स्टॉक (शेयर) मार्किट से हमारा तात्पर्य है कि ऐसी
मार्किट जहां पर शेयरों की खरीद फरोख्त तथा
बिक्री की जाती है। शेयर से हमारा मतलब किसी
कम्पनी के “इक्विटी शेयरों” से है।
शेयर दो प्रकार के होते हैं:
प्रेफरेंस शेयर और इक्विटी शेयर। आमतौर पर हम शेयरों
की बात करते हैं तो हम इक्विटी शेयर की बात करते हैं।
प्रेफरेंस शेयर पर लाभांश की दर तय होती है। किसी
कारणवश कम्पनी बन्द हो जाये तो पहला अधिकार
प्रेफरेंस शेयरों का होता है और इन्ही पर लाभांश और
मूलधन की वापसी की जाती है। प्रेफरेंस शेयरहोल्डरों
को अप्ना तय लाभांश हमेशा मिलता है कम्पनी चाहे
लाभ में जाये या घाटे में।
दूसरी तरफ इक्विटी शेयरों पर लाभांश की गारंटी नहीं
होती। इन शेयरहोल्डरों को कम्पनी का मालिक
माना जाता है। कम्पनी सभी लेनदारों और प्रेफरेंश
शेयरहोल्डरों का बकाया चुकाने के बाद ही इक्विटी
शेयरों पर लाभांश देती है। इस प्रकार के शेयरहोल्डरों
को कम्पनी का मालिक माना जाता है तथा उन्हें
कम्पनी के मामलों में मत का अधिकार होता है।
कम्पनी का नुक्सान होनें पर उन्हें कम मूल्य या शून्य
लाभांश मिलता है। और कम्पनी को फायदा होने की
स्थिती में भी सबसे अधिक फायदा इन्हीं शेयरों में
होता है।
इस प्रकार शेयरों में निवेश करने पर असली लाभ इन्हीं
शेयरों से मिलता है।
कम्पनी: कम्पनी एक ऐसा व्यापारिक संगठन होता है
जिसे कुछ ‘शेयरहोल्डर’ व्यापार चलाने के लिये गठित
करते हैं। इसमें शेयरहोल्डरों द्वारा चुनकर बोर्ड ओफ
डायरेक्टर्स की नियुक्ति की जाती है।
क़म्पनी के कारोबार के लिये पैसे की जरुरत होती है। इस
पैसे को “कैपिटल” कहा जाता है।
इक्विटी शेयर किसी कम्पनी में शेयरहोल्डर के
स्वामित्व का प्रमाण होता है। जब हमारा किसी
कम्पनी का शेयर खरीदते हैं तो उसके प्रमाण के रूप में हमें
एक ‘शेयर सर्टिफिकेट’ मिलता है।
आजकल ये शेयर आमतौर पर डिमैटेरेयलाइज्ड या NSDL के
पास इलैक्ट्रानिक रूप में या न्यायधारी सदस्य संस्थान
(जोकि बैंक या ब्रोकर या कोई अन्य वित्तीय संस्थान
हो सकता है।) के पास रखे जाते हैं। आप शेयर सर्टिफिकेट
या उपरोक्त तरीकों में से कोई भी एक चुन सकते हैं।
म्युचुअल फंड: अधिकतर नये निवेशक म्युचुअल फंड में ही
अपना पैसा निवेश करते हैं। म्युचुअल फंड एक ऐसी निवेश
कम्पनी है जो अपने शेयर होल्डरों द्वरा एकत्रित किया
गया “धन” निवेश करती है।आमतौर पर शेयर बाज़ार की
प्रतिभूतियों में- म्युचुअल फंड अपने निवेशकों का पैसा
आगे निवेश करता है। उदाहरण के लिये जब आप इक्विटी
फंड में निवेश करते हैं तो शेयर बाजार से शेयर खरीदने का
काम आपके द्वारा स्वयं ना करके निवेश म्युचुअल फंड के
द्वारा किया जाता है।
इस तरह आप इक्विटी फंड के माध्यम से शेयरों में निवेश
कर सकते हैं। म्युचुअल फंड की आमदनी के दो स्त्रोत हैं।
1. शेयर या बांड में निवेश पर डिविडेंड या ब्याज, और
2. भाव बढ़ने पर निवेश बेचने से होने वाला लाभ, घटा
भाव गिरने पर निवेश बेचने से होने वाला नुकसान।
पब्लिक इश्यु: शेयर दो प्रकार से खरीदे जाते हैं: या तो
शेयर बाजार से या फिर कम्पनी के ‘पब्लिक इश्यु’ से
आबंटन करके।
ज़ब कम्पनी पैसा जुटाने के लिये नये शेयर या ऋणपत्र
जारी करती है, तो इसे कम्पनी का ‘पब्लिक इश्यू’ कहा
जाता है।ऐसे नये शेयरों या ऋणपत्रों को न्यू इश्यू कहते
हैं।
पब्लिक इस्यू के लाभ: पुरानी कम्पनियां जब नये इश्यू
बाज़ार में उतारती हैं तो उनके दाम बाज़ार भाव से बहुत
कम होते हैं और यह लगभग आधे तक भी हो सकते हैं।
उदाहरण के लिये अगर किसी कम्पनी का ‘न्यू इश्यू’12 से
15 रुपये प्रति शेयर पर निकाला गया है,तो संभव है कि
पब्लिक इश्यु के तुरंत बाद शेयर का भाव दुगुना यानि 24
से 30 रुपये पहुंच जाये। इसी तरह नई कम्पनियों के शेयर भी
स्टॉक एक्सचेंज पर सूचीकृत होते ही अक्सर अच्छे खासे
