Saturday, May 5, 2012

Vipin Tyagi 5:32pm Apr 28
मुसलमाना सिफति सरीअति पड़ि पड़ि करहि बीचारु ॥

बंदे से जि पवहि विचि बंदी वेखण कउ दीदारु ॥

हिंदू सालाही सालाहनि दरसनि रूपि अपारु ॥

तीरथि नावहि अरचा पूजा अगर वासु बहकारु ॥

जोगी सुंनि धिआवन्हि जेते अलख नामु करतारु ॥


सूखम मूरति नामु निरंजन काइआ का आकारु ॥

सतीआ मनि संतोखु उपजै देणै कै वीचारि ॥

दे दे मंगहि सहसा गूणा सोभ करे संसारु ॥

चोरा जारा तै कूड़िआरा खाराबा वेकार ॥

इकि होदा खाइ चलहि ऐथाऊ तिना भि काई कार ॥

जलि थलि जीआ पुरीआ लोआ आकारा आकार ॥

ओइ जि आखहि सु तूंहै जाणहि तिना भि तेरी सार ॥

नानक भगता भुख सालाहणु सचु नामु आधारु ॥

सदा अनंदि रहहि दिनु राती गुणवंतिआ पा छारु ॥१॥




सरीअत - इस्लामी शरीअत या कर्मकांड (Islamic ritualism); बंदी – बंदिश (Bondage), क़ैद (imprisonment); सालाहन - सराहने योग्य (Fit to be recommended); अर्चा - अर्चना करना (To pray); अगर - एक सुगन्धित वृक्ष (A scented tree); बह्कार- महक (Scent); सुंन - सुन्न मंडल (Sunn Region), सुन्न अवस्था (State of Sunn Samadhi); सतीआ – दानी (Philanthrophist); जारा – व्यभिचारी (Immoral); वेकार - विषय-विकार भोगनेवाले (Lustful); इक – कई (Many); ऐथाऊ – यहाँ (Here), संसार में से (From this world); काई – क्या (What); लोआ - लोक, देश (Region); आकारा - अनेक रुपोवाले जीव (Living being with many forms); सालाहण - प्रशंसा करना (To praise); पा छार - पांवो की धूलि (Dust of feet)|

Guru Nanak Dev is describing the reality of rituals and means of doing bhakti by Hindus, Muslims, yogis etc. He says: Muslim praise the ritualistic practice (Shariat) as the end of all. They decide right and wrong as per ritualistic practice (shariat) and study of fiqah (religious scriptures). They only consider anyone as real devotee of God who follows the rituals strictly for His contemplation. Hindus pray God who is full of attributes and worthy of praise. On one hand they accept on basis of religious scripture that God is beyond access, formless and boundless. On other side they take bath at pilgrimages and pray and burn incense sticks in front of idols. They remain bereft of true darshan (visitation).

गुरु नानक देव जी हिन्दुओं, मुसलमानों, योगियों आदि के बहिर्मुखी कर्मकांड और भक्ति के अन्य साधनीं की हकीकत का बयान कर रहे हैं | आप कहते हैं: मुसलमान तो शरीयत का गुणगान करतें हैं | वे शरअ (कर्मकांड) और फ़िकाह (इस्लामी धर्म-ग्रन्थ) की किताबें पढ़-पढ़कर सही- गलत का निर्णय लेते हैं | वे केवल उसे खुदा का बन्दा मानतें हैं जो उसके दीदार के लिए शरीअत की पाबंदी स्वीकार करता हो | हिन्दू लोग उस प्रभु की आराधना करते हैं जो प्रशंसा के योग्य हो | वे एक तरफ धर्म-ग्रंथों के आधार पर मानते हैं कि प्रभु का स्वरूप और दर्शन अगम, अपार है | दूसरी तरफ वे उसकी भक्ति के लिए तीर्थो पर स्नान करते हैं और मूर्तियों की पूजा आराधना करतें हैं | वे मूर्तियों के आगे धूप और अगरबत्तियाँ जलाते हैं | लेकिन असली दर्शन से वंचित रहतें हैं |

Yogis call God as beyond vision. They try to fix their dhyan (contemplation) by undergoing Sunn Samadhi (Zone of pure consciousness). Contemplation can only be done of entities having form and not of formless divine Niranjan (devoid of Maya).

