Saturday, May 14, 2011

मौद्रिक दरें:
१)        सी.आर.आर.(नकद आरक्षण अनुपात):- सी.आर.आर. वह धन है जो बैंकों को रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया के पास गारंटी के रूप में रखना होता है.
२)      बैंक दर :- जिस दर पर रिजर्व बैंक वाणिज्यिक बैंकों को उधार देता है बैंक दर कहलाती है.
३)      वैधानिक तरलता अनुपात (एस.एल.आर.):- किसी आपात देनदारी को पूरा करने के लिए वाणिज्यिक बैंक अपने प्रतिदिन कारोबार नकद सोना और सरकारी प्रतिभूतियों में निवेश के रूप में एक खास रकम रिजर्व बैंक के पास जमा कराते है जिस एस.एल.आर. कहते है..
४)      रेपो रेट:- रेपो दर वह है जिस दर पर बैंकों को कम अवधि के लिए रिजर्व बैंक से कर्ज मिलता है. रेपो रेट कम करने से बैंको को कर्ज मिलना आसान हो जाता है.
५)      रिवर्स रेपो रेट:- बैंकों को रिजर्व बैंक के पास अपना धन जमा करने के उपरांत जिस दर से ब्याज मिलता है वह रिवर्स रेपो रेट है..
लीड बैंक योजना :- जिलों कि अर्थव्यवस्था को सुधारने के उद्देश्य से इस योजना का प्रारंभ १९६९ में किया गया. जिसके तहत प्रत्येक जिले में एक लीड बैंक होगा जो कि अन्य बैंकों कि सहायता के साथ साथ कार्यक्रमों के माध्यम से वित्तीय संस्थाओ के बीच समन्वय स्थापित करेगा.
निष्पादन बजट:- कार्यों के परिणामों या निष्पादन को आधार बनाकर निर्मित होने वाला बजट निष्पादन बजट है  इसे कार्यपूर्ति बजट भी कहते है.
जीरोबेस बजट:- इस बजट में किसी विभाग या संगठन कि प्रस्तावित व्यय मांग के प्रत्येक मद को शुन्य मानते हुए पुनर्मूल्यांकन किया जाता है. भारत में इसे सर्वप्रथमकाउन्सिल ऑफ साइंटिफिक एंड इंडस्ट्रियल रिसर्च (CISR) में लागू किया गया और १९८७-८८ से सभी विभागों व मंत्रालयों में लागू हो गया.
आउटकम बजट :- इसके तहत प्रत्येक विभाग/ मंत्रालय के भौतिक लक्ष्यों को अल्प अवधि में निरीक्षण एवं मूल्यांकन के लिए रखा जाता है.
जेंडर बजट :- इस बजट के माध्यम से सरकार महिलाओं के कल्याण एवं सशक्तिकरण के लिए चलाये जा रहे कार्यक्रमों और योजनाओं के क्रियान्वयन हेतु प्रतिवर्ष एक निश्चित राशि का प्रावधान बजट में करती है.
प्रत्यक्ष कर :- वह कर जिसमे कर स्थापितकर्ता (सरकार) और करदाता के बीच प्रत्यक्ष सम्बन्ध होता है. अर्थात जिसके ऊपर कर लगाया जा रहा है सीधे वही व्यक्ति भरता है.
अप्रत्यक्ष कर :- वह कर जिसमे कर स्थापितकर्ता (सरकार) और भुगतानकर्ता के बीच प्रत्यक्ष सम्बन्ध नहीं होता है अर्थात जिस व्यक्ति/संस्था पर कर लगाया जाता है उसे किसी अन्य तरीके से प्राप्त किया जाता है.
राजस्व घाटा :- सरकार को प्राप्त कुल राजस्व एवं सरकार द्वारा व्यय किये गए कुल राजस्व का अंतर ही राजस्व घाटा है.
राजकोषीय घाटा :- सरकार के लिए कुल प्राप्त राजस्व, अनुदान और गैर-पूंजीगत प्राप्तियों कि तुलना होने वाले कुल व्यय का अतिरेक है अर्थात आय(प्राप्तियों) के सन्दर्भ में व्यय कितना अधिक है.
