शेयर बाजार फाइनैंशल वर्ल्ड का सबसे दुलारा शब्द है और साथ
ही रहस्यमय भी। कुछ लोग इसे जुआ मानते हैं तो कुछ लीगल तरीके
से अतिरिक्त आमदनी करने का एक बेहतरीन जरिया। वहीं, कुछ
ऐसे भी लोग है जो शेयर बाजार को ही अपनी आजीविका का
मुख्य जरिया बना लेते हैं। आप चाहे इनमें जिस भी कैटिगरी में
आते हों, आपको यह समझ लेना होगा कि दलाल स्ट्रीट के
ट्रैफिक के भी अपने कुछ नियम हैं और अगर आपने इनकी अनदेखी
की, तो फिर आपको महंगी कीमत चुकानी पड़ सकती है।
दलाल स्ट्रीट पर फर्राटा भरने से पहले आपको इसका ककहरा
समझना होगा। शेयर बाजार के दो शॉपिंग सेंटर हैं, नैशनल स्टॉक
एक्सचेंज (एनएसई) और बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज (बीएसई)। ये दोनों
शॉपिंग सेंटर मुंबई में हैं। हालांकि बीएसई की उम्र सौ साल से
ज्यादा हो चुकी है और एनएसई की शुरुआत सिर्फ दो दशक पहले
1991 में हुई, लेकिन आज एनएसई मार्केट कैपिटलाइजेशन के
लिहाज से देश का सबसे बड़ा और दुनिया का 11वां सबसे बड़ा
एक्सचेंज बन चुका है। मार्केट कैपिटलाइजेशन खरीद-बिक्री के
लिए बाजार में मौजूद किसी कंपनी के शेयरों और उनकी कीमत
को मल्टीप्लाई कर हासिल किया जाता है।
शेयर मतलब हिस्सेदारी
शेयर दरअसल किसी कंपनी का सबसे छोटा यूनिट होता है और
इसे खरीदने का मतलब सीधे उस कंपनी का हिस्सा खरीदना
होता है। जैसे, अगर किसी कंपनी के 1 करोड़ शेयर बाजार में हैं
और आपने उसके 1 लाख शेयर खरीद लिए तो इसका मतलब यह
होगा कि आप उस कंपनी के 1 फीसदी हिस्से के मालिक हो
गए।
डिविडेंड पर मिलेगा हक
सवाल यह है कि अगर आप किसी कंपनी के 1 फीसदी हिस्से के
मालिक हैं, तो इससे आपको क्या मिलेगा? दरअसल किसी भी
कंपनी को जो मुनाफा होता है, उसमें से अपनी ग्रोथ के लिए
जरूरी रकम निकाल कर बाकी वह अपने शेयरहोल्डर्स
(हिस्सेदारों) में बांट देती है। इसे डिविडेंड कहते हैं। यह डिविडेंड
हर शेयर के हिसाब से मिलता है। तो अगर हर शेयर पर आपको 2
रुपये का डिविडेंड मिल रहा है और आपके पास 1 लाख शेयर हैं,
तो आपको 2 लाख रुपये मिलेंगे।
डिविडेंड की मलाई कितनी बार
कुछ कंपनियां अपने तिमाही नतीजों के समय ही डिविडेंड
घोषित करती हैं। वहीं कुछ सालाना नतीजों के समय इनका
ऐलान करती हैं। साल के बीच में दिए गए डिविडेंड इंटरिम
(अंतरिम) कहलाते हैं, जबकि साल के आखिर में मिलने वाला
डिविडेंड फाइनल कहा जाता है। लेकिन यहां यह बात ध्यान
रखने लायक है कि डिविडेंड देना किसी कंपनी की मर्जी पर
निर्भर करता है। इसलिए अगर आप डिविडेंड को ध्यान में रखते हुए
किसी कंपनी के शेयर खरीद रहे हों, तो उसका इतिहास जरूर देख
लें कि उसने इससे पहले डिविडेंड दिया है कि नहीं।
डिविडेंड यील्ड का गणित
कोई कंपनी कितना डिविडेंड देती है, इसे समझने के लिए
डिविडेंड यील्ड का इस्तेमाल किया जाता है। कोई कंपनी हर
शेयर पर 10 रुपये डिविडेंड देती है और उसकी कीमत 200 रुपये है।
वहीं दूसरी कंपनी 7 रुपये डिविडेंड देती है, जबकि उसकी कीमत
100 रुपये है। किसी शेयर का डिविडेंड यील्ड वह रकम होती है,
जो उस शेयर के हर 100 रुपये पर डिविडेंड के तौर पर हासिल
होती है। इसीलिए इसे फीसदी के तौर पर समझा जाता है। ऊपर
के उदाहरण में पहले शेयर का डिविडेंड यील्ड 5 फीसदी है,
जबकि दूसरे का 7 फीसदी। यानी डिविंडेड के लिहाज से
दूसरी कंपनी के शेयरों की खरीद बेहतर है।
डिविडेंड के अलावा क्या?
