मतदाता पहचान पत्र को जल्दी ही आधार
कार्ड के साथ जोड़ा जाएगा। चुनाव आयोग ने इसके एलान के साथ
ही जल्दी ही ऑनलाइन मतदान की प्रक्रिया शुरू करने को अगला कदम
बताया। आयोग का कहना है कि एक बार मतदाता सूची को पूरी तरह
सही कर लेने के बाद आयोग इसकी ओर आगे बढ़ सकता है।
मुख्य चुनाव आयुक्त एचएस ब्रह्मा ने शुक्रवार को इस बारे में पूछे गए सवाल
पर कहा, ‘हमें इसके लिए जरूरी धन, ढांचागत सुविधाओं और कुछ प्रशिक्षण
की जरूरत होगी। इंटरनेट के जरिए वोटिंग का प्रावधान
किया जा सकता है।’ हालांकि, एक दिन पहले ही कानून मंत्री सदानंद
गौड़ा ने संसद में पूछे गए एक सवाल के जवाब में कहा था कि इंटरनेट के जरिए
वोटिंग की व्यवस्था शुरू करने का कोई प्रस्ताव सरकार के पास नहीं है।
आधार से जुड़ेगा वोटर आइडी
वोटर आइडी कार्ड को आधार कार्ड से जोड़े जाने की तैयारी है। चुनाव
आयोग ने मतदाता सूची में मौजूद फर्जी नामों को हटाने के इरादे से यह
अभियान शुरू किया। जिन लोगों के पास आधार कार्ड नहीं होगा,
मतदान का अधिकार उनको भी होगा। मगर ऐसे लोगों का आयोग विशेष
तौर पर सत्यापन करेगा।
आधार दूर करेगा फर्जी वोटर
उन्होंने माना कि इस समय मतदाता सूची में 10 से 12 फीसद नाम गलत
हो सकते हैं। यहां तक कि एक शहर में तो 42 फीसद नाम गलत पाए गए।
लेकिन, उनका दावा है कि मतदाता पहचान को आधार कार्ड से जोड़कर
समस्या को दूर किया जा सकता है। मौजूदा मतदाताओं में से 50 करोड़ के
पास आधार नंबर हैं।
15 अगस्त से सूची शुद्धीकरण
चुनाव आयोग मतदाता सूची का पूरी तरह शुद्धीकरण करना चाहता है।
इसके लिए तीन मार्च से 15 अगस्त तक विशेष तौर पर ‘राष्ट्रीय
मतदाता सूची शुद्धीकरण और सत्यापन कार्यक्रम’ चलाएगा। पहले चरण में
मतदाताओं से अपील की जाएगी कि वे स्वयं सुनिश्चित करें कि एक से
ज्यादा जगह पर उनके नाम नहीं हों। नाम हटाने के आवेदनों पर 15 दिन में
कार्रवाई होगी।
Sunday, March 1, 2015
ऑनलाइन मतदान कराने की तैयारी में चुनाव आयोग
बजट 2015 जेटली ने इनकम टैक्स स्लैब में नहीं किया बदलाव
नई दिल्ली। वित्त मंत्री अरुण जेटली ने इनकम टैक्स में कोई बदलाव
नहीं किया है, मौजूदा टैक्स छूट बरकरार रहेगी। कॉर्पोरेट टैक्स 30
प्रतिशत से कम करके 25 प्रतिशत करने का प्रस्ताव रखा गया है।
हालांकि वित्त मंत्री ने अमीरों की जेब ढीली करने की योजना बनाई है।
जिनकी आमदनी एक करोड़ से ऊपर है, उन पर 2 प्रतिशत सेस लगाया गया है।
अब एक लाख रुपये से ऊपर की खरीद पर पैन नंबर भी जरूरी कर दिया गया हे।
काला धन संबंधी सूचना छिपाने पर 10 साल तक की जेल हो सकती है।
टैक्स चोरों के लिए 10 साल की कड़ी सजा। घरेलू काला धन पर रोक के
लिए बेनामी लेन-देन (निषेध) विधेयक होगा। सरचार्ज को 10 फीसदी से
बढ़ाकर 12 फीसदी किया गया है। सर्विस टैक्स 12.36 प्रतिशत से बढ़ाकर
14 प्रतिशत कर दिया गया है।
भारत के पहले वित्त मंत्री आर. के शनमुखम चेट्टी ने 26 नवंबर 1947
को स्वतंत्र भारत का पहला बजट पेश किया था। तब से अब तक जब भी आम
बजट पेश होता है, तो आम लोगों की नजर सबसे ज्यादा इनकम टैक्स स्लैब पर
टिकी होती हैं। लोग जानना चाहते हैं कि वित्त मंत्री ने इनकम टैक्स में
कुछ छूट दी या नहीं। लेकिन इस बार वित्त मंत्री ने मध्यमवर्गीय कर
दाताओं को निराश किया है।
हालांकि एनडीए सरकार ने इससे पहले पेश किए गए अंतरिम बजट में आयकर
दाताओं को टैक्स में छूट का ऐलान किया था। मोदी सरकार ने आम
करदाता को टैक्स में 50 हजार रुपये की छूट दी थी। इससे पहले से मौजूद कर
छूट सीमा दो लाख से बढ़कर ढाई लाख हो गई। सीनियर सिटिजन के लिए
कर छूट की सीमा ढाई लाख से बढ़ाकर 3 लाख कर दी गई। वहीं सेक्शन 80
सी के तहत निवेश पर मिलने वाली कर छूट की सीमा एक लाख से बढ़ाकर
डेढ़ लाख कर दी गई।
वित्त मंत्री पी चिंदबरम ने फरवरी में अंतरिम बजट पेश किया था।
लोकसभा चुनाव से पहले पेश हुए इस बजट से लोग कई उम्मीदें लगाए बैठे थे।
