Tuesday, August 2, 2011

ऐसे सिमट गया अखंड भारत…
प्राचीन भारत की सीमाएं विश्व में दूर-दूर तक फैली हुई थीं। भारत ने राजनैतिक आक्रमण तो कहीं नहीं किए परंतु सांस्कृतिक दिग्विजय अभियान के लिए भारतीय मनीषी विश्वभर में गए। शायद इसीलिए भारतीय संस्कृति और सभ्यता के चिन्ह विश्व के लगभग सभी देशों में मिलते हैं।

यह एक ऐतिहासिक सत्य है कि सांस्कृतिक और राजनैतिक रूप से भारत का विस्तार ईरान से लेकर बर्मा तक रहा था। भारत ने संभवत विश्व में सबसे अधिक सांस्कृतिक और राजनैतिक आक्रमणों का सामना किया है। इन आक्रमणों के बावजूद भारतीय संस्कृति आज भी मौजूद है। लेकिन इन आक्रमणों के कारण भारत की सीमाएं सिकुड़ती गईं। सीमाओं के इस संकुचन का संक्षिप्त इतिहास यहां प्रस्तुत है।

ईरान – ईरान में आर्य संस्कृति का उद्भव 2000 ई. पू. उस वक्त हुआ जब ब्लूचिस्तान के मार्ग से आर्य ईरान पहुंचे और अपनी सभ्यता व संस्कृति का प्रचार वहां किया। उन्हीं के नाम पर इस देश का नाम आर्याना पड़ा। 644 ई. में अरबों ने ईरान पर आक्रमण कर उसे जीत लिया।

कम्बोडिया – प्रथम शताब्दी में कौंडिन्य नामक एक ब्राह्मण ने हिन्दचीन में हिन्दू राज्य की स्थापना की।

वियतनाम – वियतनाम का पुराना नाम चम्पा था। दूसरी शताब्दी में स्थापित चम्पा भारतीय संस्कृति का प्रमुख केंद्र था। यहां के चम लोगों ने भारतीय धर्म, भाषा, सभ्यता ग्रहण की थी। 1825 में चम्पा के महान हिन्दू राज्य का अन्त हुआ।

मलेशिया – प्रथम शताब्दी में साहसी भारतीयों ने मलेशिया पहुंचकर वहां के निवासियों को भारतीय सभ्यता एवं संस्कृति से परिचित करवाया। कालान्तर में मलेशिया में शैव, वैष्णव तथा बौद्ध धर्म का प्रचलन हो गया। 1948 में अंग्रेजों की गुलामी से मुक्त हो यह सम्प्रभुता सम्पन्न राज्य बना।

इण्डोनेशिया – इण्डोनिशिया किसी समय में भारत का एक सम्पन्न राज्य था। आज इण्डोनेशिया में बाली द्वीप को छोड़कर शेष सभी द्वीपों पर मुसलमान बहुसंख्यक हैं। फिर भी हिन्दू देवी-देवताओं से यहां का जनमानस आज भी परंपराओं के माधयम से जुड़ा है।

फिलीपींस – फिलीपींस में किसी समय भारतीय संस्कृति का पूर्ण प्रभाव था पर 15वीं शताब्दी में मुसलमानों ने आक्रमण कर वहां आधिपत्य जमा लिया। आज भी फिलीपींस में कुछ हिन्दू रीति-रिवाज प्रचलित हैं।

अफगानिस्तान – अफगानिस्तान 350 इ.पू. तक भारत का एक अंग था। सातवीं शताब्दी में इस्लाम के आगमन के बाद अफगानिस्तान धीरे-धीरे राजनीतिक और बाद में सांस्कृतिक रूप से भारत से अलग हो गया।

नेपाल – विश्व का एक मात्र हिन्दू राज्य है, जिसका एकीकरण गोरखा राजा ने 1769 ई. में किया था। पूर्व में यह प्राय: भारतीय राज्यों का ही अंग रहा।

भूटान – प्राचीन काल में भूटान भद्र देश के नाम से जाना जाता था। 8 अगस्त 1949 में भारत-भूटान संधि हुई जिससे स्वतंत्र प्रभुता सम्पन्न भूटान की पहचान बनी।