Guru Sahib says that charity givers feel happy on giving charity. They give charity in expectation of getting return by thousand times and expect praises from whole world.

योगी प्रभु को अलख कहते हैं | वे ध्यान को सुन्न मंडल में स्थिर करने का प्रत्यन करते हैं | ध्यान सिर्फ आकार वाली वस्तु का ही किया जा सकता है, निराकार निरंजन का नहीं |

गुरु साहिब कहतें हैं कि दानियों को दान देने में प्रसन्नता होती है | वे इस आशा से दान करतें हैं कि दान का फल हज़ार गुणा मिले और सारा संसार उनकी प्रशंसा करे |
Guru Sahib describes the state of adharmic (devoid of dharma) people: What is the state of thieves, immoral, liers, malefic and abnormal? They spend their account of good karmas and waste their valuable time in human birth. Guru Sahib questions: What earnings they will take after their death?

गुरु साहिब धार्मिक कार्य व्यवहार या क्रियाओं में लगे हुए लोगों का चित्रण करके अधर्मिओं की हालत बयान करतें हैं: चोरों, व्यभिचारियों, झूठों, मलीनों और विकारियों की क्या अवस्था हैं ? वे शुभ कर्मों कि जो पूँजी साथ लाए थे उसे भी व्यर्थ नष्ट कर देतें हैं और मनुष्य जन्म का अमूल्य अवसर को व्यर्थ ही गँवा देते हैं | गुरु साहिब प्रश्न करते हैं: वो क्या कमाईं साथ ले जायेंगें ?

Guru Sahib says: O God! All creatures from water, land, puris (like Brahmpuri, Vishnupuri etc.) and loks (like Golok, Saket etc) are taken care by You. You know what they speak about you.

गुरु साहिब कहतें हैं : हे प्रभु ! जल में, थल में, पुरियों में और लोकों में भिन्न-भिन्न प्रकार औए आकार वाले जीव तेरे बारे में जो भी कहता है वो सब तू जानता है | तू उनकी संभाल भी करता है |

After telling this, he comes to the real issue of true means of meeting with the Lord. He says that real devotees of God have deep yearning for Him so that they always pray Him and singing th glory of His attributes. They obtain the base of true name of Lord. They always remain devoted in the His divine bliss. They are symbole of real humility that they consider themselves as the dust of the feet of the Lord.

इस सब बातों को बताते हुए अब गुरु साहिब असली मुद्दे पर आतें है और उस सच्चे साधन की तरफ आतें हैं जिससे प्रभु के साथ मिलाप होता है | आप कहते हैं की प्रभु में सच्चे भक्तों में सदा यही तड़प होती है की वे सदेव उसकी आराधना करते रहे और उसकी महिमा के गुणगान में लगे रहे | उन्हें अपने अन्दर प्रभु के सच्चे नाम का आधार प्राप्त होता है | ऐसे भक्त सदा सहज आनंद में मग्न होकर रहते हैं | उनके अन्दर प्रभु का प्रेम इस तरह भरा होता है | वे इस तरह से नम्रता के पुंज होतंभ हैं की वे अपने-आपको प्रभु के नाम के रंग में रंगे हुए होते हुए अपने-आपको सच्चे गुणोजनों की चरण धूलि समझते हैं |

मुसलमाना सिफति सरीअति पड़ि पड़ि करहि बीचारु ॥
The Muslims praise the Islamic law; they read and reflect upon it.

मुल्ला और क़ाज़ी धार्मिक किताबों के आधार पर बार-बार इस बात पर तरजीह देते हैं कि इस्लामी शरीअत ही धर्म का आदि, मध्य और अंत है |

बंदे से जि पवहि विचि बंदी वेखण कउ दीदारु ॥
The Lord's bound servants are those who bind themselves to see the Lord's Vision.