लेकिन बजट में चिदंबरम ने कर दाताओं को निराश किया। चुनावी बजट के
चलते ऐसी उम्मीद की जा रही थी कि सरकार टैक्स स्लैब में बढ़ोतरी कर
सकती है, लेकिन ऐसा नहीं किया गया। वहीं चिंदबरम ने साल 2013-14 के
आम बजट में भी इनकम टैक्स स्लैब में कोई बदलाव नहीं किया था। टैक्स स्लैब
2 लाख रुपये ही रखा गया था। लेकिन प्रतिवर्ष एक करोड़ रुपये से
ज्यादा आयवालों पर 10 फीसदी सरचार्ज लगाया गया था।
एक आरटीआई का जवाब 40000 पन्नों में
जवाब देने में विभाग को लगे दो साल
एक आरटीआई का जवाब 40 हजार पन्नों में, पढ़कर शायद आप चौंक जाएं,
लेकिन जल निगम ने अनुश्रवण समिति के सदस्य डीके
जोशी को सूचना का अधिकार के तहत इतने पन्नों में जानकारी उपलब्ध
कराई है। यह अलग बात है कि इसका जवाब देने में विभाग को दो साल लग
गए। वह भी सूचना आयोग की सख्ती के बाद दिया। इस सूचना के आधार
पर डीके जोशी बदहाल होती यमुना की लड़ाई लड़ने के लिए हाईकोर्ट
जाने की तैयारी कर रहे हैं।
डीके जोशी ने 21 नवंबर 2012 को कार्यालय परियोजना प्रबंधक,
यमुना प्रदूषण नियंत्रण इकाई, उत्तर प्रदेश जल निगम से शहर में संचालित
सीवेज पंपिंग स्टेशन (एसपीएस) और सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट (एसटीपी) से
संबंधित जानकारी मांगी थी। इसमें उन्होंने वर्ष 2000 से सूचना उपलब्ध
कराए जाने की तिथि तक विभाग द्वारा शहर में बिछाई गई सीवेज लाइन
और ट्रंक लाइन, इन पर खर्च होने वाली धनराशि को उपलब्ध कराने
वाली संस्था, शहर में स्थापित एसपीएस और एसटीपी की संख्या और
इनकी क्षमता, इनकी देखरेख और संचालन में होने वाले खर्च के
अलावा एसपीएस और एसटीपी की लॉग बुक (सीवेज
का कितना पानी लिफ्ट किया और कितना ट्रीट किया)
का ब्योरा मांगा था।
विभाग ने पांच सूचनाओं में से एक का भी जवाब डीके जोशी को उपलब्ध
नहीं कराया। इस पर डीके जोशी ने सूचना आयोग की शरण ली।
जहां काफी दिनों तक मामला चलता रहा। डीके
जोशी की याचिका पर विभाग के अधिकारी तलब किए गए। आयोग ने
फटकार लगाई तो विभाग सक्रिय हुआ।
तमाम कवायद के बाद विभाग ने डीके जोशी को एसपीएस और
एसटीपी की लॉग बुक का ब्योरा लगभग 40 हजार पन्नों में उपलब्ध
कराया। परियोजना प्रबंधक एवं जन सूचना अधिकारी खालिद अहमद ने
16 फरवरी को 194 नगों में यह सूचना उपलब्ध कराई।
छह महीने में तैयार किया जवाब
डीके जोशी ने वर्ष 2000 से सूचना उपलब्ध कराने तक की तिथि तक
जानकारी मांगी थी। सूचना आयोग ने जब जल निगम को उपलब्ध कराने के
निर्देश दिए तो इसे जुटाने में विभाग का दम फूल गया। सूत्रों की मानें
तो विभाग को इस सूचना का जवाब तैयार करने में लगभग छह महीने लग गए।
इसमें से भी अभी तक पूरे जवाब नहीं मिले हैं।
फंसेगी कइयों की गर्दन
दरअसल, डीके जोशी ने जो सूचना मांगी है, उसके जवाब के आधार पर वह दम
तोड़ती यमुना की लड़ाई लड़ने की तैयारी कर रहे हैं। 40 हजार पन्नों में
विभाग के अध्ययन के बाद वह एक रिपोर्ट तैयार करेंगे कि इतने खर्च के बाद
आखिर सीवेज का गंदा पानी यमुना में सीधे कैसे जा रहा है।
यमुना इतनी दूषित क्यों होती जा रही है। बता दें कि यमुना को बचाने के
लिए केंद्र और राज्य सरकार से मोटी धनराशि आवंटित कराई जाती है,
जिसका दुरुपयोग हो रहा है।
विभाग को भुगतना पड़ा आर्थिक नुकसान
जल निगम यदि तय समय सीमा में सूचना उपलब्ध करा देता तो शायद 40
हजार पन्नों का खर्च वहन करने से बच जाता। विशेषज्ञों की मानें तो 40
हजार पन्नों की कीमत लगभग 32 हजार रुपये होगी और इनकी फोटो स्टेट
पर ही लगभग 12 हजार रुपये खर्च हुए होंगे। यदि विभाग 15 दिन में यह
सूचना उपलब्ध करा देता तो यह
खर्चा याचिकाकर्ता को ही उठाना पड़ता।
अनुश्रवण समिति के सदस्य डीके जोशी का कहना है कि अभी मुझे
पूरा जवाब नहीं मिला है। खर्च का विस्तृत ब्योरा उपलब्ध
नहीं कराया गया है। सूचना आयोग में मामला अभी भी चल रहा है।
विभाग को सभी सूचनाएं हर हालत में उपलब्ध करानी ही होंगी।