बॉण्ड अथवा डिबेंचर :- ऐसे ऋण पत्र होते है जिन्हें केंद्र सरकार, राज्य सरकार, अथवा कोई संसथान जारी करता है इन ऋण पत्रों पर एक निश्चित अवधि पर निश्चित दर से ब्याज प्राप्त होता है.
प्रतिभूति :- वित्तीय परिसंपत्तियों जैसे शेयर, डिबेंचर, व अन्य ऋण पत्रों के लिए संयुन्क्त रूप से प्रतिभूति शब्द का प्रयोग किया जाता है. बैंकिग में भी ऋणों कि जमानत के सन्दर्भ में प्रतिभूति शब्द का प्रयोग होता है.

mahan chanakya

चाणक्य नीति – CHANAKYA THE GREAT
चाणक्य का जन्म ईसा पूर्व तीसरी या चौथी शताब्दी माना जाता है । वे एक महानकूटनीतिज्ञ एवं राजनीतिज्ञ थे। इन्होंने मौर्य साम्राज्य की स्थापना और चन्द्रगुप्त को सम्राट बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इनके पिता का नाम चणक था, इसी कारण उन्हें चाणक्यकहा जाता है। वैसे उनका
वास्तविक नाम विष्णुगुप्तथा। कुटिल कुल में पैदा होने के कारण वे ’कौटिल्यभी कहलाये।
चाणक्य के जीवन से जुड़ी हुई कई कहानियां प्रचलित हैं। एक बार चाणक्य कहीं जा रहे थे। रास्ते में कुशा नाम की कंटीली झाड़ी पर उनका पैर पड़ गया, जिससे पैर में घाव हो गया। चाणक्य को कुशा पर बहुत क्रोध आया।
उन्होंने वहीं संकल्प कर लिया कि जब तक कुशा को समूल नष्ट नहीं कर दूंगा तब तक चैन से नहीं बैठूँगा। वे उसी समय मट्ठा और कुदाली लेकर पहुंचे और कुशों को उखाड़-उखाड़ कर उनकी जड़ों में मट्ठा डालने लगे ताकि कुशा पुनः न उग आये। इस कहानी से पता चलता है कि चाणक्य कितने कठोर, दृढ संकल्प वाले
और लगनशील व्यक्ति थे। जब वे किसी काम को करने का निश्चय कर लेते थे तब उसे पूरा किये बिना चैन से नहीं बैठते थे। चाणक्य की शिक्षा-दीक्षा तक्षशिला में हुई। तक्षशिला उस समय का विश्व-प्रसिद्ध विश्विद्यालय था। देश विदेश के विभिन्न छात्र वहाँ शिक्षा प्राप्त करने आते थे। छात्रों को चरों वेद, धनुर्विद्या, हाथी और घोड़ों का सञ्चालन, अठारह कलाओं के साथ-साथ न्यायशास्त्र, चिकित्साशास्त्रराजनीतिशास्त्र, सामाजिक कल्याण आदि के बारे में शिक्षा दी जाती थी। चाणक्य ने भी ऐसी ही उच्च शिक्षा प्राप्त की। फलतः बुद्धिमान चाणक्य का व्यक्तित्व तराशे हुए हीरे के समान चमक उठा। तक्षशिला में अपनी विद्वता और बुद्धिमत्ता का परचम फहराने के बाद वह वहीं राजनीतिशास्त्र के आचार्य बन गए। देश भर में उनकी विद्वत्ता की चर्चा होने लगी।
उस समय पाटलिपुत्र मगध राज्य की राजधानी थी और वहां घनानंद नाम का राजा राज्य करता था। मगध देश का सबसे बड़ा राज्य था और घनानंद उसका शक्तिशाली राजा। लेकिन घनानंद अत्यंत लोभी और भोगी-विलासी था। प्रजा उससे संतुष्ट नहीं थी। चाणक्य एक बार राजा से मिलने के लिए पाटलिपुत्र आये। वे देशहित