प्रीमियम पर बिकने लगते हैं।
पब्लिक इश्यू के जारी होने से पहले इसकी सूचना
अखबारों, पत्रिकाओं और विज्ञापनों द्वारा जनता
को दी जाती है।इन्हीं विज्ञापनों में कम्पनी और शेयर
की जानकारी के साथ ही उन शेयर दलालों और बैंकों
का नाम और पता भी दिया जाता है जिनसे आप
कम्पनी के प्रास्पेक्टस और एप्लीकेशन फार्म ले सकते हैं।
शेयरों को खरीदना तथा बेचना: शेयरों को खरीदने या
बेचने के लिये आपको एक विश्वसनीय ब्रोकर यानि शेयर
दलाल, या सब-ब्रोकर चुनना होगा जो आपके सौदे
संतोषजनक रूप से पूरे कर सके। ब्रोकरों व सब-ब्रोकरों
की सूची आपको स्टॉक एक्सचेंज या उसकी वेबसाईट पर
मिल जायेगी। अगर आप एक अच्छे ब्रोकर का चयन कर
पाते हैं तो आपके लिये शेयरों का कारोबार करना बहुत
सरल हो जायगा। अत: यह आवश्यक है कि जिस ब्रोकर
के माध्यम से आप शेयरों में कारोबार करना चाहते हैं,
उसके पिछ्ले कामकाज की अच्छी तरह छानबीन कर लें।
उसके पुराने सौदों, वित्तीय स्थिति व बाज़ार में
उसकी साख के बारे में अवश्य पता करें। शेयर बाज़ार का
अनुभव रखने वाले अपने मित्रों, सहकर्मियों या
परिचितों से भी आप एक अच्छ ब्रोकर चुनने के बारे में
सलाह ले सकते हैं।
ज्यादातर निवेशक इस गलतफहमी में रहते हैं कि उनके
ब्रोकर का काम उन्हें शेयर खरीदने या बेचने के बारे में
सलाह देना है। यह धारणा गलत है। ब्रोकर से मिलने
वाली सलाह दूरदर्शी न होकर उसके अपने हित या
द्रिष्टिकोण से प्रभावित हो सकती है। ब्रोकर का
काम है आपके सौदे को अंजाम देना और आपको उसके
आवश्यक दस्तावेज उपलब्ध कराना। आमतौरस् पर
बाज़ार के विश्लेषण पर आधरित अच्छी सलाह देने के
लिये ब्रोकर के पास न तो समय होता है और न ही
क्षमता या सामर्थ्य। अत: उन ब्रोकरों की बातों में न
आएं जो आपको सलाह या बाज़ार के अन्दर की खबर देने
की बात करते हैं।
साथ ही ऐसे ब्रोकर या सब-ब्रोकर से भी बचना चाहिए
जो आपको थोड़े-थोड़े समय पर अपने निवेश में परिवर्तन
करने के लिये उकसाते हैं। ऐसे लोग आपके हित की
अपेक्षा इस बात में अधिक रूचि रखते हैं कि आप नित नये
सौदे करें जिससे उनकी दलाली बनती रहे।
अंत में हम आपको सलाह देंगे कि केवल सेबी पर पंजीकृत
ब्रोकर या सब-ब्रोकर का ही चयन करें, और अन्य
ग्राहकों से उसके कामकाज व दलाली के बारे में पूरी
छानबीन कर लें।
आपका शेयरदलाल सच में विश्वस्नीय है या नहीं, यह तो
कुछ समय तक उसके साथ काम करने के बाद ही पता
चलेगा। उसकी सही तस्वीर आपके निजी अनुभव से ही
सामने आएगी।
शेयर खरीदने व बेचने का तरीका: शेयर खरीदने या बेचने के
लिये सबसे पहले आपको डीपी के पास अपना डीमैट
खाता खोलना होगा, बीएसई व एनएसई पर केवल डीमैट
प्रतिभूतियों का ही कारोबार होता है।
जब आप शेयर खरीदते हैं तो उसका कोंट्रैक्ट नोट या
कंफर्मेशन मेमो, यानि सौदे की पुष्टि मिलते ही आपको
ब्रोकर या सब-ब्रोकर को पैसे देने की आवश्यकता
होगी। ब्रोकर कांट्रैक्ट नोट जारी करता है और सब-
ब्रोकर कंफमेशन मेमो। इसी तरह, शेयर बेचने पर आपको
कांट्रैक्ट नोट या कंफर्मेशन मेमो मिलते ही ये शेयर अपने
ब्रोकर या सब-ब्रोकर के डीमैट खाते में जमा कराने
होंगे। जब आप शेयर खरीदते हैं तो वे शेयर पहले ब्रोकर या
सब-ब्रोकर के डीमैट खाते में आते हैं। इसके बाद आप उसे
अपने डीमैट खाते के विविरण के साथ शेयरों को आपके
खाते में जमा कराने के निर्देश दे सकते हैं।
जब आप शेयर बेचते हैं तो अपने डीपी को निर्देश देकर आप
ये शेयर अपने डीमैट खाते से निकाल कर अपने ब्रोकर के
खाते में जमा कराते हैं। इसके लिए डीपी को ‘इंस्ट्रक्शन
स्लिप’, यानि निर्देश देते समय उसमें ब्रोकर के डीमैट
खाते का विवरण भी शामिल किया जाता है। ये
निर्देश देने की प्रणाली जटिल होती है व सभी डीपी
अलग-अलग तरह की प्रणाली का उपयोग करते हैं। इस
काम मे अपने ब्रोकर की सहायता लें|
