Thursday, August 11, 2011

यज्ञोपवीत को व्रतबन्ध भी कहते हैं । यह व्रतशील जीवन के उत्तरदायित्व का बोध कराने वाला पुण्य प्रतीक है । विशेष यज्ञ संस्कार आदि आयोजनों के अवसर पर उसमें भाग लेने वालों का यज्ञोपवीत बदलवा देना चाहिए । साप्ताहिक यज्ञों में यह आवश्यक नहीं । नवरात्रि आदि अनुष्ठानों के संकल्प के समय यदि यज्ञोपवीत बदला गया है, तो पूर्णाहुति आदि में फिर न बदला जाए । व्यक्तिगत संस्कारों आदि में प्रमुख पात्रों का, बच्चों के अभिभावकों आदि का यज्ञोपवीत बदलवा देना चाहिए । यदि वे यज्ञोपवीत पहने ही न हों, तो कम से कम कृत्य के लिए अस्थाई रूप से पहना देना चाहिए । वे चाहें, तो स्थाई भी करा लें ।
यज्ञोपवीत बदलने के लिए यज्ञोपवीत का मार्जन किया जाए । यज्ञोपवीत संस्कार की तरह पाँच देवों का आवाहन-स्थापन उसमें किया जाए, फिर यज्ञोपवीत धारण मन्त्र के साथ साधक स्वयं ही पहन लें । पुराना यज्ञोपवीत दूसरे मन्त्र के साथ सिर की ओर से ही उतार दिया जाए । पुराने यज्ञोपवीत को जल में विसर्जित कर दिया जाता है अथवा पवित्र भूमि में गाड़ दिया जाता है ।



निम्न मन्त्र बोलकर नया यज्ञोपवीत धारण करना चाहिए ।

ॐ यज्ञोपवीतं परमं पवित्रं, प्रजापतेर्यत्सहजं पुरस्तात् ।
आयुष्यमग्र्यं प्रतिमुञ्च शुभं्र, यज्ञोपवीतं बलमस्तु तेजः ।
-पार०गृ०सू० २.२.११



निम्न मन्त्र पाठ करते हुए पुराना यज्ञोपवीत गले में से ही होकर निकालना चाहिए ।
ॐ एतावद्दिनपर्यन्तं, ब्रह्म त्वं धारितं मया । जीर्णत्वात्ते परित्यागो, गच्छ सूत्र यथा सुखम्॥

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