तिब्बत – तिब्बत का उल्लेख हमारे ग्रन्थों में त्रिविष्टप के नाम से आता है। यहां बौद्ध धर्म का प्रचार चौथी शताब्दी में शुरू हुआ। तिब्बत प्राचीन भारत के सांस्कृतिक प्रभाव क्षेत्र में था। भारतीय शासकों की अदूरदर्शिता के कारण चीन ने 1957 में तिब्बत पर कब्जा कर लिया।

श्रीलंका – श्रीलंका का प्राचीन नाम ताम्रपर्णी था। श्रीलंका भारत का प्रमुख अंग था। 1505 में पुर्तगाली, 1606 में डच और 1795 में अंग्रेजों ने लंका पर अधिकार किया। 1935 ई. में अंग्रेजों ने लंका को भारत से अलग कर दिया।

म्यांमार (बर्मा) – अराकान की अनुश्रुतियों के अनुसार यहां का प्रथम राजा वाराणसी का एक राजकुमार था। 1852 में अंग्रेजों का बर्मा पर अधिकार हो गया। 1937 में भारत से इसे अलग कर दिया गया।

पाकिस्तान - 15 अगस्त, 1947 के पहले पाकिस्तान भारत का एक अंग था।

बांग्लादेश – बांग्लादेश भी 15 अगस्त 1947 के पहले भारत का अंग था। देश विभाजन के बाद पूर्वी पाकिस्तान के रूप में यह भारत से अलग हो गया। 1971 में यह पाकिस्तान से भी अलग हो गया।
जंग की तैयारी में जुटा पाक, सीमा पर तैनात करेगा हल्के ऐटम बम!

31 Jul 2011 11:20,
(31 Jul) नई दिल्ली. रणनीति तैयार करने वाली एक अमेरिकी संस्था ने आगाह किया है कि पारंपरिक सैन्य ऑपरेशन में भारत से पीछे पाकिस्तान कम क्षमता वाले परमाणु हथियार तैनात कर सकता है। कांग्रेसनल रिसर्च सर्विस (सीआरएस) की तरफ से जारी ताज़ा रिपोर्ट में इस बारे में चेतावनी दी गई है। रिपोर्ट के मुताबिक पाकिस्तान सरकार इन हथियारों के इस्तेमाल पर विचार कर सकती है।अपनी परमाणु क्षमता को बढ़ाने के अलावा पाकिस्तान उन हालातों की सूची में भी इजाफा कर सकता है, जिसमें वह अपने परमाणु हथियारों के इस्तेमाल को सही ठहरा सकता है। सीआरएस की रिपोर्ट के मुताबिक पाकिस्तान चाहता है कि भारत समेत पूरी दुनिया यह अंदाजा ही लगाती रहे कि वह कौन सी परिस्थिति होगी जब पाकिस्तान अपने ऐटमी हथियारों का इस्तेमाल करेगा। इनमें पाकिस्तान का एक देश के तौर पर नाकाम हो जाना, किसी बड़े शहर पर हमला होना या फिर सीमा पर हलचल जैसे हालात शामिल हैं। रिपोर्ट में इस बात की पुष्टि की गई है कि पाकिस्तान के पास 90-110 की संख्या में परमाणु हथियार हैं। जबकि भारत के पास 60-100 की संख्या में ये हथियार है। रिपोर्ट में इस बात पर भी चिंता जताई गई है कि पाकिस्तान में अस्थिर सरकार और चरमपंथी ताकतों के बढ़ते वर्चस्व के बीच परमाणु हथियारों की असुरक्षा बढ़ गई है।रिपोर्ट के मुताबिक कुछ महीने पहले पाकिस्तान ने दुनिया को तब अचंभित कर दिया था जब सेटेलाइट से ली गई तस्वीरों ने साफ कर दिया था कि पाकिस्तान ने खुशाब परमाणु संयंत्र का काम पूरा कर लिया है। इससे भारत में इस बात को लेकर चिंता बढ़ गई थी कि पाकिस्तान चीन की तर्ज पर कम क्षमता वाले रणनीतिक परमाणु हथियार तैयार कर रहा है, जिसका इस्तेमाल सीमा पर तनाव बढ़ने के समय भारत के खिलाफ किया जा सकता है। रिपोर्ट के मुताबिक ऐटमी हथियार बनाने के लिए प्लूटोनियम का उत्पादन कर रहा है। इसके अलावा खुशाब में ही पाकिस्तान दो नए वॉटर रिएक्टर बना रहा है, जो उसकी प्लूटोनियम बनाने की क्षमता को कई गुना बढ़ा देंगे। पाकिस्तान के परमाणु कार्यक्रम को चीन चोरी छिपे मदद कर रहा है। भारतीय अधिकारियों का मानना है कि पाकिस्तान ने जिस तेजी से खुशाब में काम पूरा किया है, उससे लगता है कि चीन ने उसे यूरेनियम की सप्लाई की है। 2009 तक खुशाब रिएक्टर वजूद में भी नहीं था। आपकी राय क्या पाकिस्तान पर प्रतिबंध लगाए जाने चाहिए? क्या भारत को ऐटमी हथियारों की होड़ में शामिल होना चाहिए? पाकिस्तान की इन हरकतों पर रोक लगाने के लिए अमेरिका जैसे देशों को आगे नहीं आना चाहिए? पर शायद ये ना हो क्योकी इस मे हमारी सरकार की लापरवाही ही है जो साफ़ तौर पर देखा जा सकता है की एक तरफ़ चीन भी तेयार है पर चिदरमब्न को ये बेबूनियाद लगती है और शायद कोंग्रेस को भी इसी कारण ये सरकार की मंशा साफ़ कर रही है
'गांधी परिवार का रौब दिखाकर जबरन ली गई थी जमीन'

02 Aug 2011 12:00,
गुड़गांव। हरियाणा की भूपेंद्र हुड्डा सरकार पर गुड़गांव के किसान संगीन आरोप लगा रहे हैं। वे ग्राम पंचायत की जमीन इंदिरा गांधी आई हॉस्पिटल एंड रिसर्च सेंटर के लिए लीज पर देने पर सवाल उठा रहे हैं। किसानों का यहां तक कहना है कि राज्य सरकार ने उन्हें डरा-धमकाकर ये जमीन अधिग्रहित की थी। उल्लवास गांव के लोगों का आरोप है कि ग्राम पंचायत से जमीन लीज पर लेते वक्त उसे ये नहीं बताया गया था कि जमीन इंदिरा गांधी आई एंड रिसर्च सेंटर को दी जा रही है। गांववालों की मानें तो प्रशासन के अधिकारियों ने सिर्फ इतना कहा था कि उन पर जमीन ट्रस्ट के लिए लेने का दबाव है और उन्हें लीज के कागजों पर दस्तखत करने ही होंगे। उल्लवास गांव के किसान धर्मवीर ने कहा कि ये जमीन इस ट्रस्ट को देकर हम खुश नहीं हैं। ना तो हमारी पंचायत की कोई मीटिंग बुलाई गई और ना ही हमें विश्वास में लिया गया। डीसी ने बस सीधा कहा कि कागजों पर साइन कर दो। कुछ गांववालों का तो यहां तक कहना है कि ट्रस्ट के लिए जमीन लेते वक्त उन्हें धमकाया भी गया। ये कहा गया कि अगर जमीन के कागजों पर साइन नहीं किया तो जेल भेज दिया जाएगा। उल्लवास गांव के किसान सतेंद्र ने कहा कि हमें डराया और धमकाया गया कि यह ट्रस्ट सोनिया, प्रियंका और राहुल गांधी का है, साइन नहीं किया तो सीधा जेल जाओगे। उल्लवास गांव के किसानों का आरोप चौंकाता है और सवाल भी खड़े करता है। ये संयोग ही कहेंगे कि उत्तर प्रदेश सरकार की जमीन अधिग्रहण नीतियों का विरोध करते वक्त कुछ दिनों पहले राहुल गांधी ने हुड्डा सरकार की नीतियों की जमकर तारीफ की थी। जाहिर है, किसानों के आरोप हुड्डा सरकार की इमेज पर बट्टा लगा रहे हैं। ये आरोप साफ कह रहे हैं कि हुड्डा सरकार भी दूसरी राज्य सरकारों की तरह ही जमीन अधिग्रहण में सिर्फ अपने हितों का ख्याल रखती है और जरूरत पड़ने पर रौब दिखाने से भी बाज नहीं आती। वहीं, राजीव गांधी चैरिटेबल ट्रस्ट ने बयान जारी कर अपनी सफाई दी है। इसमें कहा गया है कि ट्रस्ट ने जमीन के लिए सीधे ग्राम पंचायत से बात की थी और सारे नियमों का पालन करते हुए ग्राम सभा की जमीन 33 साल की लीज पर दी गई थी। हमें कोई रियायत नहीं मिली और सभी कानूनों का पालन हुआ। लीज के दस्तावेजों में साफ लिखा है कि जमीन का इस्तेमाल आंख के अस्पताल के लिए ही किया जाएगा और किसी दूसरे को सब-लीज पर नहीं दिया जाएगा। इस जमीन पर मालिकाना हक अब भी ग्राम पंचायत का ही है। ट्रस्ट की कोशिश है कि वो गुड़गांव के आसपास के लोगों और खासतौर पर गरीब तबके के लिए आंख के इलाज का बेहतर इंतजाम कर सके।
 