शेयरों का सौदा करने के लिये आप अपने ब्रोकर को
मुख्यत: तीन प्रकार के ‘आर्डर’ दे सकते हैं:-
1. लिमिट आर्डर
2. स्टाप लॉस आर्डर
3. मार्केट आर्डर
लिमिट आर्डर वह होता है जिससे आप एक तय दाम पर
ही शेयर खरीदने या बेचने के निर्देश देते हैं। आमतौर पर
निवेशक ब्रोकर के कम्प्यूटर (स्क्रीन) पर दिखने वाले
चालू भाव से थोड़ा ऊपर या थोड़ा नीचे ही यह दाम
तय करते हैं। मार्केट आर्डर की अपेक्षा लिमिटेड आर्डर
से आप शेयरों के दाम में उतार-चढ़ाव से जुड़ी
अनिश्चितता से बच सकते हैं।ये तरीका उन शेयरों को
खरीदने व बेचने के लिये उपयुक्त रहते हैं जिनमें आमतौर पर
अधिक कारोबार नहीं होता।
स्टाप लोस आर्डर मे निवेशक एक तय दाम के साथ ब्रोकर
के कम्प्यूटर में एक अन्य दाम भी निर्धारित करते हैं, जिसे
ट्रिगर प्राईस कहते हैं। जैसे ही बाज़ार में शेयर का भाव
इस ट्रिगर प्राईस तक पहुंचता है, आपका आर्डर सक्रिय
हो जाता है।यह ट्रिगर प्राईस आर्डर देते समय बाज़ार में
इस चल रहे भाव से अधिक या कम होनी चाहिये। जैसे
ही बाज़ार में इस दाम पर कोई सौदा होता है, आपका
आर्डर चाहे वो शेयर खरीदने के लिये हो या बेचने के
लिये, सक्रिय हो जाता है । मान लीजिये आपने 100 रू
प्रति शेयर के भाव पर हिन्दुस्तान लेवेर के शेयर खरीदे हैं।
आप नही जानते कि शेयर का दाम चढ़ेगा या गिरेगा, पर
आप इस निवेश मे अपना नुक्सान 10 रू प्रति शेयर तक
सीमित रखना चहते हैं। ऐसे में ये शेयर बेचने के लिये अपना
स्टाप लास आर्डर 90 रू प्रति शेयर पर दे सकते हैं, और इसमें
ट्रिगर प्राईस होगा 91 रू प्रति शेयर। अब जैसे ही शेयर
का भाव 91 रू पर गिरेगा कम्प्यूटर में आपका आर्डर
सक्रिय हो जायेगा। पर यह लागू तभी होगा जब भाव
90 रू प्रति शेयर तक गिर जायेगा। इसी तरह अगर आपने
कोई शेयर बेचा है, पर उसे वापस कम दाम में खरीदना
चाहते हैं, तब भी आप स्टाप लोस आर्डर का उपयोग कर
सकते हैं
मार्केट आर्डर का उपयोग तब किया जाता है जब आप
शेयर दलाल के कम्प्युटर पर देखे गये बाज़ार के भाव पर
अपने शेयर खरीदने या बेचने चाहते हों। बाज़ार में बहूत
अधिक उतार-चढ़ाव के समय या किसी बड़े सौदे के लिये
मार्केट आर्डर का उपयोग न करें।
किसी ब्रोकर के साथ अपना कारोबार शुरू करने से पहले
आपको खाता खोलने के लिये दो फार्म भरने होंगे:-
1. ग्राहक का परिचय
2. ग्राहक व दलाल के बीच समझौता
इन्हें भरने में आपका ब्रोकर आपकी सहायता करेगा।
इसके लिये आपको अपना नाम, पता, आयकर पैन नम्बर,
बैंक खाते का विवरण, तस्वीर-युक्त परिचय प्रमाण,
आवास प्रमाण आदि विवरण देना होगाइन दोनों
फार्म का एक तय प्रारूप है जो सेबी ने निर्धारित
किया है। आपको सलाह दी जाती है कि इन पर
हस्ताक्षर करने से पहले इन्हें ध्यान से पढ़ लें।
म्युचुअल फंड :
म्युचुअल फंड एक ऍसी निवेश कम्पनी है जो अपने शेयर
होल्डरो से इकट्ठा किया गय़ा धन निवेश करती है।
अतः म्युचुअल फंड अपने निवेशको का पैसा आगे निवेश
करता है । उदाहरण के लिये, जब आप इक्विटी फंड मे
निवेश करते है तो शेयर बाज़ार से शेयर खरीदने क काम
आप स्वयँ नही करते, आपके लिये यह काम म्युचुअल फंड
करता है। इस तरह शेयर बाज़ार से सीधे शेयर खरीदने या
बेचने कि अपेक्षा आप इक्विटी फंड के माध्यम से शेयरो
मे निवेश कर सकते है। यह निर्णय फंड मैनेजर द्वारा लिये
जाते है।
म्युचुअल फंड के लाभ :
म्युचुअल फंड की अमदनी के दो स्त्रौत होते है:
1. शेयर या बॉण्ड मे निवेश पर डिविडेंड या ब्याज, और
2. भाव बढ्ने पर निवेश बेचने से होने वाला लाभ, घटा
भाव गिरने पर निवेश बेचने से होने वाला नुकसान ।
म्युचुअल फंड के प्रकार :
1. इक्विटि फंड : इक्विटि फंड अपना पैसा इक्विटि
शेयरों में निवेश करते हैं, और इन शेयरों का मूल्य बढ्ने पर
यूनिट होल्डरों को आमदनी मिलती है। अगर आप इन
फंड से अच्छी आमदनी चाहते हैं तो इनमें पैसा लगाने व
