Wednesday, August 10, 2011

अमेरिकी कर्ज के भंवर में फंसने का खतरा 

अमेरिकी कर्ज के भंवर में फंसने का खतरा  

अमेरिकी कर्ज के भंवर में फंसने का खतरा
स्टैंडर्ड एंड पुअर्स ने अमेरिका की लॉन्ग टर्म कर्ज की रेटिंग को ‘ट्रिपल ए’ से कम करके ‘एए प्लस’ कर दिया है। रेटिंग कम होने से ज्यादा खतरनाक अवस्था अमेरिकी अर्थव्यवस्था में सुधार की रफ्तार का बहुत ज्यादा सुस्त होना है। डर की वजह से सरकार एतहियाती रवैया अपनाने की नाकाम कोशिश कर रही है। यूरोप और मध्य पूर्व देशों के हालत भी अच्छे नहीं हैं। दिन प्रति दिन इन देशों में कर्ज का संकट और भी गहराता चला जा रहा है। अब सब कुछ इन देशों की सरकार पर निर्भर करता है कि वे किस तरह से इस कर्ज संकट से मुकाबला करते हैं।


हालांकि अमेरिका ने बेरोजगारी के फ्रंट पर अच्छा काम किया है। लेकिन फिलहाल उसका लाभ उसको मिलता नहीं दिख रहा है। घ्यातव्य है कि जुलाई में 75,000 के अनुमान के मुकाबले में अमेरिका ने 1,17,000 बेरोजगारों को नौकरी मुहैया करवाया है। जाहिर है कि रोजगार के बेहतर आंकड़े भी कर्ज संकट पर सकारात्मक प्रभाव नहीं डाल पा रहे हैं।
वैसे भारतीय निर्यातक भी पशोपेश में हैं। उनको लग रहा है अगर कर्ज संकट के बादल ऐसे ही उमड़ते-घुमड़ते रहे तो निश्चित रुप से उसका नकारात्मक प्रभाव उनके निर्यात आर्डरों पर पड़ेगा। दरअसल भारत के निर्यात का एक तिहाई हिस्सा अमेरिका, यूरोप और मध्य पूर्व के देशों में जाता है और तीसरी और चौथी तिमाही में भारतीय निर्यात पर इसका असर पड़ सकता है। क्योंकि इस मंदी से अमेरिकी डालर की हालत पतली होगी एवं भारतीय रुपया मजबूत होगा। अगर अमेरिका तथा यूरोपीय देश अपना राजस्व बढ़ाने के लिए टैक्स बढ़ाते हैं तब भी वहाँ के नागरिकों की आमदनी कम होगी और जिसका नकारत्मक प्रभाव वहाँ के आयातकों पर पड़ेगा।
ज्ञातव्य है कि 2011 की शुरुआत में यूनान की आर्थिक स्थिति खस्ताहाल थी। इस कारण वहाँ की सरकार ने कई देशों के निर्यातकों के आर्डरों को रद्द कर दिया था। यूनान जैसी स्थिति का निर्माण इटली, कनाडा, अमेरिका इत्यादि देशों में भी हो सकता है। उल्लेखनीय है कि इन देशों में भारत विनिर्माण, पावर, फाउंड्री, टेक्सटाईल और इंजीनियरिंग जैसे उत्पादों का बड़े पैमाने पर निर्यात करता है। विगत साल दक्शिण अमेरिका और कनाडा में भारतीय इंजीनियरिंग उत्पादों के निर्यात में महत्वपूर्ण इजाफा हुआ था।