 
किसानों की जमीन छीनी, गांधी परिवार के ट्रस्ट के आगे सरेंडर

01 Aug 2011 10:00,
गुड़गांव। जमीन अधिग्रहण पर हरियाणा सरकार की नीतियों की देश भर में नजीर दी जाती है। किसानों का हक ना मारा जाए और उन्हें जमीन का सही मुआवजा मिले इसके लिए कांग्रेस के राजकुमार राहुल गांधी हुड्डा सरकार की नीतियों की ही मिसाल देते हैं। लेकिन वही हुड्डा सरकार अगर एक ही इलाके में किसानों की जमीन पर कब्जा कर ले लेकिन एक ट्रस्ट की जमीन को छोड़ दे तो दावों पर सवाल लाजिमी हैं। खासकर तब जब ट्रस्ट राजीव गांधी के नाम पर हो और उसकी चेयरपर्सन खुद सोनिया गांधी हों। मामला गुड़गांव के उल्लावास गांव में इंदिरा गांधी आई हॉस्पिटल एंड रिसर्च सेंटर का है। यहां पर राजीव गांधी चैरिटेबल ट्रस्ट की देखरेख में एक अस्पताल बनना है। आठ एकड़ की इस जमीन पर एक बड़े विवाद का पौधा पनप रहा है। इस जमीन के आसपास जितनी भी जमीन है उसे हरियाणा सरकार अधिगृहित कर चुकी है। लेकिन हरियाणा की हुड्डा सरकार ने 6 दिसंबर 2010 को चौंकाने वाला फैसला लिया। इंदिरा गांधी आई हॉस्पिटल एंड रिसर्च सेंटर की जमीन को अधिग्रहण से अलग कर दिया। यानी आसपास के किसानों और दूसरी सामाजिक संस्थाओं की जमीन पर तो सरकार ने कब्जा कर लिया लेकिन आई हॉस्पिटल की जमीन को कब्जा करने के बाद छोड़ दिया गया। सवाल उठता है कि आखिर ऐसा क्यों हुआ तो जवाब ट्रस्ट के कर्ताधर्ताओं के नाम में छुपा है। राजीव गांधी चैरिटेबल ट्रस्ट की चेयरपर्सन खुद कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी हैं। जबकि राहुल गांधी और प्रियंका गांधी ट्रस्ट के सदस्य हैं। अगर सरकार कोई भी जमीन अधिग्रहण के बाद उसके मालिक को वापस लौटाती है तो इसके पूरे नियम हैं। खुद हरियाणा सरकार के दस्तावेज गवाह हैं कि अधिग्रहण के बाद कोई जमीन तब तक वापस नहीं दी जा सकती जब तक किः- 1. जमीन पर निर्माण कार्य पूरा हो चुका हो। 2. जमीन पर पहले से ही कोई फैक्ट्री या दुकान चल रही हो। 3. जमीन पर किसी धार्मिक संस्था ने इमारत बनवाई हो। 4. जमीन अधिग्रहण के एक साल के भीतर ही अपील की गई हो। 5. जमीन का मालिक कॉलोनी के लिए जमीन बेच चुका हो। 6. जमीन का मालिक अदालत से आदेश लेकर आए। लेकिन अदालत में आरोप लगाए जा रहे हैं कि राजीव गांधी चैरिटेबल ट्रस्ट तो सरकार के बनाए 6 नियमों में से किसी को भी पूरा नहीं करता, फिर आखिर उसे कैसे जमीन लौटाई गई? दरअसल हरियाणा सरकार ने गुड़गांव में रिहाइशी और कमर्शियल इलाके के लिए सेक्टर-58 से लेकर सेक्टर-63 और सेक्टर-65 से लेकर सेक्टर-67 तक बसाने की योजना बनाई। इसके लिए बाकायदा साल 2009 में नोटिफिकेशन जारी करके 1417 एकड़ जमीन का सरकार ने अधिग्रहण कर लिया। इसमें वो जमीन भी शामिल थी जो राजीव गांधी चैरिटेबल ट्रस्ट को ग्राम पंचायत ने लीज पर दी थी। बाद में 46 एकड़ जमीन वापस कर दी गई और यहीं तमाम लोग भड़क उठे। 