निकालने का सही समय बहुत महत्वपूर्ण है। इस फंड में मंदी
के समय, बज़ार के बहुत नीचे गिर जाने पर निवेश करना
चाहिये । तेजी के समय, बाज़ार के ऊंचे स्तर पर इनमें पैसा
लगाने से आपको नुकसान हो सकता है। ये फंड निवेशकों
के लिये अधिक लाभदायक रहते हैं।
2. इंडैक्स फंड : इंडैक्स फंड में उन सभी शेयरों में निवेश
किया जाता है जो चुनिन्दा सूचकांक में शामिल होते
हैं।अतः इस प्रकार के फंड का उतार चढाव पूर्णतया
सूचकांक पर निर्भर करता है।
3. सेक्टर फंड: सेक्टर फंड किसी एक आर्थिक क्षेत्र
(सेक्टर) की कम्पनियों के शेयरों में निवेश करते हैं। अत:
आप ऐसे म्युचुअल फंड चुन सकते हैं जो केवल सॉफ्टवेयर,
स्टील, सीमेंट, या तेल आदि क्षेत्र के शेयरों में निवेश करें।
अत: क्षेत्र में तेज़ी आने पर फंड के निवेशकों को काफी
लाभ हो सकता है।
4. टैक्स सेविंग फंड: ये फंड इंकम टैक्स ऐक्ट, 1961 की
धारा 88 के तहत प्रति व्यक्ति 10,000/- तक के वार्षिक
निवेश पर कर में छूट प्रदान करते हैं। (1.5 लाख रू से कम आय
पर 20 प्रतिशत, व 5 लाख रू से कम आय पर 15 प्रतिशत)।
इक्विटी व सेक्टर फंड की तरह इन में भी निवेश की वृधि
पर ध्यान दिया जाता है,क्योंकि ये ऐसे फंड में निवेश कर
सकते हैं जिनमें कम-से-कम तीन वर्ष से पहले पैसा बाहर
नहीं निकाला जा सकता। इसके कारण फंड मैनेजर
दीर्घकालीन निवेश कर सकते हैं।
5. बैलेंस्ड फंड: ये फंड निवेश में वृद्धि के साथ आय भी
प्रदान करते हैं। ये फंड शेयर, बाण्ड व अन्य प्रतिभूतियों,
यानि इक्विटी के साथ निश्चित आय प्रतिभूतियों में
संतुलित निवेश करते हैं। फंड के आफर पत्र से आप जान सकते
हैं कि इक्विटी व निश्चित आय प्रतिभूतियों में किस
अनुपात में निवेश किया जाएगा।
अगर आप अधिक जखिम नहीं उठाना चाहते तो ये फंड
आपके लिये उपयुक्त हैं, क्योंकि ये इंकम फंड से बेहतर
मुनाफा देते हैं पर इनमें इक्विटी फंड से कम खतरा है।
मासिक आय योजना (एम आई पी) भी एक प्रकार
बैलेंस्ड फंड है, जिसमें इक्विटी निवेश कुल निवेश के 15 से
20 प्रतिशत तक सीमित होता है। ये फंड निवेश में कुछ
वृधि के साथ डिविडेंड के रूप में मासिक आय प्रदान करते
हैं।
म्युचुअल फंड के लाभ:- करने के तीन प्रमुख फायदे हैं:
1. म्यूचुअल फंड में निवेश करके आप अपना पैसा
प्रशिक्षित, अनुभवी लोगों के हाथ सौंप रहे हैं, जो
आपके लिए आपके पैसे का अच्छा निवेश करेंगे। यह खास
तौर पर उन छोटे निवेशकों के लिए लाभदायक होता है
जिन्हें न तो शेयरों में सही निवेश करने की समझ और
अनुभव है, और न ही महंगे दलालों या सलाहकारों की
सेवाएं ख्रीदने की आर्थिक क्षमता।
2. म्युचूअल फंड में निवेश करने का एक और लाभ है
विविधता-जो छोटी रकम लगाने वाले छोतटे
निवेशकों को शेयर बाज़ार में नही मिल सकती।
3. अधिक पूंजी और बड़ी संख्या में निवेशक होने के
कारण म्यूचुअल फंड में शेयरों से ज़्यादा लिक्विडिटी
का लाभ मिलता है। अगर आप अपने पैसो को कम समय
के लिये निवेश कर उन्हें जल्दी वसूल करना चाहते हैं तो
आपके लिए म्युचुअल फंड उपयुक्त रहेंगे।
शेयरों में निवेश करने के लाभ
पूंजी में शीघ्र वृद्धि शेयरों में लगाये गये पैसे पर दो प्रकार
का लाभ मिलता है। मूलधन में वृद्धि और लाभांश।
शेयरों में लगायी गयी पूंजी में व्रद्धि तब होती है जब
बाज़ार में शेयरों का भाव बढ़ता है। शेयरों में लगाया
गया पैसा आमतौर पर अन्य निवेश साधनों की अपेक्षा
जल्दी से बढता है। एक आम निवेशक अगर समझ दारी और
बाज़ार की जानकारी के आधार पर काम ले तो चार
पांच वर्षों में अपना पैसा लगभग दुगूना कर सकता है।
अन्य निवेश साधनों की अपेक्षा शेयरों का एक और
फायदा है: मुद्रा स्फीती की दर बढ़ने पर शेयरों का मूल्य
भी बढ़ता है। अत: आपको नुक्सान की बजाय फायदा
होता है।
साथ में आमदनी भी: शेयरों से आपको लाभांश के रूप में