में घनानंद को प्रेरित करने आये थे ताकि वे छोटे-छोटे राज्यों में बंटे देश को आपसी वैर-भावना भूलकर एकसूत्र में पिरो सकें। लेकिन घनानंद ने चाणक्य का प्रस्ताव ठुकरा दिया और उन्हें अपमानित करके दरबार से निकाल
दिया। इससे चाणक्य के स्वाभिमान को गहरी चोट लगी और वे बहुत क्रोधित हुए। अपने स्वभाव के अनुकूल उन्होंने चोटी खोलकर दृढ संकल्प किया कि जब तक वह घनानंद को अपदस्थ करके उसका समूल विनाश न कर देंगे तब तक चोटी में गांठ नहीं लगायेंगे। जब घनानंद को इस संकल्प की बात पता चली तो उसने क्रोधित
होकर चाणक्य को बंदी बनाने का आदेश दे दिया। लेकिन जब तक चाणक्य को बंदी बनाया जाता तब तक वे वहां से निकल चुके थे। महल से बाहर आते ही उन्होंने सन्यासी का वेश धारण किया और पाटलिपुत्र में ही छिपकर रहने लगे। एक दिन चाणक्य की भेंट बालक चन्द्रगुप्त से हुई, जो उस समय अपने साथियों के साथ राजा और प्रजा का खेल खेल रहा था। राजा के रूप में चन्द्रगुप्त जिस कौशल से अपने संगी-साथियों की समस्या को सुलझा रहा था वह चाणक्य को भीतर तक प्रभावित कर गया। चाणक्य को चन्द्रगुप्त में भावी राजा की झलक दिखाई देने लगी। उन्होंने चन्द्रगुप्त के बारे में विस्तृत जानकारी हासिल की और उसे अपने साथ तक्षशिला ले गए। वहां चाणक्य ने चन्द्रगुप्त को वेद-शास्त्रों से लेकर युद्ध और राजनीति तक की शिक्षा दी। लगभग आठ साल तक अपने संरक्षण में चन्द्रगुप्त को शिक्षित करके चाणक्य ने उसे एक शूरवीर बना दिया । उन्हीं दिनों विश्व विजय पर निकले यूनानी सम्राट सिकंदर विभिन्न देशों पर विजय प्राप्त करता हुआ भारत की ओर बढ़ा चला आ रहा था। गांधार का राजा आंभी सिकंदर का साथ देकर अपने पुराने शत्रु राजा पुरू को सबक सिखाना चाहता था। चाणक्य को आंभी की यह योजना पता चली तो वे आंभी को समझाने के लिए गए। आंभी से चाणक्य ने इस सन्दर्भ में विस्तार पूर्वक बातचीत की, उसे समझाना चाहा, विदेशी हमलावरों से देश की रक्षा करने के लिए उसे प्रेरित करना चाहा; किन्तु आंभी ने चाणक्य की एक भी बात नहीं मानी। वह सिकंदर का साथ देने के लिए कटिबद्ध रहा। कुछ ही दिनों बाद जब सिकंदर गांधार प्रदेश में प्रविष्ट हुआ तो आंभी ने उसका जोरदार स्वागत किया। आंभी ने उसके सम्मान में एक विशाल जनसभा का आयोजन किया, जिसमें गांधार के प्रतिष्ठित व्यक्तियों के साथ-साथ तक्षशिला के आचार्य और छात्र भी आमंत्रित किये गए थे। इस सभा में चाणक्य और उनके शिष्य चन्द्रगुप्त भी उपस्थित थे। सभा के दौरान सिकंदर के सम्मान में उसकी प्रशंसा के पुल बांधे गए। उसे महान बताते हुए देवताओं से उसकी तुलना की गयी सिकंदर ने अपने व्याख्यान में
