसेनी (Paramseni)............. 44 02 23
7 सुखपाताल (Sukhpatal)......... 30 02 21
8 काद्रुत (Kadrut)................... 42 09 24
9 सज्ज (Sajj)........................ 32 02 14
10 आम्रचूड़ (Amarchud)......... 27 03 16
11 अमिपाल (Amipal) .............22 11 25
12 दशरथ (Dashrath)............... 25 04 12
13 वीरसाल (Veersaal)...............31 08 11
14 वीरसालसेन (Veersaalsen).......47 0 14

इसके उपरांत...राजा वीरसालसेन के प्रधानमन्त्री वीरमाह ने वीरसालसेन का वध करके राज्य को अपने अधिकार में कर लिया और उसकी 16 पीढ़ियों ने 445 वर्ष 5 माह 3 दिन तक राज्य किया जिसका विरवरण नीचे दिया जा रहा है।

क्र. शासक का नाम वर्ष माह दिन

1 राजा वीरमाह (Raja Veermaha)......... 35 10 8
2 अजितसिंह (Ajitsingh)...................... 27 7 19
3 सर्वदत्त (Sarvadatta)..........................28 3 10
4 भुवनपति (Bhuwanpati)...................15 4 10
5 वीरसेन (Veersen)............................21 2 13
6 महिपाल (Mahipal)............................40 8 7
7 शत्रुशाल (Shatrushaal).....................26 4 3
8 संघराज (Sanghraj)........................17 2 10
9 तेजपाल (Tejpal).........................28 11 10
10 मानिकचंद (Manikchand)............37 7 21
11 कामसेनी (Kamseni)..................42 5 10
12 शत्रुमर्दन (Shatrumardan)..........8 11 13
13 जीवनलोक (Jeevanlok).............28 9 17
14 हरिराव (Harirao)......................26 10 29
15 वीरसेन द्वितीय (Veersen II)........35 2 20
16 आदित्यकेतु (Adityaketu)..........23 11 13

ततपश्चात् प्रयाग के राजा धनधर ने आदित्यकेतु का वध करके उसके राज्य को अपने अधिकार में कर लिया और उसकी 9 पीढ़ी ने 374 वर्ष 11 माह 26 दिन तक राज्य किया जिसका विवरण इस प्रकार है ..

क्र. शासक का नाम वर्ष माह दिन

1 राजा धनधर (Raja Dhandhar)...........23 11 13
2 महर्षि (Maharshi)...............................41 2 29
3 संरछि (Sanrachhi)............................50 10 19
4 महायुध (Mahayudha).........................30 3 8
5 दुर्नाथ (Durnath)...............................28 5 25
6 जीवनराज (Jeevanraj).......................45 2 5
7 रुद्रसेन (Rudrasen)..........................47 4 28
8 आरिलक (Aarilak)..........................52 10 8
9 राजपाल (Rajpal)..............................36 0 0

उसके बाद ...सामन्त महानपाल ने राजपाल का वध करके 14 वर्ष तक राज्य किया। अवन्तिका (वर्तमान उज्जैन) के विक्रमादित्य ने महानपाल का वध करके 93 वर्ष तक राज्य किया। विक्रमादित्य का वध समुद्रपाल ने किया और उसकी 16 पीढ़ियों ने 372 वर्ष 4 माह 27 दिन तक राज्य किया !
जिसका विवरण नीचे दिया जा रहा है।

क्र. शासक का नाम वर्ष माह दिन

1 समुद्रपाल (Samudrapal).............54 2 20
2 चन्द्रपाल (Chandrapal)................36 5 4
3 सहपाल (Sahaypal)...................11 4 11
4 देवपाल (Devpal).....................27 1 28
5 नरसिंहपाल (Narsighpal).........18 0 20
6 सामपाल (Sampal)...............27 1 17
7 रघुपाल (Raghupal)...........22 3 25
8 गोविन्दपाल (Govindpal)........27 1 17
9 अमृतपाल (Amratpal).........36 10 13
10 बालिपाल (Balipal).........12 5 27
11 महिपाल (Mahipal)...........13 8 4
12 हरिपाल (Haripal)..........14 8 4
13 सीसपाल (Seespal).......11 10 13
14 मदनपाल (Madanpal)......17 10 19
15 कर्मपाल (Karmpal)........16 2 2
16 विक्रमपाल (Vikrampal).....24 11 13

टिप : कुछ ग्रंथों में सीसपाल के स्थान पर भीमपाल का उल्लेख मिलता है, सम्भव है कि उसके दो नाम रहे हों।

इसके उपरांत .....विक्रमपाल ने पश्चिम में स्थित राजा मालकचन्द बोहरा के राज्य पर आक्रमण कर दिया जिसमे मालकचन्द बोहरा की विजय हुई और विक्रमपाल मारा गया। मालकचन्द बोहरा की 10 पीढ़ियों ने 191 वर्ष 1 माह 16 दिन तक राज्य किया जिसका विवरण नीचे दिया जा रहा है।

क्र. शासक का नाम वर्ष माह दिन

1 मालकचन्द (Malukhchand) 54 2 10
2 विक्रमचन्द (Vikramchand) 12 7 12
3 मानकचन्द (Manakchand) 10 0 5
4 रामचन्द (Ramchand) 13 11 8
5 हरिचंद (Harichand) 14 9 24
6 कल्याणचन्द (Kalyanchand) 10 5 4
7 भीमचन्द (Bhimchand) 16 2 9
8 लोवचन्द (Lovchand) 26 3 22
9 गोविन्दचन्द (Govindchand) 31 7 12
10 रानी पद्मावती (Rani Padmavati) 1 0 0