भी आय मिलती है। कम्पनी अपने वार्षिक मुनाफे का
जो हिस्सा शेयर होल्डरों में बांटती है उसे लाभांश कहते
हैं। उदाहरण के लिये अगर आपने किसी लिमीटेड कम्पनी
के 100 शेयर 20 रू प्रति शेयर के भाव से खरीदे। अब अगर
कम्पनी 20 प्रतिशत या 4 रू प्रति शेयर लाभांश घोषित
करती है तो आपको 400 रू मिलेंगे।
शेयरों में निवेश सट्टा नहीं है: जब आप बाज़ार को
अच्छी तरह परखकर, और कम्पनी के भविष्य के आसार
ठीक से जानकर किसी शेयर में अपना पैसा डालते हैं तो
आपके निवेश को बहूत कम खतरा होता है। परंतु अगर आप
किसी तुक्के के आधार पर, बिना बाज़ार क विश्लेषण
किये किसी शेयर में पैसा डालते हैं, तो स्वाभाविक है
इसमें आपको काफी खतरा रहती है।
शेयर बाज़ार में सोच समझकर पैसा लगाना निवेश होता
है। पर बेध्यानी में शेयरों की खरीद फरोख्त सत्तेबाजी
ही कहला सकती है।
शेयरों को बेचना भी सरल है: आमतौर पर लोग वही
निवेश पसंद करते हैं जिसे बिना किसी झंझट के, लल्गभग
तुरंत ही नकद पैसे में बदला जा सकता है। इस प्रकार का
निवेश आपको सुरक्षित महसूस कराता है- क्योंकि
बदलते आर्थिक परिवेश के अनुसार आप किसी भी समय
इस निवेश से बाहर निकलकर अपना पैसा वापस पा सकते
हैं। जायदाद या अन्य मूल्यवान वस्तुओं की अपेक्षा
शेयरों को खरीदनें या बेचने में कम समय और प्रयास
लगता है।
शेयरों में भी कुछ शेयरों का हस्तांतरण अन्य की तुलना में
अधिक सरल होता है। ये शेयर सक्रिय, या ‘एल्टिव’ शेयर
होते हैं, जिनमें विभिन्न स्टोक एक्सचेंजों पर नियमित
कारोबार होता रहता है। यानि वे शेयर जिनमें खरीद-
फरोख्त का सिलसिला ठंडा नहीं पड़ जाता। अत:
आपको अपना निवेश इन्हीं तक सीमित रखना चहिए।
आपकी पूंजी के सुरक्षा: क्या शेयरों में लगाया गया
पैसा सुरक्षित है ?इसका उत्तर है, हां, अगर आप निम्न
तीन सिद्धांतों का पालन करें:
यह बहुत सरलता से बेचे जा सकते हैं
दीर्घकालीन निवेश योजना
विविधता
शेयरों में नुक्सान होने की ज़रा भी सम्भावना होते ही
आप अपना पैसा उनमें से निकाल सकते हैं। एक
दीर्घकालीन निवेश योजना की सहायता से आप
बाज़ार के अस्थाई उतार-चढ़ाव से अपने निवेश को
सुरक्षित रख सकते हैं। आप अपने निवेश को विभिन्न
क्षेत्रों में काम करने वाली अलग-अलग कम्पनियों में
बांट सकते हैं- जैसे रसायन, स्टील, कागज़, कपड़ा, आदि।
इन पर अलग अलग बातों का आर्थिक प्रभाव पडता है।
अत: अगर एक या दो कम्पनियों को किसी कारणवश
नुक्सान उठाना पड़े, तब भी आपके अन्य शेयर सुरक्षित
रहते हैं।
सम्भालने में सरल
शेयरों को सम्भालना अन्य कई निवेशों की अपेक्षा
काफी आसान होता है। इन्हें आप बिना किसी झंझट के
एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जा सकते हैं। और तो और,
किसी शेयर के चोरी, नष्ट हो जाने या खो जाने पर
आप कम्पनी से डुप्लिकेट शेयर बनवा सकते हैं। इसलिए
सोने या चांदी की तरह आपको अपने शेयर सर्टिफिकेट
बैंक लोकरों में रखने की कोई आवश्यकता नहीं है।
प्रापर्टी (ज़मीन जायदाद) आदि की अपेक्षा भी
शेयरों की व्यवस्था काफी सरल होती है। इन पर आपको
प्रापर्टी टैक्स चुकाने, इमारतें खडी करने, या अनचाहे
किराएदारों से छुट्कारा पाने जैसी कोई समस्या नहीं
उठानी पड़ती।
आप कम पूंजी से भी शुरू कर सकते हैं: शेयर बाज़ार छोटे
निवेशकों के लिए विशेष आकर्षण रखता है, क्योंकि कम
पूंजी लगाकर भी शेयरों में निवेश किया जा सकता है।
आप चाहें तो एक बार में केवल एक शेयर भी खरीद सकते हैं’
क्योंकि बाज़ारों मे ‘मार्केट लोट’ व ‘ओड लोट’ की
प्रणाली समाप्त हो चुकी है। ज़मीन व जाय्दाद की
अपेक्षा शेयरों में निवेश का यह एक बड़ा लाभ है। ज़मीन
आदि में निवेश के लिए बहुत पैसा चाहिए, और यह अब
अधिकतर मध्यमवर्गीय निवेशकों की पहुंच से बाहर हो
गया है। इसके अलावा शेयर बाज़ार अब अधिक
व्यवस्थित है और इस पर सरकार व सेबी (SEBI-
