Thursday, May 19, 2011

BHARAT DARSHAN

गायत्री महामंत्र के 24 अक्षरों में इतना ज्ञान-विज्ञान भरा हुआ है कि उसका अन्वेषण करने से सब कुछ प्राप्त किया जा सकता है । ब्रह्माजी ने गायत्री के चार चरणों की व्याख्या स्वरूप चार मुखों से चार वेदों का वर्णन किया ।

महर्षि वाल्मीक ने अपनी वाल्मीक रामायण की रचना करते हुए एक-एक हजार श्लोकों के बाद क्रमशः गायत्री के एक-एक अक्षर से आरंभ होने वाले श्लोक बनाये । इस प्रकार वाल्मीक रामायण में प्रत्येक एक हजार श्लोकों के बाद गायत्री के एक-एक अक्षर का सम्पुट लगा हुआ है । महर्षि वाल्मीक गायत्री के महत्व को जानते थे उन्होंने अपने महाकाव्य में एक प्रकार का सम्पुट लगाकर अपने ग्रंथ की महत्ता में और भी अधिक अभिवृद्धि कर ली ।
श्रीमद्भागवत पुराण की भी गायत्री महामंत्र की व्याख्या स्वरूप ही रचना हुई । श्रीधरी टीका में इस रहस्य को स्पष्ट रूप से स्वीकार किया गया है ।

सत्यं परं धीमहि-तं धीमहि इति गायत्र्या प्रारम्भेण गायत्र्याख्य ब्रह्मविद्या रूपभेत्पुराण इति । (श्री धरी)
वेद व्यास जी ने गायत्री प्रतिपाद्य सत्यं परं धीमहि तत्व में ही भागवत का प्रारंभ मूल है । गायत्री के ही दो अक्षरों की व्याख्या में एक-एक स्कन्ध बनाकर 12 स्कन्ध पूरे किये हैं ।

देवी भागवत पुराण के सम्बंध में भी यही मान्यता है कि उसकी रचना गायत्री मंत्र के अक्षरों में निहित तत्वों का उद्घाटन करने के लिए ही की गई है । मत्स्य पुराणों में इस तथ्य का स्पष्ट उल्लेख है ।

यत्राधिकृत्य गायत्री र्वण्यन्ते धर्म विस्तरः ।
वृत्रासुरवधोपेतं तद् भागवत मुच्यते॥
मत्स्य पुराण 53/20
जिसमें गायत्री के माध्यम से धर्म का विस्तार पूर्वक वर्णन है । जिसमें सृत्तासुर वध का वृतान्त है, वह भागवत ही कही जाती है ।

देवी भागवत पुराण का आरंभ गायत्री के रहस्योद्घाटन के रूप में ही होता है ।

ॐ सर्व चैतन्य रूपां तामाद्यां विद्यां च धीमहि । बुद्धिर्यो नः प्रचोदयात् । (देवी भागवत)
जो आदि अन्त रहित, सर्व चैतन्य स्वरूप वाली, ब्रह्म विद्या स्वरूपिणी आदि शक्ति है उसका हम ध्यान करते हैं । वह हमारी बुद्धि को सन्मार्ग पर प्रेरित करे ।

देवी भागवत, बारहवें स्कन्ध के अन्त में समाप्ति का श्लोक भी गायत्री तत्व के सम्पुट के साथ ही पूर्ण हुआ है ।

सच्चिदानंद रूपां ता गायत्री प्रतिपिदताम् ।
नमामि ह्रीं मयीं देवी धियो योनः प्रचोदयात् ।

उन ह्रीं मयी सच्चिदानंद स्वरूपा गायत्री शक्ति को प्रणाम है । वे हमारी बुद्धि को सन्मार्ग पर प्रेरित करें ।

चारों वेद, रामायण, श्रीमद् भागवत, देवी भागवत ही नहीं-न जाने कितने बड़े ज्ञान-भण्डार का प्रणयन, गायत्री के आधार पर हुआ है । वस्तुतः भारतीय धर्म का सारा ज्ञान-विज्ञान गायत्री रूपी सूर्य के सामने छोटे-बड़े ग्रह-उपग्रहों के रूप में भ्रमण करता है ।

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