अप्रत्यक्षतः भारतीयों को धमकी-सी दी कि उनकी भलाई इसी में है कि वे उसकी सत्ता स्वीकार कर लें। चाणक्य ने सिकंदर की इस धमकी का खुलकर बड़ी ही संतुलित भाषा में विरोध किया। वे विदेशी हमलावरों से देश की रक्षा करना चाहते थे। चाणक्य के विचारों और नीतियों से सिकंदर प्रभावित अवश्य हुआ लेकिन विश्व विजय की लालसा के कारण वह युद्ध से विमुख नहीं होना चाहता था। सभा विसर्जन के बाद चाणक्य ने चन्द्रगुप्त के सहयोग से तक्षशिला के पांच सौ छात्रों को संगठित किया और उन्हें लेकर राजा पुरु से भेंट की । चाणक्य को देशहित में पुरु का सहयोग मिलने में कोई कठिनाई नहीं हुई । जल्दी ही सिकंदर ने पुरु पर चढ़ाई कर दी। पुरु को चाणक्य और चन्द्रगुप्त का सहयोग प्राप्त था, इसलिए उसका मनोबल बढ़ा हुआ था । युद्ध में पुरु और उसकी सेना ने सिकंदर के छक्के छुड़ा दिए; लेकिन अचानक सेना के हाथी विचलित हो गएजिससे पुरु की सेना में भगदड़ मच गई। सिकंदर ने उसका पूरा-पूरा लाभ उठाया और पुरु को बंदी बना लिया । बाद में उसने पुरु से संधि कर ली। यह देखकर चाणक्य ने चन्द्रगुप्त को साथ लेकर पुरु का साथ छोड़ने में हीभलाई समझी। इसके बाद चाणक्य अन्य राजाओं से मिले और उन्हें सिकंदर से युद्ध के लिए प्रेरित करते रहे । इसीबीच सिकंदर की सेना में फूट पड़ गयी। सैनिक लम्बे समय से अपने परिवारों से बिछुड़े हुए थे और युद्ध से ऊब चुके थे। इसलिए वे घर जाना चाहते थे । इधर बहरत में भी सिकंदर के विरुद्ध चाणक्य और चन्द्रगुप्त के नेतृत्व में विभिन्न राजागण सिर उठाने लगे थे । यह देखकर सिकंदर ने यूनान लौटने का फैसला कर लिया। कुछ ही दिनों मेंबीमारी से उसकी मौत हो गई। अब चाणक्य के समक्ष घनानंद को अपदस्थ करके एक विशाल साम्राज्य की स्थापना करने का लक्ष्य था। इस बीच चन्द्रगुप्त ने देश-प्रेमी क्षत्रियों की एक सेना संगठित कर ली थी । अतः चाणक्य ने चन्द्रगुप्त को मगध पर आक्रमण करने को प्रेरित किया। अपनी कूट नीति के बल पर चाणक्य ने चन्द्रगुप्त को मगध पर विजय दिलवाई । इस युद्ध में राजा घनानंद की मौत हो गयी। चाणक्य ने
चन्द्रगुप्त को मगध का सम्राट घोषित कर दिया। बड़े जोर शोर से उसका स्वागत हुआ। चन्द्रगुप्त अपने गुरु चाणक्य को महामंत्री बनाना चाहता था किन्तु चाणक्य ने यह पद स्वीकार नहीं किया । वह मगध के पूर्व महामंत्रीराक्षसको ही यह पद देना चाहते थे। किन्तु राक्षस पहले ही कहीं छिप गया था और अपने राजा घनानंद की मौत का बदला लेने का अवसर ढूँढ़ रहा था। चाणक्य यह बात जानते थे। उन्होंने राक्षस को खोजने के लिए गुप्तचर लगा दिए और एक कूटनीतिक चाल द्वारा राक्षस को बंदी बना लिया। चाणक्य ने राक्षस को कोई सजा नहीं दी, बल्कि चन्द्रगुप्त को सलाह दी कि वह उसके तमाम अपराध क्षमा करके उसे महामंत्री पद पर प्रतिष्ठित करे। चाणक्य खुद गंगा के तट पर एक आश्रम बनाकर रहने लगे। वहीं से वह राज्य की रीति-नीति का निर्धारण करते और चन्द्रगुप्त को यथायोग्य परामर्श देते रहते। अपनी प्रखर कूटनीति के द्वारा आचार्य चाणक्य ने बिखरे हुए भारतीयों को राष्ट्रीयता के सूत्र में पिरोकर महान राष्ट्र की स्थापना की। किन्तु