सिक्योरिटीज़ एंड एक्सचेंज बोर्ड आफ इन्डिया) की
कड़ी नज़र रहती है। अन्य बाज़ारों की अपेक्षा शेयर
दलालों के कामकाज पर भी कड़ी नज़र रखी जाती है।
शेयरों में कारोबार करना मध्यमवर्गीय निवेशकों के
लिये एकदम सटीक रहता है, क्योकिं इसमें काले धन का
प्रयोग नहीं चलता।
अन्य निवेशों की अपेक्षा शेयरों में पैसा लगाने से आपके
बहुत से कर सम्बन्धित लाभ भी मिलते हैं। शेयरों मे
दीर्घकालीन निवेश अब कर बचाने का एक अच्छा
साधन बन गया है।
पब्लिक इश्यू में निवेश :
शेयर खरीदने के दो जरिये होते हैं या तो आप शेयर
बाज़ार से शेयर खरीद सकते हैं या पब्लिक इश्यू से शेयरों
के लिये आवेदन कर सकते हैं।
ज़ब कम्पनी पैसा जुटाने के लिये नए शेयर या ऋणपत्र
जारी करती है, तो इसे कम्पनी का ‘पब्लिक इश्यू’ कहा
जाता है। ऐसे नए शेयरों या ऋणपत्रॉं को न्यू इश्यू कहते
हैं। नई और पुरानी, दोनों तरह की कम्पनियां बाज़ार में
नये इश्यू निकाल सकती हैं।
पब्लिक इश्यू – कितने लाभदायक :
पब्लिक इश्यू के जरिये आप प्राय: काफी कम दाम पर
शेयर खरीद सकते हैं। पुरानी कम्पनियों के नये इश्यू या
तो बाज़ार में चल रहे भाव से आधे दाम तक भी मिल जाते
हैं। उदाहरण के लिये, अगर किसी कम्पनी का ‘न्यू इश्यू’
12 से 15 रुपये प्रति शेयर पर निकाला गया है, तो सम्भव
है कि पब्लिक इश्यू के तुरंत बाद शेयर का भाव 24 से 30
रुपये तक पहुंच जाये। इसी तरह नयी कम्पनियों के शेयर बी
स्टोक एक्सचेंज पर सूचीकृत होते ही अक्सर अच्छे खासे
प्रीमियम पर बिकने लगते हैं। यही कारण है कि सभी
निवेशक अच्छे पब्लिक इश्यू की ताक में रहते हैं।
पब्लिक इश्यू के लिये अर्जी देना: अधिकतर पब्लिक
इश्यू के जारी होने से पहले इसकी सूचना अखबारों,
पत्रिकाओं और अन्य विज्ञापनों द्वार जनता को दी
जाती है। इन विज्ञापनों में कम्पनी और शेयर की
जानकारी के अतिरिक्त उन शेयर दलालों और बैंकों का
नाम और पता भी दिया जाता है जिनसे आप कम्पनी के
प्रास्पेक्टस और एप्लिकेशन फार्म ले सकते हैं।
कम्पनी अपने विवरण-पत्र या ‘प्रास्पेक्टस’ के जरिये
निवेशकों को अपने शेयर खरीदने के लिये आमंत्रित करती
है। अत: किसी भी कम्पनी के शेयर खरीदने से पहले आप
उसका प्रास्पेक्टस ध्यानपूर्वक पढ लें।
चूंकि अधिकतर पब्लिक इश्यू में जारी किये गये शेयरों से
कही अधिक आवेदन आते हैं, यह लिस्ट अक्सर तीन दिन
पूरे होते ही बन्द कर दी जाती है। पब्लिक इश्यू के शेयरों
की पूरी रकम या तो एक बार में, या दो या उससे
अधिक किश्तों में ली जाती है।
अगर आपको शेयर मिल जते हैं तो कम्पनी आपको अलाट
किये गये शेयर आपके दीमैट खाते में पहुंचा देती है।
पब्लिक इश्यू खुलने से पहले ‘लीड मैनेजर’ शेयर जारी करने
के लिये एक ‘प्राईस बैंड’ की घोषणा करता है। इसमें वह
अधिकतम व न्यूनतम मूल्य घोषित किया जाता है जिस
पर कम्पनी अपने शेयर अलोट करना चाहती है। इश्यू के
बाद अलोटमेंट के लिये ‘कट-ओफ दाम इस प्रकार तय
किया जाता है जिससे क्यू आई बी व अन्य निवेशकों
को सारे शेयर इस तय दाम या उससे अधिक पर बेचे जायें।
इस तरह कम्पनी अपने शेयरों का अधिक-से-अधिक दाम
पा सकते है।
अधिक जानकारी के साधन :
1. श्री एम. एस ग्रेवाल व श्रीमति नवजोत ग्रेवाल
द्वारा लिखित पुस्तक “शेयरों से लाभ कैसे कमायें”.
विज़न बुक्स प्राईवेट लिमिटेड द्वारा प्रकाशित.
www.visionbooksindia.com
2. www.bseindia.com
3. www.nseindia.com
4. www.sebi.gov.in
5. www.sharekhan.com
6. www.equitymaster.com
7. www.capitalmarket.com
8. www.indiabulls.com
9. www.moneycontrol.com
10. www.mutualfundsindia.com
11. www.myiris.com
12. www.nsdl.co.in
13. www.icicidirect.com
14. www.investsmartindia.com
15. www.capitalideasonline.com
Monday, September 21, 2015
Stock market
Sunday, September 20, 2015
IT INTIMATION U/S 143(1).