कर्ज संकट के कारण इन देशों में विविध उत्पादों की मांगों में भारी कमी आई है। पीतल और उससे बने उत्पाद भी उनमें से एक हैं।  पीतल की मांग में भी जबर्दस्त गिरावट दर्ज की गई है। इसकी वजह से भारत के जामनगर के पीतल निर्माण इकाईयों में पीतल के निर्माण में तकरीबन 25-30 फीसदी की कमी आई है एवं जिसके कारण कीमत में पिछले वितीय वर्ष की तुलना में 20 फीसदी का उछाल आया है। गौरतलब है कि भारत में पीतल उद्योग लगभग 2000 करोड़ रुपयों का है और इस क्षेत्र में 5,000 विनिर्माण इकाईयां सक्रिय हैं। बिगड़ते हालात से निपटने के लिए भारतीय निर्यातक सरकार से इंटेªस्ट सववेंशन की स्कीम को जारी रखने, विविध करों में छूट और अन्यान्य दूसरे फायदे निर्यातकों को देने की गुहार सरकार से लगा रहे हैं।
कॉपर का प्रयोग पावर सेक्टर, बिजली के कारोबार, एसी, कम्पयूटर, कार के पार्टस इत्यादि में उपयोग किया जाता है। इतना महत्वपूर्ण धातु होने के बाद भी इसके मांग में कमी देखी जा रही है और कीमत आसमान पर पहुँच रहा है। कॉपर की तरह एल्युमीनियम की जरुरत भी उद्योगों के लिए अतुलनीय है। फिर भी कर्ज संकट की वजह से अंतराष्ट्रीय स्तर पर इसकी कीमत में तेजी बना हुआ है तथा इसके डिमांड में लगातार कमी आ रही है। प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद (पीएमईएसी) के अघ्यक्ष श्री सी रंगराजन का मानना है कि अमेरिकी कर्ज संकट का फिलहाल भारत पर बहुत ज्यादा नेगेटिव प्रभाव नहीं पड़ेगा। पर यदि अमेरिका की अर्थव्यवस्था मंदी के भंवर में फंसता है तो उसका नकारात्मक असर पूरी दुनिया पर पड़ सकता है।
स्पष्ट है कि अमेरिका और यूरोप में विकास की गति निरंतर कम हो रही है। विश्लेषकों का मानना है कि अमेरिका में पहली छमाही में 1.5 फीसदी का विकास दर रह सकता है। जोकि पिछले साल के मुकाबले में काफी कम है। सम्मिलित रुप से यूरोप की विकास दर भी उत्साहजनक नहीं है। स्पेन, पोलैंड और आयरलैंड जैसे देश आज लगभग दिवालिया होने के कगार पर पहुँच चुके हैं।
अगर ऐसी स्थिति अमेरिका तथा यूरोप में बरकरार रहती है तो निश्चित रुप से विकासशील देशों का निर्यात प्रभावित होगा। इसका प्रभाव निवेश पर भी पड़ेगा। पूंजी का बहाव कम जोखिम वाले क्षेत्रों की तरफ रहने की संभावना बढ़ जाएगी। खास तौर पर उभरती हुई अर्थव्यवस्थाओं पर इसका असर साफ तौर देखा जा सकता है। बावजूद इसके भारत नीतिगत फैसलों के माध्यम से निवेश के माहौल को मजबूत कर सकता है। यहाँ की विकास की दर भी बेहतर है और इसमें बेहतरी का कारण घरेलू बाजार की मजबूती है। यहाँ के सरकारी बैंकों के हालत विदेशी बैंकों की तरह खराब नहीं हैं। फर्जीवाड़े के मामले भी भारतीय बैंकों में कम देखने को मिलते हैं।

