चित्रकूट, जागरण संवाददाता: चर के सोमनाथ मंदिर में शिवलिंगों का खजाना है। यहां पर जिधर नजर डालिये, भगवान भोले के ही दर्शन होते हैं। मंदिर परिसर में द्वादश ज्योर्तिलिंगों की प्रतिमूर्ति यहां स्थापित है। इस मंदिर में सावन मास पर श्रद्धालुओं का जमावड़ा लगता है।
मुगल शासक के मंदिर विध्वंस की कहानी को बयां कर रहा चर का सोमनाथ मंदिर अभी भी अद्वितीय है। मंदिर की बनावट और परिसर में देवी-देवताओं की मूर्तियों के मुताबिक इतिहास कार इस मंदिर को गुप्तकालीन मान रहे हैं। मंदिर की खासियत यह है कि परिक्षेत्र में चारो ओर शिवलिंग ही विराजमान हैं। लोग जिधर देखते हैं भगवान भोले बाबा के ही दर्शन मिलते हैं। यह मंदिर पहले खंडहर में तब्दील था। लगभग डेढ़ दशक पूर्व चर गांव के कुछ ग्रामीणों ने जानवर चराते समय पहाड़ में बने इस मंदिर के आसपास मूर्तियां पड़ी देखी थीं। उन्होंने मूर्तियों को जब संजोना चालू किया तो अद्वितीय कलाकृतिया मिलती चली गई। धीरे-धीरे ग्रामीणों ने अपने अथक परिश्रम से पत्थर आदि हटा मंदिर खोजा। आज यह मंदिर बेजोड़ कलाकृतियों का संग्रह स्थल है। मंदिर में शिव परिवार से लेकर समस्त देवी देवताओं की मूर्तियां विद्यमान हैं। इसके अलावा परिसर में वीर योद्धाओं एवं जानवरों की मूर्तियां हैं।
भगवान भोले के इस मंदिर में श्रावण मास में लोगों का जमावड़ा लगता है। सोमवार को तो सुबह से लोग जलाभिषेक को पहुंचते हैं। मंदिर के पुजारी रामकृष्ण त्यागी ने बताया कि सोमनाथ में विराजमान शिवलिंग की ऐसी मान्यता है कि जो भी मनोकामना मांगी जाती है, पूर्ण होती है। मान्यता पूरी होने पर जनपद के बाहर से भी लोग यहां आते हैं, लेकिन मंदिर में पहुंचने के लिये सुगम रास्ता न होने की वजह से लोगों को आवागमन में दिक्कतें होती हैं। मंदिर के पुनरोद्धार के लिये प्रशासन को पहल करनी चाहिये। ऐसी अनमोल धरोहर को पुरातत्व विभाग नजर अंदाज किये है।
मुगल शासक के मंदिर विध्वंस की कहानी को बयां कर रहा चर का सोमनाथ मंदिर अभी भी अद्वितीय है। मंदिर की बनावट और परिसर में देवी-देवताओं की मूर्तियों के मुताबिक इतिहास कार इस मंदिर को गुप्तकालीन मान रहे हैं। मंदिर की खासियत यह है कि परिक्षेत्र में चारो ओर शिवलिंग ही विराजमान हैं। लोग जिधर देखते हैं भगवान भोले बाबा के ही दर्शन मिलते हैं। यह मंदिर पहले खंडहर में तब्दील था। लगभग डेढ़ दशक पूर्व चर गांव के कुछ ग्रामीणों ने जानवर चराते समय पहाड़ में बने इस मंदिर के आसपास मूर्तियां पड़ी देखी थीं। उन्होंने मूर्तियों को जब संजोना चालू किया तो अद्वितीय कलाकृतिया मिलती चली गई। धीरे-धीरे ग्रामीणों ने अपने अथक परिश्रम से पत्थर आदि हटा मंदिर खोजा। आज यह मंदिर बेजोड़ कलाकृतियों का संग्रह स्थल है। मंदिर में शिव परिवार से लेकर समस्त देवी देवताओं की मूर्तियां विद्यमान हैं। इसके अलावा परिसर में वीर योद्धाओं एवं जानवरों की मूर्तियां हैं।
भगवान भोले के इस मंदिर में श्रावण मास में लोगों का जमावड़ा लगता है। सोमवार को तो सुबह से लोग जलाभिषेक को पहुंचते हैं। मंदिर के पुजारी रामकृष्ण त्यागी ने बताया कि सोमनाथ में विराजमान शिवलिंग की ऐसी मान्यता है कि जो भी मनोकामना मांगी जाती है, पूर्ण होती है। मान्यता पूरी होने पर जनपद के बाहर से भी लोग यहां आते हैं, लेकिन मंदिर में पहुंचने के लिये सुगम रास्ता न होने की वजह से लोगों को आवागमन में दिक्कतें होती हैं। मंदिर के पुनरोद्धार के लिये प्रशासन को पहल करनी चाहिये। ऐसी अनमोल धरोहर को पुरातत्व विभाग नजर अंदाज किये है।