It is very positive step that income tax department to assess
all income tax returns filed online quickly. After successful
assessment of tax returns by income tax department,
issues Intimation u/s 143(1). Normally these intimations will
be received through email to the Email address provided in
filing income tax returns online . This Intimation u/s 143(1)
should be treated as completion of assessment income tax
returns for the year unless there is tax due from the tax
payer.
We treat this as Intimation of completion of assessment of
income tax returns, Intimation of Income tax refund in case
refund is due from income tax, India. If net taxable income
is more than total tax paid, this Intimation u/s 143(1) will be
treated as demand notice for payment of income tax due to
income tax department.
We have to interpret the Intimation u/s 143(1) as follows:-
1. If “NET AMOUNT REFUNDABLE” mentioned in
Intimation u/s 143(1) letter more than Rs 100, there is
a tax refund due from income tax department to tax
payer. Refunds amounting less than Rs 100 won’t be
refunded. You can check refund status online https://
tin.tin.nsdl.com/oltas/refundstatuslogin.html
2. If “NET AMOUNT DEMAND” mentioned in Intimation
u/s 143(1) letter more than Rs 100, there is tax
amount due from tax payer. This will be treated as
demand notice for the payment of income tax due.
This Intimation letter encloses challan form to pay
income tax if the due is more than Rs 100.
If “NET AMOUNT REFUNDABLE /NET AMOUNT DEMAND” is
less than Rs 100, you can treat this Intimation u/s 143(1) as
completion of income tax returns assessment under Income
Tax Act. It can be useful for the proof of Income/
Completion of income tax returns assessment.
Common to save Income Tax in India
Everyone wants to increase the income but don’t
want to pay taxes. There are many ways to save
income tax. You might know few of these but I
am sure you will find at least one new way from
this article that can save more tax this year.
There is a long list, so I will keep the descriptions short to
save your time.
#1. Interest Income on Saving Account
You might not be aware that interest income on saving
accounts is not taxable up to 10,000 Rupees. If you earned
15,000 as interest from all your savings accounts (sum up
interest from all your bank saving accounts), then you have
to pay tax only on 5000 rupees.
#2. Interest Income on NRE Account
Indian Government is very friendly to NRIs. Someone with
NRE account doesn’t have to pay tax on interest income on
saving or fixed deposits.
Some smart Indians residing abroad, take a loan from the
foreign country at 3-4% and invest their income in India
through NRE account and earn tax-free income at 8-9%.
Point to note that their income from NRE account is tax-free
in India, but it may be taxed in their residing country (as per
country law).
#3. Maturity or Claim amount by Life Insurance
As per amendments introduced in the Finance Act, 2003,
any proceeds received on account of maturity/surrender of
an insurance policy were exempt from tax only if the
premium paid did not exceed 20% of the sum assured. As
an example, if the annual premium is R10,000, to qualify for
the exemption, the minimum sum assured under the policy
was required to be R50,000.
If the sum assured was less than the said value, the entire
maturity proceeds would be taxable.
#4. Educational Scholarship
Any amount received as scholarship for education is not
taxable. It does not matter if scholarship is granted by
government or private trust.
#5. Profit from Selling Shares or Equity Mutual Funds
Only after 1 year holding (Long Term Capital Gains)
If you invest in stocks or mutual funds then you can make
your profits 100% non-taxable. Do not sell your equity
before holding for one year, whether shares or mutual funds
(equity).
For example, you invested 100,000 in some stock and in 11
months it becomes worth 1,20,000. If you sell all of them
then you have to pay tax on 20,000 profit. If you hold it for
another month, then you are not liable to pay any tax on the
profits.
Same is applicable to equity mutual funds.
#6. Dividends received from Shares or Equity Mutual Funds
Stocks and Mutual Funds (Equity focused) distribute
dividends to shareholders. All of the dividends are tax-free
in the hands of the receiver.
Like in the previous example, where you bought stocks
worth 100,000, let’s assume you receive dividends of 2000
after 10 months. Even one year is not completed since you
bought stocks, you don’t have to pay any taxes on
Dividends.
#7. Amount received as Gifts on marriage
Do you know that the gifts received (cash/cheque/gifts) on
marriage are totally tax-free?
You can receive gifts from your relatives, friends and family
on the occasion of your marriage and you don’t have to pay
any taxes.
#8. Agriculture Income
Any income derived from Agriculture land is tax-free in
India.
Any rent derived from land
Income from agriculture products
Income from farm building
#9. HUF account for secondary income
You can take benefit of tax saving under HUF account if you
have any additional income to your salary. You can pay tax
on your salary under your name and deposit secondary
income into HUF account.
Hindu Undivided Family (HUF) status is available to Hindu,
Sikh and Jain families in India. You have to get separate
PAN and bank account number. Income Tax Department
considers HUF as a separate entity for taxation purpose.
For example you have 500,000 income from your salary and
3,50,000 income from blogging and consulting. You will pay
tax on 2,50,000 on your salaried income and 1,00,000 on
your secondary income as per latest income tax slabs.
You can save tax on both of your entities by investing in tax
saving options like under section 80C. You will virtually pay
no taxes on your secondary income if you invest 1,00,000 in
tax saving instruments.
#10. Inherited Amount through Will
There is no inheritance tax in India. So anything you get
from your parents or uncles through WILL is not taxable in
your hands. It becomes your non-taxable income.