पतित पावनी गंगा और काइली का ‘कचराघर’

आस्ट्रेलिया के 2डे एफएम रेडियो की एंकर काइली सैंडिलैंड्स के पिछले दिनों भारत की राष्ट्रीय नदी गंगा को कचराघर कहने से हंगामा मचा गया। मामले की गंभीरतर भांपते हुए सिडनी शहर में स्थित 2डे एफएम रेडियो स्टेशन और काइली ने गंगा को कचराघर कहने के मामले में अपनी गलती स्वीकार करते हुए माफी मांग ली। जन्म से मरण तक अनेक रूप् में गंगा भारतीय जनमानस से इस तरह जुड़ी हैं कि आदरभाव से उन्हें मैया कहा जाता है।

काइली ने पतित पावनी गंगा को कचराघर कहकर लाखों-करोड़ों हिन्दुओं की भावनाओं को ठेस पहुंचाई है। ये कड़वी सच्चाई है कि अपनी मूर्तिवत् स्थिति और धार्मिक धरोहर के बावजूद आज गंगा प्रदूशण-संबंधी भारी दबावों का सामना कर रही है और इसकी जैव-विविधता तथा पर्यावरण-संबंधी व्यावहारिकता (सस्टेनबिलिटी) को इनसे पैदा होने वाले खतरों का सामना करना पड़ रहा है। लगातार बढ़ती हुई आबादी, अनियोजित शहरीकरण और उद्योगीकरण की वजह से नदी के जल की गुणवत्ता पर असर पड़ा है। आज गंगा के जल में सीवेज के साथ-साथ सॉलिड वेस्ट और औद्योगिक वेस्ट की भरमार है, जो इसके किनारे रहने वाले लोगों तथा यहां होने वाली आर्थिक गतिविधियों की देन है। आज तो मानवीय दखलंदाजी इतनी बढ़ गई है कि गौमुख में पर्यटकों द्वारा छोड़ा गया प्लास्टिक अटका पड़ा रहता है।
गौरतलब है कि दुनिया भर में बसे हिन्दुओं के लिए गंगा मात्र एक नदी नहीं बल्कि जीवनधारा है। हिन्दुओं के बहुत से पवित्र तीर्थस्थल गंगा नदी के किनारे बसे हुये हैं जिनमें वाराणसी, हरिद्वार सबसे प्रमुख हैं। गंगा में डुबकी लगाने का मतलब पाप से छुटाकारा समझा जाता है। गंगा का उदगम हिमालय से भागीरथी के रुप मे गंगोत्री हिमनद से उत्तरांचल में होता है। इसके विशाल बेसिन में देश के एक-चौथाई जल-संसाधन मौजूद हैं। हिमालय क्षेत्र में स्थित अपने हिमानी-स्रोत से बंगाल की खाड़ी में एक विशाल पंखे जैसे आकार के डेल्टा तक 2507 किमी. की यात्रा के दौरान गंगा की मुख्यधारा भारत के पांच राज्यों से होकर गुजरती है और अपने हरे-भरे मैदानी इलाकों को उपजाऊ बनाने के साथ-साथ किनारों पर बसे कस्बों व शहरों में जीवन का संचार करती है। गंगा जिन क्षेत्रों से गुजरती है उनमें 50 करोड़ से ज्यादा भारतीय रहते हैं। जीवन के लिए भोजन हेतु सिंचाई के मामले गंगा नदी घाटी देश की कुल सिंचित क्षेत्र का 29.5 प्रतिशत है।
गंगा तो अपने उद्गम स्थल से ही प्रदूषित होती हुई अपने किनारे बसे लगभग 115 नगरों की गन्दगी को लेकर चलती है। ये सब गंगाजी को प्रदूषित करने में अपना पूरा योगदान देते हैं । इसे समझने के लिए केवल कानपुर और वाराणसी का मॉडल ही पर्याप्त होगा। गंगा के प्रदूषण के लिए बढ़ती आबादी, शहरीकरण, औद्योगिकीकरण तथा कृषि के कारण ज्यादा जिम्मेदार है। बढ़ती आबादी और शहरीकरण से गंगा नदी घाटी पर दबाब बढ़ गया जिसके कारण नदी का प्रदूषण स्तर बढ़ता गया और गंगाजल स्नान योग्य तो छोड़िये आचमन के योग्य भी नहीं रहा। वैज्ञानिको के अनुसार जो बैक्टीरिया 500 फैकल प्रति 100 मिली होना चाहिए वह 120 गुना ज्यादा 60,000 फैकल प्रति 100 मिली पाया गया, जिससे गंगा स्नान योग्य भी नहीं रह गई। उत्तर प्रदेश के अन्दर कन्नौज से लेकर पवित्र शहर वाराणसी तक लगभग 450 किमी के बीच गंगा सर्वाधिक प्रदूषित हैं इस क्षेत्र की फैक्ट्रिया इस नदीं को प्रदूषित कर रही है। कानपुर के अधिकतर चर्मोद्योग का प्रदूषण गंगा में जाता है। वाराणसी में जहाँ दशाश्वमेध घाट पर अधजली लाशें गंगाजी में बहती दिखाई देती हैं, वहां तो किसी भी घाट का पानी पीने योग्य नहीं है।
