टीम अन्ना और सरकार के लोकपाल बिल में अंतर
01 Aug 2011 07:00,
(1 Aug) अन्ना हजारे टीम और केंद्र सरकार, दोनों ने लोकपाल बिल पर अपने-अपने ड्राफ्ट पेश किये, जिसमें अन्ना के बिल को दरकिनार कर दिया गया। सरकार और अन्ना हजारे के विधेयकों पर अगर एक नजर डालें तो आप साफ तौर पर देख सकेंगे कि टीम अन्ना का बिल ज्यादा प्रभावी हो सकता है, जिसे सरकार नहीं चाहती। मुख्य रूप से सरकार के बिल के अंतर्गत सांसद, मंत्री, सरकार के स्वामित्व मैं किसी कम्पनी के 'ग्रुप ए' अधिकारी, किसी भी ऐसे संगठन के अधिकारी जो सरकार द्वारा वित्तपोषित है या विदेशी अंशदान अधिनियम 1973 के तहत धन प्राप्त करती है या जनता से धन प्राप्त करती है, प्रधानमन्त्री, न्यायपालिका और संसद या समिति में सांसद के कार्य लोकपाल के कार्यक्षेत्र में सम्मिलित नहीं हैं। वहीं टीम अन्ना कहती है कि भ्रष्टाचार के अंतर्गत किसी भी सभा में भाषण या वोट के संबंध में सांसद द्वारा अपराध, जान - बूझकर किसी व्यक्ति को लाभ देना या उसका लाभ उठाना और शिकायत करने वाले या गवाह को सताना भी शामिल है। यह भ्रष्टाचार अधिनियम, 1988 में परिभाषित सभी सार्वजनिक सेवकों को शामिल करता है (सरकारी कर्मचारी, न्यायाधीश, सांसद, मंत्री और प्रधानमंत्री भी शामिल हैं)। सरकार के मुताबिक यदि कोई प्रथम दृष्टया मामला नहीं है तो मामले को समाप्त कर दिया जायेगा। यदि कोई प्रथम दृष्टया मामला है तो लोकपाल वन सेवक को सुनवाई का उपयुक्त अवसर देकर मामले की जांच करेगा। जांच के छह महीने के भीतर पूरा किया जाएगा। लोकपाल के लिखित कारण देने पर जांच को छह महीने के लिए बढ़ाया जा सकता है। जनसेवक के खिलाफ की गयी शिकायत की जांच करने के लिए लोकपाल को किसी की अनुमति की आवश्यकता नहीं होगी। वहीं टीम अन्ना का कहना है कि प्रधानमंत्री, मंत्रियों, सांसदों एवं सुप्रीम या उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों के खिलाफ जांच शुरू करने के लिए लोकपाल को एक सात सदस्यीय समिति की अनुमति लेनी होगी। जांच को ६ से १८ महीने के भीतर समाप्त किया जायेगा। जिस मामले मैं शिकायत करने वाले को हानि पहुंचाए जाने का खतरा है, उस मामले की जांच ३ महीने मैं पूरी की जाएगी। सरकार का बिल कहता है कि लोकपाल के पास दस्तावेजों की खोज करने और उनको जब्त करने की, संपत्ति को 10 दिनों तक अनंतिम रूप से संलग्न करने की, 30 दिनों के भीतर लगाव की पुष्टि करने के लिए अनुरोध फाइल करने की, और भ्रष्टाचार के आरोप के साथ जुड़े जनसेवक के निलंबन की सलाह देने की शक्ति होगी। वहीं टीम अन्ना का बिल कहता है कि लोकपाल की सलाह को स्वीकार नहीं किया जाता तो लोकपाल उच्च न्यायालय में मामले को ले जा सकता है। लोकपाल की एक बेंच टेलीफोन या इंटरनेट के माध्यम से प्रेषित संदेशों के अंतरग्रहण और निगरानी की अनुमति दे सकती है। लोकपाल खोज वारंट जारी कर सकता है।