विशाल मौर्य साम्राज्य के संस्थापक होते हुए भी वे अत्यंत निर्लोभी थे। पाटलिपुत्र के महलों में न रहकर वे गंगातट पर बनी एक साधारण-सी कुटिया में रहते थे और गोबर के उपलों पर अपना भोजन स्वयं तैयार करते थे। चाणक्य द्वारा स्थापित मौर्य साम्राज्य कालांतर में एक महान साम्राज्य बना। चन्द्रगुप्त ने उनके मार्गदर्शन में लगभग चौबीस वर्ष राज्य किया और पश्चिम में गांधार से लेकर पूर्व में बंगाल और उत्तर में कश्मीर से लेकर दक्षिण में मैसूर तक एक विशाल साम्राज्य की स्थापना की।
चाणक्य का निवास-स्थान शहर के बाहर पर्णकुटी थी जिसे देखकर चीन के ऐतिहासिक यात्री फाह्यान ने कहा था-इतने विशाल देश का प्रधानमंत्री ऐसी कुटिया में रहता है।तब उत्तर था चाणक्य का-जहाँ का प्रधानमंत्री
साधारण कुटिया में रहता है वहां के निवासी भव्य भवनों में निवास किया करते हैं और जिस देश का प्रधानमंत्री राज प्रासादों में रहता है वहां की सामान्य जनता झोंपड़ियों में रहती है।” आह ! वह देश महान् क्यों न होगा जिसका प्रधानमंत्री इतना ईमानदारजागरूक, चरित्र का धनी व कर्तव्यपरायण हो। 2500 ई. पू. चणक के पुत्र विष्णुगुप्त ने भारतीय राजनयिकों को राजनीति की शिक्षा देने के लिए अर्थशास्त्र, लघु चाणक्य, वृद्ध चाणक्य, चाणक्य, नीति शास्त्र आदि ग्रंथों के साथ व्याख्यायमान सूत्रों का निर्माण किया था। चाणक्य के अनुसार आदर्श राज्य-संस्था वही है जिसकी योजनाएँ प्रजा को उसके भूमि, धन-धान्यादि पाते रहने के मूलाधिकार से वंचित कर देने वाली न होंउसे लम्बी-चौड़ी योजनाओं के नाम से कर-भार से आक्रांत न कर डालें। राष्ट्रोद्वारक योजनाएँ राजकीय व्ययों में से बचत करके ही चलाई जानी चाहिए। राजा का ग्राह्म भाग देकर बचे प्रजा के  कड़ों के भरोसे पर लम्बी-चौड़ी योजना छेड़ बैठना प्रजा का उत्पीड़न है। चाणक्य का साहित्य समाज में शांति, न्याय, सुशिक्षा, सर्वतोमुखी प्रगति सिखाने वाला ज्ञान-भंडार है, राजनीतिक शिक्षा का यह दायित्व है कि वह
मानव समाज को राज्य-संस्थापन, संचालन, राष्ट्र-संरक्षण तीनों काम सिखाए। दुर्भाग्य है भारत का कि चाणक्य के ज्ञान की उपेक्षा करके देशी-विदेशी शत्रुओं को आक्रमण करने का निमंत्रण देकर अपने को शत्रुओं का निरुपाय आखेट बनाने वाली आसुरी शिक्षा को अपना लिया है। नैतिक-शिक्षा, धर्म-शिक्षा का लोप हो गया है। चरित्र-निर्माण को बहिष्कृत कर दिया है। मात्र लिपिक (क्लर्क) पैदा करने वाली, सिद्धांतहीन, पेट-पालन की शिक्षा रह गई है। समाज धीरे-धीरे आसुरी रूप लेता जा रहा है। अर्थ दास सम्मान या आत्मगौरव की उपेक्षा करता है। स्वाभिमान का जनाजा निकाला जा रहा है। आज के स्वार्थपूरित अज्ञानांधाकर में डूबे शुद्ध स्वार्थी राजनीतिक