Thursday, August 11, 2011

महाराष्‍ट्र इलेक्‍ट्रोस्‍मेल्‍ट लि‍मि‍टेड का सेल के साथ वि‍लय

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मुंबई. महाराष्‍ट्र भारतीय इस्‍पात प्राधि‍करण लि‍मि‍टेड की 99.12 प्रति‍शत भागीदारी वाली सहायक कम्‍पनी महाराष्‍ट्र इलेक्‍ट्रोस्‍मेल्‍ट लि‍मि‍टेड का भारतीय इस्‍पात प्राधि‍करण लि‍मि‍टेड (सेल) के साथ वि‍लय कर दि‍या गया है. एमईएल के सेल के वि‍लय की प्रक्रि‍या अप्रैल 2006 में शुरू की गई थी, जो 14 जून, 2011 को कॉर्पोरेट कार्य मंत्रालय के अंति‍म आदेश की प्राप्‍ति‍ के साथ ही पूरी हो गई. एमईएल के सेल के साथ वि‍लय का अंति‍म आदेश दि‍ल्‍ली और मुम्‍बई में कंपनी पंजीयक के पास दाखि‍ल कि‍या गया है. यह नि‍र्णय लि‍या गया है कि‍ एमईएल के सभी शेयरधारकों को 1.7:1 के अनुपात में सेल के शेयर आबंटि‍त कि‍ए जाएंगे.
एमईएल महाराष्‍ट्र के चंद्रपुर में स्‍थि‍त है और यह सेल के लि‍ए रणनीति‍क तौर पर एक महत्‍वपूर्ण इकाई है, क्‍योंकि‍ यह मैंगनीज आधारि‍त लौह यौगि‍कों की जरूरतों को पूरा करती है, जो लोहा और इस्‍पात बनाने में एक प्रमुख सामग्री है. फि‍लहाल एमईएल के पास एसएएफ रूट के माध्‍यम से लगभग एक लाख टन मैंगनीज आधारि‍त फेरस यौगि‍क के उत्‍पादन की क्षमता है. एमईएल के सेल के साथ वि‍लय से एमईएल के वि‍कास और सेल की लौह-यौगि‍क संबंधी जरूरतों के संदर्भ में तालमेल कायम होने की उम्‍मीद है. सेल ने एमईएल के वि‍स्‍तार के लि‍ए योजनाएं तैयार की हैं. सेल के अध्‍यक्ष सी.एस. वर्मा ने कहा है कि‍ सेल के इस्‍पात संयंत्रों के लि‍ए लौह-यौगि‍क की जरूरतों को पूरा करने के लि‍‍ए एमईएल का वि‍स्‍तार कि‍या जाएगा.
देश का अगला प्रधानमंत्री किसे होना चाहिये?
  • नितीश कुमार
    (11.39%, 85 Votes)
  • नरेंद्र मोदी
    (57.91%, 432 Votes)
  • मायावती
    (4.56%, 34 Votes)
  • राहुल गांधी
    (9.79%, 73 Votes)
  • लालकृष्ण आडवाणी
    (5.23%, 39 Votes)
  • मनमोहन सिंह
    (1.21%, 9 Votes)
  • कोई और
    (9.92%, 74 Votes)

Wednesday, August 10, 2011

42 साल का हुआ विश्व का अकेला संस्कृत भाषा का अखबार

मैसूर। एक ओर जहां अंग्रेजी व अन्य आधुनिक भारतीय भाषाओं के समाचार पत्र फल-फूल रहे हैं वहीं संस्कृत का दुनिया का अकेला समाचार पत्र 'सुधर्मा' अपना अस्तित्व बचाए रखने के लिए संघर्ष कर रहा है। 'सुधर्मा' अगले सप्ताह अपने 42वें साल में प्रवेश कर रहा है।
मैसूर से प्रकाशित होने वाले इस समाचार पत्र के सम्पादक के वी सम्पत कुमार ने कहा कि कोई भी प्रादेशिक या केंद्रीय निकाय हमारी मदद के लिए आगे नहीं आया और निजी क्षेत्र के विभिन्न संगठनों का हाल भी अलग नहीं है। इस समाचार पत्र के 2,000 ग्राहक हैं।
जब उनसे पूछा गया कि वह बिना किसी मदद के एक 'मृत भाषा' में समाचार पत्र क्यों निकाल रहे हैं तो इस पर कुमार की पत्नी जयालक्ष्मी ने कहा कि कौन कहता है संस्कृत मर गई है। हर सुबह लोग श्लोकों का उच्चारण करते हैं, पूजा करते हैं, विवाह, बच्चे के जन्म और मृत्यु सहित सारे संस्कार संस्कृत में सम्पन्न होते हैं। संस्कृत की वजह से ही भारत एकजुट है। यह हमारी मातृभाषा है जो अपने में कई भाषाओं को समेटे है। इसका विकास हो रहा है और अब तो आईटी व्यवसायी भी कहते हैं कि यह भाषा उपयोगी है। जयालक्ष्मी हिंदी, तमिल, कन्नड़, अंग्रेजी व संस्कृत भाषाओं की जानकार हैं।
कुमार कहते हैं कि उनके पिता पंडित वरदराज आयंगर ने 15 जुलाई, 1970 को इस समाचार पत्र का प्रकाशन शुरू किया था। उन्होंने बताया कि जब 1990 में उनकी मृत्यु हुई तो उससे पहले उन्होंने मुझसे वादा लिया था कि मैं किसी भी तरह से उनके मिशन को जारी रखूंगा। अब यह दैनिक एक मिशन की तरह उसी जुनून और समर्पण के साथ जारी है। मैं अपने आखिरी वक्त तक इसका प्रकाशन करता रहूंगा।
एक रुपये मूल्य में मिलने वाले इस समाचार पत्र में ज्यादातर लेख वेदों, योग, धर्म पर केंद्रित होते हैं। इसके साथ राजनीति, संस्कृति व अन्य विषयों पर भी लेख होते हैं।
कुमार और उनकी पत्नी ही इस समाचार पत्र के वितरकों व प्रकाशकों की भूमिका निभा रहे हैं।
कुमार बताते हैं कि आकाशवाणी पर संस्कृत में समाचारों का प्रसारण शुरू होने का श्रेय मेरे पिता को जाता है। उन्होंने ही सूचना और प्रसारण मंत्री आई के गुजराल को इसके लिए मनाया था।
शुरुआत में 'सुधर्मा' की छपाई हाथ से होती थी। बाद में आधुनिक कम्प्युटरीकृत मुद्रण तकनीक अपनाई गई। अब इसका एक ई-पेपर भी है, जिसके चलते अब अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर इसकी पहुंच है।