रानी पद्मावती गोविन्दचन्द की पत्नी थीं। कोई सन्तान न होने के कारण पद्मावती ने हरिप्रेम वैरागी को सिंहासनारूढ़ किया जिसकी पीढ़ियों ने 50 वर्ष 0 माह 12 दिन तक राज्य किया !
जिसका विवरण नीचे दिया जा रहा है।

क्र. शासक का नाम वर्ष माह दिन

1 हरिप्रेम (Hariprem) 7 5 16
2 गोविन्दप्रेम (Govindprem) 20 2 8
3 गोपालप्रेम (Gopalprem) 15 7 28
4 महाबाहु (Mahabahu) 6 8 29

इसके बाद.......राजा महाबाहु ने सन्यास ले लिया । इस पर बंगाल के अधिसेन ने उसके राज्य पर आक्रमण कर अधिकार जमा लिया। अधिसेन की 12 पीढ़ियों ने 152 वर्ष 11 माह 2 दिन तक राज्य किया जिसका विवरण नीचे दिया जा रहा है।

क्र. शासक का नाम वर्ष माह दिन

1 अधिसेन (Adhisen) 18 5 21
2 विल्वसेन (Vilavalsen) 12 4 2
3 केशवसेन (Keshavsen) 15 7 12
4 माधवसेन (Madhavsen) 12 4 2
5 मयूरसेन (Mayursen) 20 11 27
6 भीमसेन (Bhimsen) 5 10 9
7 कल्याणसेन (Kalyansen) 4 8 21
8 हरिसेन (Harisen) 12 0 25
9 क्षेमसेन (Kshemsen) 8 11 15
10 नारायणसेन (Narayansen) 2 2 29
11 लक्ष्मीसेन (Lakshmisen) 26 10 0
12 दामोदरसेन (Damodarsen) 11 5 19

लेकिन जब ....दामोदरसेन ने उमराव दीपसिंह को प्रताड़ित किया तो दीपसिंह ने सेना की सहायता से दामोदरसेन का वध करके राज्य पर अधिकार कर लिया तथा उसकी 6 पीढ़ियों ने 107 वर्ष 6 माह 22 दिन तक राज्य किया जिसका विवरण नीचे दिया जा रहा है।

क्र. शासक का नाम वर्ष माह दिन

1 दीपसिंह (Deepsingh) 17 1 26
2 राजसिंह (Rajsingh) 14 5 0
3 रणसिंह (Ransingh) 9 8 11
4 नरसिंह (Narsingh) 45 0 15
5 हरिसिंह (Harisingh) 13 2 29
6 जीवनसिंह (Jeevansingh) 8 0 1

पृथ्वीराज चौहान ने जीवनसिंह पर आक्रमण करके तथा उसका वध करके राज्य पर अधिकार प्राप्त कर लिया। पृथ्वीराज चौहान की 5 पीढ़ियों ने 86 वर्ष 0 माह 20 दिन तक राज्य किया जिसका विवरण नीचे दिया जा रहा है।
क्र. शासक का नाम वर्ष माह दिन

1 पृथ्वीराज (Prathviraj) 12 2 19
2 अभयपाल (Abhayapal) 14 5 17
3 दुर्जनपाल (Durjanpal) 11 4 14
4 उदयपाल (Udayapal) 11 7 3
5 यशपाल (Yashpal) 36 4 27

विक्रम संवत 1249 (1193 AD) में मोहम्मद गोरी ने यशपाल पर आक्रमण कर उसे प्रयाग के कारागार में डाल दिया और उसके राज्य को अधिकार में ले लिया।

उपरोक्त जानकारी http://www.hindunet.org/ से साभार ली गई है जहाँ पर इस जानकारी का स्रोत स्वामी दयानन्द सरस्वती के सत्यार्थ प्रकाश ग्रंथ, चित्तौड़गढ़ राजस्थान से प्रकाशित पत्रिका हरिशचन्द्रिका और मोहनचन्द्रिका के विक्रम संवत1939 के अंक और कुछ अन्य संस्कृत ग्रंथों को बताया गया है।
साभार ....जी.के. अवधिया |

जय महाकाल....!!!

नोट : इस पोस्ट को मैंने नहीं लिखा है और मैंने इसे अपने एक मित्र की पोस्ट से कॉपी किया है क्योंकि मुझे ये अमूल्य जानकारी ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुँचाने की इच्छा हुई

क्या देश की जनता पागल है, या कांग्रेस जनता को पागल समझती है ?

एक नज़र किस प्रकार काँग्रेस खुद को मीडिया से बचाती है।
तारीख.........................मीडिया की खबरें
* 23 अप्रैल.................. मनु सिंघवी
* 24 अप्रैल...................4 काँग्रेस मंत्रियों का मंत्रिपद छोड़ने का ऐलान [जादू....सिंघवी गायब]
* 25 अप्रैल................... बोफोर्स का जिन्न बाहर आया
* 26 अप्रैल...................सचिन तेंदुलकर [फिर जादू.....बोफोर्स गायब]

सचिन को राज्यसभा में बुलाना एक सोची समझी रणनीति का हिस्सा है, क्योंकि वे डर गए हैं कि 'अन्ना जी' और 'रामदेव जी' का आन्दोलन 2014 में कांग्रेस का सफाया कर देगा। इसलिए अपनी डूबती नैया को बचाने के लिए इन नेताओं ने हमारे सचिन को मीठी मीठी बातों में फंसा दिया हैं।
जिस 'भारत रत्न' के वो हक़दार हैं उसे देने के लिए पहले उन्हें सांसद बना रहे है, बाद में कांग्रेस में शामिल करेंगे और 2014 का चुनाव जीतने में सचिन का साथ लेंगे।

सचिन को राज्य सभा का प्रस्ताव अस्वीकार कर देना चाहिए। आपका क्या विचार हैं मित्रों