गुरु साहिब समझाते हैं कि परवरदिगार का सच्चा बन्दा वह है जो उसके दीदार के लिए तन-मन से उसकी भक्ति में लग जाता है | वह प्रभु की रज़ा में राज़ी रहता है और शरियत पर ही पूर्ण आधारित न होकर हकीकत का रास्ता अपनाता है , वह नफ़स के आधारित बहिर्मुखी साधन छोड़कर उसकी अंतर्मुख साधना में जुड़ जाता है, ताकि उसे रहीमो-रहीम से विसाल का सौभाग्य प्राप्त हो |


हिंदू सालाही सालाहनि दरसनि रूपि अपारु ॥
The Hindus praise the Praiseworthy Lord; the Blessed Vision of His Darshan, His form is incomparable.

गुरु साहिब हिन्दू धर्म की बहिर्मुखी पूजा का ज़िक्र करते हुए कहतें हैं कि हिन्दू धर्म में निराकार ब्रह्म की स्तुति की गयी है , परन्तु इस धर्म के पुरोहित पुजारियों का मुख्य ध्यान मूर्ति पूजा पर है |

तीरथि नावहि अरचा पूजा अगर वासु बहकारु ॥
They bathe at sacred shrines of pilgrimage, making offerings of flowers, and burning incense before idols.

वे मूर्तियों के आगे धूप और अगरबत्तियाँ जलाते हैं और तीर्थ स्थान करने को बड़ा पुण्य मानते हैं | गुरु साहिब समझा रहे हैं कि हिन्दुओं के धर्म-ग्रन्थ कुछ और ही कहतें हैं, परन्तु लोग मन के कहे हुए साधनों में लगे हुए हैं | धर्म-ग्रंथों के अनुसार जीवन को ढालना कड़े नियम और अनुशासन कि मांग करता है | लोग आसान से आसान तरीका ढूँढ़ते हैं | इसलिए वे बहिर्मुखी पूजा और शारीर की सफाई को ही पापकर्मो का नाश और प्रभु प्राप्ति का साधन समझने की अज्ञानता का शिकार हो जाते हैं |

जोगी सुंनि धिआवन्हि जेते अलख नामु करतारु ॥
The Yogis meditate on the absolute Lord there; they call the Creator the Unseen Lord.

जिसे योगी सुन्न और अलख निरंजन कहते हैं, मन में उसका ध्यान करने का प्रयत्न करते हैं | इस सन्दर्भ में यह बात विचारने योग्य है की ध्यान केवल ऐसी चीज़ का ही किया जा सकता है जिसका भौतिक आकार हो |


सूखम मूरति नामु निरंजन काइआ का आकारु ॥
But to the subtle image of the Immaculate Name, they apply the form of a body.

गुरु साहिब समझातें हैं की एक तरफ तो परमात्मा को और उसके नाम को माया-रहित, निराकार, अलख-अगम कहना और दूसरी तरफ सुन्न में उसके ध्यान करने का यत्न करना परस्पर विरोधी है | ध्यान केवल आकार वाली वस्तु का किया जा सकता है, निराकार का नहीं |

प्रभु सूक्ष्म और परम चेतन है | वह माया से रहित है | फिर उस निराकार का ध्यान कैसे किया जा सकता है ?

सतीआ मनि संतोखु उपजै देणै कै वीचारि ॥
In the minds of the virtuous, contentment is produced, thinking about their giving.

दानी लोग दान देते हैं परन्तु उनके मन में संतोष का गुण नहीं पैदा होता है | वे प्रभु की प्रसन्नता प्राप्त करने के लिए दान नहीं देते हैं, बल्कि अपने मन को प्रसन्न करने के लिए और अहम की तुष्टि के लिए ऐसा करते हैं |

दे दे मंगहि सहसा गूणा सोभ करे संसारु ॥
They give and give, but ask a thousand-fold more, and hope that the world will honor them.