अगर कोई कंपनी डिविडेंड देती ही नहीं हो, तो फिर उसके शेयर
क्यों खरीदें? इसका जवाब उस शेयर की कीमत है, जो लगातार
बढ़ती-घटती रहती है। अगर आपने कोई शेयर 100 रुपये का खरीदा
हो और उसकी कीमत बढ़कर 120 रुपये हो जाए तो आप उसे बेचकर
20 रुपये का सीधा मुनाफा कमा सकते हैं। यानी डिविडेंड के
अलावा किसी कंपनी के शेयर खरीदने का मकसद उसके दाम में
आने वाली बढ़त का फायदा उठाना है।
बढ़त की भविष्यवाणी कैसे
यही वह सवाल है जहां बहुत लोग शेयर बाजार को जुए के बराबर
मानते हैं। क्या यह संभव है कि किसी कंपनी के शेयर का भाव
गिरने या बढ़ने की भविष्यवाणी पहले से ही की जा सके? क्या
इस भविष्यवाणी का कोई साइंटिफिक आधार है? इसे समझने के
लिए पहले यह समझना होगा कि किसी कंपनी के शेयरों का
भाव कैसे तय होता है।
प्राइस-अर्निंग रेशो (पीई)
प्राइस-अर्निंग रेशो या पीई का मतलब होता है कि किसी
शेयर की कीमत कितने बरसों में वसूल हो जाएगी। यानी किसी
शेयर का दाम 200 रुपये है और पीई 5 तो इसका मतलब है कि इतने
ही साल में आपकी पूरी लागत वसूल हो जाएगी। इसको ऐसे भी
समझ सकते हैं कि किसी कंपनी की प्रति शेयर सालाना
आमदनी 40 रुपये हो और कीमत 200 रुपये, तो पीई 5 होगा। यह
पीई तय करने का कोई निश्चित फॉर्म्युला नहीं है। इसे बाजार
उस शेयर, उसके सेक्टर और इतिहास के आधार पर तय करता है।
मसलन किसी एक सेक्टर को ऐतिहासिक तौर पर 10 का पीई
मिल रहा हो सकता है, जबकि किसी दूसरे सेक्टर के लिए यह
पीई 15 का हो सकता है।
किसी सेक्टर को ज्यादा या कम पीई मिलना इस बात पर
निर्भर करता है कि उस सेक्टर की सालाना ग्रोथ रेट क्या है?
मसलन अगर दो सेक्टरों में से एक की ग्रोथ रेट 10 फीसदी
सालाना और दूसरे की 15 फीसदी है, तो मार्केट में दूसरे सेक्टर
के शेयरों की वैल्यू हमेशा ज्यादा होगी। आप आईटी सेक्टर में
इंफोसिस के शेयर खरीदना चाहते हैं। आप कैसे पता लगाएंगे कि
2800 रुपये के मौजूदा भाव पर यह महंगा है या सस्ता। इस भाव पर
इंफोसिस का पीई 16.8 है, लेकिन आईटी इंडस्ट्री का एवरेज
पीई फिलहाल 20.5 है। तो इस लिहाज से आप यह मान सकते हैं
कि इंफोसिस के शेयर अभी सस्ते हैं। लेकिन यह निष्कर्ष
निकालना थोड़ी जल्दी होगी। आपको यह भी देखना होगा
कि मौजूदा फाइनैंशल ईयर में आईटी इंडस्ट्री और इंफोसिस की
ग्रोथ रेट क्या है? इंफोसिस के शेयरों को सस्ता केवल तभी
माना जा सकता है जब उसकी ग्रोथ रेट या तो आईटी सेक्टर के
बराबर हो या फिर उससे ज्यादा।
शेयरों के वैल्यूएशन का प्रोसेस समझने के बाद आप यह बखूबी समझ
सकते हैं कि कोई शेयर इस समय सस्ता है या महंगा। अगर शेयर
सस्ता है, तो उसकी खरीद कर मुनाफा कमाने को वैल्यू बाईंग
कहते हैं। लेकिन कई बार महंगे शेयर खरीद कर भी मुनाफा कमाया
जा सकता है। या कई बार सस्ते शेयरों की खरीद भी आपको
नुकसान का झटका दे सकती है।
Sunday, September 20, 2015
Basic of market investment
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment