भारतीय संविधान कानूनों की एक किताब मात्र नहीं है । यह भारतीय राष्ट्र का संघीय आधार पर राज्य और राजनीति के चरित्र को निर्धारित करने वाला एक मौलिक ओर महत्वपूर्ण दस्तावेज है। भारतीय संविधान की प्रारम्भिक उदघोषणा और इसका चतुर्थ भाग, जिसे निदेशक सिद्धान्त कहा गया है, सर्वाधिक महत्व की संविदा है। इसमें समाजवाद और समता मूलक मानव विकास की मूल अवधारणा निहित है । जब हम और हमारा प्यारा देश भारत १५ अगस्त, १९४७ को आजाद हुए तो उससे पहले से ही संविधान सभा हमारे देश भारत का लागू होने वाले संविधान को बनाने के काम में जुटी हुई थी । यही संविधान २६ जनवरी, १९५० से गणतंत्र भारत में लागू हुआ । भारतीय संविधान की उद्देशिका में स्पष्ट रूप से कहा गया- "हम भारत के लोग भारत को एक सम्पूर्ण प्रभुत्व सम्पन्न समाजवादी पंथ निरपेक्ष लोकतंत्रात्मक गणराज्य बनाने के लिये तथा इसके समस्त नागरिकों को सामाजिक, आर्थिक एवं राजनैतिक त्याग सुनिश्चित करने वाली बन्धुता बनाने के लिये वृत्र संकल्प होकर इस संविधान को अंगीकृत,अधिनियमित और आत्मर्पित करते हैं |"
उठो !!! जागो !!!! विद्रोह की ज्वाला-लहर बन जाओ, जब तक भ्रष्ट्राचार को मिटाने की लड़ाई जीत नहीं लेते तब तक गर्जना करते रहो; देश पर मरने मिटने का संकल्प करते रहो || निश्चित ही आपको आपका लक्ष्य मिल ही जाएगा इस सत्य पर कोई संदेह करने की बात नहीं है |||
इस संविधान के रचनाकार और बनाने वाले हमारे भारत के तत्कालीन कर्णधार ही तो थे । संविधान के अंतर्गत आर्थिक और राजनैतिक सम्प्रभुत्ता का अर्थ था कि भारत के तत्कालीन कर्णधार कैसा विकास चाहते हैं ? यह भी हम भारतीय जनमानस को ही तय करना था। यह ऐसा विकास होना चाहिये था जिससे सामाजिक आर्थिक एवं राजनैतिक न्याय मिलता है ।
भारतीय नागरिकों के जगभग छ: दशकों के कटु अनुभव ने इस सच्चाई को सामने ला दिया है कि जिस प्रतिनिधि मूलक जनतांत्रिक प्रणाली के ढांचे को संविधान के अन्तर्गत निर्मित संस्थाओं के द्वारा सारे देश को चलाया जा रहा है, वह न सिर्फ पूरी तरह विफल हो चुका है बल्कि जिस जनता के लिये इस देश के संविधान की रचना की गयी वह उसके खिलाफ चला गया । भारतीय-संविधान को जनता के हक में लागू करने के लिये जिस केन्द्रीयकृत व्यवस्था का सहारा लिया गया उसमें आम जनता की भागीदारी को बिल्कुल समाप्तप्राय: हो गयी । प्रतिनिधि मूलक प्रजातांत्रिक प्रणाली ने एक नये प्रकार की संवैधानिक निरंकुशता को आम आदमी पर थोपना शुरू कर दिया । आज भारतीय संविधान में आम आदमी की भूमिका लोकतंत्र के नाम पर चलने वाले खेल के सदृश्य चुनाव में वोट डाल कर एक सरकार चुनने से ज्यादा कुछ भी नही रहीं है । भ्रष्टाचार करके कमाए गए काले धन और बाहुबल को सरकार बनने, बदलने और चुनाव जीतने का लगभग प्रत्येक राजनीतिक दल ने अपना मुख्य साधन एवम औजार बना लिया है । वर्तमान में चल रही इस भ्रष्टाचार विरोधी मुहिम को कुछ विद्वान् लोगों द्वारा और मज़बूत करने के विषय में की जाती रही है क्योंकि अच्छे विचारों का सदैव स्वागत होना चाहिए | इस देश की समस्त जनता की भ्रष्टाचार के विरुद्ध लड़ाई भी अब "लोकपाल बिल"के जनप्रतिनिधियों पर निर्भर है और निर्माण समिति 'सिविल सोसायटी' के लगभग सभी सदस्यों पर एक साथ कोई न कोई आरोप लगना भी किसी साजिश की तरफ इशारा करता है |
एक वर्ग का यह मानना है कि जब तक भारतीय संविधान का अनुच्छेद ३९(ग) है, भारत से भ्रष्टाचार समाप्त नहीं हो सकता है | जब यह अनुच्छेद ३९(ग) समाप्त होगा तब ही वास्तविक अर्थों में लोकतान्त्रिक भारत, भारतीय जनता और सत्य की विजय होगी | वास्तव में राज्य की स्थापना का उद्देश्य प्रजा के जान-माल की रक्षा करना है | अनुच्छेद ३९(ग) के अधीन राज्य प्रजा को स्वयं लूटता है | भारतीय संविधान के उद्देशिका में समाजवादी शब्द ३-१-१९७७ को जोड़ा गया और १९९१ में बिना संशोधन के अपना टनों सोना बिकने के बाद मुद्रा का २३% अवमूल्यन करके देश बाजारी व्यवस्था पर उतर आया था |
इस अवमूल्यन के बाद इसका बहुत विरोध हुआ फिर भी यह अनुच्छेद ज्यों का त्यों इसलिए बना हुआ है, क्यूंकि इस अनुच्छेद का सहारा लेकर तथाकथित प्रजातान्त्रिक सरकार जिसकी सम्पत्ति चाहती है, लूट लेती है | सर्वहारा वर्ग के समर्थक कार्ल मार्क्स ने सम्पत्ति का समाजीकरण किया था, वह भी अनुच्छेद ३९(ग) के कारण विफल हो गया | आइये अब तथाकथित प्रजातान्त्रिक सरकार द्वारा निरीह जनता को लूटने का तरीका देखें:-
भारतीय नागरिकों के जगभग छ: दशकों के कटु अनुभव ने इस सच्चाई को सामने ला दिया है कि जिस प्रतिनिधि मूलक जनतांत्रिक प्रणाली के ढांचे को संविधान के अन्तर्गत निर्मित संस्थाओं के द्वारा सारे देश को चलाया जा रहा है, वह न सिर्फ पूरी तरह विफल हो चुका है बल्कि जिस जनता के लिये इस देश के संविधान की रचना की गयी वह उसके खिलाफ चला गया । भारतीय-संविधान को जनता के हक में लागू करने के लिये जिस केन्द्रीयकृत व्यवस्था का सहारा लिया गया उसमें आम जनता की भागीदारी को बिल्कुल समाप्तप्राय: हो गयी । प्रतिनिधि मूलक प्रजातांत्रिक प्रणाली ने एक नये प्रकार की संवैधानिक निरंकुशता को आम आदमी पर थोपना शुरू कर दिया । आज भारतीय संविधान में आम आदमी की भूमिका लोकतंत्र के नाम पर चलने वाले खेल के सदृश्य चुनाव में वोट डाल कर एक सरकार चुनने से ज्यादा कुछ भी नही रहीं है । भ्रष्टाचार करके कमाए गए काले धन और बाहुबल को सरकार बनने, बदलने और चुनाव जीतने का लगभग प्रत्येक राजनीतिक दल ने अपना मुख्य साधन एवम औजार बना लिया है । वर्तमान में चल रही इस भ्रष्टाचार विरोधी मुहिम को कुछ विद्वान् लोगों द्वारा और मज़बूत करने के विषय में की जाती रही है क्योंकि अच्छे विचारों का सदैव स्वागत होना चाहिए | इस देश की समस्त जनता की भ्रष्टाचार के विरुद्ध लड़ाई भी अब "लोकपाल बिल"के जनप्रतिनिधियों पर निर्भर है और निर्माण समिति 'सिविल सोसायटी' के लगभग सभी सदस्यों पर एक साथ कोई न कोई आरोप लगना भी किसी साजिश की तरफ इशारा करता है |