65 लोगों ने पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट में याचिका दायर कर सरकार के फैसले को चुनौती दी है। उन्होंने एक और नियम के तोड़े जाने का आरोप लगाया है। नियम कहता है कि अगर अधिग्रहित जमीन सरकार वापस करती है तो ये जमीन उसके मालिक को वापस की जाती है, लेकिन यहां अधिग्रहण रद्द करने के बाद वो जमीन ग्राम पंचायत को नहीं लौटाई गई बल्कि राजीव गांधी चैरिटेबल ट्रस्ट को दे दी गई। आखिर क्यों? सरकार ने जिस 1417 एकड़ जमीन का अधिग्रहण किया उसकी चपेट में पद्मश्री से सम्मानित मशहूर चित्रकार अंजलि इला मेनन की जमीन भी आई। उनके वकील का आरोप है कि सरकार किसी ट्रस्ट को ये कहकर फायदा नहीं पहुंचा सकती कि वो एक चैरिटेबल ट्रस्ट है। उनकी मानें तो मेनन भी एक चैरिटेबल ट्रस्ट चलाती हैं लेकिन उन्हें किसी तरह की छूट नहीं दी गई और इसलिए अब अदालत में हुड्डा सरकार को सांप सूंघा हुआ है। अदालत में कई बार पूछे जाने पर भी राजीव गांधी चैरिटेबल ट्रस्ट का नाम तक लेने से डर रही है सरकार। दस्तावेजों से घिरी हरियाणा सरकार ने कोर्ट में बचने के लिए दांव खेलना शुरू कर दिया है। ट्रस्ट का नाम आते ही सरकार पूरे मामले की समीक्षा के लिए हाई पावर कमेटी बनाने के लिए तैयार हो गई। इस पर कोर्ट ने हरियाणा सरकार को जमकर फटकार लगाई। अदालत ने कहा कि 'सरकार जब रंगे हाथों पकड़ी गई है तो वो मामले से भागने की फिराक में है।' जस्टिस जसबीर सिंह और जस्टिस ऑगस्टीन मसीह की बेंच ने कहा कि 'जिस तरह का व्यवहार सरकार आम जनता के साथ कर रही है अदालत ये कतई बर्दाश्त नहीं कर सकती।' अदालत ने कहा कि 'वो इस पक्षपात को देख कर हैरान है और सरकार को इसे अब रोकना होगा।' अदालत ने सरकार को हिदायत दी कि वो सबके साथ अच्छा और समान बर्ताव करे। जाहिर है पूरे मामले ने हरियाणा सरकार की जमीन अधिग्रहण नीति पर सवाल खड़े कर दिए हैं। जब आईबीएन-7 ने पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट में इस केस की पैरवी कर रहे एडवोकेट जनरल से बात करने की कोशिश की तो वो कैमरे से बचते हुए निकल गए। हरियाणा सरकार फिलहाल इस मसले पर कुछ नहीं बोलना चाहती। अक्सर राहुल गांधी गैर-कांग्रेसी राज्यों में जाकर हरियाणा की जमीन अधिग्रहण नीति की तारीफ करते हैं लेकिन जिस तरीके से हुड्डा सरकार ने राजीव गांधी ट्रस्ट को नियम-कायदे ताक पर रखकर छूट दी उससे तो यही ऐहसास होता है कि हरियाणा में जमीन अधिग्रहण का डंडा सिर्फ कमजोर जनता पर चलता है जबकि प्रभावशाली लोगों को हरियाणा सरकार कानून ताक पर रखकर फायदा पहुंचा देती है। बहरहाल सरकार की इस नीति से कोर्ट नाराज है और अब हरियाणा सरकार को हाईकोर्ट के सामने इस मामले पर अपनी सफाई देनी है।
 
