आइआइटी में फ़ेल पर मिला नोबेल
आइआइटी प्रवेश परीक्षा में कामयाबी पानेवालों को लगातार बधाइयां मिल रही हैं. जो जीता, वही सिकंदर के तर्ज पर समाज सफल लोगों के गुणगान में व्यस्त हो जाता है. जो सफल नहीं हुए, उनके लिए आसानी से हम कह देते हैं कि उसने मन से पढ़ा ही नहीं या पढ़ता तो है, पर दिमाग तेज नहीं है.समाज की उपेक्षा के साथ ही कई असफल छात्र भी खुद को ही दोषी मानने लगते हैं. यह प्रक्रिया तेज होने पर निराशा व तनाव बढ़ने लगता है. आइआइटी में फेल तो वेंकटरमण रामाकृष्णन भी हुए थे. उनके दोस्त उन्हें वेंकी कहते हैं. तमिलनाडु में जनमे वेंकी स्कूल-कॉलेज की पढ़ाई में असाधारण नहीं थे. बस, औसत से कुछ बेहतर.
बड़ौदा में रहते हुए फिजिक्स से स्नातक किया. आइआइटी के अलावा उन्होंने मेडिकल के लिए भी ट्राइ किया, पर दोनों में नाकाम रहे. नौकरी के लिए 50 से अधिक आवेदन दिये. कहीं नौकरी नहीं मिली. वे अमेरिका गये. वहां ओहियो विवि से फिजिक्स में ही पीएचडी किया, पर इसके बाद वे बायलॉजी में काम करने लगे. फिर उन्होंने पीछे मुड़ कर नहीं देखा. वे फेलो ऑफ रॉयल सोसाइटी हैं. उन्हें 2009 में रसायन विज्ञान में नोबेल पुरस्कार मिला.
वेंकी आइआइटी में असफल रहे, पर संकल्पशक्ति के कारण विज्ञान का सबसे ब़ड़ा सम्मान मिला. सीबीएसइ या आइआइटी की परीक्षा कोई अंतिम लक्ष्य नहीं हो सकती कि यहां असफल होने के बाद हम यह मान बैठें कि हमारे हिस्से केवल नाकामी व अंधेरा है. आत्मघाती बातें दिमाग में लानेवाले वेंकी को देखें. जिंदगी ब्लांइड लेन नहीं, बल्कि खुला आसमान है, जहां आगे बढ़ने के हजार रास्ते हैं.