Sunday, May 15, 2011

गांधी जी

गांधी जी के सामानों की नीलामी हुई और हमारे देश के माल्या जी ने देश की लाज रख ली। एक अरब आबादी ने राहत की साँस ली। सवाल यह है कि ऐसी स्थिति क्यों पैदा होती है।
सरकार नीलामी के समय हाथ पैर मारना शुरू करती है जबकि उसे पहले से ही पता होता है। क्या इस देश में गांधी की विरासत बचने के लिए किसी विवादस्पद व्यवसायी का आगे आना जरूरी है। हमारी आबादी सौ करोड़ है और हर आदमी से एक रुपये का चंदा भी किया जाता तो गांधी की विरासत को जनता के सहयोग से बचाया जा सकता था। नौ दशमलव तीन करोड़ की बोली में यह विरासत खरीदी जा सकी। सवाल यह है कि क्या हमारे देश की पार्टीयाँ जो गांधी के नाम पर सालों से राजनीति कर रही हैं उनके पार्टी फंड में इतना भी पैसा नहीं था कि वे जा कर इस विरासत को हासिल करतीं। हमारे देश के सांसद क्या इतने गरीब थे कि अपनी संसद निधि का उपयोग इस विरासत को बचा ने के लिए नहीं कर सकते थे।
क्या हमारे देश की सर्वोच्च संस्था में यह प्रावधान नहीं है कि राष्ट्रपिता के सामानों को किसी भी कीमत पर प्राप्त करने के लिए कदम उठाये जा सकें। बात करेंगे तो सभी चिंतित और अंतिम स्तर पर प्रयास करते दिखाई देंगे। जैसा कि हमारे देश में हर केस में होता है। बाद में बयान जारी हो जाता है कि तमाम प्रयासों के बाद भी हम बापू की विरासत हासिल नहीं कर सके। लानत है जिसने बिना किसी साधन के मात्र अपने आत्मबल सत्य अहिंसा के सहारे देश को स्वाधीनता दिला दी उस देश के समर्थ नेता उसकी विरासत तक नहीं बचा सके। मैं उद्योगपति के प्रयास को कमतार कर के नहीं आंक रहा और न ही उनके द्वारा किया गया प्रयास सराहनीय नहीं है। सवाल देश के जिम्मेदार नेताओं का है।
सोचने की बात है कि हमारे देश के नेता कितने संवेदन हीन हैं कितने स्वार्थी और निकृष्ट हैं। बेशरम तो खैर हैं ही। जरा सोचिये हर अखबार में चिंता थी हर रिक्शेवाला और चाय वाला कहा रहा था क्या हमारे गांधी बाबा का चश्मा घड़ी और चप्पल नीलाम होगी। अर्थ यह कि देश की गरीब जनता जिस गांधी को पूजती है और जिस से वह भावनात्मक रुप से जुड़ी है उस गांधी को हमारे देश के बड़े लोग हमारे नेता क्या महत्व देते हैं अगर उनके मन में गांधी के लिए ज़रा भी सम्मान होता तो देश की राजनीति में इतना पराभव कभी नहीं आता। हमारे देश का आम आदमी आज भी इसीलिये परेशान है कि उसे आज़ादी के बाद गांधी नहीं मिला। किसकी जिम्मेदारी है गांधी की विरासत बचाने की आम आदमी तो बस अभिमन्यु की तरह है जो बस चिंता कर सकता है और चक्रव्युह के अंतिम द्वार तक लड़ सकता है लेकिन चक्रव्युह नहीं भेद सकता। वह लड़ भी रहा है इस चक्रव्यूह को भेदने के लिए पर क्या करें उसके राष्ट्रपिता उसे उसी तरह छोड़ गए हैं जैसे अर्जुन चक्रव्यूह वाले दिन अभिमन्यु को छोड़ गए थे और उसका भाग्य तो गर्भ में ही माता के सोने के कारण सोया हुआ है। देखिये कब तक लड़ता है अभिमन्यु।

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