 
 
 
रेडियो जॉकी ने कहा-इंडिया है 'सिट होल', गंगा है 'जंकयार्ड'
01 Aug 2011 06:02,
मेलबॉर्न। ऑस्ट्रेलिया से एक बार फिर भारत के खिलाफ आवाज उठी है और ये आवाज पहली से ज्यादा अपमानजनक और हैरान करने वाली है। वहां के एक लोकल रेडियो शो के होस्ट ने न सिर्फ हिंदुओं की आस्था की प्रतीक गंगा को जंकयार्ड कहा बल्कि भारत को भी सिट होल(मलद्वार) की संज्ञा दी। होस्ट केली सैंडीलैंड की इस टिप्पणी से बवाल मच गया है और उसके खिलाफ भारतीय ऑस्ट्रेलियाई परिषद से मोर्चा खोल दिया है। एक लोकल टीवी प्रोग्राम देसी कंगारू की रिपोर्ट के अनुसार सैंडीलैंड ने कहा कि भारत एक सिट होल है। वो यहीं नहीं रुके उन्होंने कहा कि गंगा नदी एक जंकयार्ड है। भारतीय ऑस्ट्रेलियाई परिषद (सीआईए) ने सैंडीलैंड द्वारा की गई इस अपमानजनक टिप्पणी पर कड़ी प्रतिक्रिया जाहिर की। उसने सैंडीलैंड और रेडियो स्टेशन से माफी मांगने की मांग की है। परिषद ने कहा कि अगर ये मुद्दा सौहार्दपूर्ण ढंग से हल नहीं होता है तो वह ऑस्ट्रेलिया की मीडिया नियामक संस्था के पास ये मुद्दा लेकर जाएगी। सीआईए अध्यक्ष यदु सिंह ने एक आधिकारिक बयान में कहा कि केली की यह टिप्पणी असंवेदनशील, अपमानजनक, हानिकारक और अनुचित है। इससे वह नाराज और परेशान हैं। उन्होंने कहा कि भारतीय ऑस्ट्रेलियाई समुदाय एक शांतिपूर्ण और सहिष्णु समुदाय है। यह किसी भी राष्ट्र, राष्ट्रीय समूह, या किसी भी समूह की धार्मिक प्रथाओं पर हमला नहीं करता है। उन्होंने कहा कि ये सही नहीं है कि कोई दूसरा उनकी विश्वास प्रणाली पर हमला करे पर हमारी सरकार नंपूसको की भाती अभी तक कुछ नही केह सकी लगता है सरकार बिलकूल हिन्दू धर्म को खत्म कर इटली प्रथा और मुसलमानी प्रथा ही स्वीकार करना चाहती है क्योकी कोंग्रेस सरकार मोलवीयो को छटा वैतन देता है वही मंदिरो को टैक्स देना होता है सरकार को मंदिर के लिये पूजारियो को अब इस बात से तो साफ़ होता है कि कोंग्रेस सरकार दोहरी नीति अपना रही है