वे निस्वार्थ भावना से दान नहीं देते | वे उस दान का हज़ारों गुणा फल मांगते हैं | बात यहीं पर ख़त्म नहीं होती, वे यह भी चाहतें हैं की लोग उनको बड़ा दानी कहकर उनकी बड़ाई करें, उनकी तारीफों के पुल बांधें | ऐसा दान न केवल दान के वास्तविक भाव के विपरीत है ब्लिक अहंकार की जननी है | वह दान, दान न होकर दान का व्यापार बन जाता है | इस दान से मन और दुनिया को प्रसन्न किया जा सकता है, पर मालिक को प्रसन्न नहीं किया जा सकता है |

चोरा जारा तै कूड़िआरा खाराबा वेकार ॥
The thieves, adulterers, perjurers, evil-doers and sinners spoil their lives-

इकि होदा खाइ चलहि ऐथाऊ तिना भि काई कार ॥
After using up what good karma they had, they depart; have they done any good deeds here at all?

जलि थलि जीआ पुरीआ लोआ आकारा आकार ॥
There are beings and creatures in the water and on the land, in the worlds and universes, form upon form.

ओइ जि आखहि सु तूंहै जाणहि तिना भि तेरी सार ॥
Whatever they say, You know; You care for them all.

नानक भगता भुख सालाहणु सचु नामु आधारु ॥
O Nanak, the hunger of the devotees is to praise You; the True Name is their only support.

सदा अनंदि रहहि दिनु राती गुणवंतिआ पा छारु ॥१॥
They live in eternal bliss, day and night; they are the dust of the feet of the virtuous. ||1||

गुरु साहिब सच्चे भक्तों कि प्रशंसा करते हुए कहते हैं कि मालिक के सच्चे भक्त हिन्दू हों या मुसलमान, योगी हो या किसी और संप्रदाय का, उनकी पहली विशेषता ये है कि उनके मन में सदैव मालिक कि महिमा गाने की, बंदगी करने की और भक्ति की भूख लगी रहती है | उनकी दूसरी विशेषता ये है कि वे अन्य साधनों को त्याग कर केवल नाम का सहारा लेते हैं | वे न किसी शरीअत की वकालत करते हैं न विरोध | वे केवल एक निराकार प्रभु की अंतर्मुख पूजा भक्ति में विश्वास रखते हैं | उनकी तीसरी विशेषता यह है की वे जीवन के हर उतार-चढाव से ऊपर उठ चुके होते हैं | उन्हें वह सहज अवस्था प्राप्त हो जाती है जिसमे वे सदा आनंद मग्न रहते हैं |

उनकी चौथी विशेषता यह है कि वे अपने आपकों प्रभु-भक्तों की चरणों की धूलि समझते हैं | अभिप्राय यह है कि सच्चे भक्त नम्रता के पुंज होते हैं | वे अपने गुणों और ज्ञान का दिखावा नहीं करते | वे प्रभु के भक्तो की संगति और शरण पसंद करते हैं और हर तरह से सक्षम होने के बावजूद तुच्छ बनकर रहते हैं |

गुरु साहिबान ने अनेक ढंगों से परमात्मा की मनमाने ढंग की भक्ति और अन्य अनेक तरह की रहनी का उल्लेख करते हुए अंत में यह निष्कर्ष निकाला है कि नाम कि आराधना ही प्रभु कि सच्ची भक्ति है और यही सहज आनंद की प्राप्ति का वास्तविक साधन है | गुरु अमरदास जी का कथन है :

बिन नावै होर पूज न होवी भरम भुली लोकाई || (आदि ग्रन्थ, प्र. ९१०)
There is no worship of the Lord, other than the Name; the world wanders, deluded by doubt.

गुरु अर्जुन देव जी कथन है :

पुंन दान जप ताप जेते सभ ऊपर नाम ||
हर हर रसना जो जपै तिस पूरन काम || (आदि ग्रन्थ, प्र. ४०१)
Donations to charity, meditation and penance - above all of them is the Naam. One who chants with his tongue the Name of the Lord, his works are brought to perfect completion
वो लोग जो ये कहते है कि इस्लाम तलवार के बल पर फैला है के मुहं पर भारत के बहु-संख्यक लोग तमाचा समान है और वे यह गवाही दे रहे है कि अगर वाकई इस्लाम तलवार की ज़ोर पर फैला होता तो क्या वाक़ई भारत में हजारों साल तक एकछत्र राज करने पर भी इतने हिन्दू बचे होते अर्थात नहीं. भारत में अस्सी प्रतिशत (80%) हिन्दू की मौजूदगी इस बात की शहादत दे रही है
गुरु नानक जी कहते हैं:

नशा भंग चरस अफीम का रात चढ़े उतर जाये प्रभात,
हरी नाम खुमारी नानका, चढी रहे दिन रात ||

Guru Nanak says that intoxication all mind altering drugs like opium poppies and cannabies may remain for one night and then it goes away in morning while intoxication of Ram Naam remains forever.


Why smoking, boozing and other mind-altering drugs should not be used ?


Smoking, boozing or taking any mind-altering substances do effect one's physical health but damage to mental health is much severe.

That damaging mental aspect is that it makes you a mentally weak person. Tobacco for example is a depressant drug which slows down the firing rates of neurones (measured by EEG). An addictive pattern follows and brain gives signal to the body to consume the drug again or else withdrawal symptoms follow effecting the metabolism of the body. Soon a paradoxical syndrome follows which requires tremendous amount of will power to get out of this vicious circle.

We can preach other people to refrain from these intoxication but every one is afflicted with one or the type of weaknesses and intoxications . They key lies in the mind. As they say, if you conquer your mind, you conquer the whole world. Experimentation in psychology has proved that if you sit in meditation for at least 2-1/2 hrs daily, concentrating at your eye-centre then after 2-3 years, you are able to control the autonomic functions of your body like your heart beat, oxygen-expiration rate, galvanic skin response, blood pressure etc. At the time of stress, these autonomic functions are normally uncontrolled and leads to productions of toxins and abnormal increase in autonomic function.

After long period of meditation, one is able to control his autonomic functions of body and they remain normal. By EEG studies, it has been shown that they are able to produce alpha and theta waves which are associated with high tranquility yet active state. Previous studies have shown that theta waves indicate deep relaxation and occur more frequently in highly experienced meditation practitioners. The source is probably frontal parts of the brain, which are associated with monitoring of other mental processes.

When we measure mental calm, these regions signal to lower parts of the brain, inducing the physical relaxation response that occurs during meditation.

Silent experiences with alpha waves. Alpha waves were more abundant in the posterior parts of the brain during meditation than during simple relaxation. They are characteristic of wakeful rest.

Meditation, according to Penn neuroscientist Amishi Jha and Michael Baime, director of Penn's Stress Management Program, is an active and effortful process that literally changes the way the brain works. Their study is the first to examine how meditation may modify the three subcomponents of attention, including the ability to prioritize and manage tasks and goals, the ability to voluntarily focus on specific information and the ability to stay alert to the environment.
In the Penn study, subjects were split into two categories. Those new to meditation, or "mindfulness training," took part in an eight-week course that included up to 30 minutes of daily meditation. The second group was more experienced with meditation and attended an intensive full-time, one-month retreat.

Researchers found that even for those new to the practice, meditation enhanced performance and the ability to focus attention. Performance-based measures of cognitive function demonstrated improvements in a matter of weeks. The study, to be published in the journal Cognitive, Affective, & Behavioral Neuroscience, suggests a new, non-medical means for improving focus and cognitive ability among disparate populations and has implications for workplace performance and learning.

Participants performed tasks at a computer that measured response speeds and accuracy. At the outset, retreat participants who were experienced in meditation demonstrated better executive functioning skills, the cognitive ability to voluntarily focus, manage tasks and prioritize goals. Upon completion of the eight-week training, participants new to meditation had greater improvement in their ability to quickly and accurately move and focus attention, a process known as "orienting." After the one-month intensive retreat, participants also improved their ability to keep attention "at the ready."

The results suggest that meditation, even as little as 30 minutes daily, may improve attention and focus for those with heavy demands on their time. While practicing meditation may itself may not be relaxing or restful, the attention-performance improvements that come with practice may paradoxically allow us to be more relaxed.

The research was supported by the National Institutes of Health and the Penn Stress Management Program