एक वर्ग का यह मानना है कि जब तक भारतीय संविधान का अनुच्छेद ३९(ग) है, भारत से भ्रष्टाचार समाप्त नहीं हो सकता है | जब यह अनुच्छेद ३९(ग) समाप्त होगा तब ही वास्तविक अर्थों में लोकतान्त्रिक भारत, भारतीय जनता और सत्य की विजय होगी | वास्तव में राज्य की स्थापना का उद्देश्य प्रजा के जान-माल की रक्षा करना है | अनुच्छेद ३९(ग) के अधीन राज्य प्रजा को स्वयं लूटता है | भारतीय संविधान के उद्देशिका में समाजवादी शब्द ३-१-१९७७ को जोड़ा गया और १९९१ में बिना संशोधन के अपना टनों सोना बिकने के बाद मुद्रा का २३% अवमूल्यन करके देश बाजारी व्यवस्था पर उतर आया था |
इस अवमूल्यन के बाद इसका बहुत विरोध हुआ फिर भी यह अनुच्छेद ज्यों का त्यों इसलिए बना हुआ है, क्यूंकि इस अनुच्छेद का सहारा लेकर तथाकथित प्रजातान्त्रिक सरकार जिसकी सम्पत्ति चाहती है, लूट लेती है | सर्वहारा वर्ग के समर्थक कार्ल मार्क्स ने सम्पत्ति का समाजीकरण किया था, वह भी अनुच्छेद ३९(ग) के कारण विफल हो गया | आइये अब तथाकथित प्रजातान्त्रिक सरकार द्वारा निरीह जनता को लूटने का तरीका देखें:-
(१) दंड प्रक्रिया संहिता की धारा १९७ के अधीन जब किसी व्यक्ति पर, जो न्यायाधीश या मजिस्ट्रेट या ऐसा लोकसेवक है या था जिसे सरकार द्वारा या उसकी मंजूरी से ही उसके पद से हटाया जा सकेगा, अन्यथा नहीं, किसी ऐसे अपराध का अभियोग है जिसके बारे में यह अभिकथित हो कि वह उसके द्वारा तब किया गया था जब वह अपने पदीय कर्तव्य के निर्वहन में कार्य कर रहा था या जब उसका ऐसे कार्य करना तात्पर्यित था, तब कोई भी न्यायालय ऐसे अपराध का संज्ञान सरकार की पूर्व मंजूरी से ही करेगा, अन्यथा नहीं कर सकता है |
(२) जहां भारतीय संविधान का अनुच्छेद ३९(ग) तथाकथित प्रजातान्त्रिक सरकार को जनता को लूटने का असीमित अधिकार देता है, वहीँ दंड प्रक्रिया संहिता की धारा १९७ के अधीन लोकसेवक के लूट को अपराध तब तक नहीं माना जाता, जब तक लोकसेवक लूट कर तथाकथित प्रजातान्त्रिक सरकार को हिस्सा देता है | अतएव भ्रष्टाचार के लिए भारतीय संविधान उत्तरदायी है, लोकसेवक नहीं होगा |
संविधान के अंतर्गत प्रजातंत्र, जनतंत्र, लोकतन्त्र, तीनों के अर्थ लगभग एक है। इनकी ध्वनि में कुछ भिन्नता अवश्य है । इन सभी में प्रजा पुराना शब्द है। इसके अतिरिक्त ‘जनतंत्र’ अथवा ‘लोकतंत्र’ की ध्वनि ऐसी है कि प्रतीत होता है कि जन अथवा लोक खुद राज्य संचालन तथा प्रशासन में सक्रिय भूमिका अदा करते हैं । इस प्रकार की जिस प्रतिनिधिमूलक जनतांत्रिक प्रणाली व्यवस्था में किसी देश की सरकारें चल रही है उसमें जन अथवा लोक की राज्य संचालन तथा प्रशासन में कोई सक्रिय भूमिका संभव नही हैं ।पूर्व भारतीय केन्द्रीय सरकारों ने जन आकांक्षाओं के काफी नजदीक संविधान के 72 वें और 74 वें संशोधन के जरिये एक नये सामाजिक ढांचे की परिकल्पना की कोशिश की है । संविधान में अध्याय 9 और ९(अ) जोड़कर हुए एक विकेन्द्रित शासन-प्रशासन प्रणाली का बीज बोया गया परन्तु परवर्ती सरकारों को इन्हें लागू करने का दायित्व मिला, वे किसी भी कीमत पर अपनी हाथों में समाई हुई ताकत को जनता के हाथों में सौंपने को तैयार नही हैं ।जनभागीदारिता व जवाबदेही पर आधारित राजनीति के इस प्रयोग को अगर देश की जमीन पर सफलतापूर्वक उतार लिया गया तो एक ऐसे विकास का द्वारा खुल सकता है जो लूट खसोट, भ्रष्टाचार व मुनाफे पर आधारित नही रहेगा और रोजगार के अवसर मुहैया कराने से लेकर विकास के लाभ को जनता के पास तक पहुंचाने का काम करेगा।
ऐसी चर्चा है कि वर्तमान समय में विदेशों में भारतीय भ्रष्टाचारी बहादुरों द्वारा जमा किया गया काला धन 45,000 करोड़ से लेकर 84,000 करोड़ के बीच होगा, भारतीय सरकार के पास ऐसे पचास लोगों की सूची आ चुकी है, जिनके पास टैक्स हैवेन देशों में बैंक एकाउंट हैं, लेकिन सरकार ने अब तक मात्र २६ लोगों के नाम ही अदालत को सौंपे हैं | एक गैर सरकारी अनुमान के अनुसार सन १९४८ से सन २००८ तक के बीच भारत अवैध वित्तीय प्रवाह (गैरकानूनी पूंजी पलायन) के चलते कुल २१३ मिलियन डालर की राशि गंवा चुका है | भारत की वर्तमान कुल अवैध वित्तीय प्रवाह की वर्तमान कीमत कम से कम 462 बिलियन डालर के आसपास आंकी गई है, जो लगभग २० लाख करोड़ के बराबर है, यानी भारत का इतना काला धन दूसरे देशों में जमा है | यही कारण बताया जा रहा है कि सरकार सुप्रीम कोर्ट से बराबर लताड़ खाने के बाद भी देश को लूटने वाले का नाम उजागर नहीं कर रही है | वर्तमान समय में सामाजिक नेत्रत्व कर रहे अन्ना हजारे की संगठित समिति को बेकार साबित करने का काम सरकार के वफादार कर रहे हैं और करते रहेंगे, यह सरकार जानती है कि यह भ्रष्टाचार विरोधी संगठन अभी बाल अवस्था में है | योगगुरु बाबा रामदेव के भ्रष्टाचार विरोधी अनशन को कुचलने के बाद जनता की ओर से कोई कठोर प्रतिक्रिया नहीं देखकर सरकारी नेताओं के जोश बढ़ गए हैं | हमारे प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह भी इस विषय पर विवश है | विपक्ष में बैठे हुए राजनीतिक दल तेल और तेल कि धार देखने तथा नए समीकरण पर नजर बनाए हुए है | सामाजिक संगठन मौन है ओर अब इस परिस्थिति में अन्ना हजारे का संगठन १६ अगस्त,२०११ से अनशन कर सकता है | इस आगामी अनशन की ताकत क्या होगी, यह तो समय के गर्भ में है | लेकिन जन जाग्रति के लिए अन्ना हजारे को अभी से तैयारी करनी होगी जिससे आम आदमी को नुक्सान नहीं हो |
(२) जहां भारतीय संविधान का अनुच्छेद ३९(ग) तथाकथित प्रजातान्त्रिक सरकार को जनता को लूटने का असीमित अधिकार देता है, वहीँ दंड प्रक्रिया संहिता की धारा १९७ के अधीन लोकसेवक के लूट को अपराध तब तक नहीं माना जाता, जब तक लोकसेवक लूट कर तथाकथित प्रजातान्त्रिक सरकार को हिस्सा देता है | अतएव भ्रष्टाचार के लिए भारतीय संविधान उत्तरदायी है, लोकसेवक नहीं होगा |
(३) जनता के पास अपने लूट के विरुद्ध शिकायत करने का भी अधिकार नहीं है | ऐसा प्रतीत होता है जनता को लूटने के लिए ही कुछ जजों और लोकसेवकों को नियुक्त किया गया है | भारतीय संविधान के अनुच्छेद ३९(ग) के अधीन यदि लोकसेवक की इच्छा भ्रष्टाचार करना हो तो उसका संवैधानिक कर्तव्य है |