एक वैज्ञानिक अनुमान के अनुसार गंगा में 75 प्रति सीवरेज तथा 25 प्रतिशत औद्योगिक प्रदूषण पाया जाता है। रिपोर्ट के अनुसार गंगा में लगभग 15 करोड़ लीटर गंदा पानी प्रतिदिन गिरता है किन्तु जल-मल शोधन संयन्त्रों के द्वारा दस करोड़ लीटर पानी ही शोधित हो पाता है। इससे साफ है कि नदी का जल प्रदूषण बरकरार है। धार्मिक विश्वास के अन्तर्गत हरिद्वार तथा वाराणसी (काशी) में प्रतिवर्ष करीब 50 हजार शवों को जलाया जाता है। इन शवों को जलाने में 20 हजार टन लकड़ी और उससे बनने वाली राख करीब दो हजार टन होती है। गंगा किनारे स्थित केमिकल कारखानों से बड़ी मात्रा में अनेक प्रकार के रसायन सीधे गंगा में बहा दिये जाते हैं, फलस्वरूप गंगा में केमिकल प्रदूषण का स्तर लगातर बढ़ रहा है। इस प्रदूषण के लिए जिम्मेदार तत्व अपने द्वारा फैलाये गये प्रदूषण से बेखबर भी नहीं है। हॉ उनको जानकर भी अनजान रहने वाली शासन प्रणाली गंगा की इस दुर्दशा के लिए जिम्मेदार है।
देश में नदी प्रदूषण की समस्या कोई नयी नहीं है। प्रदूषण-संबंधी भारी दबावों से निपटने के लिए जरूरी साधनों की कमी से इंकार नहीं किया जा सकता है। समय-समय पर गंगा को बचाने के लिए सामाजिक संगठनों ने अनेक बार रुचि दिखाई है। गंगा नदी को राष्ट्रीय नदी घोषित करके गंगा नदी प्राधिकरण बनाने का फैसला स्वागत योग्य है, परन्तु क्या इसकी कोई गारन्टी कि इसका वैसा नहीं होगा, जैसा 1985 में शुरू की गई गंगा योजना का हुआ। 1985 में शुरू की गई गंगा कार्य योजना में अब तक दो हजार करोड़ रुपये और 26 साल बीत चुके हैं, परन्तु गंगा नदी वैसे की वैसे ही मैली बनी हुई है। गौरतलब है कि गंगा की सफाई के लिए विश्व बैंक ने हाल ही में एक अरब डॉलर का ऋण मंजूर किया है। भारत सरकार ने गंगा की सफाई करने और इसके संरक्षण के लिए वर्ष 2009 में राष्ट्रीय गंगा नदी बेसिन प्राधिकरण नेशनल गंगा रिवर बेसिन ऑथोरिटी (एनजीआरबीए) की स्थापना के साथ की है। एनजीआरबीए को यह सुनिश्चित करने के लिए एक बहु-क्षेत्रीय कार्यक्रम तैयार करने का काम सौंपा गया है कि वर्ष 2020 के बाद नगरपालिका या उद्योगों का अनुपचारित अपशिष्ट जल (वेस्टवाटर गंगा) में नहीं बहने दिया जाएगा। गंगा के निर्मल करने के प्रयासो के तहत उत्तराखण्ड की सरकार ने भी 2010 में ‘स्पर्श गंगा’ अभियान की शुरूआत की है।
काइली उस आस्ट्रेलिया की रहने वाली है, जहां दुनिया की अत्यधिक प्रदूषित नदियों में शुमार ‘हडसन’ बहती है। हडसन के बेहद प्रदूषित पानी से दूर रहने के लए आस्ट्रेलिया की सरकार ने नदी के दोनों किनारों पर बोर्ड लगाकर यह चेतावनी लिखी है कि ‘पानी जहरीला है, इसे न छुएं।’ शायद इसलिए गंगा में गिरते सीवेज और गंदगी को बहते देखकर काइली को जहरीली हडसन की याद आयी होगी, और उसने इसलिए गंगा को कचराघर कह दिया होगा। पतित पावनी गंगा को कचराघर कहने पर काइली को भावनात्मक तौर पर तो हम गलत ठहरा सकते है, लेकिन तथ्यात्मक स्तर पर नहीं।

Monday, August 8, 2011

UPSC Civil Services Aptitude Test (CSAT) 2011 Syllabus Pattern

Union Public Service Commission (UPSC) has made certain changes in its syllabus as well as pattern for the civil service preliminary examination that will be held in 2011.

The candidates who are interested to appear for the UPSC exam will have to appear for two separate examinations (mandatory), each comprising of 200 marks.

Paper 1 will include -
1. Current affairs of national as well as international importance.
2. History of India and Indian National Movement.
3. Indian as well as World Geography.
4. Economic Geography of India and world.
5. Political System- Constitution, Indian polity and governance.
6. Economic and social development
7. Sustainable development.

Paper 2 includes –
1. General Mental Ability.
2. Interpersonal Skills.
3. Logical Reasoning and Analytical Ability.
4. General Science.
5. Basic Numeracy.
6. Decision making and problem solving.
7. Data interpretation.
8. English language and comprehensive skills.

For further information interested candidates should login to the official website of the Union Public Service Commission. The website will provide with further information related to the matter.

The link for the UPSC official website has been provided below.
http://www.upsc.gov.in/