#11. Well Known Tax Saving Options under section 80C
Everyone knows that Section 80C offers a maximum
deduction of up to Rs. 1,50,000 (revised). A few of the
options are as follows:
Public Provident Fund
Life Insurance Premium
National Savings Certificate
Equity Linked Savings Scheme
Principal Amount Repaid on Home Loan
5 year fixed deposits with banks and post office
Tuition fees paid for children’s education, up to a
maximum of 2 children
#12. Money Received from Provident Funds (after 5 years)
You will save tax on investments in Provident Account in the
year of investment. The good news is that you don’t have to
pay taxes on interest received from EPF/PF investments
(note that Interest received on Fixed Deposit is taxable).
You have to keep your Provident Fund active for at least five
years before you start withdrawing money (however not
recommended unless an emergency)
#13. Tax Saving from Home Loan
Use your home loan efficiently to save more tax. There are
three ways to get income tax deduction on your home loan
(s).
The principal amount re-paid in the current financial year
is included under Section 80C, offering a deduction up to
Rs. 1,50,000.
The interest portion offers a deduction up to Rs. 1,50,000
separately under Section 24.
If you are living in the home on which you took first home
loan, you can get another loan for the second house.
There is no limit on income tax deduction on the interest
payment of second home loan. Very few people are aware
of this benefit of tax saving on second home loan.
#14. Tax Saving on Education Loan
Section 80E – Interest paid on education loan is also non-
taxable, there is no upper limit on the amount. The
education loan for higher studies is applicable for the
deduction if taken for self, spouse or children.
#15. Medical Insurance
Section 80D – Deduction of Rs. 15,000 for medical
insurance of self, spouse and dependent children and Rs.
20,000 for medical insurance of parents above 65 years
#16. Donations
Section 80G – Donations to specified funds or charitable
institutions. You need to retain the stamped receipts of the
donations and make sure the charitable organization is
registered.
Business Persons – Tax Savings Tips and Tricks
#17. Distributed Profit to Partners in Partnership Firms
There is no tax in the hand on partners if their partnership
firm is making profits and partners decide to distribute
profits among themselves. Partners get tax benefit because
their partnership firm has already paid taxes on the profits.
#18. Travel/Hotel Expenses in Business
Business owners have to travel to grow their business. They
can file travel and hotel expenses as business expenses to
save tax. They never pay for travel from their salary but
from company account. Smart people always show
expenses before taxation.
Look what a salaried person do – assume he has taxable
income of 10,00,000 (after all deductions) and pay his taxes
as per slab. Then he spends 2,00,000 on travel vacation on
leftover income.
And what a business person do – He shows his travel as a
business expense and take the rest of profits as salary. He
will pay tax on 8,00,000 only.
#19. Food Expenses in Business
Similarly, business owners need to meet so many people
like customers, vendors, and potential hires. Often he
spends money on paying bills of food. They save tax by
showing all food expenses as the business expense.
Tax Savings Tips and Tricks only for Salaried Persons
and some extra tips for financial management if you got
your first job.
#20. Leave Travel Allowance
Employees can utilize Leave Travel Allowance for the
expenses on domestic vacations. This policy covers the
expense of travel tickets for yourself and your family. You
will not be taxed on the travel expenses of your spouse, two
children and parents if they are part of your journey. Brother
or Sister are covered only if they are solely dependent on
you.
You can avail this facility twice in the block of four years. If
you were unable to claim the benefits in four year block then
you can carry over one vacation in next block, provided you
avail in the first year of the block itself.
#21. House Rent Allowance
You can claim HRA to save tax on your house rent. This is
applicable only if you are not owning any house near to
your office. You must be living in rented space and should
receive rent receipts from the house owner. You have to
submit PAN card copy of your landlord if you are paying
more than 100,000 annual rent.
If HRA forms part of your salary, then the minimum of the
following three is available as exemption:
The actual HRA received from your employer
The actual rent paid by you for the house, minus 10 per
cent of your salary (including your allowances)
50 per cent of your basic salary (for a metro) or 40 per
cent of your basic salary (for non-metro).
#22. Income from Gratuity
Gratuity received on retirement or on becoming
incapacitated or on termination or any gratuity received by
his widow, children or dependants on his death is exempt
subject to certain conditions.
The maximum amount of exemption is Rs. 3,50,000.
#23. Meal Coupons
You can ask your employer to issue you meal coupons (like
Sodexo) those are not taxable up to 2600 per month.
#24. Medical Bills
Keep the receipts of your medical expenses which can be
used to save tax at year end. You must know that up to
15,000 amount is non-taxable on medical expenses for
yourself and your dependents.
#25. Daily Travel Allowance
You can avail tax benefits on conveyance up to 1600 rupees
(Revised) per month from your company. You can save tax
on 19,200 per annum on conveyance allowance. You don’t
have to submit any bills or proof to avail this tax benefit.
Some companies have the policy of daily travel allowance if
an employee is commuting by car or bike. You have to
submit original fuel bills to get the tax benefit. Limit of non-
taxable amount varies with your vehicle type and capacity,
you have to check with your employer for more details.
#26. Company Leased Car
Check with your employer if they have car lease policy. In
that case, you will not be allowed to take advantage of Daily
Travel Allowance, and you can drive company leased car to
save tax on car EMI & fuel.
#27. Telephone/Internet Expenses
You company may not be reimbursing your telephone or
internet expenses but may have any policy to make these
expenses tax free. You can either get telephone expenses
reimbursed or claim tax benefits.
#27+ Money under VRS
Voluntarily Retirement Scheme – Upto 5 lacs
Only applicable for employees of public sector company or
authority established under Center or State Govt.
If any employee takes voluntarily retirement then the
amount received is non-taxable with the upper limit of 5
lacs.
#27++