(४) भारतीय संविधान के अनुच्छेद ३१ प्रदत्त सम्पत्ति के जिस अधिकार को हमें गुलामी की दस्ता में जकड़ने वाली ब्रिटिश हुकूमत और संविधान सभा के लोग न छीन पाए ओर उसे स्वतंत्र भारत के भ्रष्ट प्रशासन ने मिल कर लूट लिया और अब तो इस अनुच्छेद को भारतीय संविधान से ही मिटा दिया गया है, इसे कोई भ्रष्टाचार नहीं मानता! (ए आई आर १९५१ एस सी ४५८)
हम भारत के जागरूक नागरिक, भारतीय संसद से मांग करते हैं कि लोकपाल बिल पर चर्चा करने के पहले भारतीय संविधान का अनुच्छेद ३१ पुनर्जीवित किया जाये | भारतीय संविधान का अनुच्छेद ३९(ग) और दंड प्रक्रिया संहिता की धारा १९६ व १९७ समाप्त किया जाये |
यदि हमारे जागरूक भारतीय बंधू भ्रष्टाचार से मुक्ति चाहते हैं तो संविधान के उपरोक्त अनुच्छेद ३९(ग) को संविधान से हटाने, अनुच्छेद ३१ को पुनर्जीवित करने और धारा १९७ को भी हटाने में भ्रष्टाचार विरोधी आन्दोलन में अपना सहयोग प्रदान करें |
हम भारत के जागरूक नागरिक, भारतीय संसद से मांग करते हैं कि लोकपाल बिल पर चर्चा करने के पहले भारतीय संविधान का अनुच्छेद ३१ पुनर्जीवित किया जाये | भारतीय संविधान का अनुच्छेद ३९(ग) और दंड प्रक्रिया संहिता की धारा १९६ व १९७ समाप्त किया जाये |
यदि हमारे जागरूक भारतीय बंधू भ्रष्टाचार से मुक्ति चाहते हैं तो संविधान के उपरोक्त अनुच्छेद ३९(ग) को संविधान से हटाने, अनुच्छेद ३१ को पुनर्जीवित करने और धारा १९७ को भी हटाने में भ्रष्टाचार विरोधी आन्दोलन में अपना सहयोग प्रदान करें |
लोकपाल विधेयक पर बहस और विरोध का नाटक जनता का ध्यान तथाकथित प्रजातान्त्रिक सरकार के लूट और वैदिक सनातन धर्म को मिटाने के प्रयत्न को छिपाने के लिए, चल रहा है | सर्वविदित है कि भारतीय संविधान सर्वोपरि है, अतएव भारतीय संविधान के अनुच्छेद ३९(ग) के प्रभाव में रहते भ्रष्टाचार नहीं मिटाया जा सकता | यह एक ऐतिहासिक सत्य है कि वैदिक राज्य में चोर, भिखारी और व्यभिचारी नहीं होते थे | ब्रिटिश हुकूमत के प्रतिनिधि लॉर्ड मैकाले ने स्वयं २ फरवरी १८३५ को इस बात की पुष्टि की है | लेकिन तथाकथित प्रजातान्त्रिक सरकार ही चोर है | तथाकथित प्रजातान्त्रिक सरकार को चोर कहना राज्य के विरद्ध भारतीय दंड संहिता के धारा १५३ व २९५ के अंतर्गत अपराध है और संसद व विधानसभाओं के विशेषाधिकार का हनन भी है | लोकतंत्र और प्रजातंत्र की आत्मा के विरुद्ध जो भी इस सच्चाई को कहे या लिखेगा, उसे तथाकथित प्रजातान्त्रिक सरकार दंड प्रक्रिया संहिता की धारा १९६ में जेल भिजवा देगी |
तथाकथित प्रजातान्त्रिक सरकार द्वारा मनोनीत राज्यपाल भारतीय संविधान के अनुच्छेद ३९(ग) के संरक्षण, संवर्धन व पोषण की भारतीय संविधान के अनुच्छेद १५९ के अधीन शपथ लेते है | दंड प्रक्रिया संहिता की धारा १९७ द्वारा जो राज्यपाल कुछ भ्रष्ट लोकसेवकों को संरक्षण देने के लिए विवश हैं और जजों ने भी जिस अनुच्छेद ३९(ग) को बनाये रखने की शपथ ली है, (भारतीय संविधान, तीसरी अनुसूची, प्रारूप ४ व ८), से निकृष्ट भ्रष्टाचारी कौन हो सकता है ?
श्री अयोध्या प्रसाद त्रिपाठी ने इस सन्दर्भ में लिखा है कि "उपरोक्त कानूनों के प्रभाव के कारण सोनिया ने गोरखपुर, उत्तर प्रदेश स्थित हुतात्मा राम प्रसाद बिस्मिल जी के स्मारक की ३.३ एकड़ भूमि ३३ करोड़ रुपयों में बेंच दी. उस स्थल पर बिस्मिल जी की मूर्ती और पुस्तकालय तो है, लेकिन राजस्व अभिलेखों से बिस्मिल जी के स्मारक का नाम गायब है. इसी प्रकार मेरी पैतृक भूमि के राजस्व अभिलेखों को मिटा दिया गया. इस पत्रिका मै इलाहाबाद उच्च न्यायालय के दो आदेश संलग्नक १ व २ प्रमाण के लिए उपरोक्त लिंक पर उपलब्ध हैं. दोनों ही मामले तथाकथित प्रजातान्त्रिक सरकार के शासन में आने के बाद से ही प्रेसिडेंट एपीजे अबुल कलाम व प्रतिभा के संज्ञान में हैं |राजस्व लोकसेवकों ने अभिलेखों में जालसाजी कर मेरा ही नहीं, हुतात्मा रामप्रसाद बिस्मिल का नाम भी गायब कर दिया. जिसके बलिदान के कारण प्रतिभा जैसी आर्थिक ठगिनी प्रेसिडेंट बनी, जब उसे ही नहीं छोड़ा, तो तथाकथित प्रजातान्त्रिक सरकार किसे छोडेंगी? जिन राजस्व अभिलेखों के आधार पर जज ने सन १९८९ में मेरा कब्जा माना, ई० सन १९९४ से उन अभिलेखों से भी मेरा नाम हटा दिया गया है. मेरा तो वाद भी चला. लेकिन हुतात्मा का वाद न लखनऊ उच्च न्यायालय चला और न इलाहबाद. पूर्व राष्ट्रपति के संज्ञान में होने के बाद भी तथाकथित प्रजातान्त्रिक सरकार ने स्मारक लूट लिया. जज या नागरिक लोकसेवकों का कुछ नहीं बिगाड़ सके, क्योंकि उन्हें राज्यपाल बनवारी दंड प्रक्रिया संहिता की धारा १९७ के अधीन संरक्षण देने के लिए विवश हैं. इस प्रकार भारतीय संविधान ही भ्रष्ट है |
देखें अनुच्छेद ३९ग और लुप्त अनुच्छेद ३१..
लोकपाल कानून धोखा है. न जाने कब बनेगा? लेकिन बिस्मिल जी का और मेरा मामला सिद्ध है. राजस्व कर्मियों ने राजस्व अभिलेखों में जालसाजी की है. इसे इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने अपने जांच में स्वीकार किया है. लेकिन तथाकथित प्रजातान्त्रिक सरकार के पास जनता को लूटने का अधिकार भारतीय संविधान के अनुच्छेद ३९(ग) से प्राप्त हुआ है. सोनिया के लिए जो लोकसेवक जनता को लूट रहे हैं, उन के विरुद्ध अभियोग चलाने का अधिकार न्यायपालिका के पास नहीं है. और जब तक अनुच्छेद ३९(ग) और दंड प्रक्रिया संहिता की धारा १९७ का वर्चस्व रहेगा, न्यायपालिका का प्रभाव शून्य है. जब जज ही असहाय है तो लोकपाल क्या कर लेगा? सोनिया की डकैती निर्बाध चलती रहेगी. सन १९८९ से आज तक इलाहाबाद उच्च न्यायालय अपने आदेशों का अनुपालन न करा सका और न करा ही सकता है |
भारतीय संविधान, जिसके अनुच्छेद ३९(ग) के संरक्षण, संवर्धन व पोषण की राज्यपालों ने भारतीय संविधान के अनुच्छेद १५९ के अधीन शपथ ली है | दंड प्रक्रिया संहिता की धारा १९७ द्वारा जो राज्यपाल भ्रष्ट लोक सेवकों को संरक्षण देने के लिए विवश हैं और जजों ने भी जिस अनुच्छेद ३९(ग) को बनाये रखने की शपथ ली है, (भारतीय संविधान, तीसरी अनुसूची, प्रारूप ४ व ८), से निकृष्ट भ्रष्टाचारी कौन हो सकता है ?
उपरोक्त स्थिति को लोकपाल विधेयक से जुड़े अन्य लोग भले न जानते हों, कानूनविद शांति भूषण भली भांति जानते हैं, मै उन्हें ४ अप्रैल से लगातार लिख रहा हूँ, फिर भी मीडिया और शांति भूषण जनता को मूर्ख बनाने से बाज नहीं आ रहे हैं. शांति भूषण न्याय मंत्री भी रहे हैं और कानून विद भी हैं | मुझे उनसे जवाब चाहिए कि वे देश को क्यों ठग रहे हैं ?" साभार--(http://www.aryavrt.com/)
लोकपाल कानून धोखा है. न जाने कब बनेगा? लेकिन बिस्मिल जी का और मेरा मामला सिद्ध है. राजस्व कर्मियों ने राजस्व अभिलेखों में जालसाजी की है. इसे इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने अपने जांच में स्वीकार किया है. लेकिन तथाकथित प्रजातान्त्रिक सरकार के पास जनता को लूटने का अधिकार भारतीय संविधान के अनुच्छेद ३९(ग) से प्राप्त हुआ है. सोनिया के लिए जो लोकसेवक जनता को लूट रहे हैं, उन के विरुद्ध अभियोग चलाने का अधिकार न्यायपालिका के पास नहीं है. और जब तक अनुच्छेद ३९(ग) और दंड प्रक्रिया संहिता की धारा १९७ का वर्चस्व रहेगा, न्यायपालिका का प्रभाव शून्य है. जब जज ही असहाय है तो लोकपाल क्या कर लेगा? सोनिया की डकैती निर्बाध चलती रहेगी. सन १९८९ से आज तक इलाहाबाद उच्च न्यायालय अपने आदेशों का अनुपालन न करा सका और न करा ही सकता है |
भारतीय संविधान, जिसके अनुच्छेद ३९(ग) के संरक्षण, संवर्धन व पोषण की राज्यपालों ने भारतीय संविधान के अनुच्छेद १५९ के अधीन शपथ ली है | दंड प्रक्रिया संहिता की धारा १९७ द्वारा जो राज्यपाल भ्रष्ट लोक सेवकों को संरक्षण देने के लिए विवश हैं और जजों ने भी जिस अनुच्छेद ३९(ग) को बनाये रखने की शपथ ली है, (भारतीय संविधान, तीसरी अनुसूची, प्रारूप ४ व ८), से निकृष्ट भ्रष्टाचारी कौन हो सकता है ?
उपरोक्त स्थिति को लोकपाल विधेयक से जुड़े अन्य लोग भले न जानते हों, कानूनविद शांति भूषण भली भांति जानते हैं, मै उन्हें ४ अप्रैल से लगातार लिख रहा हूँ, फिर भी मीडिया और शांति भूषण जनता को मूर्ख बनाने से बाज नहीं आ रहे हैं. शांति भूषण न्याय मंत्री भी रहे हैं और कानून विद भी हैं | मुझे उनसे जवाब चाहिए कि वे देश को क्यों ठग रहे हैं ?" साभार--(http://www.aryavrt.com/)
उपर्युक्त सन्दर्भ में प्रस्तुतीकरण का उद्देश्य केवल यही है कि आने वाला 'लोकपाल विधेयक' एक आदर्श प्रारूप एवम त्रुटियों से रहित हो और वर्तमान भ्रष्टाचारी वातावरण पर अंकुश लगाया जा सके, जिससे भारत की जनता को राहत मिल सके.......
क्या भारतीय संविधान की कोई किताब है। अगर हाँ तो उसे मैं कैसे खरीद सकता हूँ
ReplyDeleteभारत के सविधान किताब मुझे चाहिए है तो बता दे
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ReplyDeleteGood information nice
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