दुर्दशा में मात्र चाणक्य का ज्ञानामृत ही भारत का पथ-प्रदर्शक बनने की क्षमता रखता है। वही हमें राजनीतिक, सामाजिक, आध्यात्मिक मुक्ति-मार्ग दिखा सकता है। आज की सदोष राष्ट्रीय परिस्थिति इस वर्तमान कुशिक्षा के कारण है। राष्ट्रीय भावना, राष्ट्रहित तथा मनु के आदर्श आज लोप हो चुके हैं। अहंकारी विद्या का ही बोलबाला है। सांस्कृतिक स्वरूप ध्वंस हो चुका है। निष्काम सेवा-भाव का दिवाला निकल गया है। प्रभुतालोभी नेतापन की मदिरा ने बौरा दिया है। ऐसे में चाणक्य की राजनीतिक चिंतन-धारा को समाविष्ट करके ही भारत का उद्धार हो सकता है। चाणक्य एक जंगल में झोपड़ी बनाकर रहते थे। वहां अनेक लोग उनसे परामर्श और ज्ञान प्राप्त करने के लिए आते थे। जिस जंगल में वह रहते थे, वह पत्थरों और कंटीली झाडि़यों से भरा था। चूंकि उस समय प्राय: नंगे पैर रहने का ही चलन था, इसलिए उनके निवास तक पहुंचने में लोगों को अनेक कष्टों का सामना करना पड़ता था। वहां पहुंचते-पहुंचते लोगों के पांव लहूलुहान हो जाते थे। एक दिन कुछ लोग उस मार्ग से बेहद परेशानियों का सामना कर चाणक्य तक पहुंचे। एक व्यक्ति उनसे निवेदन करते हुए बोला, ‘आपके पास पहुंचने में हम लोगों को बहुत कष्ट हुआ। आप महाराज से कहकर यहां की जमीन को चमड़े से ढकवाने की व्यवस्था करा दें। इससे लोगों को आराम होगा।उसकी बात सुनकर चाणक्य मुस्कराते हुए बोले, ‘महाशय, केवल यहीं चमड़ा बिछाने से समस्या हल नहीं होगी। कंटीले व पथरीले पथ तो इस विश्व में अनगिनत हैं। ऐसे में पूरे विश्व में चमड़ा बिछवाना तो असंभव है। हां, यदि आप लोग चमड़े द्वारा अपने
पैरों को सुरक्षित कर लें तो अवश्य ही पथरीले पथ व कंटीली झाडि़यों के प्रकोप से बच सकते हैं।वह व्यक्ति सिर झुकाकर बोला, ‘हां गुरुजी, मैं अब ऐसा ही करूंगा।’ इसके बाद चाणक्य बोले, ‘देखो, मेरी इस बात के पीछे भी गहरा सार है। दूसरों को सुधारने के बजाय खुद को सुधारो। इससे तुम अपने कार्य में विजय अवश्य हासिल कर लोगे। दुनिया को नसीहत देने वाला कुछ नहीं कर पाता जबकि उसका स्वयं पालन करने वाला कामयाबी की बुलंदियों तक पहुंच जाता है।इस बात से सभी सहमत हो गए। ॐ अल्लाह राम रहीम विष्णु मुहम्मद शिव अली हनुमान हसन हुसैन नानक कबीर जीजस ॐ साईं अल्लाह साईं राम अल्लाह हु अकबर जय सिया राम

on the serious movement of bhart swabhiman aandolan please all real indian support bhart swabhiman aandolan for india make corruption free on to join 4 june delhi hungery strike over corrpt full government manmohan singh ,please all indian join member yourself of bhart swabhiman aandolan and support fully yourself .thank u.this a chance youself to ur self make great with great activation of urself with full holyness.