एक पंडित था, वो रोज घर घर जाके भगवत गीता का पाठ करता
था |एक दिन उसे एक चोर ने पकड़ लिया और उसे कहा तेरे पास
जो कुछ भी है मुझे दे दो ,तब वो पंडित जी बोला की बेटा मेरे
पास कुछ भी नहीं है,तुम एक काम करना मैं यहीं पड़ोस के घर मैं
जाके भगवत गीता का पाठ करता हूँ,वो यजमान बहुत दानी
लोग हैं, जब मैं कथा सुना रहा होऊंगातुम उनके घर में जाके चोरी
कर लेना!चोर मान गयाअगले दिन जब पंडित जी कथा सुना रहे थे
तब वो चोर भी वहां आ गया तब पंडित जी बोले की यहाँ से
मीलों दूर एक गाँव है वृन्दावन, वहां पे एक लड़का आता है
जिसका नाम कान्हा है,वो हीरों जवाहरातों से लदा रहता
है,अगर कोई लूटना चाहता है तो उसको लूटो वो रोज रात को
इस पीपल के पेड़ केनीचे आता है,। जिसके आस पास बहुत सी
झाडिया हैं चोर ने ये सुना और ख़ुशी ख़ुशी वहां से चला गया!वो
चोर अपने घर गया और अपनी बीवी से बोला आज मैं एक कान्हा
नाम के बच्चे कोलुटने जा रहा हूँ ,मुझे रास्ते में खाने के लिए कुछ
बांध कर दे दो ,पत्नी ने कुछ सत्तू उसको दे दियाऔर कहा की
बस यही है जो कुछ भी है,चोर वहां से ये संकल्प लेके चला कि अब
तो में उस कान्हा को लुट के ही आऊंगा,वो बेचारा पैदल ही
पैदल टूटे चप्पल में ही वहां से चल पड़ा, रास्ते में बस कान्हा का
नाम लेते हुए, वो अगले दिन शाम को वहां पहुंचा जो जगह
उसेपंडित जी ने बताई थी!अब वहां पहुँच के उसने सोचा कि अगर
में यहीं सामने खड़ा हो गया तो बच्चा मुझे देख करभाग जायेगा
तो मेरा यहाँ आना बेकार हो जायेगा,इसलिए उसने सोचा क्यूँ न
पास वाली झाड़ियों में ही छुप जाऊँ,वो जैसे ही झाड़ियों में
घुसा, झाड़ियों के कांटे उसे चुभने लगे!उस समय उसके मुंह से एक ही
आवाज आयी...कान्हा, कान्हा , उसका शरीर लहू लुहान हो
गया पर मुंह से सिर्फ यही निकला,कि कान्हा आ जाओ!
कान्हा आ जाओ!अपने भक्त की ऐसी दशा देख के कान्हा जी
चल पड़ेतभी रुक्मणी जी बोली कि प्रभु कहाँ जा रहे हो वो
आपको लूट लेगा!प्रभु बोले कि कोई बात नहीं अपने ऐसे भक्तों
के लिए तो मैं लुट जाना तो क्यामिट जाना भी पसंद करूँगा!
और ठाकुर जी बच्चे का रूप बना के आधी रात को वहां आए वो
जैसे ही पेड़ के पास पहुंचेचोर एक दम से बहार आ गया और उन्हें
पकड़ लिया और बोला किओ कान्हा तुने मुझे बहुत दुखी किया
है, अब ये चाकू देख रहा है न, अब चुपचाप अपनेसारे गहने मुझे दे
दे...कान्हा जी ने हँसते हुए उसे सब कुछ दे दिया!वो चोर हंसी
ख़ुशी अगले दिन अपने गाँव में वापिस पहुंचा,और सबसे पहले उसी
जगह गया जहाँ पे वो पंडित जी कथा सुना रहे थे,और जितने भी
गहने वो चोरी करके लाया था उनका आधा उसने पंडित जी
केचरणों में रख दिया!जब पंडित ने पूछा कि ये क्या है, तब उसने
कहा आपने ही मुझे उस कान्हा का पता दिया थामैं उसको लूट
के आया हूँ, और ये आपका हिस्सा है , पंडित ने सुना और उसे
यकीन हीनहीं हुआ!वो बोला कि मैं इतने सालों से पंडिताई कर
रहा हूँवो मुझे आज तक नहीं मिला, तुझ जैसे पापी को कान्हा
कहाँ से मिल सकता है!चोर के बार बार कहने पर पंडित बोला
कि चल में भी चलता हूँ तेरे साथ वहां पर,मुझे भी दिखा कि
कान्हा कैसा दिखता है, और वो दोनों चल दिए!चोर ने पंडित
जी को कहा कि आओ मेरे साथ यहाँ पे छुप जाओ,और दोनों का
शरीर लहू लुहान हो गया और मुंह से बस एक ही आवाज
निकलीकान्हा, कान्हा, आ जाओ!ठीक मध्य रात्रि कान्हा
जी बच्चे के रूप में फिर वहीँ आये ,और दोनों झाड़ियों से बहार
निकल आये!पंडित जी कि आँखों में आंसू थे वो फूट फूट के रोने लग
गया, और जाके चोर के चरणों में गिर गया और बोला कि हम
जिसे आज तक देखने के लिए तरसते रहे, जो आज तक लोगो को
लुटता आया है, तुमने उसे ही लूट लिया तुम धन्य हो,आज तुम्हारी
वजह से मुझे कान्हा के दर्शन हुए हैं,तुम धन्य हो......!!
Saturday, October 3, 2015
कृष्ण भगवान की माया
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment