Sunday, July 10, 2011

भारत में कम ही लोग जानते हैं कि भारत की अपनी अलग अंकगणित है, वैदिक अंकगणित। भारत के स्कूलों में वह शायद ही पढ़ाई जाती है। भारत के शिक्षाशास्त्रियों का यही विश्वास है कि असली ज्ञान-विज्ञान वही है जो इंग्लैंड-अमेरिका से आता है। घर का जोगी जोगड़ा, आन गाँव का सिद्ध। लेकिन आन गाँव वाले अब भारत की वैदिक अंकगणित पर चकित हो रहे हैं और उसे सीख रहे हैं। बिना कागज-पेंसिल या कैल्क्युलेटर के मन ही मन हिसाब लगाने का उससे सरल और तेज तरीका शायद ही कोई है। ( अधिक जानकारी के लिए क्लिक करे ) उदाहरण--मान लें कि हमें 889 में 998 का गुणा करना है। प्रचलित तरीके से यह इतना आसान नहीं है। भारतीय वैदिक तरीके से उसे ऐसे करेंगे- दोनों का सब से नजदीकी पूर्णांक एक हजार है। उन्हें एक हजार में से घटाने पर मिले 2 और 111. इन दोनो का गुणा करने पर मिलेगा 222। अपने मन में इसे दाहिनी ओर लिखें। अब 889 में से उस दो को घटाएँ, जो 998 को एक हजार बनाने के लिए जोड़ना पड़ा। मिला 887। इसे मन में 222 के पहले बायीं ओर लिखें। यही, यानी 887 222, सही गुणनफल है।' इसी तरह--96 गुणे 95 कितना हुआ....9120'. भारतीय योगियों ने उसे हजारों साल पहले विकसित किया था। आप उन से गणित का कोई भी प्रश्न पूछ सकते थे और वे मन की कल्पनाशक्ति से देख कर फट से जवाब दे सकते थे। उन्होंने तीन हजार साल पहले शून्य की अवधारणा प्रस्तुत की और दशमलव वाला बिंदु सुझाया। उनके बिना आज हमारे पास कंप्यूटर नहीं होता।'

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